वर्तमान में हमारे आस-पास जो भी वक्त बीतता है, उसमें दुनिया के किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ जरूर घटित होता है. वह बीता हुआ कल हमारे लिए कई यादगार पलों को छोड़कर जाता है, जिससे हम सीखते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ते जाते हैं.
उन्हीं में से कुछ ऐसे भी ऐतिहासिक किस्से होते हैं, जो हमारे लिए बहुत खास या दिलचस्प होते हैं.
24 सितंबर के दिन का भी अपना इतिहास रहा है, इस दिन जहां एक तरफ भीमराव आंबेडकर को महात्मा गाँधी के दबाव में पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करना पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ इस्लाम धर्म के पैगम्बर मोहम्मद साहब ने मक्का से मदीना तक का सफ़र किया था. वैसे इतिहास 'कभी ख़ुशी कभी गम' का नाम ही है.
खैर, ऐसी ही कुछ और कड़वी-मीठी यादें 24 सितंबर के इतिहास से जुड़ीं हुई हैं, जिनको जानना हमारे लिए दिलचस्प होगा-
पूना पैक्ट समझौता
24 सितंबर 1932 को ही पूना पैक्ट समझौता हुआ था. यह समझौता डाक्टर भीमराव आंबेडकर और महात्मा गाँधी के बीच पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में हुआ. इसीलिए इसको पूना समझौता भी कहा जाता है.
इस समझौते के तहत दलित वर्ग को मिले पृथक निर्वाचन अधिकार को हटा दिया गया. इसके बदले आंबेडकर को संयुक्त निर्वाचन पद्धति को स्वीकार करना पड़ा था.
हालाँकि, इसके तहत 78 अरक्षित सीटों की संख्या को बढ़ाकर 148 कर दिया गया था. इस समझौते के लिए महात्मा गाँधी ने देश के हिन्दुओं को लेकर चिंता व्यक्त की थी. उनका मानना था कि पृथक निर्वाचन अधिकार से देश के हिन्दुओं में बंटवारा हो जायेगा.
इसके लिए वे 20 सितंबर 1932 को आमरण अनशन पर चले गये. इसके बाद ही 24 सितंबर को भीमराव आंबेडकर ने गाँधी जी की मांग संयुक्त निर्वाचन पद्धति को स्वीकार करते हुए समझौते पर हस्ताक्षर किया था. कहा जाता है कि उन्होंने समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए गाँधी जी को जीवनदान दिया था.
इसी के साथ ही इस समझौते के तहत दलित बच्चों की उच्च शिक्षा व अनुदान की भी घोषणा की गई थी. आम्बेडकर ने बिना किसी भेदभाव के दलित समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों को भी सुनिश्चित करवाया था.
भीमराव ने इस समझौते के कुछ समय बाद मजबूरी का नाम दिया था. उन्होंने कहा था कि उन्हें इसके लिए काफी दबाव डाला गया. वे इस समझौते के लिए तैयार नहीं थे. इस समझौते को लेकर आंबेडकर ने अपनी किताबों में भी नाराजगी जताई है.
होंडा मोटर कंपनी की स्थापना दिवस
24 सितंबर के दिन ही जापान की मशहूर ऑटोमोबाइल कंपनी होंडा की स्थापना हुई थी. इसकी स्थापना करने वाले एक गरीब लोहार के बेटे सोइचिरो होंडा थे. इन्हें बचपन से ही मोटर गाड़ियों में अधिक दिलचस्पी थी.
उन्होंने अपने शुरूआती दौर में मोटर मैकेनिक के रूप में काम किया. इसके बाद खुद का मोटर रिपयेरिंग का बिजनेस कर लिया. 1937 के आसपास इनकी कंपनी ने पिस्टन रिंग्स बनाने का काम शुरू किया. उन्हें मशहूर ऑटोमोबाइल कंपनी टोयटा को बेचने का कॉन्ट्रैक्ट भी मिल गया.
मगर, उच्च गुणवत्ता की कमी के कारण टोयटा से उनका करार ख़त्म हो गया. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. इसके बाद उन्होंने बेहतरीन रिंग्स पिस्टन बनाए, जो टोयटा कंपनी को पसंद आ गए. इसके बाद भी उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया.
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान को करारी हार का सामना करना पड़ा. इसी दौरान सोइचिरो होंडा ने गैसोलीन केंस को इकट्ठा करना शुरू कर दिया. आख़िरकार इस बार उनके हाथ सफलता लगी. वे एक उच्च गुणवत्ता वाला छोटा इंजन बनाने में कामयाब हो गए थे.
इसके बाद ही 24 सितंबर 1948 में होंडा कंपनी की स्थापना की. इसके 1 साल के भीतर ही कंपनी ने पहला ड्रीम डी टाइप मोटर साइकिल बाज़ार में उतारा. यह मोटर बाइक शौकीनों के बीच काफी पसंद की गई. इसके बाद देखते ही देखते होंडा दुनिया की बड़ी मोटर कंपनियों में शुमार हो गई.
भारत में भी इसने हीरो कंपनी के साथ मिलकर कई बेहतरीन मोटरसाइकिल पेश की थी. इस दौरान उसने कुछ अपनी कंपनी के अंतर्गत स्कूटर व मोटरसाइकिल भी भारत में पेश की थी. बाद में हीरो कंपनी के साथ उसका करार टूट गया.
आज होंडा भारत सहित अन्य देशों में अकेले ही अपनी मोटर बाइक व कार भी मार्केट में पेश कर रही है.
जब इस्लाम धर्म के पैगम्बर मोहम्मद साहब ने की हिजरत
24 सितंबर का दिन इस्लाम धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है. आज ही के दिन मोहम्मद साहब ने हिजरत की थी.
इसी के बाद ही इस्लामिक कलैंडर की शुरुआत हुई, जो हिजरी के नाम से जाना जाता है. दुनिया के इतिहास में मोहम्मद साहब सबसे प्रभावशाली धार्मिक व्यक्तियों में से एक रहे हैं. इनका जन्म 570 के आस-पास मक्का में हुआ था. इनके पैदा होने से पहले ही इनके पिता की मृत्यु हो गई थी.
जब इनकी उम्र 6 साल थी तो इनकी माता का भी साया इनके सिर से उठ गया. मोहम्मद साहब यतीम हो चुके थे. ऐसे में इनके चाचा अबू तालिब ने इनकी देखभाल की. शुरुआत में उन्होंने मक्का में रहकर अपना व्यापार किया.
इस दौरान वो एक सच्चे व ईमानदार व्यक्ति के तौर पर मशहूर हुए. 43 साल की उम्र में उन्होंने अपने नुबूवत का एलान किया. इसके बाद उन्होंने इस्लाम धर्म के अनुसार एक ईश्वर की पूजा करने का संदेश दिया.
615 तक मोहम्मद साहब ने मक्का में लगभग 100 लोगों को इस्लाम धर्म का अनुयायी बना लिया था. इस दौरान मक्का में उनके व उनके साथियों के साथ बुरा बर्ताव किया गया. यहां तक कि उनके खिलाफ हत्या की भी साज़िश रची गई थी.
24 सितंबर 622 को उन्होंने मक्का से मदीना की ओर हिजरत (यात्रा) किया. जहाँ इनका ज़बरदस्त तरीके से स्वागत किया गया था. उनके इसी ऐतिहासिक सफर के बाद ही इसी दिन से इस्लामिक इतिहास हिजरी की शुरुआत हुई थी.
मदीना में मोहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म का खूब प्रचार किया. उनके नेक व इंसानियत भरे पैगाम को मदीना वासियों ने बखूबी स्वीकार किया. इस दौरान हजारों की संख्या में लोगों ने इस्लाम धर्म को अपनाकर मोहम्मद साहब को अपना नबी माना.
630 के आसपास मोहम्मद साहब अपने बड़े लश्कर के साथ जन्म स्थल मक्का वापस लौटे थे. कहा जाता इस वक़्त उनके लश्कर में लगभग 10 हज़ार से अधिक लोग शामिल थे. यहां उन्होंने सभी पर स्नेह व दया भाव प्रकट किया था.
भारत में महापौर न्यायालयों की हुई स्थापना
24 सितंबर का दिन भारतीय इतिहास के लिए एक विशिष्ट दिन से कम नहीं है. हम सभी इस बात से अच्छे तरह वाकिफ हैं कि अंग्रेजों की वजह से भारतीयों ने कई दंश झेले थे. उनकी गुलामी की जंजीरों ने भारत को खून के आंसू रुलाया था.
मगर, इस बात को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता कि अंग्रेजों हुकूमत ने भारत में स्थानीय संस्थाओं पर जोर दिया था.
आधुनिक भारत के इतिहास में पहली बार 1687 के आसपास मद्रास में नगर निगम बनाए जाने की अनुमति प्राप्त हुई. इसके तहत अंग्रेजों के साथ ही भारतीयों को भी कर्मचारी के रूप में सम्मिलित किया गया था.
इसके बाद कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन आदि अन्य सुविधाओं के लिए कर लगाने की घोषणा कर दी गई.
आगे, 24 सितंबर 1726 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रास समेत बम्बई व कलकत्ता में नगर निगम बनाने के लिए अधिकृत किया. इसी के साथ महापौर अदालतों को भी बनाने का एलान कर दिया था.
तो ये थीं 24 सितंबर के दिन, इतिहास से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
यदि आपके पास भी इस दिन से जुड़ी किसी घटना की जानकारी हो, तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day History of 24 September, Hindi Article
Feature Image Credit: awaznation