उन्नीसवीं शताब्दी के अंत और बीसवीं शताब्दी में उपनिवेशवाद के खिलाफ चले स्वतंत्रता आंदोलनों में भारत का स्वतंत्रता आंदोलन अपने आप में विशिष्ट था. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य के आर्थिक शोषण को बड़ी ही गहराई से समझा था.
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शुरूआती नेताओं ने इस आर्थिक लूट का बड़ी गहनता से अध्ययन किया. इन नेताओं ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद की आर्थिक आलोचना पेश की थी. दादा भाई नौरोजी इनमें एक प्रमुख नेता थे.
‘धन के बहिर्गमन’ का सिद्धांत
दादा भाई नौरोजी एक राष्ट्रवादी नेता थे. उन्होंने ‘धन के बहिर्गमन’ का सिद्धांत प्रतिपादित किया था. उस समय यह सिद्धांत ब्रटिश साम्राज्य की आलोचना का प्रमुख बिंदु था.दादा भाई नौरोजी ने बताया कि भारत में पैदा होने वाले धन का एक बहुत बड़ा हिस्सा ब्रिटिश प्रशासकों और सैन्य अधिकारियों की तनख्वाह के रूप में देश से बाहर जा रहा है.
उन्होंने यह भी बताया कि भारत सरकार लोन लेकर सीधे तौर पर ब्रिटेन के पूंजीपतियों को फायदा पहुंचा रही है, इससे किसानों और मजदूरों पर भार लगातार बढ़ता जा रहा है. दादा भाई नौरोजी ने बताया कि भारत सरकार द्वारा इकट्ठा किए गए राजस्व का आधा हिस्सा और बचत का एक-तिहाई हिस्सा हर साल देश से बाहर जा रहा है.
दादा भाई नौरोजी ने अपना यह सिद्धांत मई 1867 में दिया था. इसके आगे के लगभग 50 सालों तक वे इसी सिद्धांत के आधार पर ब्रिटिश साम्राज्य के शोषण के खिलाफ मोर्चा खोले रहे.
दादा भाई नौरोजी ने बताया कि ब्रिटिश साम्राज्य भारत में इस तरह से टैक्स लगा रहा है, जैसे सूर्य धरती से नमी को सोख लेता है. उन्होंने यह बताया कि जब यह नमी सूख जाती है, तब कुछ समय के बाद यह वर्षा के रूप में वापस भी आती है. लेकिन भारत में सोखी गई यह नमी वर्षा के रूप में कहीं और बरस रही है.
विदेशी पूँजी बर्बाद कर रही है कुटीर उद्योगों को
‘धन के बहिर्गमन’ के इस सिद्धांत ने उपनिवेशवाद के खिलाफ सभी आर्थिक आलोचनाओं को अपने में समाहित कर लिया. इस सिद्धांत ने बताया कि भारत से धन इतनी तेजी से बाहर जा रहा है कि देश में उद्योगों और कृषि को अपने विकास के लिए जरूरी पूँजी नहीं मिल पा रही है. यहीं से ‘विऔद्योगीकरण’ का सिद्धांत भी प्रकश में आया.
इन सिद्धांतों ने ब्रिटिश साम्राज्य के तथाकथित बुद्धिजीवियों को सकते में डाल दिया था.
दादा भाई नौरोजी के इस सिद्धांत ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक नई जान फूंक दी. लोगों को अब पता चलने लगा था कि एकदम से अकाल की तरह बढ़ी गरीबी ईश्वर का प्रकोप या पूर्व जन्म के पापों का परिणाम नहीं थी, बल्कि इसे आम लोगों का खून चूसने पर आमादा ब्रिटिश साम्राज्य ने पैदा किया था. इस तथ्य ने भारतीय आर्थिक राष्ट्रवाद को संबल दिया.
सच कहा जाए, तो इस सिद्धांत ने पूरे देश को अंग्रेजों के खिलाफ एकतासूत्र में बाँधने का काम किया. इसी सिद्धांत के आधार पर राष्ट्रवादी नेता विदेशी पूँजी को एक ऐसी राक्षसी शक्ति के रूप में देखने लगे, जिसका एकमात्र लक्ष्य भारत की आम जनता का खून चूसना था.
यह कहा गया कि देशी पूँजी को बढ़ावा देने की जगह विदेशी पूँजी ने इसे दबाया और भारत पर आर्थिक प्रभुत्व मजबूत किया. इसी आर्थिक प्रभुत्व ने राजनीतिक प्रभुत्व को जन्म दिया. इससे अंग्रेजों की राजनीतिक ताकत लगातार बढ़ती चली गई.
दादा भाई नौरोजी ने आगे बताया कि विदेशी पूँजी और भारी-भरकम आयात शुल्क ने देशी कुटीर उद्योगों की कमर तोड़ दी. जब ये छोटे कुटीर उद्योग बर्बाद हुए, तो इससे कच्चा माल तैयार करने वाले कृषक भी बारबार हुए. उन्हें मजबूरन अपना कच्चा माल ब्रिटिश उद्योगपतियों को बेहद सस्ते दामों में बेचना पड़ा. इससे उनके पास जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पैसे नहीं बचे.
परिणामस्वरुप उन्हें महाजनों से कर्ज लेना पड़ा और कर्ज न चुका पाने की स्थिति में बेगार और आत्महत्या करनी पड़ीं.
उन्होंने यह भी बताया कि अंग्रेजों ने भले ही रेल का निर्माण करके भारत को आधुनिक बनाने की बात कही हो, लेकिन असल में उन्होंने इसका निर्माण सिर्फ अपने फायदे के लिए किया. अंग्रेजों ने रेल का निर्माण इसलिए किया, ताकि वे कम खर्चे और समय में अपने यहाँ बना माल भारत में बेंच पाएं और यहाँ से कच्चा माल आसानी से ब्रिटेन पहुंचा पाएं.
तेज हुआ भारत का स्वतंत्रता आंदोलन
दादा भाई नारौजी के इस सिद्धांत ने ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा गढ़े गए उस मिथक को तोड़ दिया, जिसमें कहा गया था कि ब्रिटिश साम्राज्य भारतीयों की भलाई के लिए है. इसका परिणाम यह हुआ कि शरुआत में जो उदार राष्ट्रवादी नेता भारत की भलाई के उद्देश्य से ब्रिटिश साम्राज्य के प्रशासन का हिस्सा बने थे, उन्होंने अब खुद को इस काम से दूर हटाना शुरू कर दिया.
सन 1885 में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की स्थापना हो चुकी थी. कांग्रेस के नेता अब ब्रिटश साम्राज्य के इस आर्थिक दमन का विरोध करने लगे थे. इसका परिणाम यह हुआ कि ब्रिटिश साम्राज्य ने अपने खिलाफ उठ रही विरोध की आवाजों को दबाना शुरू कर दिया. ब्रिटिश साम्राज्य ने इन नेताओं के ऊपर देशद्रोह जैसे मुकदमे चलाने शुरू कर दिए.
इन नेताओं को जेल में डाल दिया गया और उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी गईं.
इसका परिनाम यह हुआ की कांग्रेस के भीतर ही एक उग्रवादी नेतृत्व उठ खड़ा हुआ. इस नेतृत्व ने इस आर्थिक शोषण के खिलाफ ‘स्वदेशी आंदोलन’ खड़ा किया और पूर्ण स्वराज्य की मांग की. इसी उग्रवादी नेतृत्व के समानान्तर क्रांतिकारी आंदोलन भी चला. यह क्रांतिकारी आंदोलन हिंसा के बल पर ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की बात कर रहा था.
कालांतर में अंग्रेजों ने इन आंदोलनों का भीषण दमन किया. इसके बाद भारतीय राजनीतिक परिपेक्ष्य में गांधी का आगमन हुआ और आजादी की लड़ाई में एक नए अध्याय का सूत्रपात हुआ.
कुल मिलाकर अंत में यह कहा जा सकता है कि दादा भाई नौरोजी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने अपने प्रयासों से आजादी की लड़ाई को एक सैद्धांतिक और वैचारिक आधार प्रदान किया. इसी आधार पर कालांतर में आजादी का आंदोलन खड़ा हुआ और अंततः हमें आजादी मिली.
Web Title: Dada Bhai Naoroji, The Nationalist Leader Who Gave The Drain Of Wealth Theory, HIndi Article
Feature Image Credit: Bombay House