बहादुर शाह नाम सुनते ही आपको बहादुर शाह जफर यानी आखिरी मुगल बादशाह की दास्तान याद आ जाना लाजमी है.
इस मुगल बादशाह ने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के विद्रोह में भी भाग लिया था, और फिर अंग्रेजों ने इसे लाल किले से खदेड़ दिया. इस तरह से इसकी एक अंधेरी जगह पर मौत हो गई.
भारत पर लूट से शुरू हुए मुगल शासन का हश्र ये होगा किसी ने नहीं सोचा था.
बहरहाल, आज हम एक दूसरे बहादुर शाह की बात करने जा रहे हैं, जिसे गुजरात सल्तनत का सुल्तान कहा जाता है.
जी हां! बहादुर शाह, जिसने मुगल सुल्तान हुमायूं से जंग लड़ी. हालांकि, वह पराजित हुआ, लेकिन हार नहीं मानी और उसने मुगलों के हाथ से अपने खोए हुए साम्राज्य को वापस हासिल किया. फिर पुर्तगालियों ने उसकी धोखे से हत्या कर दी.
तो आइए, जानते हैं बहादुर शाह के बारे में, जिसने मुगलों की ईंट से ईंट बजा दी थी –
बाबर-लोधी के बीच हुई जंग का गवाह
बहादुर शाह का पूरा नाम क़ुतुबुद्दीन बहादुर शाह था. सन 1526 से 1535 और फिर 1536 से 1537 तक गुजरात की सल्तनत पर इसकी हुकूमत चली.
इसकी पैदाइश शमसुद्दीन मुजफ्फर शाह द्वितीय के यहां हुई. शमसुद्दीन मुजफ्फर शाह उस समय गुजरात की गद्दी पर काबिज था. उसने अपने बड़े बेटे सिकंदर शाह को अपना वारिस घोषित कर दिया था.
इसी के साथ सिकंदर शाह ने गुजरात सल्तनत का प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था. इससे बहादुर शाह के उनके भाई और पिता के साथ संबंध तनावपूर्ण हो गए. और मौके की नजाकत को समझते हुए शमसुद्दीन का छोटा बेटा बहादुर शाह अपनी समझदारी दिखाते हुए गुजरात छोड़कर चला गया.
यहीं से गुजरात सल्तनत में उथल-पुथल की शुरूआत हो गई.
असल में यहां से जाने की वजह बहादुर शाह का डर था, कि कहीं उसका बड़ा भाई उसे जान से न मार दे.
गुजरात से बाहर निकलने के बाद बहादुर शाह ने अपनी ताकत को बढ़ाना शुरू कर दिया. उसने एक-एक कर अपने आसपास की छोटी बड़ी रियासतों से मदद की गुहार लगाई.
सबसे पहले उसने चित्तोड़ में पनाह ली और फिर वो शेरशाह सूरी के पास गया. ये वो वक़्त था, जब बाबर भी दिल्ली पर कब्ज़े के लिए तैयारी कर रहा था.
जब पानीपत के मैदान पर पहली बार बाबर और इब्राहीम लोधी के बीच जंग हुई, उस वक़्त बहादुर शाह वहां मौजूद था.
इसी बीच, उसे अपने पिता की मौत की खबर मिली और वह वापस गुजरात की ओर चल दिया.
बहादुर शाह आखिर इसी दिन का इंतजार कर रहा था. उसने गुजरात पहुंच कर अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों को मात दी और वहां का सुल्तान बन गया.
मालवा और मेवाड़ को जीता
सन 1531 में पुर्तगाली गवर्नर निनो-डि कुन्हा ने गुजरात सल्तनत के अतर्गत आने वाले दीव पर आक्रमण कर दिया. इस हमले से गुस्साए बहादुर शाह ने तुर्की नौसेना की सहायता से समुद्र से घिरे दीव में पुर्तगाली सेना को बुरी तरह से हरा दिया. इसी के साथ उसने पुर्तगाल से युद्ध में हुए नुकसान की भरपाई भी कराई.
इस युद्ध में हारने के बाद पुर्तगालियों ने गोवा में शरण ले ली. और उधर जीत के बाद तुर्की नौसेना के चीफ मुस्तफा खां को गुजरात के शाही तोपखाने का अधीक्षक नियुक्त कर दिया. इससे बहादुर शाह की ताकत कई गुना बढ़ चुकी थी.
अपने साम्राज्य की सीमा विस्तार के लिए बहादुर शाह ने मालवा पर हमला कर दिया. मालवा का सुल्तान महमूद खिलजी उसकी विशाल और ताकतवर सेना के आगे ढेर हो गया और इसी के साथ मालवा को गुजरात सल्तनत में मिला दिया गया.
हुमायूं से दुश्मनी
बहादुर शाह ने सिलहदी को बंदी बनाकर रायसेना पर अधिकार कर लिया और उसका नियंत्रण आलम खां लोदी के हाथों सौप दिया. जो मुगल शासक हुमायूं का दुश्मन था. इस तरह से मुगलों के राजनीतिक शरणार्थियों को शरण देकर बहादुर शाह ने हुमायूं से दुश्मनी मोल ले ली थी.
हालांकि उसे इस बात का कोई डर नहीं था.
मालवा को पराजित करने के बाद बहादुर शाह ने सन 1535 में मेवाड़ को भी जीत लिया. जीत के पीछे तुर्की तोपची रूमी खां का बड़ा हाथ था. लेकिन जीत के साथ ही बहादुर शाह ने उसे कोई विशेष ईनाम नहीं दिया. इससे खिन्न होकर रूमी खां ने बहादुर शाह को धोखा दिया और वो हुमायूं के साथ जा मिला.
इधर, हुमायूं की सेना पहले से ही मेवाड़ की ओर बढ़ चुकी थी. उसने गुजरातियों की रसद आपूर्ति रोक दी. बहादुर शाह की सेना भूख से मरने लगी और देखते ही देखते हुमायूं की सेना ने मेवाड़ पर पर कब्जा कर लिया.
मौका पाकर बहादुर शाह अपनी जान बचाकर वहां से भाग निकला और जाकर दीव में छिप गया.
उधर हुमायूं भी इसका पीछा कर रहा था. वह धीरे-धीरे मेवाड़ से गुजरात की ओर के राज्य जीतता जा रहा था. और फिर उसने अहमदाबाद पर अपना अधिकार कर लिया. लेकिन इस समय उत्तर भारत से वह काफी दूर आ चुका था, जहां शेरशाह सूरी ने पहले से ही मुगलों की नाक में दम कर रखा था.
मजबूरन उसे गुजरात छोड़कर वापस दिल्ली की ओर लौटना पड़ा.
बहरहाल, दीव में अपने कट्टर दुश्मन पुर्तगालियों को बहादुर शाह ने दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए किला बनाने की अनुमति दे दी.
पुर्तगालियों ने धोखे से की हत्या
हुमायूं के उत्तर भारत लौटने के बाद बहादुर शाह ने पुन: अपनी सेनाओं को संगठित करना शुरू कर दिया. उसने उसने दोबारा से अपने खोए राज्य को प्राप्त कर लिया.
अब उसे पुर्तगालियों को दीव में किला बनाने की अनुमति देना एक गलत फैसला लग रहा था. वहीं, पुर्तगालियों ने बहादुर शाह के नियंत्रण वाले दीव पर अपना साम्राज्य विस्तार कर लिया था. कई बार वहां अपना काम करवाने के लिए बहादुर शाह को पुर्तगालियों से अनुमति भी मांगनी पड़ी.
वह पुर्तगालियों से युद्ध करने की स्थिति में भी नहीं था. पुर्तगाली समुद्र में बहुत मजबूत थे, वहीं बहादुर शाह ने हुमायूं को आता देख कब्जा करने के डर से अपने हजार जहाज के समुद्री बेड़े को भी आग के हवाले कर दिया था.
ऐसे में उसे इन सभी पेचीदा मामलों पर पुर्तगालियों से संधि करने के लिए दीव जाना पड़ा. इधर पुर्तगाली कुछ और ही सोच कर बैठे थे.
बहादुर शाह दीव में आया और उसने पुर्तगालियों के साथ उनके एक जहाज पर समझौता किया. 13 फरवरी 1537 को वह समझौता करके वापस अपने राज्य की ओर लौट रहा था, तभी उसकी धोखे से हत्या कर दी गई और लाश को अरब सागर में फेंक दिया.
Web Title: Bahadur Shah: Sultan of Gujarat Sultanate, Hindi Article
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