हर दिन कुछ न कुछ घटता है और उसमें से कुछ इतिहास में अमर हो जाता है.
इसी क्रम में आने वाली पीढ़ियां देखती हैं कि हमारे अतीत में क्या-क्या हुआ है. वो इससे सीखती हैं और आगे बढ़ती हैं.
'डे' इन हिस्ट्री की कड़ी में अाज हम 20 जून को घटित महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानेंगे–
वर्चस्व के अंत के लिए शुरू हुआ विद्रोह
20 जून 1900 को चीन में बॉक्सर विद्रोह शुरू हुआ. यह विद्रोह चीन के राष्ट्रवादियों ने चीन के ऊपर स्थापित विदेशी प्रभुता को समाप्त करने के उद्देश्य से किया था. इस दौरान इन राष्ट्रवादी विद्रोहियों ने पेकिंग को अपने कब्जे में ले लिया.
साथी ही बहुत से पश्चिमी अधिकारियों और आम लोगों को मार दिया था.
असल में उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक पश्चिमी ताकतों और जापान ने चीन के क्विंग साम्राज्य को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया था. ओपियम और साइनो-जापान युद्धों के द्वारा चीन ने उनकी मनमानी के खिलाफ लड़ने की कोशिस की थी, लेकिन कमजोर सेना के कारण वह हार गया था.
इसी क्रम में 1898 में चीन की रानी ने हो चुआन लड़ाकों को पश्रय देना शुरू किया. पश्चिमी ताकतें इन्हें बॉक्सर कहती थीं, क्योंकि इनके लड़ने का ढंग बॉक्सरों की तरह था. 1900 के आते-आते इनकी संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो गई थी.
20 जून 1900 के दिन लगभग एक लाख बॉक्सर लड़ाकों को लेकर 'जू झी' ने पेकिंग में पश्चिमी ठिकानों पर हमला बोल दिया. उन्होंने गिरजाघरों में आग लगा दी और पेकिंग-तिएन्स्तिन रेलवे लाइन को नष्ट कर दिया.
यह विद्रोह अपने आप में जबरदस्त था. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसको कुचलने के लिए जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ़्रांस और रूस सबको अपनी संयुक्त ताकत लगानी पड़ी थी.
इस विद्रोह के कुचल दिए जाने के बाद चीन पर 333 मिलियन डालर का जुर्माना लगाया गया. इसके साथ ही पेकिंग में पश्चिमी सैनिकों को तैनात करने की अनुमति भी चीन को देनी पड़ी.
व्हाइट हाउस में लगा सौर्य ऊर्जा सयंत्र
20 जून 1979 में अमेरिका के व्हाइट हाउस में सौर्य ऊर्जा सयंत्र लगाया गया. उस समय जिमी कार्टर अमेरिका के राष्ट्रपति थे.
जिमी कार्टर उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, जब उनका देश पेट्रोलियम निर्यातक देशों के समूह द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध से जूझ रहा था. ऐसे में अमेरिका के लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों की खोज करना बहुत जरूरी हो गया था.
सौर्य ऊर्जा सयंत्र की स्थापना इस दिशा में एक बड़ा कदम था.
व्हाइट हाउस में 28 हजार डालर कीमत का सौर्य ऊर्जा का सयंत्र लगाया गया था. इसमें इतनी क्षमता थी कि यह पूरे व्हाइट हाउस में गर्म पानी कि आपूर्ति कर सकता था.
आगे 1986 में दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने इस सयंत्र को हटवा दिया. उन्होंने कहा कि उनके शासनकाल में अमेरिका को किसी प्रकार का ऊर्जा संकट नहीं झेलना पड़ेगा.
रीगन के इस निर्णय के बाद ग्रीनपीस नाम की एक गैर सरकारी संगठन ने उनसे आग्रह किया किया. वे सौर्य ऊर्जा सयंत्रों को बेघर लोगों के लिए बनाई गई, बस्तियों में प्रयोग करने की अनुमति दे. लेकिन उसका यह आग्रह नहीं माना गया.
आगे व्हाइट हाउस में लगे इस सयंत्र का प्रयोग वेर्जीनिया में स्थित यूनिटी कॉलेज ने पानी को गरम करने के लिए किया.
2004 में यह सयंत्र ख़राब हो गया था, तो कॉलेज ने इसका एक पैनेल अपने पास संग्रह के तौर पर रख लिया और बाकी को बेच दिया. कुछ पैनलों को अनेक संस्थानों को दान कर दिया गया.
कोयला खान धमाके में मारे गए 111 मजदूर
20 जून 2002 को चीन की एक कोयला खान में धमाका हो गया. इस धमाके में 111 मजदूर मारे गए. धमाके के बाद हुई जांच में पता चला कि हर धमाके के तरह इस धमाके से बचने के लिए सुरक्षा मानकों को नज़रअंदाज किया गया था.
इक्कीसवीं सदी के शुरूआती पांच वर्षों में चीन में ऐसे कुल पांच कोयला खान धमाके हुए थे, जिनमें हर बार सौ से अधिक मजदूर मारे गए थे.
14 फरवरी 2005 को सुन्जिवान कोयला खाद्दान में हुए धमाके में करीब 200 से अधिक मजदूर मारे गए थे. वहीँ एक अनुमान के मुताबिक सन 2004 चीन की विभिन्न कोयला खदानों में अलग-अलग वजहों से करीब 6,300 लोग मारे गए थे.
तानाशाह चीनी सरकार द्वारा नियंत्रित मीडिया ने इन हादसों को मुश्किल से ही खबर बनाया था. इस कारण इनका निवारण भी नहीं खोजा गया. सन 2000 में हुए एक ऐसे ही हादसे में कुल 200 मजदूर विस्फोट के बाद खान में फंस गये थे.
उन्हें पाइप लाइन के द्वारा खाना-पानी भेजा जाता रहा, लेकिन जहरीली गैस के कारण वे ज्यादा दिनों तक बच नहीं पाए.
इससे पहले कुछ खानों को आधिकारिक रूप से बंद कर दिया गया था, लेकिन वे अवैध रूप से काम करती रहीं. ज्यादातर हादसे इन्हीं खानों में हुए.
इससे पहले चीन का सबसे खतरनाक कोयला खान हादसा 1942 में मंचूरिया में हुआ था. इस हादसे में 1,549 मजदूरों की जान गई थी. तब मंचूरिया जापान के कब्जे में था.
भारत सरकार ने नहीं किए हस्ताक्षर
20 जून 1996 के दिन भारत सरकार ने जेनेवा कांफ्रेस में सीटीबीटी अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया.
सीटीबीटी अनुबंध किसी भी प्रकार के परमाणु विस्फोट को अंजाम देने के खिलाफ था.
इस अनुबंध संयुक्त राष्ट्र 10 सितम्बर 1996 को प्रकाश में लाया था और 24 सितंबर को इसे हस्ताक्षर के लिए न्यू यॉर्क में खोल दिया था. इस अनुबंध पर 71 देशों ने हस्ताक्षर किये थे, जबकि भारत इससे साफ़ मुकर गया था.
इससे पहले 1954 में अमेरिका ने प्रशांत महासागर में स्थित नामू अटोल नाम के द्वीप पर 15 मेगाटन का हाइड्रोजन बम विस्फोट किया था. एक अनुमान के मुताबिक़ इससे निकला रेडिएशन आस-पास की बस्तियों में फैल गया था, जिसके कारण करीब 36 नागरिकों को विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ हो गई थीं.
तब भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने इसका कड़ा विरोध किया था और संयुक्त राष्ट्र में भविष्य में इस तरह के विस्फोटों के ऊपर बैन लगाने की मांग की थी.
असल में भारत ने 1947 में अपनी आजादी के बाद से ही विश्व में शांति स्थापित करने का रास्ता चुना था.
इस उद्देश्य से वह समय- समय पर सभी प्रकार के परमाणु हथियारों को निष्क्रिय करने की वकालत करता आया था. इस अनुबंध के समय अमेरिका के पास करीब 2,000 परमाणु हथियार थे. यह अनुबंध इन हथियोरों को निष्क्रिय करने के संबंध में नहीं था. यही कारण था कि भारत ने इसके ऊपर हस्ताक्षर करने से साफ़ इंकार कर दिया था.
तो ये थीं 20 जून के दिन इतिहास में घटीं कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं.
यदि आपके पास भी इस दिन से जुडी किसी घटना की जानकारी हो तो हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day In History 20 June, Hindi Article
Feature Image Credit: Science Source