नाज़ी सेना के हमलों ने चार्ल्स को बुरी तरह घायल कर दिया था. वह सही से चल भी नहीं पा रहे थे. नाज़ी सेना आगे बढ़ रही थी कि तभी चार्ल्स ने अपनी बंदूक उठाई और उनपर हमला करने निकल पड़े...
ये किसी वॉर फिल्म का सीन नहीं बल्कि एक ऐसे सैनिक की असली कहानी है, जिसके सामने नाज़ी सेना भी झुक गई. वह सैनिक, जो जंग के मैदान में ऐसा लड़ा कि आज भी उसे याद किया जाता है.
ऐसा कारनामा करने वाले और कोई नहीं बल्कि न्यूजीलैंड के वॉर हीरो कैप्टन चार्ल्स उपहम थे. आज भी जंग में दिखाए गए उनके साहस की कहानियाँ लोगों को प्रेरणा देती हैं.
तो चलिए जानते हैं आखिर कैसे दूसरे विश्व युद्ध में चार्ल्स ने किया था नाज़ी सेना की नाक में दम–
देश के लिए किसान से सैनिक बने!
न्यूजीलैंड में पले-बढ़े चार्ल्स ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वह सेना के लिए जंग लड़ेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि वह तो एक आम जिंदगी जीना चाहते थे. कहते हैं कि चार्ल्स का ध्यान शुरुआत से ही खेती में लगता था.
इसलिए उन्होंने एग्रीकल्चर की डिग्री ली और कॉलेज के बाद खुद का एक फार्म खोल लिया. दूर-दूर तक उनका और सेना का कोई नाता ही नहीं था.
कुछ समय तक तो चार्ल्स ने खेती की मगर इससे उनका गुजारा पूरी तरह से नहीं चल रहा था. इसलिए उन्होंने न्यूजीलैंड में होम गार्ड की नौकरी शुरू कर दी.
करीब पांच साल तक वह शहर में ही नौकरी करते रहे मगर तभी 1941 में दूसरे विश्व युद्ध की आग बढ़ने लगी! न्यूजीलैंड को भी मदद के लिए जंग में आना पड़ा.
जंग इतनी बड़ी थी कि सैनिकों की कमी होने लगी थी. ऐसे में यह देश की आन का सवाल बन गया था कि वह जल्द से जल्द सैनिकों की कमी को पूरा करें.
चार्ल्स चाहते, तो वह होम गार्ड बने रहकर शहर में अपनी जिंदगी गुजार सकते थे मगर उन्होंने आसान रास्ता नहीं चुना. देश की आन के लिए चार्ल्स ने खुद को सेना में भर्ती करना सही समझा.
बिना कुछ और सोचे वह भर्ती के लिए चले गए. अपने पांच साल के होम गार्ड एक्स्पेरिंस का उन्हें बहुत फायदा मिला. उन्हें न सिर्फ बिना किसी ट्रेनिंग के सेना में भर्ती कर लिया गया बल्कि उन्हें सीधा सार्जेंट भी बना दिया गया.
चार्ल्स के जिम्मे न्यूजीलैंड की 2एंड एक्सपीडिशन फाॅर्स की 20वीं बटालियन थी. ग्रीस के क्रीत द्वीप पर नाज़ी सेना ने कब्ज़ा कर लिया था. चार्ल्स को उनकी जिम्मेदारियां दी ही गई थीं कि उन्हें इस द्वीप से नाजियों को हटाने के काम सौंप दिया गया.
इसके साथ ही चार्ल्स अपनी सेना की टुकड़ी के साथ निकल पड़े जंग पर.
अकेले ही कर दिया नाजियों को ध्वस्त!
नाज़ी सेना ने दूसरे विश्व युद्ध का सबसे पहला एयरबोर्न मिशन करके अपने 10,000 सैनिक क्रीत द्वीप पर उतार दिए थे. द्वीप पर आते ही उन्होंने वहां की एयरफील्ड को अपने कब्ज़े में ले लिया.
चार्ल्स का काम था उनको एयरफील्ड से बाहर फेंक देना. चार्ल्स के पास बहुत बड़ी सेना की टुकड़ी नहीं थी मगर फिर भी वह बिना डरे आगे बढ़े. जैसे ही वह क्रीत द्वीप के पास पहुंचे जर्मन सैनिकों ने उन्हें देख लिया और हमला शुरू कर दिया.
चार्ल्स अपनी टुकड़ी के साथ एयरफील्ड से करीब 3000 गज की दूरी पर थे कि नाज़ी सेना के हमले बढ़ गए. इसके कारण लगातार आगे बढ़ रही उनकी टुकड़ी को तीन बार रुकना पड़ा.
नाजी सेना मशीन गन से लेकर मोर्टार तक का इस्तेमाल कर रही थी. वहीं दूसरी ओर चार्ल्स और उनके साथियों के पास सिर्फ हथगोले और राइफल ही थीं.
न्यूजीलैंड की सेना को नाज़ी मशीन गानों की वजह से आगे बढ़ने में काफी परेशानी हो रही थी. ऐसे में समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए...
जब कोई रास्ता नजर नहीं आया, तो चार्ल्स ने अपने हाथों में ये काम ले लिया.
उन्होंने बचे हुए हथगोले अपने एक बैग में भरे और हाथ में एक पिस्टल रखी. इसके बाद चार्ल्स सीधा भागते हुए दुश्मन के मशीन गन बंकरों की ओर गए. अपनी बंदूक की गोलियों और हथगोलों से उन्होंने वहां सब धूँआ-धूँआ कर दिया!
इतना ही नहीं उनके इस हमले में करीब 8 नाज़ी सैनिक मारे गए. इसके बाद भी वह रुके नहीं वह दूसरे बनकर की ओर बढ़े और वहां भी सब नष्ट कर दिया.
इस बीच नाज़ी गोलियों से वह खुद को बचाते हुए निकल रहे थे. उनकी टुकड़ी के सैनिक उनकी ये वीरता देख जोश से भर गए. जैसे ही मशीन गन रस्ते से हटी सेना तेजी से आगे बढ़ी.
चार्ल्स यहीं तक नहीं रुके. वह आगे बढ़े और नाजियों द्वारा लगाई गई एंटीएयरक्राफ्ट गन को भी आग के हवाले कर दिया. ये सब करने के बाद चार्ल्स दुश्मनों की भारी गोलीबारी के बीच फिर से गए अपने घायल सैनिकों की मदद करने.
उन्हें कई गहरी चोटें भी लगी मगर उन्होंने अपनी चिंता नहीं की. वह लागातार अपनी टुकड़ी को आगे बढ़ाते ही रहे.
गोली लगने के बाद भी नहीं झुके...
चार्ल्स जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे हालत और भी ज्यादा गंभीर हो रहे थे. अब दुश्मन ने मोर्टार दागने शुरू कर दिए थे. ऐसा ही एक मोर्टार आकर चार्ल्स के पास फटा जिसके कारण वह बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गए!
उन्हें वापस जाकर मेडिकल सहायता लेने के लिए कहा गया मगर चार्ल्स ने मना कर दिया. वह जंग में बने रहना चाहते थे.
हालांकि, उनके हाथ में बुरी तरह से चोट लग गई थी और वह काम नहीं कर रहा था. फिर भी अपनी बंदूक के साथ वह सीधा दुश्मन के सीने पर वार करने निकल पड़े.
इसी बीच उनके पैर पर भी एक गोली आकर लग गई. उस गोली ने कुछ देर के लिए चार्ल्स को आगे बढ़ने से रोक दिया. वह चल नहीं पा रहे थे. वहीं दूसरी ओर नाज़ी सैनिक धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे.
अगर वह बैठे रहते तो नाज़ी सैनिक उन्हें मार देते इसलिए उन्होंने लड़ते रहने का फैसला किया. उनका एक हाथ काम नहीं कर पा रहा था इसलिए वह एक पेड़ के पीछे छिप गए. उन्होंने अपनी बंदूक उसपर टेक दी ताकि उनके हाथों को उसे उठाना न पड़े.
ऐसी हालत में भी चार्ल्स के अंदर इतना जोश भरा था कि वह दो और नाज़ी सैनिकों को मारने में सक्षम रहे. चार्ल्स इसी हालत में करीब 9 दिनों तक लड़ते रहे. वह तब तक जंग से नहीं हटे जब तक नाज़ी सैनिकों को उन्होंने खदेड़ नहीं दिया.
इसके बाद उन्हें सेना क्रीत द्वीप से वापस न्यूजीलैंड ले गई इलाज के लिए.
...और चार्ल्स फिर निकल पड़े जंग पर
चार्ल्स अभी ठीक ही हुए थे कि 15 जुलाई 1942 को वह फिर से जंग पर जाने के लिए तैयार हो गए. इस बार उन्हें इजिप्ट में नाज़ी सैनिकों के साथ लड़ने के लिए भेजा गया.
जैसे ही वह जंग के मैदान में पहुंचे उन्होंने फिर से वही पुराना वाला रंग दिखाया. एक बार फिर उनका सामना नाज़ी मशीन गन बंकरों से हुआ और फिर से उन्होंने अपने हथगोलों से उन्हें नष्ट कर दिया.
कहते हैं कि जर्मन बंकर में चार्ल्स के हाथों कुछ जरूरी जानकारी लग गई थी. वह चाहते थे कि जल्द से जल्द इस बात को आला अफसरों को बता दिया जाए.
वह अपनी टुकड़ी से काफी आगे आ चुके थे. पैदल वापस जाने का फायदा नहीं था. इलसिए उन्होंने एक नाज़ी जीप को अपनी सवारी बना लिया. उनके साथ कुछ साथी भी थे वह सब भी जीप में सवार हो गए.
वह जर्मन बेस के पास से अपनी जीप ले जा रहे थे कि तभी दुश्मन ने उन्हें देख लिया. वह भी उनके पीछे पड़ गए. नाज़ी सैनिकों ने गोलियां बरसानी शुरू की और उसी बीच चार्ल्स और उनके साथी बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गए!
वह भागते इससे पहले ही नाज़ी सैनिक आए और उन तीनों को बंधी बना लिया और अपने कैंप में ले गए. कैंप में जाने के बाद भी चार्ल्स का जज्बा ख़त्म नहीं हुआ. वह लगातार वहां से भागने की कोशिश करते ही रहे.
ऐसा करने के चक्कर में उन्होंने अपने आप को कई बार चोटिल भी किया मगर वह हारे नहीं.
दो विक्टोरिया क्रॉस पाने वाले अकेले जिंदा व्यक्ति...
जंग ख़त्म होने तक चार्ल्स जेल से बाहर निकलने की कोशिश करते ही रहे. हालांकि, वह इसमें सफल नहीं हो पाए. चार्ल्स जंग के अंत में ही जेल से बाहर आ पाए.
जेल से बाहर आने के बाद उन्हें न्यूजीलैंड से पहले इंग्लैंड ले जाया गया. वहां पर किंग जॉर्ज 6 के द्वरा उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया.
यूँ तो सबको यह एक ही दिया जाता है मगर चार्ल्स के मामले में थोड़ा फर्क था. वह दो बार अपनी जान पर खेलके नाजियों से लड़े थे. इसलिए उन्हें एक और विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया.
इतना ही नहीं दो क्रॉस पाने वाले वह दुनिया के पहले जीवित व्यक्ति भी बने. उनसे पहले केवल दो लोगों को ही ये क्रॉस दिया गया था मगर वह जीवित नहीं थे.
चार्ल्स ने इसे पाकर इतिहास रच दिया.
चार्ल्स उपहम की शौर्यगाथा सुनकर हर कोई हैरान हो जाता है. एक आम व्यक्ति भला कैसे इतना असाधारण काम कर सकता है. चार्ल्स जैसे जाबाज़ सैनिक बहुत कम ही देखने को मिलते हैं. यह उनका खुद पर अटूट विश्वास ही था कि जर्मन गोलियां भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाईं.
WebTitle: Captain Charles Upham Who Won Two Victoria Cross, Hindi Article
This article is about New Zealand's soldier Carles Upham who become the first person alive to win Two Victoria Cross
Feature Image: tasta