आज का दिन इतिहास में खासा महत्वपूर्ण है. इस दिन घटी बहुत सी घटनाएं इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गईं.
अगर आज की तारीख पर नजर डालें तो पता चलता है कि 12 सितंबर सन 1217 में फ्रांस के राजकुमार लुई और इंग्लैंड के राजा हेनरी तृतीय ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए.
1873 में पहले टाइपराइटर की बिक्री हुई. 1928 में फ्लोरिडा में आए भीषण तूफान ने 6000 लोगों को लील लिया. 1944 में अमेरिकी सेना ने पहली बार जर्मनी में प्रवेश किया. सन 1948 में भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान की ओर झुके हैदराबाद के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू कर दिया और उसे भारत में मिला लिया.
वहीं, सन 1959 में सोवियत संघ का रॉकेट लूना-2 चांद पर पहुंचा. साथ ही 1966 में भारत के तैराक मिहिर सेन ने डार्डानेलेस जलडमरूमध्य को तैर कर पार किया. तो चलिए, ऐसी ही देश विदेश की अन्य घटनाओं के लिए 12 सितंबर के ऐतिहासिक पन्नों पर नज़र डालते हैं –
लूना-2 चांद पर पहुंचा
जैसे-जैसे विज्ञान तरक्की की है, वैसे-वैसे चांद पर पहुंचने की होड़ ने एक राजनैतिक रूप ले लिया है. अमेरिका और सोवियत संघ के बीच में शीत युद्ध में चांद भी शामिल हो गया था.
बहरहाल, आज हम बात करेंगे चांद पर जाने वाली लूना-2 अंतरिक्ष यान की. चांद और अंतरिक्ष के बारे में पता लगाने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन तस्वीरों के जरिए चांद के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सोवियत संघ सफल रहा.
सन 1959 में सोवियत संघ की लूना परियोजना के अंतर्गत लूना-2 अंतरिक्ष यान चांद पर भेजा गया. इसका लॉंचिंग वजन 390.2 किलो (860 पौंड) था. इस तरह से लूना-2 12 सितंबर 1959 को सफलतापूर्वक चांद पर पहुंच गया.
यह सोवियत यूनियन के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि यूरी गागरिन रूस की और से चांद पर पहुंचने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री बने.
लूना-2 चांद पर कुछ समय तक रहा. और वहां से चांद-अंतरिक्ष से जुड़ी जानकारियों को इकट्ठा कर धरती पर लैंड कर गया. हालांकि इसे धरती पर लैंड करने में कुछ तकनीकी खामियों का भी सामना करना पड़ा, बावजूद इसके इस अंतरिक्ष यान की लैंडिंग सफलतापूर्वक हो गई.
रूस की राजधानी मॉस्को में लूना-2 को देखने हजारों लोग इकट्ठा हुए थे. स्पेस क्राफ्ट को देखने के लिए 15 टेलीस्कोपे लगाए गए थे. लूना-2 से पहले भी सोवियत संघ लूना 1 भेज चुका था, लेकिन अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद उसका पृथ्वी से उसका संपर्क टूट गया. और वह प्रयोग असफल हो गया.
लूना-1 की खामियों को देखते हुए लूना-2 में बेहतर तकनीकों का इस्तेमाल किया गया. इसमें धरती और चांद के गुरुत्वाकर्षण को मापने के उपकरण लगाए गए थे. इसके अलावा लैंडिंग के लिए बेहतर तकनीकों का प्रयोग किया गया था.
इस तरह लूना-2 की सफलता ने अतंरिक्ष तकनीक के मामले में सोवियत संघ को अमेरिका से आगे खड़ा कर दिया.
तैराकी के बादशाह बने मिहिर सेन
आपने लहरों से खेलते हुए अच्छे-अच्छों को देखा होगा. और डूबते हुए भी. पर भारत के इस खतरों के खिलाड़ी के बारे में बहुत ही कम लोग जानते होंगे.
आज हम उस तैराक मिहिर सेन के बारे में बात कर रहे हैं, जिनकी तैराकी का लोहा पूरी दुनिया ने माना था.
12 सितंबर सन 1966 को भारतीय तैराक मिहिर सेन ने डर्लेस डार्डानेलेस जलडमरूमध्य को तैरकर दुनिया को दिखा दिया कि, जो बात उनमें है, वो बात किसी और में नहीं.
डार्डानेलेस को पार करने वाले वह विश्व के प्रथम व्यक्ति थे. मिहिर सेन कलकत्ता हाईकोर्ट में बैरिस्टर भी रह चुके थे, देखते-देखते तैराकी का जुनून कब उनके ऊपर सवार हो गया, इसका अंदाज़ा उन्हें भी नहीं था.
पहली बार उन्होंने 27 सितंबर 1958 में इंग्लिश चैनल को पार किया था. जिसके लिए उन्हें 14 घंटे 45 मिनट लगे थे. इसके पहले कई बार उन्होंने इंग्लिश चैनल को पार करने को कोशिश थी, लेकिन वे असफल रहे.
इससे पहले इन्होंने 24 अगस्त 1966 को जिब्राल्टर डार-ई-डेनियल को तैरकर पार किया था. जिसके लिए उन्होंने 8 घंटे 1 मिनट का समय लिया था. वहीं, 6 अप्रैल 1966 को मिहिर सेन ने एक और कारनामा अपने नाम किया.
श्रीलंका तलाईमन्नार और भारत के धनुषकोटि के बीच में अनेकों जहरीले सापों से भरा पाक जलडमरूमध्य को तैरकर पार कर अपनी वीरता का परिचय दिया था. इस तरह उन्होंने 1966 में 5 नए कीर्तिमान अपने नाम किए. जो अपने आपमें एक रिकॉर्ड है.
मिहिर सेन के नाम तैराकी का एक और कारनामा दर्ज है. 29 अक्टूबर 1996 को उन्होंने पनामा कैनाल को पार किया, इसके लिए उन्हें 34 घंटे 15 मिनट का समय लगा था.
तैराकी में माहिर मिहिर सेन को उनके अदम्य साहस के लिए 1959 में पद्श्री प्रदान किया गया. वहीं, विशिष्ट सेवा के लिए 1967 में उन्हें पद्मभूषण दिया गया.
11 जून 1997 को मिहिर सेन का कोलकाता में 67 वर्ष के उम्र में देहांत हो गया.
लार्ड कार्नवालिस बने भारत के गवर्नर जनरल
12 सितंबर 1786 को लार्ड कार्नवालिस को भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया. लार्ड कार्नवालिस को शांति स्थापना और अंग्रेजी शासन के पुनर्गठन के लिए गवर्नर जनरल बनाया गया था.
उनका पहला कार्यकाल 1786 से 1793 तक रहा. वहीं, उनका दूसरा कार्यकाल 1805 तक था, हालांकि दूसरे कार्यकाल को पूरा करने से पहले ही उनकी मौत हो गई.
लार्ड कार्नवालिस को भारत में एक निर्माता और सुधारक के रूप में भी जाना जाता है. इसके साथ-साथ उन्हें सिविल सेवा के जनक के रूप में भी याद किया जाता है. उन्होंने न अपने कार्यकाल में बहुत से प्रशासनिक सुधार किए, बल्कि कलेक्टरों के अधिकार और उनके वेतन का भी निर्धारण किया.
इसके अलावा पुलिस व्यवस्था को एक नया आयाम देने का श्रेय भी इन्हें जाता है. इसलिए उन्हें पुलिस व्यवस्था का जनक भी कहा जाता है.
1790 से 1792 ई. में तृतीय मैसूर युद्ध कार्नवालिस के कार्यकाल में ही हुआ था. कार्नवालिस ने 1993 में एक कानून बनाया, जिसे कार्नवालिस कोड के नाम से जाना जाता है. कार्नवालिस कोड में कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों का विभाजन किया गया था.
इसके अतिरिक्त उन्होंने फ़ौजदारी कानून में परिवर्तन करते हुए 1797 में एक कानून पास किया, जिसमें यह लिखा गया कि हत्या करने वाले को भावना के आधार पर दण्डित किया जाना चाहिए. प्रशासनिक व्यवस्था की सुधार हेतु उन्होंने अंग्रेजी मजिस्ट्रेट को पुलिस का भार दिया था.
कार्नवालिस द्वारा किए गए बदलाव भारतीय इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है. उनके द्वारा भूमि कर व्यवस्था में भी सुधार करते हुए सर जॉन शोर के सहयोग से एक नीति निर्माण किया था. जिसमें भूमि पर अंतिम स्वामित्व जमीदारों के हक़ में था.
1793 में जमीदारी को लेकर एक कानून बनाया गया था. जिसमें जमीदारों को भू-राजस्व का 8/9 भाग ईस्ट इंडिया कंपनी को देना था. इस भू कर व्यवस्था को लेकर बाद में कुछ संशोधन भी किए गए. कार्नवालिस ने अपने कार्यकाल में व्यवस्थित तरीकों से प्रशासनिक कार्यों का निर्वाह किया था. इसके बाद 1805 में 67 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.
गाजीपुर में कार्नवालिस का मक़बरा है, जिन्हें लाठ साहब के नाम से जाना जाता है.
रूस ने नॉन न्यूक्लियर वैक्यूम बम का परीक्षण किया
आज ही के दिन 12 सितंबर 2007 को रूस ने नॉन न्यूक्लियर बम का परीक्षण किया था. रूस द्वारा बताया गया कि यह बम दुनिया के सबसे शक्तिशाली बमों में से एक था. इसे सभी बमों का बाप भी कहा जा सकता है. वहीं, इसे अमेरिका के बमों की मां से 4 गुना ज्यादा शक्तिशाली माना जाता है.
इस बम के परीक्षण के बाद रूस के सशक्त बल के एक कर्मचारी डिप्टी चीफ कलेक्टर ने एक चैनल को बताया था कि इस बम के परीक्षण ने यह दिखा दिया कि हमारी क्षमता और दक्षता कितनी ज्यादा है.
रूस के द्वारा अब तक का बनाया जाने वाला यह नॉन न्यूक्लियर बम 2007 तक बनने वाले दुनिया के सबसे घातक बमों में से एक था. इस बम के सफल परीक्षण के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ख़ुशी जताई थी. परिक्षण से पहले रूस और अमेरिका के बीच में बेहद तल्खियां देखी गईं. इस परमाणु परीक्षण के बाद पुतिन ने अमेरिकी की शक्ति को चिढ़ाते हुए अपनी शक्ति को ज्यादा बेहतर बताने का काम किया.
रूस के अधिकारियों ने यह भी संकेत दिया कि अमेरिका यह न समझे की वही एक शक्ति का केंद्र है.
तो ये थीं 12 सितंबर के दिन इतिहास में घटीं कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं. अगर आपके पास भी इस दिन से जुड़ी किसी महत्वपूर्ण घटना की जानकारी है, तो हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day In History 12 September, Hindi Article
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