इतिहास में बहुत से ऐसे युद्ध हैं, जिनका नाम किताबों में दर्ज है. हम और आप इन्हीं युद्धों के बारे में पढ़ते और समझते आये हैं. परंतु, इनके अलावा भी कई सारे ऐसे युद्ध हुए, जो किताबों में भले ही दर्ज न किए गये हों, लेकिन वह अपने आपमें ही एक इतिहास हैं.
सारगढ़ी युद्ध भी एक ऐसे ही युद्ध का नाम है. इसमें 21 सिख सैनिकों ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अफ़गान के दस हजार सैनिकों को घुटने पर लाकर खड़ा कर दिया था. आप को हॉलीवुड की 300 वारियर फिल्म तो अवश्य याद होगी, किन्तु यह सच्ची कहानी उस फिल्म से कहीं ज्यादा साहसिक है. वह भी मात्र 21 भारतीय योद्धाओं के बल पर!
तो आइये एक बार फिर से उस महायुद्ध की यादों में लौट चलते हैं:
सारगढ़ी था लड़ाई का केंद्र
1897 का दौर था. ब्रिटिश सेना का दबदबा बढ़ता जा रहा था. ब्रिटिश भारत से बाहर के इलाकों पर भी अपना राज करने का प्लान करने लगे थे. उन्होंने अफ़गानियों पर कुछ हमले भी शुरू कर दिए थे. भारत अफ़गान सीमा पर उस समय दो किले हुआ करते थे. गुलिस्तान का किला और लॉकहार्ट का किला. यह दोनों सीमा रेखा के छोरों पर थे. लॉकहार्ट का किला ब्रिटिश सेना के लिए था, जबकि गुलिस्तान का किला ब्रिटिश सेना के संचार का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था. यह सारगढ़ी से सटा हुआ था. इस लिहाज से यह एक बहुत ही अहम जगह मानी जाती थी.
इसकी सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर 21 सिखों को तैनात किया गया था. इनकी संख्या जरुर कम थी, लेकिन उनकी बहादुरी पर अंग्रेज तक पूरा भरोसा करते थे. चूंकि, ब्रिटिश लगातार अफ़गानियों पर हमले करते रहते थे, इसलिए अफ़गानी उनसे नाराज रहते थे. दोनों के बीच में मनमुटाव बढ़ता जा रहा था. दोनों पक्षों के अंदर एक आग जल रही थी. एक तरफ ब्रिटिश को हार पसंद नहीं थी, तो दूसरी तरफ अफ़गान बदला लेने के लिए भारत में आने की सोच रहे थे.
सारगढ़ी का माहौल गर्म था. सैनिकों को सतर्क रहने को कहने के लिए कहा गया था. एक तरह से कहा जाए तो सारगढ़ी के वह किले तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य की जान थे, जिन पर अफ़गानी अपना कब्जा चाहते थे. हालांकि, यह उनके लिए आसान नहीं था.
Battle of Saragarhi (Pic: thequint)
जब 10,000 अफ़गानों ने कर दी चढ़ाई
12 सितंबर 1897 सुबह का समय था. सभी सिख सैनिक सोए हुए थे. सूरज की पहली किरण के साथ उनकी आंख खुली, नजारा चौंकाने वाला था. करीब 10,000 अफ़गानी सैनिक उनकी ओर तेजी से बढ़ते जा रहे थे. दुश्मन की इतनी बड़ी संख्या देखकर सब हैरान थे. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये. 21 सिख सैनिकों को उन्हें रोकना एक बड़ी चुनौती थी.
इस वक्त यह सोचने का समय नहीं था कि अफ़गानी रातों-रात उन तक कैसे पहुंच गये थे. उन्हें तुरंत मोर्चा संभालने की जरुरत थी. वह फौरन अपनी बंदूकों की ओर लपके. उनके पास बंदूके तो थीं, लेकिन इतनी मात्रा में नहीं थी कि वह ज्यादा देर दुश्मन का सामना कर पाते. स्थिति की नज़ाकत को समझते हुए उन्होंने तुरंत अंग्रेजी सेना को संपर्क करना उचित समझा.
लॉकहार्ट के किले पर अंग्रेजी अफसर बैठे हुए थे. सिखों ने उन्हें संदेश भेजते हुए बताया कि एक बड़ी संख्या में अफ़गानियों ने चढ़ाई कर दी है, उन्हें तुरंत मदद की जरूरत है. अंग्रेजी अफसर का जवाब सिखों के सोचे हुए जवाब से बिल्कुल अलग था. अफसर ने कहा कि इतने कम समय में सेना नहीं भेजी जा सकती है. उन्हें मोर्चा संभालना होगा. सिखों के लिए करो या मरो की स्थिति बन चुकी थी.
Afghani Tribal Man Army (Representative Pic: imgur)
…और शुरु हो गया खूनी संघर्ष!
सिख चाहते तो मोर्चा छोड़कर वापस आ सकते थे, लेकिन उन्होंने भागने से अच्छा दुश्मन का सामना करना उचित समझा. वाहे गुरु का नाम लेकर वह अपनी-अपनी जगह पर मजबूती से तैनात हो गये. अफ़गानी निरंतर आगे बढ़ रहे थे. सारे सिख सैनिक अपनी-अपनी बंदूकें लेकर किले के ऊपरी हिस्से पर खड़े हो गए थे. सन्नाटा हर जगह पसर चुका था. सिर्फ बढ़ते अफ़गानियों के घोड़ों की आवाज सुनाई दे रही थी. थोड़ी ही देर में एक गोली की आवाज़ के साथ जंग शुरू हो गई थी.
दोनों तरफ से अंधाधुंध गोलियां चल रही थीं. कुछ ही समय में अफ़गानी समझ चुके थे कि यह जंग आसान नहीं होने वाली. वह इस तरह से सिखों को नहीं हरा पायेंगे. उन्होंने एकजुट होकर सिखों पर हमला बोल दिया, लेकिन सिखों ने अपना हौंसला नहीं गंवाया. वह लगातार अफ़गानियों से लोहा लेते रहे. अफ़गानी सैनिकों की एक टुकड़ी ने किले के दरवाज़े पर हमला करने की कोशिश की, किन्तु वह सफल नहीं हो सके.
अफ़गानी बुरी तरह खिसिया गये थे. उन्होंने दीवार को तोड़ना शुरू कर दिया था. वह इसमें सफल रहे. किले की दीवार टूट चुकी थी. अफ़गानी सैनिक तेजी से किले के अंदर घुसते जा रहे थे. अफ़गानियों के किले में आते ही बंदूकों की लड़ाई हाथों और तलवारों की लड़ाई में तब्दील हो गई.
सिखों का मनोबल टूटने लगा था कि…
अफ़गानियों से लड़ना आसान नहीं था. वह सब संख्या में बहुत ही ज्यादा थे. इन सबके बावजूद भी सिख सैनिक लड़ते ही रहे थे. धीरे-धीरे अफ़गान उनपर भारी पड़ने लगे थे. कई सिख सैनिकों को गहरी चोटें लग चुकी थी. उन 21 सिख सैनिकों में कुछ ऐसे भी थे, जो पूरी तरह सिपाही नहीं थे. उनमें कुछ रसोईये थे तो कुछ सिग्नलमैन थे, लेकिन वह सब अपने साथियों के लिए जंग में उतरे थे.
सिखों का मनोबल टूटने लगा था किसी एक ओर से आई ‘जो बोले सो निहाल’ की आवाज़ ने उनमें जोश भर दिया था. उन्होंने अफ़गानियों को अपनी तलवारों से मारना शुरू कर दिया था. वह सब बाद में एक धुन में ‘जो बोले सो निहाल’ के नारे के साथ आगे बढ़ते गये और अफ़गानियों को मौत के घाट उतारते गये. कहते हैं कि दूर खड़े अंग्रेजी अफसरों को भी सिखों के चिल्लाने की आवाज़ आने लगी थी. वह अफसर भी जानते थे यह आवाज़ थोड़ी ही देर में बंद हो जाएगी.
आखिर में वही हुआ, जिसका सबको अंदाज़ा था. सभी सिख मारे गए थे. वह सब तो शहादत को प्राप्त हुए, लेकिन मरने से पहले वह लगभग 600 अफ़गानियों को मार चुके थे. उन्होंने तीन घंटे तक उन सभी को रोके रखा, ताकि उनकी सेना आ सके.
उसके बाद अंग्रेजी सेना आई और अफ़गानियों को वापस जाने पर मजबूर कर दिया था. उन 21 सिख सैनिकों ने दिखा दिया था की हौंसलों में दम हो तो कोई भी तुम्हें नहीं रोक सकता है.
Battle of Saragarhi (Representative Pic: thetravellingsingh)
सारगढ़ी का युद्ध बताता है कि भारत वीरों की भूमि है. यहां लोग अपने वतन पर हंसते-हंसते जान न्यौछावर कर देते हैं. यह इतिहास में दर्ज बढ़िया युद्धों में से एक माना जाता है. यूं इसका ज़िक्र भले ही कहीं न मिलता हो, लेकिन यह खबर सुकून देने वाली है कि बॉलीवुड इस पर एक फिल्म बनाने वाली है. उम्मीद है, आगे आने वाले समय में इस युद्ध के 21 वीर योद्धाओंं का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा.
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