तकनीकी विकास आज के समय की मांग है. इससे न सिर्फ देश का विकास संभव है बल्कि यह हमारी आधारभूत जरूरतों जैसे कम्युनिकेशन के लिए भी अहम है. यही सोच लिए भारत ने 1975 में एक कदम उठाया और अपने पहले उपग्रह जिसका नाम "आर्यभट्ट" था को अंतरिक्ष में उतारा.
आर्यभट्ट के लॉन्च के होने के बाद से भारत का अंतरिक्ष सफर शुरू हुआ, जो आज चाँद और मंगल ग्रह तक पहुंच गया है. देश के इस सफर में कईं मुश्किलें भी आयीं, लेकिन समय-समय पर भारत के द्वारा अंतरिक्ष के क्षेत्र में पायी उपलब्धियों ने दुनिया में देश की तकनीकी क्षमताओं का लोहा भी मनवाया. आज हमारा देश कुछ उन चंद देशों में से है, जो अपने रॉकेट से पृथ्वी की कक्षा में उपग्रह स्थापित करने में सक्षम हैं.
भारत के सफल और दुनिया के सबसे सस्ते स्पेस मिशन, मंगलयान की कामयाबी के बाद हमारा देश सस्ते अंतरिक्ष अभियान वाला देश बनकर उभरा. इसी का ही कारण था कि दुनिया के विभिन्न देशों ने अपना उपग्रह लॉन्च करने के लिए भारत को चुना.
तो चलिए आज जरा फिर से जानते हैं भारत के अंतरिक्ष सफ़र के बारे में और भारत के सबसे पहले उपग्रह 'आर्यभट्ट्ट' के बारे में–
इंदिरा गांधी ने किया 'आर्यभट्ट' का नामकरण!
आर्यभट्ट के बनने की कहानी शुरू होती है विक्रम साराभाई से, जो भारतीय स्पेस प्रोग्राम के जनक माने जाते हैं. उन्होंने अपने वैज्ञानिकों में से एक यू आर राव को एक स्वदेशी उपग्रह बनाने का काम सौंपा. उपग्रह निर्माण का काम यू आर राव को सौंपने के पीछे वजह थी कि सिर्फ वही भारतीय थे जिन्होंने NASA के दो उपग्रह प्रोग्राम में काम किया हुआ था.
इसके बाद कड़ी मेहनत से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने राव के नेतृत्व में उपग्रह को तैयार किया, जो 360 किलोग्राम वजनी था. इस उपग्रह को पीन्या जो बंगलौर के पास था वहां पर तैयार किया गया था. इसका निर्माण अंतरिक्ष में एक्स-रे, खगोल विज्ञान रिसर्च, सूर्य की किरणों और न्यूट्रॉन को मापने व पृथ्वी के आयन मंडल पर रिसर्च के लिए किया गया था.
जब उपग्रह तैयार हो गया तो उस समय की प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी के सामने इसके नाम को लेकर तीन प्रस्ताव रखे गए थे. वह तीन नाम थे मैत्री (जिसका अर्थ मित्रता था), जवाहर (जो इंदिरा गाँधी के पिता जवाहर लाल नेहरू के नाम पर था), और तीसरा था आर्यभट्ट (जो भारत के महान खगोलशात्री और गणितज्ञ थे).
प्रधानमंत्री ने बाकि दो नामों को अस्वीकार कर दिया और नए उपग्रह का नाम आर्यभट्ट स्वीकार किया. इस तरह उस उपग्रह का नाम भारत के महान खगोलशात्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया.
बहरहाल, यह उपग्रह देखने में बहुभुज जैसा था और इसके 26 फलक थे जैसे एक क्यूब के 6 फलक होते हैं. इसका व्यास 1.4 मीटर था. माना जाता है कि आर्यभट्ट उपग्रह को तैयार करने में कुल 30 महीने लगे और इस पर खर्च करीब 3.5 करोड़ आया था.
अंतरिक्ष में पहुंचा भारत का पहला उपग्रह!
भारत का पहला उपग्रह बन चुका था और अब वह अंतरिक्ष की उचाईयों को छूने के लिए पूरी तरह से तैयार था. अब वह घड़ी आ चुकी थी जब भारत का सपना साकार होने जा रहा था. वह 19 अप्रैल 1975 का दिन था जब रूस के बनाये स्पेस रॉकेट Kosmos-3M लॉन्च व्हीकल से आर्यभट्ट उपग्रह को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर दिया गया.
थोड़े ही समय में आर्यभट्ट पृथ्वी की कक्षा से अंतरिक्ष में पंहुचा. इसके कक्षा में स्थापित होने के पांचवे दिन बाद ही इसके इलेक्ट्रिकल सिस्टम में कुछ खराबी आ गयी और इसने काम करना बंद कर दिया. हालाँकि उन पांच दिनों के अंदर जरुरी डाटा ISRO के द्वारा इकट्ठा कर लिया गया था.
बहरहाल, उसके बाद उपग्रह कुछ समय तक काम किया और 17 साल बाद 10 फरवरी 1992 को यह पृथ्वी पर आ गिरा. आपको जानकर हैरानी होगी कि आर्यभट्ट के लॉन्च के बाद उसके टॉयलेट को भी डाटा रिसीवर सेण्टर के तौर पर प्रयोग किया गया था! ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उस समय ISRO के पास इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी थी. इसलिए उस समय जो भी मौजूद था उस सबका इस्तेमाल किया गया. हालांकि आज भारत की वही स्पेस एजेंसी दुनिया की सबसे काबिल संस्थाओं में से है जिसके पास अंतरिक्ष से जुड़ी विभिन्न क्षमताएं हैं.
भविष्य की राहें खोल गया आर्यभट्ट...
आज भले ही उस वक्त की यादें धुंधली हो गयी हो, लेकिन ये इतिहास का वह हिस्सा है जिसे भुलाया नहीं जा सकता. आर्यभट्ट भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम की ओर पहला कदम था और उसके बाद से हमारे वैज्ञानिकों ने अपनी लगन और मेहनत से कामयाबी का परचम पूरी दुनिया में लहराया है. अभी हाल में इसरो ने रिकॉर्ड तोड़ 180 विदेशी उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में उतारा है, जो हर भारतीय का सर फक्र से ऊँचा कर देता है.
जब भी हम चंद्रयान और मंगल यान जैसे मिशन के बारे में सुनते हैं, तो हमारा सीना गर्व से फूल जाता है. जो सफर देश के पहले उपग्रह आर्यभट्ट से शुरू हुआ था आज वो चाँद और मंगल ग्रह पर जा पहुंचा है. जहाँ चंद्रयान भारत का पहला मून मिशन था. वहीं मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) देश का पहला मंगल ग्रह का मिशन था.
सब से गर्व की बात यह थी कि जिस मंगल पर आजतक किसी भी देश का यान पहली बार में नहीं पंहुचा था. उस मंगल ग्रह पर भारत के वैज्ञानिकों को एक ही बार में अपना यान पहुंचने का गौरव प्राप्त हुआ. इसके अलावा सबसे खास बात यह थी कि यह मिशन बहुत ही कम लगत का था. इसके कारण ही भारत कम लगत में अंतरिक्ष उपग्रह भेजने वाला देश बनकर उभरा और दुनिया के कईं देश हम से अपने उपग्रह स्थापित करवाने लगे.
बहरहाल, अंतरिक्ष के क्षेत्र में दुनिया भर में अपनी ख्याति को कायम रखते हुए ISRO के कई स्पेस प्रोग्राम आने वाले हैं. इसमें शामिल है चंद्रयान-2 जोकि अक्टूबर 2018 के बाद लॉन्च हो सकता है. इसका इंतजार न सिर्फ देश के वैज्ञानिकों को है बल्कि देश के लोगों को भी इसका उतना ही इंतजार है.
जो राह आर्यभट्ट ने भारत को दिखाई है आज उस राह पर भारत लगातार आगे बढ़ता जा रहा है और नयी नयी मंज़िलें पा रहा है. इतिहास में आर्यभट्ट ने शून्य का महत्त्व बताकर भारत को प्रसिद्ध किया था. वहीं दूसरी ओर आज आर्यभट्ट उपग्रह ने अंतरिक्ष की यात्रा करके ये काम किया है. आर्यभट्ट उपग्रह के बारे में आपका क्या कहना है कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं.
Web Title: Aryabhata First Satellite Of India, Hindi Article
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