इतिहास के पन्नों को पलट दिया जाए तो, अनगिनत युद्धों को अंजाम दिया गया. हर युद्ध के साथ सत्ता की कमान बदली, राजा बदले और राज्य का प्रारूप भी बदलता गया.
इन युद्धों में से एक युद्ध है नागौर का. जिसमें एक राजा के वचन और उसे निभाने की कहानी है.
इस युद्ध में पीठ में छुरा घोपने की कहानी है. तो अपने पराक्रम के आगे दुश्मनों को घुटने टेकने पर मजबूर करने वाले राणा कुम्भा के साहस की कहानी है.
जानते हैं, नागौर के युद्ध के बारे में जिसमें राणा कुम्भा ने जीत हासिल की-
महमूद खिलजी को मिली राणा कुंभा से करारी शिकस्त
नागौर की लड़ाई से पहले दिल्ली सल्तनत और मेवाड़ के महाराज राणा कुम्भा के रिश्तों के बारे में जानना जरूरी है. इस युद्ध से उनके पराक्रम का पता लगाया जा सकता है.
सन 1442 में, राणा कुंभा ने चित्तौड़ छोड़ दिया और हरौती में घुसपैठ की. मेवाड़ को असुरक्षित देखकर, मालवा का सुल्तान महमूद खिलजी राणा से बदला लेने के लिए बहुत आतुर था. सन 1440 में मिली हार को वह अब तक नहीं भूल पाया था. मांडवगढ़ के युद्ध में मिली हार का बदला लेने के लिए उसने मेवाड़ में घुसपैठ की.
यह युद्ध कई दिनों तक चला. लेकिन इस युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला. इस युद्ध की के कुछ समय बाद, महमूद ने एक बार फिर अपनी सेना जुटाई. चार साल बाद महमूद ने 1446 में अपनी आर्मी के साथ मांडलगढ़ से गुजर रहा था.
इसी दौरान राणा कुंभा ने उसकी आर्मी के ऊपर हमला कर दिया. जब उन्होंने उनपर हमला किया उस दौरान सुल्तान बनास नदी पार कर रहा था.
महमूद खिलजी ने राणा कुंभा के हाथों करारी शिकस्त के हमले का सामना करने में वह असफल हो गया. उसे युद्ध क्षेत्र से पीछे हटना पड़ा. वह मंडू में पीछे हट गया. महमूद खिलजी ने राणा कुंभा के हाथों करारी शिकस्त का सामना किया.
सत्ता के लिए खान भाइयों में हुई लड़ाई
नागौर के शासक, सुल्तान फिरोज खान की सन 1453-54 के आसपास मृत्यु हो गयी थी. वह दिल्ली सल्तनत (महमूद खिलजी) के अंदर नागौर प्रोविंस का गवर्नर था. लेकिन, बाद में इसने दिल्ली सल्तनत से खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया.
सुल्तान फिरोज के दो बेटे थे. उनकी मृत्यु के बाद दोनों के बीच सत्ता को लेकर लड़ाई होने लगी.
उनके बड़े बेटे का नाम शम्स खान था और छोटे बेटे का नाम मुजाहिद खान. पिता की मौत के बाद मुजाहिद खान ने सत्ता हथियानी चाही. उसके पास शम्स खान की अपेक्षा ज्यादा सेना थी.
लिहाज़ा, उसने अपने भाई के ऊपर हमला बोला और उसे हरा दिया. इस प्रकार उसने सत्ता हथिया ली.
अपनी हार से दुखी और आक्रोशित शम्स खान राणा कुंभा के पास गया. उसने राणा से अपनी मदद करने की गुहार लगाई. उसने अपने लिए मेवाड़ में आश्रय देने की विनती की. इसके साथ ही अपने भाई मुजाहिद से वापस सत्ता हथियाने में उसकी मदद करने को कहा.
राणा कुंभा ने शम्स की मदद करने के लिए हां कर दी. बता दें, उनके मन में पहले से नागौर को अपने कब्जे में लेने का प्लान था.
ऐसे में, वह शम्स की मदद करने के लिए राजी हो गए.
उन्होंने इसे एक अवसर के तौर पर देखते हुए शम्स खान को सत्ता पर बैठने के लिए तो कह दिया. मगर इसके साथ एक शर्त रखी. उनकी शर्त के मुताबिक़ शम्स भले ही नागौर की कुर्सी पर बैठ जाएगा. लेकिन, राणा कुम्भा का प्रभुत्व बना रहेगा. साथ ही, उसे नागौर में किले के एक लड़ाई के स्थान को नष्ट करना होगा.
शम्स ने राणा की इस शर्त को मान लिया. इस तरह राणा ने उसे नागौर की सत्ता हथियाने में मदद की.
नागौर पर सेना के साथ राणा कुम्भा ने धावा बोला
राणा कुम्भा अपनी विशाल सेना के साथ नागौर पर हमला करने के लिए निकले. उनकी सेना के सामने मुजाहिद खान की सेना टिक न सकी. इस युद्ध में उसे बहुत करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. नौबत यहाँ तक आ गयी कि मुजाहिद को नागौर छोड़ कर भागना पड़ा. वह जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर नागौर से भागने में कामयाब हो गया. वह भागकर गुजरात सल्तनत चला गया.
नागौर में अपनी जीत दर्ज करने के बाद राणा ने शम्स खान को सत्ता की कुर्सी पर बिठाया. इसके बाद उन्होंने अपनी शर्त पूरी करने को कहा.
शर्त के मुताबिक़ शम्स खान को किले में मौजूद एक लड़ाई के स्थान को खत्म करना था. लेकिन शम्स ने राणा से प्रार्थना करते हुए कहा कि वह इसे अभी ध्वस्त नहीं करने दें. क्योंकि क्या पता उनके जाने के बाद उनपर एक बार फिर हमला हो जाए. ऐसे में अपनी सुरक्षा के लिए मांग करते हुए किले को नहीं तोड़ने की विनती की.
साथ ही, उसने राणा कुम्भा से वादा किया कि वह स्वयं इस क्षेत्र को ध्वस्त कर देगा. एक बार उसे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित हो जाए.
ऐसे में, राणा उनकी इस विनती को अस्वीकार नहीं कर सके. उन्होंने उसकी ये बात भी मान ली. इसके बाद वह वापिस मेवाड़ के लिए लौट गए.
शम्स खान का धोखा और राणा कुम्भा का जवाब
अभी राणा कुम्भा मेवाड़ भी नहीं पहुँच पाए थे. बीच रास्ते में ही थे. वह कुम्भलगढ़ तक ही पहुँच पाए थे कि उन्हें एक चौंका देने वाली सूचना प्राप्त होती है. दरअसल, उन्हें पता चलता है कि शम्स खान किले को तोड़ना तो दूर बल्कि और भी अधिक किले बनाने में लग गया है.
वह अब पहले से भी अधिक किलेबंदी करने लगा था. वह चारो तरफ घेराबंदी करने लगा था. इस खबर को सुनते ही राणा आग बबूला हो गए.
इस तरह वह एक बार फिर मैदान-ए-जंग में कूद पड़े. इस बार भी उनकी सेना के सामने शम्स खान के छक्के छूट गए. उन्होंने शम्स खान को नागौर से बाहर निकाल फेंका.
अपनी जीत दर्ज करने के बाद उन्होंने सारे किले ध्वस्त करवा दिए. शम्स खान अपनी हार के बाद दुम दबाकर अहमदाबाद भाग खड़ा हुआ. वह अपने साथ अपनी बेटी को भी ले गया.
गुजरात सल्तनत की सेना को एक क्रूर हार का सामना करना पड़ा. उन्हें मुकाबले में हरा दिया गया. राणा कुम्भा ने शम्स खान का खजाना ले लिया. उसके भण्डार में मौजूद साड़ी कीमती सामान जैसे-सोना, चांदी, हीरे-जवाहारात आदि.
इसके अलावा, वह अपने साथ किलों में लगे दरवाजों को भी ले गए. साथ ही, नागौर मर मौजूद हनुमान जी की एक तस्वीर को भी अपने साथ ले गए.
हनुमान जी की इस तस्वीर को उन्होंने कुम्भलगढ़ के किले पर लगाया. उन्होंने इस किले के मुख्य द्वार पर हनुमान जी को स्थापित किया. इस जगह को हनुमान पोल के नाम से जाना जाने लगा.
इस तरह इस युद्ध के साथ ही राणा कुम्भा का नाम इतिहास में एक साहासिक राजा के तौर पर दर्ज हो गया.
Web Title: Battle Of Nagaur: A Battle Which Was Won By Rana Kumbha of Mewar, Hindi Article
Feature Image Credit: peopletimes