यूँ तो गजल की दुनिया में एक से बढ़कर एक गायक आए हैं, मगर एक गायिका ऐसी भी आईं जिन्होंने अपनी एक अलग ही पहचान बनाई.
दर्दभरी गजल को जब वो अपनी आवाज़ में लोगों के सामने पेश करती थीं, तो कई लोगों की आँखें भर आती थीं. सिर्फ देश ही नहीं विदेशों तक लोग उनके गायन के दीवाने थे.
यह शख्सियत कोई और नहीं बल्कि मल्लिका-ए-गजल बेगम अख्तर थीं. संगीत से उनका कुछ ऐसा रिश्ता था कि वह इसके लिए ही जीती थीं और उनकी मौत भी इसके साथ ही हुई.
तो चलिए आज थोड़ा और नजदीक से जानते हैं बेगम अख्तर की इस कहानी को–
बचपन में ही जुड़ गया संगीत से रिश्ता
7 अक्टूबर 1913 फैजाबाद, उत्तर प्रदेश के एक मुस्लिम परिवार में जन्म हुआ बेगम अख्तर का. उनका परिवार उस समय के हाई क्लास मुस्लिम परिवारों में से एक था.
लिहाजा उस समय के कई लोगों की तरह वह भी संगीत को बहुत अच्छा नहीं मानते थे. वहीं दूसरी ओर बेगम अख्तर के अंदर का संगीतकार बचपन में ही दिखाई देने लगा था.
शुरुआत से ही उनकी आवाज़ बहुत दमदार थी मगर उनकी माँ उन्हें संगीत की ओर नहीं जाने देना चाहती थीं. बेगम अख्तर का मन माँ के मना करने के बाद भी नहीं माना.
उनके मामा ने इस बात पर गौर किया और उनकी माँ को समझाया. मामा के समझाने के बाद उनकी माँ राज़ी हुईं और बेगम अख्तर को उस्ताद इमदाद खान के पास तालीम लेने भेजा गया.
एक बार संगीत की तालीम शुरू होने के बाद बेगम अख्तर की आवाज़ पहले से भी ज्यादा अच्छी हो गई. इसके बाद तो उन्होंने अपने समय के बड़े-बड़े उस्तादों से तालीम लेना शुरू किया.
उन्होंने पटियाला के मोहम्मद खान और गुलाम मोहम्मद खान जैसी उस्तादों से संगीत के गुर सीखे. इतना ही नहीं कहते हैं कि बेगम अख्तर संगीत में इतना डूब गईं कि छोटी उम्र में ही वह किसी सालों पुरानी गायिका की तरह गाने लगीं.
थोड़े ही समय में उनके उस्तादों ने उन्हें यह कह दिया कि अब वह पूरी तरह से गाने के लिए तैयार हो चुकी हैं. इसके बाद शुरू हुआ बेगम अख्तर का वह सफर, जो उन्हें ऊंचाइयों तक ले गया.
अपनी गायकी से किया सरोजिनी नायडू को हैरान!
कई गायक सालों की तालीम के बाद भी स्टेज पर नहीं गा पाते थे. वहीं दूसरी ओर थीं बेगम अख्तर जिन्होंने अपना पहला स्टेज शो महज़ 15 साल की उम्र में ही कर दिया.
उस शो में जब उन्होंने कुछ मशहूर गजल पेश की, तो हर कोई बस बेगम अख्तर को ही सुनता रहा. उन्होंने एक ऐसा समा बाँधा कि हर कोई भी अपनी सीट से उठाना ही नहीं चाहता था.
अपने पहले शो से ही बेगम अख्तर ने सबको बता दिया था कि गजल कि दुनिया में अब उनका नाम भी चलेगा.
पहला शो हिट रहा और बेगम अख्तर की आवाज़ सुनने के लिए लोग पागल हो रहे थे. लिहाजा जल्द ही उन्होंने और भी कई स्टेज शो किया.
उनका किया हुआ हर शो हिट हो रहा था. धीरे-धीरे बड़े-बड़े लोग बेगम अख्तर के नाम से परिचित हो गए थे. उन बड़े लोगों में से ही एक थीं सरोजिनी नायडू.
एक चैरिटी कॉन्सर्ट में उन्होंने बेगम अख्तर को गाते हुए सुना. उनकी आवाज़ सुनते ही सरोजिनी नायडू ने सोच लिया कि ये अवाज तो हर किसी को सुननी चाहिए.
कॉन्सर्ट के बाद वह बेगम अख्तर से मिलीं और उन्होंने कहा कि बेगम को सिंगिंग में अपना हाथ आजमाना चाहिए. फिर क्या था इसके बाद बेगम अख्तर निकल पड़ीं सिंगिंग करने.
बॉलीवुड में आते ही हो गईं फेमस...
सरोजिनी नायडू की बात मानते हुए बेगम अख्तर ने सिंगिंग में जाने की सोची. उनकी आवाज़ इतनी जादुई थी कि रिकॉर्डिंग कंपनी तुरंत ही उन्हें लांच करने के लिए मान गई.
उन्होंने अपनी पहली रिकॉर्डिंग 'मेगाफोन रिकॉर्ड कंपनी' के साथ की. कंपनी ने बेगम अख्तर की गाई हुई गजल को अपने ग्रामोफोन के साथ बेचा.
1930 आते-आते भारत में फिल्मों ने थोड़ा जोर पकड़ लिया था. इसी बीच कुछ फिल्मों में काम करने का मौका बेगम अख्तर को भी मिला.
उन्होंने अमीना, मुमताज़ बेगम, जवानी का नशा आदि जैसी कुछ फिल्मों में काम किया. बेगम अख्तर को बॉलीवुड में असली पहचान मिली 1942 में आई फिल्म 'रोटी' से.
उस समय के प्रसिद्ध फिल्म डायरेक्टर महबूब खान ने खुद बेगम अक्तर को फिल्म में गाने लिए कहा था. बेगम अख्तर ने भी ये मौका हाथ से नहीं जाने दिया.
फिल्म के लिए उन्होंने 6 गजल गई थीं मगर उनकी किस्मत थोड़ी ख़राब रही. फिल्म के प्रोडूसर और डायरेक्टर के बीच थोड़ा तनाव पैदा हो गया. इस तनाव के कारण बेगम अख्तर की चार गजल मिटा दी गईं.
फिल्म के साथ उनकी सिर्फ दो ही गजल रिलीज़ हुई मगर उन दो ने भी हर जगह बेगम अख्तर का नाम प्रसिद्ध कर दिया.
जब पति के कारण हुई संगीत से दूरी!
1944 में बेगम अख्तर लखनऊ के एक बैरिस्टर से हो गई. शादी के तुरंत बाद ही बेगम अख्तर की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई. कहते हैं कि उनके पति ने उन्हें शो करने से मना कर दिया.
उन्हें सिर्फ घर की चारदीवारी में रहने की हिदायत दी गई. इसके बाद कुछ सालों तक बेगम अख्तर ने खुद को संगीत से दूर कर लिया.
वह पूरी तरह से अपने परिवार के लिए जीने लगीं. हालांकि, इस दौरान वह एक घुटन महसूस कर रही थीं. संगीत उनकी जिंदगी बन चुका था. वह किसी भी कीमत पर उसे छोड़ नहीं सकती थीं.
करीब चार साल तक वह ऐसे ही संगीत से दूर रहीं मगर फिर उन्होंने वापसी करने की ठान ली. उन्होंने सोच लिया कि अब वह संगीत और खुद के बीच किसी को नहीं आने देंगी.
इस काम को करने के लिए उन्हें उम्मीद थी तो बस एक मौके की, जो 1948 में उनके सामने आया. ऑल इंडिया रेडियो के एक स्पेशल प्रोग्राम में उन्हें गाने के लिए बुलाया गया.
इसके बाद अपने डेढ़ घंटे के शो के जरिए बेगम अख्तर फिर से संगीत की दुनिया में आईं. इतना ही नहीं इस बार उन्होंने फिर से इसे कभी न छोड़ने की कसम भी खा ली थी.
आखिरी सांस तक नहीं छोड़ा संगीत का साथ...
बेगम अख्तर ने ताउम्र अपने वादे को निभाया. उन्होंने कभी भी गाना नहीं छोड़ा. वह चाहे कितनी भी बीमार हो या उन्हें कितनी भी परेशानी हो मगर किसी भी हालत में वह गाना नहीं छोडती थीं.
इतना ही नहीं वह काफी उम्र तक स्टेज शो करती ही रहीं. ऐसा ही के शो करने वह अहमदाबाद गई हुई थीं. वह दिन भी बाकी दिनों जैसा ही था
उन्होंने स्टेज पर गाना शुरू किया और उसी दौरान उन्हें अपनी आवाज़ में थोड़ा बदलाव महसूस हुआ. उस दिन उनकी आवाज़ बाकी दिनों के मुकाबले थोड़ी ज्यादा जोरदार थी.
इतना ही नहीं कहा जाता है कि उस दिन वह खुद को बीमार सा महसूस कर रही थीं. इसके बाद शो से हुए तनाव ने उन्हें काफी बुरी तरह से थका दिया.
मजबूरन उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. उन्हें बचाए जाने की बहुत कोशिश की गई मगर वह बच नहीं सकीं. 30 अक्टूबर 1974 को अपने जन्मदिन के कुछ ही दिनों बाद उनकी मौत हो गई.
इसके साथ ही मल्लिका-ए-गजल की मधुर आवाज़ हमेशा के लिए खामोश हो गई.
गजल गायकों की जब भी बात होती है उसमें बेगम अख्तर का नाम जरूर आता है. जिन्होंने उन्हें गाते हुए सुना है उनके ज़हन में आज भी बेगम अख्तर की आवाज बसी रहती है. आज भी कोई महिला उनकी जगह नहीं ले पाई है. बेगम अख्तर ने खुद को अपनी गायकी से हमेशा के लिए अमर कर दिया.
WebTitle: Begum Akhtar: Queen Of Gazal, Hindi Article
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