अपनी क्रूरता के लिए दुनियाभर में कुख्यात जर्मनी के तानाशाह हिटलर के बारे में कौन नहीं जानता. वह जितना क्रूर था उतना ही बेरहम भी था. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके द्वारा बनाए गए मौत के चेंबर में लाखों यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया था.
हैवानियत की सारी हदें पार करने में हिटलर की मदद की थी एक सनकी डॉक्टर ने, जिसका नाम था जोसेफ मेंगले. उसने मासूम लोगों पर मेडिकल के ऐसे-ऐसे एक्सपेरिमेंट किए कि उसके बारे में सोचने मात्र से ही लोगों की रूह कांप जाती हैं! अपनी दरिंदगी के कारण ही वो पूरी दुनिया में 'एंजल ऑफ डेथ' के नाम से फेमस हुआ.
तो चलिए जानते हैं आखिर कौन था जोसेफ मेंगले और कैसे उसने इंसानियत को शर्मसार किया अपने नापाक कामों से–
दिल-ओ-दिमाग पर हावी थे नाज़ी विचार...
जोसेफ मेंगले के परिवार की गिनती जर्मनी के जाने-माने रईसों में होती थी. उनका कारोबार देश की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था के बावजूद फल-फूल रहा था. इसी बीच मेंगले ने म्यूनिख यूनिवर्सिटी से मानव विज्ञान में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की. एक डॉक्टर बनने के बाद उसने फ्रैंकफर्ट में डॉ ओटमार फ्रीहिर वॉन वर्चुएर के साथ बतौर असिस्टेंट काम करना शुरू कर दिया. माना जाता है कि डॉ. ओटमार कट्टर नाज़ी समर्थक था.
उसके साथ काम करते-करते जोसेफ ने भी नाज़ी पार्टी जॉइन कर ली. इसके बाद 1938 में मेंगले वेहरमाच की एस एस यूनिट में शामिल हो गया. कहते हैं कि यहां उसने जमकर पोलिश लोगों को जर्मन नागरिकता ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया. नाज़ी पार्टी के बड़े अधिकारियों की नजरें जोसेफ पर पड़ने लगीं
उसके ज़ज्बे को देखते हुए उसे यूक्रेन में एक सैन्य अभियान के लिए भेजा गया. यहां भी मेंगले ने अपना सर्वश्रेष्ठ देते हुए न सिर्फ़ सैनकों बल्कि हिटलर का भी दिल जीता. वो और जंग लड़ता इससे पहले ही वो युद्ध में लड़ते हुए गंभीर रूप से घायल हो गया. घायल सैनिक हिटलर के कोई काम का नहीं था. इसलिए जोसेफ को वापस जर्मनी भेज दिया गया.
वापिस आने के बाद उसकी बहादुरी का इनाम देते हुए मेंगले को सेना में कैप्टन बना दिया गया. यही नहीं उसे लाइफटाइम के लिए ऑशविट्ज कैंप में तैनात कर दिया गया. यहीं से शुरू हुआ उसका मासूम लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने का सिलसिला.
बच्चों और महिलाओं पर किए जानलेवा एक्सपेरिमेंट!
बतौर मेडिकल ऑफिसर मेंगले ने कैंप में बंदी बनाकर रखे गए लाखों यहूदियों पर उल्टे सीधे एक्सपेरिमेंट करने शुरू कर दिए. यहां पर लाए जाने वाले बंदियों की छटनी की जाती थी. जो काम करने में सक्षम थे उन्हें अलग रखा जाता और जो कमजोर थे उन्हें हिटलर के गैस चेंबर में घुट-घुटकर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था.
मेंगले का सबसे क्रूर रूप यहीं देखने को मिला. वह बड़े शौक से लोगों को यातनाएं देता था. उसने हिटलर द्वारा निर्देशित मानव प्रयोगों के अलावा ख़ुद के भी एक्सपेरिमेंट करने शुरू कर दिए. मेंगेल की नजर में दुश्मन कोई इंसान नहीं जानवर था. वह उनपर कोई रहम नहीं करता था. कहते हैं कि बच्चा हो या बूढ़ा मेंगेल के लिए हर शख्स बस एक एक्सपेरिमेंट था.
इतनी ही नहीं माना जाता है कि वह डॉक्टरी के सारे उल्टे सीधे एक्सपेरिमेंट मासूम बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर करने लगा था. मेंगले इतना बेरहम था कि वो बिना किसी शिकन के बेदर्दी से महिलाओं और बच्चों को ख़ून भरे इंजेक्शन किसी जानवर की तरह ठोक दिया करता था! डॉक्टरी की पढ़ाई करने के कराण उसे पता था कि जुड़वा बच्चों पर अनुवांशिकता के प्रभावों को आसानी से देखा जा सकता है. इसलिए उसने अपने प्रयोग करने के लिए उन्हें चुनना शुरू कर दिया.
वो उनमें से एक पर प्रयोग करता और इस दौरान उसमें जो भी बदलाव आते उसके नोट्स बनाता. अगर इस दौरान सबजेक्ट की मौत हो जाती, तो वह तुरंत दूसरे को क्लोरोफॉर्म का इंजेक्शन देकर मौत की नींद सुला देता था. वो यहीं नहीं रुकता. इसके बाद दोनों के शरीर की चीर-फाड़ कर उसका फिर से अध्ययन करता. इस तरह उसने दर्जनों जोड़ों का शिकार किया!
एक बार कैंप में लाई गई एक महिला ने अपनी बच्ची से अलग रहकर काम करने से मना कर दिया और गॉर्ड से हाथापाई करने लगी. इस झगड़े को निपटाने के लिए उसने उसी वक़्त मां-बेटी को शूट कर दिया. इसके बाद उसने कुछ लोगों को चुना और बाकी के कैदियों को ज़हरिले गैस के चैंबर में मरने के लिए छोड़ दिया.
प्रयोग के बहाने ली कई निर्दोष जिंदगियां!
1944 में जोसेफ की लगन को देखते हुए उसे प्रमोट कर इस कैंप का मैनेजर बना दिया गया. इसके बाद उसके हाथ में सारी पॉवर आ गई थी. वो जो जी में आता करता और अपने ही तरीके से कैंप को चलाता. उसने नाज़ियों के नियमों के अनुसार अपनी रिसर्च को जारी रखा. हालांकि इसी बीच जिप्सियों के इन कैंप में नोमा नाम का ख़तरनाक गैंगरीन फैलने लगा.
जोसेफ को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह क्यों फ़ैल रहा है. इसलिए उसने लाचार लोगों पर फिर से एक्सपेरीमेंट करने की ठान ली. कहते हैं कि जोसेफ उन लोगों को मारकर उनके सिर खोलकर उनपर एक्सपेरीमेंट करने लगा. इसके बाद भी वह रुका नहीं और कई तरह के प्रयोग करता रहा जो कुछ इस प्रकार थे–
हाई एल्टीट्यूड टेस्ट
इस टेस्ट को मानव शरीर में अत्यधिक ऊंचाई पर होने वाले बदलावों को जानने के लिए किया गया था. इसके लिए लोगों को कम ऑक्सीजन वाले पर्वतों पर बिना किसी सेफ़्टी के तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता था. कई बार तो उन्हें वहीं से गिरा दिया जाता था ताकि ये पता चल सके कि ऊंचाई से गिरने पर मानव शरीर को कितनी आघात पहुँचती है.
फ्रीजिंग एक्सपेरिमेंट
इस प्रयोग के तहत कैदियों को 3-4 घंटों तक बर्फ से भरे टैंक में बिताने पड़ते थे. इसके ज़रिये मेंगले ये पता लगाना चाहता था कि इस स्थिति में मानव शरीर किस तरह से रिएक्ट करता है. यही नहीं इसके बाद उनके शरीर को गर्म करने के लिए कई दूसरे पैंतरे अपनाए जाते थे. इन एक्सपेरिमेंट्स के दौरान लोगों का शरीर ठंड के मारे जम जाता था, लेकिन फिर भी उसे रहम नहीं आता था.
समुद्री जल के साथ प्रयोग
उसने समुद्री जल को पीने योग्य बनाने के लिए अपने सारे एक्सपेरिमेंट को इन्हीं लोगों पर टेस्ट किया. कहते हैं कि उन्हें सिर्फ पीने के लिए विभिन्न केमिकल से मिला हुआ समुद्री जल ही दिया जाता था. खाना उनके लिए वर्जित था. इससे उनके शरीर में बहुत ही दर्द होता और उन्हें गहरी अंदरूनी चोटें भी आती.
इसके अलावा उसने मलेरिया, अनेक प्रकार के जहर और जहरीली गैसों का भी प्रयोग किया था. इन सबको उन कैदियों ने कैसे सहन किया होगा इसका अंदाजा कोई भी नहीं लगा सकता.
दर्दनाक हुआ जोसेफ का अंत
दिन ब दिन जोसेफ की दरिंदगी बढ़ती ही जा रही थी. वह अत्याचार करने के मामले में अपने सरताज हिटलर के बराबर हो रहा था. वह ज्यादा से ज्यादा कैदियों की मांग करने लगा. इसी बीच हंगरी से आ रहे नए कैदियों का एक जत्था बीच में ही मारा गया. इसके बाद वहां आने वाले कैदियों की संख्या गिरती गई. आखिर में यहां होने वाले सभी ऑपरेशन कैदी न होने की वजह से बंद करने पड़े.
1945 की शुरूआत में आश्वित्ज कैंप को दुश्मन सेना ने बुरी तरह से नष्ट करना शुरू कर दिया था. जोसेफ के कैंप पर भी खतरा था. ऐसे में उसने अपनी सारी रिसर्च को इक्कठा किया और उसे अपने एक दोस्त को सौंप दिया. वह रेड आर्मी से बचने के लिए पश्चिम की ओर चला गया.
कहते हैं कि वो कई देशों में अपना नाम बदल कर छुपने में कामयाब रहा. कई दशकों तक मेंगले ब्राजील, अर्जेंटीना और पराग जैसे देशों में अपने दुश्मनों की नज़रों से बचता रहा. हालांकि एक दिन ब्राजील से उसकी मौत की खबर आई. बताया गया कि 1979 में मेंगले अटलांटिक महासागर में तैरने गया और वहीं पानी में डूबकर उसकी मौत हो गई.
उसे वहीं दफनाया गया था. बाद में उसके जबड़े के फॉरेंसिक जांच से पता चला था कि वही मेंगले था. इंसानी कानून से बचने में, तो वह कामयाब रहा मगर कुदरत के कानून ने उसे कतई नहीं बक्शा. जिस तरह वह लोगों को मारता था वैसे ही उसकी भी एक बहुत दर्दनाक मौत हो गई. इसके साथ ही 'एंजेल ऑफ़ डेथ' का अंत हो गया.
बुरे काम का बहुत बुरा नतीजा होता है. यह इस बात से जाहिर हो जाता है कि कैसे हिटलर और जोसेफ जैसे उसके साथियों का अंत हुआ. जोसेफ ने लाचार लोगों को बहुत तड़पाया था और आखिर में उसकी मौत भी तड़प तड़प कर ही हुई. जोसेफ के बारे में आपका क्या कहना है कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं.
Web Title: Angel Of Death Nazi Doctor, Hindi Article
Feature Image Credit: knowyourmeme