वर्तमान में हमारे आस-पास जो भी वक्त बीतता है, उसमें दुनिया के किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ जरूर घटित होता है. वह बीता हुआ कल हमारे लिए कई यादगार पलों को छोड़कर जाता है, जिससे हम सीखते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ते जाते हैं.
उन्हीं में से कुछ ऐसे भी ऐतिहासिक किस्से होते हैं, जो हमारे लिए बहुत खास या दिलचस्प होते हैं.
25 सितंबर के दिन का भी अपना इतिहास रहा है, इस दिन एक तरफ जहां अमेरिका में पहली बार प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका की मशहूर अंतरिक्ष एजेंसी नासा को मंगल ग्रह के मिशन पर नाकामयाबी मिली थी. वैसे तो इतिहास में ‘कभी सफलता तो कभी विफलता’ देखने को मिलता ही है.
खैर, ऐसी ही कुछ और कड़वी-मीठी यादें 25 सितंबर के इतिहास से जुड़ीं हुई हैं, जिनको जानना हमारे लिए दिलचस्प होगा-
आखिरी बार वास्कोडिगामा भारत आए
25 सितंबर के दिन वास्कोडिगामा भारत के वायसराय के रूप में आखिरी बार भारत आए थे. वास्कोडिगामा ने ही अपनी पहली समुद्री यात्रा के दौरान भारत के समुद्री मार्ग की खोज की थी. 20 मई 1498 को पहली बार वास्कोडिगामा अपने दल के साथ भारत के कालीकट पहुंचे थे. वहां के राजा ‘जमोरी’ ने उनका जोरदार स्वागत किया था.
मगर, उस समय वो भारत के साथ किसी भी प्रकार की संधि करने में असफल रहे थे. इसके बाद वो अगस्त के अंत में वापस लौट गए. वो हिन्दू रीति रिवाज को अच्छे से जानने के लिए अपने साथ 5 से 6 हिन्दुओं को भी साथ ले गए.
उनके इस दौरे के बाद ही यूरोप और भारत के बीच व्यापार संबंध स्थापित हुए थे. पहले दौरे के बाद वास्कोडिगामा वापस लौटने के बाद एवोरा नगर में अपनी सेवाएँ देने लगे. इसी के साथ ही इस दौरान उन्होंने अतिरिक्त सुविधाएं व राजस्व विभाग का कार्यभार भी सभांला.
इसके बाद 1505 तक वह राजा को भारतीय मामलों में सलाह देते रहे.
1524 में उन्हें फिर से समुद्री यात्रा पर भेजा गया. इस बार किंग जॉन ने भारत का वायसराय के रूप में नियुक्त किया था. 25 सितंबर 1524 में वास्कोडिगामा अपनी तृतीय व भारत के लिए दूसरी यात्रा को पूरा करते हुए गोवा पहुंचे.
इस बार उन्होंने भारत में व्याप्त कई कुप्रथाओं को भी सुधारने का प्रयास किया था. यहां आने के कुछ दिनों बाद ही वो बीमार पड़ गए. इसके बाद 1524 में ही भारत के कोचीन में उनकी मृत्यू हो गई. बाद में उनके अवशेष को भारत से पुर्तगाल ले जाया गया था.
जब अमेरिका में शुरू हुआ पहला प्रिंटिंग प्रेस
25 सितंबर का दिन अमेरिका के इतिहास में महत्वपूर्ण दिनों में से एक है. इसी दिन अमेरिका में पहली बार प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई थी.
जोसेफ ग्लोवर मैसाचुसेट्स कॉलोनी का बड़ा समर्थक था. 1630 में सत्तर जहाजों की मदद से अमेरिका के बोस्टन में हजारों की संख्या में प्रवासियों को लाया गया था. ग्लोवर भी उन्हीं जहाजों की मदद से एक प्रिंटिंग मशीन को खरीद कर अमेरिका ला रहा था. उनका मानना था कि कॉलोनी की दृष्टि व उसके सुधार के लिए प्रिंटिंग प्रेस एक बेहतर उपाय है.
मगर, रास्ते में ही दुर्भाग्यवश ग्लोवर की मृत्यू हो गई. इसके बाद स्टीफन डे ने ग्लोवर का सपना पूरा करने का बीड़ा उठाया. उनके साथ ग्लोवर की विधवा ने भी बखूबी ज़िम्मेदारी निभाई.
25 सितंबर 1639 में ग्लोवर की पत्नी की मदद से स्टीफन डे ने कैम्ब्रिज में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की, जो अमेरिका के इतिहास में पहले प्रिंटिंग प्रेस के रूप में जाना जाता है. स्टीफन एक बेहतरीन प्रिंटिंग प्रेस का संचालक माना जाता था.
उसने शुरुआत के पहले वर्ष ब्रॉडशीट, फिमैन ओथ आदि को मुद्रित किया. 1640 में कॉलोनी के लिए पहली बार एक पुस्तक की छपाई की. इसके इस काम से खुश होकर प्रिंटिग प्रेस के लिए कॉलोनी में 300 एकड़ की ज़मीन उपहार स्वरूप दी गई थी.
भारत में हुआ 5000 करोड़ रूपये हवाला नेटवर्क का भंडाफोड़
25 सितंबर 2009 को ही भारतीय प्रवर्तन निदेशालय ने 5 हजार करोड़ रूपये के हवाला रैकेट का पर्दाफाश किया था. यह भारत के साथ अन्य देशों के लिए सबसे बड़ा हवाला नेटवर्क का भंडाफोड़ था.
इस हवाले में प्रवर्तन निदेशालय के जाँच अधिकारियों ने दिल्ली के बड़े बिजनेसमैन नरेश चंद्र जैन को व उनके भाइयों को दोषी करार दिया था. इस मामले में जैन का अंडर-वर्ल्ड व कुछ आतंकी संगठन के साथ संबंध होने का भी दावा किया गया था.
जब निदेशालय के अधिकारियों ने दिल्ली में स्थित जैन के आठ ठिकानों पर छापा मारा था. तो उनके हाथ 60 लाख के करीब नक़दी रकम व इस केस से जुड़े अहम सबूत बरामद किए गए थे. इस दौरान जाँच अधिकारियों द्वारा नरेश जैन को 'हवाला किंग' कहा गया था.
इस हवाले के भंडाफोड़ होने के बाद भारत के कई नाम-चीन हस्तियों की सांसे रुक गई थी, क्योंकि ऐसा माना जा रहा था कि इस मामले के अंतर्गत कई नामी गिरामी लोगों के लिंक होने का अंदेशा था. बाद में इस केस से जुड़े अन्य मुद्दों की गहरी तफसीस की गई थी.
नासा ने भेजा मंगल ग्रह पर अपना अंतरिक्ष यान
25 सितंबर 1992 को ही अमेरिका के मशहूर अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने लांच मार्स ऑब्जर्वर नामक यान अंतरिक्ष में भेजा था. इसके जरिये नासा मंगल ग्रह के वातावरण, मौसम आदि की जानकारी हासिल करना चाहता था. इस यान का वजन 1,018 किलोग्राम था. यह एक रोबोट मॉडल यान था.
मगर, मंगल ग्रह पहुँचने से पहले ही नासा का संपर्क अपने मार्स ऑब्जर्वर एयर क्राफ्ट से टूट गया. नासा द्वारा मंगल ग्रह पर मानव जीवन के योग्य अनुकूल स्थिति का पता लगाने का यह सपना एक बार फिर से अधूरा रह गया था. एक बार फिर उनको विफलता मिली थी.
इससे पहले व इसके बाद कई अन्य देशों की एजेंसियों ने भी कई अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह पर भेजे, मगर उनमें से कुछ को ही सफलता हासिल हो पाई थी.
2012 में मार्स रोवर नामक यान मंगल पर पहुंचा. इस यान की मदद से नासा को बड़ी सफलता हासिल हुई थी. इसके जरिये ही इस अनजान ग्रह की कई तस्वीरें पृथ्वी पर देखी जा सकी. इस दौरान मंगल ग्रह से जुड़ी कई अन्य जानकारियाँ भी हाथ लगी थीं
भारत की इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने भी 24 सितंबर 2014 को मंगल ग्रह पर अपना अंतरिक्ष यान भेजा, जो की सफल रहा था.
तो ये थीं 25 सितंबर के दिन, इतिहास से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
यदि आपके पास भी इस दिन से जुड़ी किसी घटना की जानकारी हो, तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day History of 25 September, Hindi Article
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