मार्टिन लूथर किंग वह नाम है, जिसे एक समय में अमेरिका का हर नागरिक तो जानता ही था, साथ ही साथ उनकी ख्याति विश्व के प्रत्येक कोने तक भी पहुंची.
रंगभेद के खिलाफ मार्टिन ने जिस तरह से अपनी लड़ाई लड़ी, वह आज भी लोगों के ज़ेहन में जिंदा है. अमेरिका में अफ़्रीकी-अमेरिकन लोगों को समानता का अधिकार दिलाने का श्रेय मार्टिन लूथर किंग को ही जाता है. एक समय था जब अमेरिका में हर तरफ गोरे लोगों की मनमानी चलती थी. काले लोगों को अपना गुलाम समझा जाता था. उस समय मार्टिन उन सब के लिए एक आवाज़ बनकर सामने आए थे. खास बात तो यह है कि अपने इस मिशन को मार्टिन ने बिना किसी हिंसा के सफल बनाया था. तो आईये मार्टिन के सफ़रनामे पर नज़र डालते हैं:
बचपन में ही देखा रंगभेद का चेहरा
मार्टिन के समय में काले लोगों का बहुत बुरा हाल था. हालांकि बदलते वक्त के साथ उन्हें गुलामों की तरह रखना तो बंद कर दिया गया था, लेकिन समाज में अभी भी उन्हें अलग समझा जाता था. काले और गोरों में हर चीज़ बंटी हुई थी. चर्च तक में यह भेदभाव दिखाई देता था. गोरे लोगों के लिए अलग अच्छे चर्च हुआ करते थे और कालों के लिए समाज से दूर अलग चर्च हुआ करते थे.
मार्टिन लूथर किंग की छोटी आंखों ने इन तस्वीरों को बचपन से ही देखा था. यूं तो मार्टिन एक अच्छे परिवार में जन्मे थे, इसलिए वह आर्थिक रूप से समृद्ध थे. बावजूद इसके समाज ने उन्हें हर पथ पर याद दिलाया कि वह समाज से अलग हैं. किसी भी आम बच्चे की तरह वह भी अपने पड़ोसी बच्चों (Link In English) के साथ खेलने जाया करते थे. मार्टिन के दोस्त गोरे बच्चे थे. एक दिन वह सब मार्टिन के पास आए और कहा कि वह कल से उनके साथ नहीं खेलेंगे. जब मार्टिन ने उनसे पूछा कि क्यों? तो उन्होंने बताया कि वह मार्टिन से अलग स्कूल में जा रहे हैं, जहां सिर्फ़ गोरे बच्चे ही जा सकते थे. इस बात ने मार्टिन को अंदर तक झकझोर कर रख दिया.
America’s Gandhi Martin Luther King (Representative Pic: hmstummer.com)
एक हादसे ने बदल डाली सोच
जैसे-जैसे मार्टिन बड़े हुए, रंगभेद की यह बुरी तस्वीर और गहरी होती गई. जीवन में चल रहीं छोटी-छोटी गतिविधियों ने मार्टिन के जीवन जीने की सोच को बदलना शुरु कर दिया था. इसी बीच मार्टिन जब 14 साल के हुए तो उन्हें एक प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का मौका मिला. उनको इस प्रतियोगिता के दौरान बोलने का मौका मिला, तो उन्होंने समानता के अधिकार पर जबरदस्त स्पीच दी थी. इसके लिए उन्हें प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
इस प्रतियोगिता के बाद वह बस से वापस अपने घर लौट रहे थे. वह जीतने की ख़ुशी में मग्न थे, तभी उनका सामना सच्चाई से हो गया. अचानक बस रुकी और एक मुसाफिर बस में चढ़ा. बस पूरी तरह भरी हुई थी. कोई भी सीट खाली नहीं थी. कहते हैं कि वह गोरा व्यक्ति मार्टिन के पास आया. उसने मार्टिन से सीट (Link In English) खाली करने के लिए कहा. मार्टिन अपनी सीट से नहीं उठे, क्योंकि वहां पर बैठना उनका हक था. वह गोरा कोशिश करता रहा, लेकिन मार्टिन सीट से नहीं हटे.
अंत में जब बात से कुछ नहीं हुआ, तो उसने मार्टिन को शारीरिक बल से हटाने की कोशिश शुरु कर दी. मार्टिन भी पीछे नहीं हटे. अंत में गोरे को कदम पीछे करने पड़े. इस घटना ने बस में सवार कई काले लोगों को प्रेरित किया. बाद में मार्टिन ने महसूस किया कि इस समस्या की जड़ें बहुत गहरी हैं. कहते हैं कि यही वह मोड़ था, जहां से उन्होंने तय किया कि वह इसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करेंगे.
लोगों की आवाज़ बन कर सामने आए
गोरों के खिलाफ मार्टिन खड़े होने लगे थे. वह अब उन सभी लोगों की आवाज़ बन चुके थे, जो खुद के लिए नहीं बोल सकते थे. उनकी मांग थी कि अमेरिका में सबके लिए एक समान अधिकार हो. फिर चाहे वह अफ़्रीकी हो या अमेरिकी सब को एक ही नज़र से देखा जाए. अपने बस में हुए हादसे को मार्टिन भूल नहीं पाए थे. बस वह अब इस कोशिश में थे कि ऐसे हादसे आग न हो. इसके लिए उन्होंने जल्द ही आन्दोलन छेड़ दिया था. इस आन्दोलन की एक अन्य बड़ी वजह थी. असल में आन्दोलन से थोड़े ही दिन पहले एक अफ़्रीकी महिला को पुलिस ने सिर्फ़ इसलिए कैद कर लिया था, क्योंकि उसने अपनी सीट एक अमेरिकी को देने से इंकार कर दी थी. इसके बाद तो सभी अफ्रीकियों (Link In English) ने ठान लिया कि वह अमेरिकी बसों में सफ़र नहीं करेंगे.
लगभग एक साल से भी ज्यादा उनका यह आन्दोलन चला था. अंत में यह आन्दोलन सफल रहा और सरकार तक मार्टिन की बात पहुंची. उस दिन के बाद से अफ्रीकी अमेरिकन के लिए मार्टिन ही सब कुछ बन गए थे. बावजूद इसके उन्होंने बिना हिंसा किए आन्दोलनों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी उठाई. उन्होंने एक के बाद एक कई सारे आन्दोलनों की आवाज़ उठाई और सरकार तक उन्हें पहुंचाया. सरकार को मार्टिन की मांगे माननी पड़ी.
अपने आंदोलन के लिए एक तरफ तो मार्टिन अफ़्रीकी लोगों के लिए भगवान बन गए थे. वहीं दूसरी तरफ रंगभेद करने वालों के लिए वह एक दुश्मन बनकर सामने आ गए थे. उन्होंंने मार्टिन को रोकने की बहुत कोशिशें की, लेकिन उन्होंने अपना रास्ता नहीं थोड़ा और अफ़्रीकी लोगों को अपना हक दिलवा की ही दम लिया था.
America’s Gandhi Martin Luther King (Pic: coladaily.com)
महात्मा गांधी की अहिंसा ने किया था प्रभावित
कहते हैं कि अपनी इस लड़ाई में मार्टिन ने कभी भी हिंसा का सहारा, इसलिए नहीं लिया था क्योंकि वह महात्मा गाँधी (Link In English) की अहिंसावादी सोच से काफी प्रभावित हुए थे. उन्होंने उनके बारे में पढ़ा था कि आखिर कैसे सामाजिक बदलाव के लिए गांधी जी ने लोगों की मन की शक्ति का प्रयोग किया न की उनकी शारीरिक शक्ति का. महात्मा गांधी के तरीकों की वजह से ही मार्टिन ने भी अपने आन्दोलनों को सही रूप में पूरा किया था.
गांधी जी से मार्टिन कभी मिल तो नहीं पाए, पर उन्हें और भी करीब से जानने के लिए वह भारत जरूर आए थे. उन्होंने यहां कई सारी बातें सीखीं, जो उन्होंने आगे कई सारे कामों के लिए इस्तेमाल की थी. अपने इंडिया के टूर पर उन्होंने जवाहरलाल नेहरू और कई सारे अन्य नेताओं से मुलाक़ात भी की थी. यहां से जाते हुए वह कई सारी काम की बातें भी अपने साथ ले गए थे.
America’s Gandhi Martin Luther King (Pic: pinterest.com)
भलाई के बदले मिली मौत
मार्टिन अपने आंदोलनों को बड़े सिरे से करने लगे थे. हजारों लोग उनकी इस मुहिम में उनके साथ जुड़ने लगे थे. उन्होंने वियतनाम युद्ध पर बेवजह पैसा लगाने, अफ़्रीकी लोगों को अमेरिकी से कम वेतन मिलने, जैसे कई सारे मुद्दों को मजबूती से उठाया. वह अमेरिका को जोड़ने की कोशिश कर रहे थे. अपने इन कामों के चक्कर में उन्होंने अपने कई सारे दुश्मन भी बना लिए थे. हर पल उनकी जान पर ख़तरा बना रहता था, लेकिन उन्होंने कभी भी पीछे हटने के बारे में नहीं सोचा.
1968 का वह दिन अमेरिका में काली रात बनकर आया था. मार्टिन एक होटल में ठहरे हुए थे. मार्टिन वहां पर मजदूरों की हड़ताल के मसले को सुलझाने के लिए गए थे. वह होटल की बालकनी में खड़े थे, तभी अचानक एक गोली (Link In English) आकर उन्हें लगी. पल भर में ही मार्टिन ने दम तोड़ दिया था. उसके बाद पूरे अमेरिका में मायूसी का मंज़र छा गया था. मार्टिन को अपने कामों के बदले गोली मिली थी. उस दिन को अमेरिका के इतिहास का एक सबसे दु:खद दिन माना जाता है. कहते हैं कि मरते दम तक मार्टिन सिर्फ़ पीड़ित लोगों के बारे में सोच रहे थे.
America’s Gandhi Martin Luther King (Pic: time.com)
देश में एकता लाने के लिए वह जेल तक गए थे.उन्हें उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए नोबेल पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था. गांधी जी की तरह सोचने के कारण उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता था. मार्टिन अपने लोगों को छोड़कर जा चुके थे, लेकिन उनकी यादों से उन्हें कोई नहीं निकाल सका. आज भी वह लोगों के बीच याद बनकर जिंदा हैं.
उनकी मेहनत का सिला अफ़्रीकी अमेरिकियों को भी मिला और यहाँ तक कि रंगभेद को दरकिनार करते हुए अमेरिकियों ने बराक ओबामा को अमेरिका का राष्ट्रपति भी चुना. निश्चित रूप से यह मार्टिन लूथर किंग द्वारा किये गए बीजारोपण का ही परिणाम था. ऐसे महापुरुषों का जीवन हर वक्त, हर दशक और हर सदी के लिए प्रेरक होता है, इसबात में दो राय नहीं!
Web Title: America’s Gandhi Martin Luther King, Hindi Article
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