वर्तमान में हमारे आस-पास जो भी वक्त बीतता है. उसमें दुनिया के किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ जरूर घटित होता है. वह बीता हुआ कल हमारे लिए कई यादगार पलों को छोड़कर जाता है. इससे हम सीखते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ते जाते हैं.
उन्हीं में से कुछ ऐसे भी ऐतिहासिक किस्से होते हैं, जो हमारे लिए बहुत खास या दिलचस्प होते हैं. उन्हीं दिनों में 22 अगस्त का भी अपना एक इतिहास रहा है. इस दिन जहाँ खिलजी वंश का पतन हुआ था, वहीं गाँधी जी ने विदेशी वस्त्रों की होलिका भी जलाई ऐसी ही कुछ और कड़वी-मीठी यादें 22 अगस्त के इतिहास से जुड़ीं हुई हैं, जिनको जानना हमारे लिए दिलचस्प होगा-
ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के मद्रास में रखी नींव
22 अगस्त का दिन भारत देश के लिए बड़ा दुखदायक रहा है. इसी दिन अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव मद्रास में रखी थी. फिर यहां से सफलता हासिल करने के बाद कई सालों तक भारत पर राज किया.
दरअसल, ईस्ट इंडिया कंपनी 1600 में भारत से व्यापार करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था. 1608 में उसका पहला व्यापारिक पोत सूरत पहुंचा. यहां से कंपनी ने मसाले का व्यापार शुरू कर दिया. इसके बाद लगातार भारत में अपनी कंपनी का विस्तार करते रहे. मगर, कंपनी को पहली बड़ी सफलता 22 अगस्त 1639 में हुई.
जब 1639 में अंग्रेजों ने विजयनगर शासकों के प्रतिनिधि चंद्रगिरी के राजा से कुछ ज़मीन खरीद लिया था. इसी के साथ इन्हें गोदाम व किले बनाने की अनुमति भी दे दी गई थी. इसके लगभग 1 साल बाद अंग्रेजों ने यहां पर सेंट जोर्ज किला बनवाया. बाद में जो कंपनी के औपनिवेशक गतिविधियों का गढ़ बन चुका था.
हालांकि 1746 में मद्रास और सेंट जोर्ज किले पर फ्रांसीसियों का कब्ज़ा हो गया, मगर 1749 में कंपनी ने एक संधि के तहत इसे दोबारा हासिल कर लिया था. 18 वीं शताब्दी के अंत तक अंग्रेजों ने सेंट जॉर्ज के आसपास इलाके जैसे आधुनिक तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया था.
फिर, उन्होंने यहाँ पर मद्रास प्रेसीडेंसी कायम किया. भारत में ब्रिटिशकाल के दौरान मद्रास एक आधुनिक शहर और महत्त्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में विकसित हो चुका था. बाद में 1996 में राज्य सरकार ने मद्रास का नाम बदल कर चेन्नई कर दिया था.
33 खनिकों को ढाई महीनों बाद बाहर निकाला गया!
22 अगस्त के दिन ही चिली की खान में फंसे मजदूरों का जिंदा होने का सबूत मिला था. इन खनिकों को लगभग ढाई महीनों बाद जिंदा बाहर निकाला गया था, जो किसी चमत्कार से कम नहीं था.
दरअसल, ये खनिक दक्षिण अमेरिका के चिली देश में तांबे और सोने की एक खान में काम कर रहे थे. 5 अगस्त 2010 को खान में एक धमाका हुआ. इसके बाद कुछ खनिक उसी खान में फंस गए.
लगभग 700 मी0 की गहराई वाली खान में उनका पहला संपर्क 22 अगस्त को हुआ.
जब बचाव दल ने उनको खोजने की कोशिश की तो कुछ पता न चला लेकिन 17 दिनों बाद उनके जिंदा होने का पता चला था. वो भी जब खादान की गहराई तक पहुँचने वाली ड्रिल के एक छोर पर खटखट की आवाज़ सुनाई पड़ी थी.
ऐसे में बचाव दल ने ड्रिल को बाहर निकाला तो उस पर लिखा था कि, "हम 33 लोग यहां ठीक हैं."
इसके बाद होल के ज़रिये फाइबर ऑप्टिक लाइन डाली गई. फिर फोन के द्वारा उनसे बातचीत किया गया और बचाव कार्य शुरू किया गया. इन फंसे खनिकों को बाहर निकलने के लिए जर्मनी जैसे देशों से हेवी ड्रिल मंगाई गई थी. बचाव कार्य को सफल बनाने के लिए लगभग 2 महीनों तक खुदाई चलती रही.
आखिरकार, 69 दिनों के बाद आधुनिक तकनीक की मदद से इनको बाहर निकाला गया. इसके लिए इंजीनियरों ने गहरी खुदाई करवाई फिर खादान में एक कैप्सूल नुमा लिफ्ट उतारी थी. इसी लिफ्ट की सहायता से इन खनिकों को बाहर निकाला गया था.
दिलचस्प यह था कि, इतने दिनों बाद बाहर निकलने वाले इन खनिकों को लोग टेलीविजन पर देख रहे थे. इनसे कई तरह के सवाल भी पूछे जा रहे थे. कैसे इतने दिनों तक अंदर बिना खाए पिए रहे आदि.
गाजी मलिक ने खुसरो को हराकर तुगलक वंश की रखी नींव
22 अगस्त 1320 में गाजी मलिक ने खिलजी वंश के आखिरी शासक नसीरुद्दीन खुसरू को शिकस्त दिया और तुगलक वंश की नींव रखी थी. फिर, 8 सितम्बर 1321 को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा.
बहरहाल, सुल्तान बनने से पहले गाजी मलिक मुबारक खिलजी के राज में सीमांत प्रांत का गवर्नर था. इसने अलाउद्दीन खिलजी के सम्राज्य विस्तार में अहम भूमिका निभाई थी. इसके कई युद्धों में अपनी बहादुरी और साहस का परिचय भी दिया था.
मगर, अलाउद्दीन खिलजी के बाद खिलजी वंश के सुल्तानों ने शासन काल सुचारू रूप से नहीं चला सके. फिर गाजी मलिक ने खिलजी वंश का खात्मा करते हुए तुगलकवंश का उदय किया था. गाजी मालिक सुल्तान बनने के बाद गयासुद्दीन तुगलक के नाम से मशहूर हुए.
इसने दिल्ली के पास तुगलकाबाद नगर को कायम किया था. गयासुद्दीन पहला ऐसा सुलतान था, जिसने सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण कराया. इन्होने किसानों के हित के लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य और भी किए थे.
दिलचस्प यह है कि गयासुद्दीन ने लगभग 29 बार मंगोलों के आक्रमण को विफल किया था, जिसमें 1305 में हुए 'अमरोहा का युद्ध' भी शामिल है. गयासुद्दीन तुगलक ने 1321-25 तक दिल्ली के सुलतान के रूप में अपना कार्यभार सभांला था. इसकी मौत के बाद इसका बेटा मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना.
जब गाँधी जी ने जलाई विदेशी वस्त्रों की होली
22 अगस्त को ही गाँधी जी ने खुद विदेशी कपड़ों को जलाकर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया था.
दरअसल, गाँधी जी स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों को अपनी बात मनवाने के लिए आर्थिक और राजनीतिक जैसी उनकी अन्य संस्थाओं का बहिष्कार करने पर जोर दिया.
इन्होंने ने हर उस वस्तु को त्याग करने को कहा जो अंग्रेजों के द्वारा आयात की गई थी.
फिर, उन्होंने 1920-22 के दौरान हिन्दोस्तान में विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने का आह्वान किया था. इसी के साथ ही गाँधी जी स्थानीय वस्तुओं के इस्तेमाल पर खूब जोर दिया था.
वहीं 22 अगस्त 1921 में गाँधी जी ने खुद बम्बई में विदेशीं वस्त्रों को जलाकर इसका शुभारम्भ किया. इसके बाद तो पूरे भारत में इस विदेशी वस्त्रो की होलिका का असर हुआ था.
गाँधी जी के द्वारा उठाया गया यह ठोस कदम अंग्रेजों के लिए बहुत नुकसानदायक सिद्ध हुआ था. देखते ही देखते देश में स्थानीय वस्तुओं का प्रयोग पहले की अपेक्षा अधिक हो गया था, जो कई दृष्टि से भारतीयों के हित में था.
तो ये थीं 22 अगस्त के दिन, इतिहास में घटीं कुछ घटनाएं.
यदि आपके पास भी इस दिन से जुड़ी किसी घटना की जानकारी हो तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day History of 22 August, Hindi Article
Feature Image Credit: cultureconnexion