भारत की आज़ादी में कई महान क्रांतिकारियों ने हिस्सा लिया और देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया. इन्हीं क्रांतिकारियों में कुछ ऐसे भी क्रांतिकारी हुए, जो अपने जीवन साथी के साथ देश लिए क़ुर्बान हो गए.
ऐसे ही क्रांतिकारियों में एक प्रेमी जोड़े का नाम भी शामिल है, जिन्होंने एक दूजे के लिए कई दीवारों को तोड़ते हुए प्रेम विवाह किया और देश की आज़ादी के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया.
ऐसे महान दम्पति जोड़े का नाम अरुणा और आसफ अली है. जिन्होंने एक साथ कंधे से कंधा मिलकर आज़ादी की लड़ाई में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.
ऐसे में हमारे लिए इनके बारे में जानना दिलचस्प रहेगा, तो चलिए जानते हैं इन दोनों से जुड़े कुछ रोचक बातों के बारे में…
जब अरुणा की मुलाकात आसफ अली से हुई
अरुणा का जन्म 16 जुलाई 1909 में पंजाब के एक ब्राहमण परिवार में हुआ था. इनका पूरा नाम अरुणा गांगुली था. इनके पिता उपेन्द्रनाथ गांगुली एक रेस्टोरेंट के मालिक थे. इन्होंने अपनी शुरूआती पढ़ाई नैनीताल से पूरी की. बचपन से ही अरुणा पढ़ने में अच्छी रहीं और क्लास में पहली पोजीशन लाया करती थी.
इसके बाद वो लाहौर के सेक्रेड हार्ट कान्वेंट कालेज में दाखिला ले लिया. यहां से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद कलकत्ता के गोखले मेमोरियल स्कूल में अध्यापिका के पद पर नौकरी करने लगीं.
इसी कड़ी में दिलचस्प बात यह है कि यहीं पर इनकी मुलाकात आसफ अली से हुई, जो कांग्रेस के सक्रीय नेता और पेशे से एक वकील थे. जिनका जन्म 11 मई 1888 में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था.
इन्होंने दिल्ली के स्टीफेन कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी और अपनी पढ़ाई के दौरान ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद चुके थे, जिसके लिए इन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था. आसफ अली 1914 से पूर्ण रूप से राष्ट्रीय आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे थे.
बहरहाल, अरुणा की मुलाकात जब आसफ अली से हुई, तो वो इनके विचारों से बहुत प्रभावित हुई.
सीमाएं लांघ कर दोनों ने रचाई शादी
दोनों की मुलाकात ने एक दूसरे के विचारों को समझा और धीरे धीरे नजदीकियां बढ़ने लगी. नजदीकियां बढ़ी तो अरुणा और आसफ के बीच प्यार का परवान चढ़ने लगा, जिसके बाद दोनों ने एक दूसरे से शादी करने का फैसला किया.
हालांकि अरुणा एक हिन्दू ब्राहमण थी जबकि आसफ एक मुस्लिम थे और यही नहीं आसफ उम्र में भी अरुणा से काफी बड़े थे, लेकिन इन्होंने सभी बेड़ियों को तोड़ते हुए एक दूसरे से शादी करना चाहा. इसके बाद 1928 में आसफ अली 21 साल की अरुणा गांगुली से शादी कर ली.
अरुणा गांगुली आसफ अली से शादी करने के बाद अरुणा आसफ अली बन गई और इसी नाम से मशहूर भी हुईं.
जिसके बाद दोनों को परिवार और समाज की नाराज़गी भी झेलनी पड़ी, मगर इसके बावजूद दोनों हमेशा साथ ही रहे. शादी के बाद दोनों ने आज़ादी की लड़ाई में अपना बहुमूल्य योगदान दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे.
जब भगत सिंह के वकील बने आसफ अली और…
8 अप्रैल 1929 में स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम फोड़ा, जिसके बाद दोनों गिरफ्तार हो गए और इन पर मुकद्दमा चलाया गया.
फिर आसफ अली ने ही इस केस को अपने हाथों में ले लिया और भगत सिंह व उनके साथियों की पैरवी करने लगे थे.
वहीं 1930 में जब गाँधी जी ने नमक आंदोलन शुरू किया तो अरुणा पहली बार इस आंदोलन में शामिल हुईं और कई स्थानों पर इस आंदोलन का नेतृत्व भी किया, जिसके लिए अरुणा आसफ अली को ब्रिटिशों ने गिरफ्तार किया और एक साल की सजा सुनाई. जेल से रिहा होने के बाद इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और फिर से आंदोलनों में हिस्सा लेने लगी, जिसकी वजह से इन्हें दोबारा जेल की हवा खानी पड़ी थी.
इस बार अरुणा ने जेल के अंदर मुजरिमों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार के लिए भूख हड़ताल भी किया था.
1935 में आसफ अली को मुस्लिम राष्ट्रीय पार्टी की तरफ से केन्द्रीय विधानसभा सदस्य के रूप में चुना गया. इसके बाद कांग्रेस की तरफ से मुस्लिम लीग के उम्मीदवार के खिलाफ दोबारा विधानसभा सदस्य मनोनीत हुए.
ग्वालिया टैंक पर अरुणा ने फहराया तिरंगा
आज़ादी के लिए भारतीय स्वतंत्रता सेनानी लगातार ब्रिटिशों के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे. कई आंदोलन अंग्रेजों के विरुद्ध शुरू किया जा चुके थे. इसी बीच महात्मा गाँधी ने नमक सत्याग्रह के बाद 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू कर दिया.
महात्मा गाँधी के इस आंदोलन में अरुणा आसफ अली ने महतवपूर्ण भूमिका निभाई. इन्होंने इस आंदोलन में एक सक्रिय सेनानी का रोल अदा किया था. इस दौरान कई क्रांतिकारी गिरफ्तार किये जा चुके थे, परन्तु अरुणा ने हिम्मत नहीं हारी और अंग्रेजों को मुंह तोड़ जवाब दिया.
अंत में अरुणा ने मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर अपनी बहादुरी का परिचय दिया और ब्रिटिशों को खुला चैलेंज दे दिया था. कहा जाता है कि इस दिलेरी की वजह से अंग्रेजों ने अरुणा की गिरफ्तारी पर 5 हजार रूपये का इनाम भी घोषित कर दिया था, हालांकि अरुणा को इस घटना के लिए अंग्रेज़ गिरफ्तार करने में नाकाम रहे.
उनकी इस साहस की चर्चा आज तक हर भारतीयों के बीच बनी हुई है. इस भारत छोड़ो आंदोलन में आसफ अली ने भी एक सक्रिय क्रांतिकारी के रूप में अपना अहम किरदार निभाया था.
अमेरिका के राजदूत बने आसफ अली और..
आसफ अली को 1945 में कांग्रेस पार्टी द्वारा आईएनए डिफेन्स टीम का कन्वेनर बना दिया गया, जिसके बाद इन्होंने क्रांतिकारियों को बचाने का काम करने लगे, आगे भारत की सरकार में रेलवे और परिवहन विभाग की कमान सभांली,
इसके बाद अमेरिका के पहले भारतीय राजदूत बने और फिर इन्हें ओड़िसा का गवर्नर नियुक्त किया गया, हालांकि बिमारी के चलते 1952 में इन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
अंत में इन्हें स्विट्ज़रलैंड में भारत के राजदूत के रूप में सेवा करने का मौक़ा मिला, मगर इस दौरान ही बीमारी के चलते देश का यह सिपाही 1 अप्रैल 1953 में इस दुनिया से अलविदा कह दिया, वहीं इस दौरान अरुणा आसफ अली भी भारतीय राजनीति में सक्रीय भूमिका निभा रहीं थीं.
दिल्ली की पहली महिला मेयर बनी अरुणा और...
भारत को जब आज़ादी मिली तो दो दम्पतियों ने भारत के अलग-अलग पदों पर रह कर देश की सेवा की, मगर अफ़सोस अरुणा अब अकेली हो चुकी थी, मगर इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और देश के उत्थान के लिए लगातार काम करती रहीं.
आज़ादी के बाद अरुणा ने अपनी एक सोशलिस्ट पार्टी बनाई थी, बाद में इनकी पार्टी का भारत की कम्युनिस्ट पार्टी में विलय हो गया. कुछ दिनों बाद अरुणा ने इस पार्टी का साथ छोड़कर दोबारा कांग्रेस पार्टी से जुड़ गई और दिल्ली की पहली महिला मेयर बनीं. इनके योगदान को देखते हुए 1975 में इन्हें लेनिन शांति पुरस्कार और जवाहरलाल नेहरु पुरस्कार से नवाज़ा गया.
वहीं 29 जुलाई 1996 में अरुणा आसफ अली ने भी इस दुनिया से अलविदा कह दिया. इनकी मृत्यू के बाद इन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया.
इन दोनों के योगदान को देखते हुए भारतीय डाक सेवा द्वारा इनके नाम का डाक टिकट भी जारी किया.
इस तरह दोनों दम्पतियों ने देश के लिए अंतिम साँस तक जीते रहे. साथ ही स्वतंत्रता संग्राम से लेकर देश के उत्थान के लिए हमेशा सब कुछ लुटाने को तैयार रहे.
तो ये थी अरुणा आसफ अली और आसफ अली की दास्ताँ, जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया.
Web Title: Aruna and Asaf Ali, Who Are Contribution In Indian Freedom, Hindi Article