कहते हैं कि जो लोग अपना इतिहास नहीं जानते हैं, वे उस पेड़ की तरह होते हैं, जिसकी जड़ें नहीं होती हैं.
ऐसे में जरूरी है कि हम देश-विदेश में घटी हुई उन घटनाओं का जानें, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं.
तो आईये इसी क्रम में 19 जून में दर्ज कुछ ऐतिहासिक घटनाओं को जानते हैं-
अस्तित्व में आई 'शिव सेना'
19 जून 1966 के दिन 'शिव सेना पार्टी' की स्थापना हुई. बालासाहेब ठाकरे ने मुंबई में इसकी स्थापना की. पार्टी की स्थापना करने से पहले बालासाहेब ठाकरे एक अंग्रेजी अखबार में कार्टून बनाते थे.
1960 में इस्तीफा देकर ठाकरे ने खुद का अखबार निकाला. बालासाहेब अपने पिता केशव सीताराम ठाकरे से बहुत प्रभावित थे. सीताराम ठाकरे एक समय पर संयुक्त महाराष्ट्र आन्दोलन के प्रमुख नेता थे.
बालासाहेब ठाकरे ने, जब शिव सेना की स्थापना की, तो इसका प्रमुख उद्देश्य महाराष्ट्र में दूसरे प्रदेशों से आने वाले व्यक्तियों को बाहर निकालना था.
प्रारम्भ में पार्टी ने मुख्यतः दक्षिण भारतीयों के ऊपर निशाना साधा. इस समय शिव सेना का प्रमुख नारा ‘पुंगी बजाओ, लुंगी भगाओ’ था. कहते हैं शिव सेना की जब स्थापना हुई, तब मजदूर राजनीति के ऊपर कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ बहुत मजबूत थी, इसलिए कांग्रेस ने कम्युनिस्ट पार्टी को हराने के लिए शिव सेना को अपना समर्थन दिया.
आगे 1970 के आते-आते शिव सेना ने अपना नाता भारतीय जनता पार्टी से जोड़ा. 1995 में शिव सेना ने भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन के साथ पहली बार महाराष्ट्र का चुनाव जीता. इसी शासनकाल में उसने बम्बई का नाम बदलकर मुंबई कर दिया.
2004 के आते-आते शिव सेना ने मुंबई में अपनी पकड़ बहुत मज़बूत बना ली.
इसी क्रम में सन 2005 में पार्टी के दो गुटों में मतभेद हुआ, तो बाल ठाकरे के भतीजे 'राज ठाकरे' ने शिव सेना को छोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नाम से नई पार्टी बना ली.
आगे 17 नवंबर 2012 के दिन बालासाहेब ठाकरे की मृत्यु हो गई.
हालाँकि, उनके मरने से बहुत पहले ही उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने पार्टी का कार्यभार संभाल लिया था.
भारत ने लांच की पहली भूस्थिर सैटेलाईट
19 जून 1981 के दिन भारत ने अपनी पहली भू-स्थिर सैटेलाईट लांच की. इस सैटेलाईट का नाम ‘एप्पल’ था. इसे एक प्रयोग के सिलसिले में लांच किया गया था. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने इसे लांच किया था.
इसका वजन 670 किलो और इसकी ऑनबोर्ड शक्ति 210 वाट थी.
वहीं इसमें 6 और 4 गीगाहर्ट्ज़ के दो सी बैंड ट्रांसपोर्टर लगे थे. इसका व्यास और लम्बाई दोनों 1.2 मीटर थे. इसे एरियन 1 (वी- 3) लांच वेहिकल के द्वारा पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया था.
इस वेहिकल का निर्माण यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने किया था.
एप्पल को इसरो के बैंगलोर केंद्र में डिजाईन किया गया था. इसी केंद्र के पास इसकी शक्ति, टीटीसी, सौर्य ऊर्जा नियंतार्ण और सेंसर की देख- रेख की जिम्मेदारी थी, जिसे इस केंद्र के वैज्ञानिकों और इन्जीनियरों ने बखूबी निभाया था.
प्रारम्भिक टेस्ट करने के बाद इसरो ने इसे फ्रांस भेजा था, जहाँ इसका अंतिम टेस्ट होना था.
अंतिम टेस्ट में सफल होने के बाद इसे वापस से भारत भेज दिया गया. आगे फिर सैटेलाईट को लांच वेहिकल से जोड़ दिया गया और आंध्र परदेश में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर को इसके अंतरिक्ष में स्थापन की पूरी जिम्मेदारी दे दी गई.
स्थापना के बाद इसका इस्तेमाल टेलीविजन और रेडियो के प्रसारण में नए प्रयोग करने के लिए किया गया.
इसकी स्थापना पूरे भारत देश के लिए गर्व का क्षण था. भारतीय डाक सेवा ने एक साल बाद इस उपलब्धि पर नया डाक टिकट भी बनाया . 19 सितंबर 1983 को इसे डीएक्टिवेट कर दिया गया.
देशद्रोह के जुर्म में मिली मौत की सज़ा
19 जून 1953 के दिन जूलियस और एथेल रोसेनबर्ग को बिजली के झटके देकर मार दिया गया. इनके ऊपर अमेरिका के परमाणु प्लान को सोवियत संघ को चोरी-छिपे देने का आरोप साबित हुआ था.
हालाँकि, दोनों अपनी मौत के बिलकुल आखिरी तक एक- दूसरे को निर्दोष बताते रहे थे. आज भी यह केस अमेरिकी न्यायिक इतिहास में विवादित बना हुआ है.
जुलियस और एथेल पति पत्नी थे. जुलियस अमेरिकी आर्मी में इन्जीनियर था. जबकि, उसकी पत्नी एथेल सचिव के पद पर तैनात थी. दोनों ने 1939 में शादी की थी. उनके दो बच्चे भी थे.
दोनों के ऊपर 17 जून 1950 के दिन अमेरिका की परमाणु बम संबधित जानकारी को चोरी-छिपे सोवियत संघ को भेजने का आरोप लगा था. इसके तुरंत बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया.
इस केस में सबसे बड़ी भूमिका निभाई डेविड ग्रीनग्लास ने. वह न्यू मेक्सिको में स्थित गुप्त परमाणु बम लैब में मेकानिक के रूप में तैनात था. उसने सोवियत संघ को परमाणु जानकारी देने की बात कबूली थी. वह एथेल का भाई थी. उसी ने एथेल और जुलियस के खिलाफ गवाही भी दी थी. आगे उसे 10 साल कैद की सजा मिली थी.
आगे 6 मार्च 1951 को एथेल और जुलियस की सुनवाई हुई और 5 अप्रैल 1951 को उन्हें मौत की सजा मुकर्रर कर दी गई.
इस केस को बहुत मीडिया कवरेज मिला.
जीतने के बाद भी शूमाकर नाखुश
19 जून 2005 के दिन अमेरिकी ग्रैंड प्रिक्स में एक विवाद खड़ा हो गया.
यह विवाद फार्मूला वन कारों में लगे टायरों के बनाने में इस्तेमाल की गई रबड़ से सम्बंधित था. इस रेस को जर्मनी के ड्राईवर माइकेल शुमाकर ने जीता था. लेकिन वे भी अपनी जीत से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे.
इस रेस का आयोजन इंडियापोलिस मोटर स्पीडवे पर किया गया था. मुख्य रेस के दो दिन पहले अभ्यास के दौरान माइकेल शुमाकर के भाई राल्फ शुमाकर की कार डीवाइडर से टकरा गई थी.
इस घटना के बाद शुमाकर भाइयों के टायर बनाने वाली कंपनी ने फेडरेशन इंटरनेशनल ऑटोमोबाईल से आग्रह किया कि उन्हें दूसरे टायर भेजने की अनुमति दी जाए, क्योंकि जो टायर उन्होंने भेजे हैं वे रेस ट्रैक पर ढंग से पकड़ नहीं बना पा रहे हैं.
इसके जवाब में फेडरेशन इंटरनेशनल ऑटोमोबाईल ने कहा कि वह इसकी अनुमति नहीं दे सकता है क्योंकि नियमों के अनुसार एक सप्ताह में टायरों का केवल एक सेट ही प्रयोग में किया जा सकता है.
इसके विरोध में 14 कारों ने रेस में हिस्सा लेने से मना कर दिया.
रेस चालू हुई तो माइकेल शुमाकर की गाड़ी एक दूसरे ड्राइवर की गाड़ी से लगभग टकराते-टकराते बची. इस घटना के बाद दर्शक बहुत नाराज हुए और उन्होंने ट्रैक पर बोतलें फेंकनी शुरू कर दीं.
इस रेस को आगे माइकेल शुमाकर ने जीता, लेकिन जीत के बाद शैम्पेन खोलकर जश्न मनाने से इंकार कर दिया. बाद में रेस में भाग न लेने वाली टीमों ने संयुक्त पत्र लिखकर दर्शकों से माफ़ी मांगी.
तो ये थीं 19 जून को इतिहास में घटीं कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं.
यदि आपके पास भी इस दिन से जुड़ी किसी घटना की कोई जानकारी है, तो हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day In History 19 June: When Bal Thackray Founded Shiv Sena, Hindi Article
Feature Image Credit: shade