वर्तमान में हमारे आस-पास जो भी वक्त बीतता है, उसमें दुनिया के किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ जरूर घटित होता है. वह बीता हुआ कल हमारे लिए कई यादगार पलों को छोड़कर जाता है, जिससे हम सीखते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ते जाते हैं.
उन्हीं में से कुछ ऐसे भी ऐतिहासिक किस्से होते हैं, जो हमारे लिए बहुत खास या दिलचस्प होते हैं.
26 अगस्त के दिन का भी अपना इतिहास रहा है, इस दिन बंगाल क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के विरुद्ध बड़ी सफलता मिली थी, तो वहीं दूसरी तरफ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित ऑंग सान सू ची ने अपना पहला सार्वजनिक भाषण दिया था. वैसे तो इतिहास में ‘कभी सफलता तो कभी विफलता’ देखने को मिलती ही है.
खैर, ऐसी ही कुछ और कड़वी-मीठी यादें 26 अगस्त के इतिहास से जुड़ीं हुई हैं, जिनको जानना हमारे लिए दिलचस्प होगा-
जब अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों की बड़ी सेना को हराया
26 अगस्त के दिन सौ साल से निरंतर चले आ रहे युद्ध में अंग्रेजी सेना ने क्रेसी के युद्ध में फ़्रांसीसी की विशाल सेना को शिकस्त दे दिया था. वहीं इस युद्ध के परिणाम ने यूरोपीय लीडरों को चौका दिया था, क्योंकि अंग्रेजों की एक छोटी मगर अनुशासित सेना ने यूरोप के बेहतरीन घुड़सवारी सेनाओं को मात दी थी.
दरअसल, इंग्लैंड के एडवर्ड तृतीय ने 12 जुलाई 1346 के मध्य में कोटेन्टिन प्रायद्वीप (नोर्मंडी के तट)पर लगभग 14 हजार सेनाओं को लड़ने के तैयार किया था. इन सेनाओं में 10 हजार तीरंदाजी सैनिक भी थे. वहां से आगे बढ़ते हुए अंग्रेजी सेना ने फ़्रांस के ग्रामीण इलाकों को लूटा और उत्तर क्षेत्र की ओर बढ़ गए.
जब इसका पता राजा फिलिप VI को चलता है तो वो भी युद्ध के लिए एक विशाल सेना के साथ मैदान की ओर निकल पड़ते हैं. इन सैनिकों में 8000 बेहतरीन घुड़सवार भी शामिल थे. क्रेसी पहुँचते ही एडवर्ड ने अपनी सेना को रोक दिया और फ्रांसीसी हमले के लिए सेना का प्रोत्साहन किया.
26 अगस्त के दिन दोपहर के वक़्त फिलिप की सेना ने अंग्रेजों पर हमला करना शुरू कर दिया. क्रासबोमेन सैनिकों ने अंग्रेजों की सेना पर हमला किया. वहीं इनके घुड़सवार युद्ध में बड़ी तेजी के साथ आगे बढ़े जा रहे थे.
फिर, इन घुड़सवारों ने अंग्रेजों की पैदल सेना को कुचलने का प्रयास किया, मगर अंग्रेजों की तीरंदाजी के आगे इनकी एक न चली.
रात होते-होते फ्रांसीसियों के पसीने छोट गए थे अंततः उन्हें अंग्रेजी सेना के मुकाबले पीछे हटना पड़ा. इस युद्ध में राजा फिलिप का भाई एलनकॉन के चार्ल्स द्वितीय मारा गया. इसी के साथ ही अंग्रेजों ने फ़्रांस की लगभग 1 तिहाई सेना को मार गिराया था.
उनके सहयोगी राजा जॉन और लुई द्वितीय के साथ अन्य 1500 शूरवीरों की भी मौत हो गई थी.
कहते है कि, इस युद्ध में जहां एक तरफ अंग्रेजों की लगभग 200 सेना ही मारे गए थे, वहीं दूसरी तरफ फ्रांसीसियों के लगभग 14,000 सैनिकों की मौत हो गई थी.
बंगाल क्रांतिकारियों ने लूटा ब्रिटिशों के 50 पिस्तौल समेत हजारों कारतूस
जी हाँ! 26 अगस्त के दिन ही बंगाल में क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ी सफलता मिली थी. यह वही दौर था, जब देश को आज़ाद कराने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियां उरूज़ पर थीं. वैसे तो इस दौर में क्रांतिकारी आंदोलन का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था, लेकिन इसका मुख्य केंद्र बंगाल बन गया था.
इसी बंगाल में 26 अगस्त 1914 को क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों कलकत्ता की रोडा फर्म के एक कर्मचारी की मदद से एक बड़ी लूट की घटना को अंजाम दिया था.
उन्होंने उस लूट में 50 माउजर पितौलें और लगभग 46 हज़ार कारतूस भी शामिल थे. राजनीतिक डकैतियां व हत्याएं इस समय अपने शिखर पर थी. 1914-15 के बीच लगभग 12 और ऐसी घटनाएं हुई, वहीं 1915-16 के बीच क्रांतिकारियों ने लगभग 23 घटनाओं को अंजाम दिया था.
बंगाल के अधिकतर क्रांतिकारी समूह जतीन मुखर्जी के नेतृत्व में चलाई जा रहीं थीं. इन्हें प्यार से लोग बाघा जतीन के नाम से पुकारते थे.
‘आंग सान सू की’ ने दिया लाखों लोगों को अपना पहला भाषण
26 अगस्त के दिन ही म्यांमार (वर्मा)की अहिंसावादी नेता ऑंग साग सू की ने सैन्य शासन के खिलाफ अपना पहला सार्वजनिक भाषण लाखों लोगों के बीच दिया था. यह वही दौर था जब वर्मा में सैन्य बलों की क्रूरता अपने चरम सीमा पर थी. तब सैन्य शासन के विरोध में नागरिकों ने विद्रोह कर दिया था.
26 अगस्त 1988 को लोगों की एक बड़ी तादाद रंगून की तरफ बढ़ रही थी. वहीं सेना भी इनको रोकने के लिए तमाम प्रयास में लगी थी. सेना की चेतावनी के बावजूद लोग मिलिट्री जुंता के विरुद्ध अपना विरोध जाता रहे थे.
सैनिकों ने उन पर बन्दूक तक तान दिया था, मगर सू की ने बड़ी निडरता के साथ अपना पहला सार्वजनिक भाषण देते हुए राष्ट्रीय आज़ादी की लड़ाई की शुरुआत कर डाली.
इसके बाद उन्हें देश और विदेशों में सैन्य शासन के की विरोधी माना जाने लगा था. देश में लोकतंत्र को लेकर वो लगातार प्रयास करती रहीं. इस दौरान उनके अभियान को असफल बनाने के लिए जुंता ने उन्हें 15 सालों तक नज़रबंद करके रखा.
फिलहाल, सू की के पिता ऑंग सान को लोग आधुनिक वर्मा का राष्ट्रपति मानते हैं. इन्होंने देश की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. अपने पिता के आदर्शों पर चलते हुए सू की भी कुछ कर दिखाने का ज़ज़्बा रखती थीं.
2010 में इनको रिहा किया गया. ये महात्मा गाँधी के सत्य और अहिंसा को अपना धर्म मानती रहीं. बाद में इन्हें नोबेल शांति पुरस्कार समेत कई अन्य सम्मानों से नवाज़ा गया था.
अलाउद्दीन खिलजी ने किया चित्तौड़ पर कब्ज़ा
26 अगस्त के दिन ही दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के किले पर अपना कब्ज़ा कर लिया था.
अलाउद्दीन खिलजी अपने चाचा जहीरुद्दीन की हत्या करने के बाद 1296 में दिल्ली की गद्दी पर बैठा. सुलतान बनने के बाद अलाउद्दीन ने अपने सम्राज्य को बढ़ाने के लिए कई युद्ध किये. उसने सबसे पहले गुजरात पर अपना विजयी पताका लहराया. इसके बाद जैसलमेर और रणथम्भौर पर अपने कुशल नेतृत्व का परिचय दिया और उनको अपने अधीन कर लिया.
अलाउद्दीन का विजयी अभियान यहीं नहीं रुका 1303 में उसकी नज़र चित्तौड़ पर थी. उस दौरान चितौड़ मेवाड़ की राजधानी थी, जिसके राजा राणा रतन सिंह थे. चितौड़ का किला बहुत ही मजबूत और सुरक्षित स्थानों में से एक माना जाता था. इस लिहाज से अलाउद्दीन 1303 में चितौड़ पर फतह करने निकल पड़ा.
हालांकि, कुछ इतिहासकार इस युद्ध की वजह रानी पद्मावती की ख़ूबसूरती को मानते हैं हैं. खैर, कारण जो भी रहा हो, मगर अलाउद्दीन अपने कई सैनिकों की मौत के बाद ही 26 अगस्त 1303 को चित्तौड़ की किले पर अपना कब्ज़ा कर लिया था.
तो ये थीं 26 अगस्त के दिन, इतिहास में घटीं कुछ घटनाएं.
यदि आपके पास भी इस दिन से जुड़ी किसी घटना की जानकारी हो, तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day History of 26 August, Hindi Article
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