वर्तमान में हमारे आस-पास जो भी वक्त बीतता है, उसमें दुनिया के किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ ज़रूर घटित होता है. वह बीता हुआ कल हमारे लिए कई यादगार पलों को छोड़कर जाता है, जिससे हम सीखते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ते जाते हैं.
उन्हीं में से कुछ ऐसे भी ऐतिहासिक किस्से होते हैं, जो हमारे लिए बहुत खास या दिलचस्प होते हैं.
23 सितंबर के दिन का भी अपना इतिहास रहा है, इस दिन जहां एक तरफ भारत में बाल विवाह के खिलाफ एक कठोर कानून को पारित किया गया था. वहीं दूसरी तरफ हैती में आये भयंकर तूफ़ान के बाद मुसलधार बारिश की वजह से आई बाढ़ ने कई घरों को बर्बाद कर दिया था. वैसे तो इतिहास ‘कभी ख़ुशी कभी गम’ नाम ही है.
खैर, ऐसी ही कुछ कड़वी-मीठी यादें 23 सितंबर के इतिहास से जुड़ीं हुई हैं, जिनको जानना हमारे लिए दिलचस्प होगा-
जब अंग्रेजों से मराठों की हुई शिकस्त
भारतीय इतिहास में मराठों और अंग्रेजों के बीच तीन आंग्ल युद्ध हुए. ये युद्ध 1775 से सन 1818 के बीच हुआ. उन्हीं युद्धों में दूसरे आंग्ल युद्ध के दौरान असाई की लड़ाई हुई थी. दूसरा आंग्ल युद्ध 1803 से 1805 के मध्य हुआ था.
इस असाई की लड़ाई में ब्रिटिश सेना का नेतृत्व सर आर्थर वेलेजली कर रहे थे. वो बाकी मराठों की तरह शिंदे और भोंसले के सम्राज्य को भी तबाह करना चाहते थे.
आगे, 23 सितंबर 1803 को आर्थर के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना के आगे मराठों की विशाल सेना कमज़ोर साबित हुई. जिससे अंग्रेजों की सेना के आगे शिंदे और भोंसले की संयुक्त सेना को हार का मुंह देखना पड़ा. कहा जाता है कि शिंदे की सेना को इस लड़ाई के लिए विशिष्ट रूप से ट्रेनिंग भी दी गई थी.
इसके बावजूद अंग्रेजों के एक छोटी सेना के मुकाबले उसको पराजय मिली. मराठों की विशाल सेना के पराजय होने का एक प्रमुख कारण यह भी था. कि इनके आपस में हमेशा विभिन्न मुद्दों पर एख्तेलाफ़ ही रहता था.
शायद यही वजह थी कि मराठों की शक्तिशाली सेना को अंग्रेजों से युद्ध में बुरी तरह निराशा प्राप्त हुई थी.
इस युद्ध में अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से मराठों के बीच आपसी मतभेद पैदा किया और उनमें फूट डाल दिया था. इस तरह फूट डालो राज करो वाली रणनीति के तहत अंग्रेजों ने असाई की लड़ाई को आसानी से जीत लिया था.
हैती में आये तूफ़ान से हजारों लोगों की मौत हुई
23 सितंबर 2004 को जीन नामक भयंकर तूफ़ान के बाद हैती में मुसलाधार बारिश से बाढ़ भी आ गई थी. इस भयानक आपदा में काफी जान-माल का भी नुकसान हुआ था. 23 सितंबर को यह तूफ़ान अफ्रीका के पश्चिमी तट से उठा था.
जैसे ही यह तूफ़ान अटलांटिक के करीब पहुंचा तो उसने भयानक रूप ले लिया. जब यह तूफ़ान हैती पहुंचा तो इसके तेज हवाओं ने कई घरों को उजाड़ दिया था, मगर जैसे ही इस तूफ़ान के बाद हैती में भारी बारिश हुई तो यह और भी विनाशकारी साबित हुई.
आकड़ों की मानें तो इस आपदा से लगभग 3,000 लोगों को अपनी ज़िन्दगी से हाथ धोना पड़ा था. वहीं 25000 से भी अधिक लोगों के घर पूरी तरह नष्ट हो गए थे. इस तूफ़ान ने लगभग 8 मिलियन लोग बेघर हो चुके थे.
इस भयानक तूफ़ान व बाढ़ की तबाही के बाद आस पास के लोगों में भय का माहौल बना हुआ था. बहामा के उत्तर छोर पर भयभीत निवासियों ने तूफ़ान के पहुँचने से पहले ही अपना घर छोड़ दिया था. यहाँ पर भी भारी तबाही होने की आशंका थी.
आगे, जीन नामक भयंकर तूफ़ान फ्लोरिडा के तट पर पहुंचा तो उसका प्रभाव कम हो गया था.
हालांकि, फ्लोरिडा के निवासियों ने पहले ही इस तूफ़ान से सजग हो गए थे, जिसकी वजह से यहाँ पर केवल तीन लोगों की मौत हुई थी. 2004 में इस क्षेत्र ने कई चार बड़े भयानक तूफ़ान का सामना किया था. जीन तूफ़ान से पहले चार्ली, फ्रांसिस व इवान ने पहले ही तबाही मचा रखी थी.
बाल विवाह निरोधक कानून पारित हुआ
भारत में लड़कियों का बाल विवाह हमेशा से ही एक चिंता का विषय बना हुआ था. 1925 में इस प्रथा को रोकने के लिए हरविलास शारदा ने केन्द्रीय असेंबली में एक बिल पेश किया. यह बिल देश में होने वाले बाल विवाह के खिलाफ था.
इस बिल को पास करवाने के लिए हरविलास शारदा ने बहुत प्रयास किया. इनके अथक प्रयास के बाद ‘शारदा बिल’ के नाम से मशहूर बाल विवाह निरोधक क़ानून 23 सितंबर 1929 में पास हुआ था. इस बिल को 1 अप्रैल 1930 से समूचे भारत में लागू किया गया था.
शारदा जी के इस सामाजिक कार्यों के लिए उनका नाम इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गया. इनके इस महतवपूर्ण सामाजिक कार्य के लिए सरकार ने इन्हें ‘दीवान-ए-बहादुर’ के पद से नवाज़ा था. बाद में इस बिल को 2006 में कुछ संशोधन किया गया.
आज इस कानून के तहत शादी के लिए लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की उम्र 18 साल होना आवश्यक है.
जब नेप्च्यून ग्रह की पहचान हुई.
नेप्च्यून आठवां ग्रह के रूप में जाना जाता है. इस ग्रह का अनुमान जर्मन के खगोल वैज्ञानिक उरबेन जीन जोसेफ ने किया था. उन्होंने युरेनस के गति में गुरुत्वाकर्षण से प्रेरित होने वाले अध्ययन से नेप्च्यून ग्रह के अनुमानित स्थान की गणना किया था.
23 सितंबर 1846 को जोसेफ ने गैले को अपने निष्कर्षों के बारे में सूचित किया. इसके बाद उसी रात गैले और उनके सहायक हेनरिक लुई ने बर्लिन में अपनी प्रयोगशाला में नेप्च्यून ग्रह की पहचान की. यह ग्रह प्रत्येक 165 सालों में एक बार कक्षा की परिक्रमा को पूरा करता है.
1989 में अमेरिकी ग्रह का अन्तरिक्ष यान वोयागर 2 नेप्च्यून पर जाने वाला पहला अन्तरिक्ष यान था.
तो ये थीं 23 सितंबर के दिन, इतिहास से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
यदि आपके पास भी इस दिन से जुड़ी किसी घटना की जानकारी हो, तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day History of 23 September, Hindi Article
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