15 अगस्त की तारीख देश के इतिहास में तो महत्व रखती ही है, इसी के साथ इस तारीख से विश्व इतिहास भी अछूता नहीं है.
इस दिन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को अगर एक नजर देखें, तो पता चलता है कि आज के दिन सन 1854 में ईस्ट इंडिया रेलवे ने कलकत्ता से हुगली के बीच पहली यात्री ट्रेन चलाई थी. वहीं, सन 1947 में इतिहास के सबसे बड़े कत्लेआम और हिंदुस्तान विभाजन के बाद भारत को ब्रिटिश शासन से हमेशा के लिए आजादी मिल गई थी. इसी के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बन गए.
आजादी के इस जश्न के बाद इसी दिन सन 1950 में 8.6 के तीव्रता वाले भूकंप ने भारत को हिलाकर रख दिया था. इस प्राकृतिक आपदा में करीब 30 हजार लोग मारे गए थे.
वहीं, साल 1971 में बहरीन ब्रिटेन के शासन से आजाद हुआ था. 1975 में बांग्लादेश में सैनिक क्रांति हुई, बाद में मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई और खोंडेकर मुश्ताक अहमद के नेतृत्व में नई सरकार का गठन किया गया. इसके अलावा और भी.
आइए जानते हैं, आज के दिन घटित कुछ ऐसी ही देश-विदेश की ऐतिहासिक घटनाओं को –
पूरा हुआ आजाद भारत का सपना
तमाम जद्दोजहद और आंदोलन के बाद आज ही के दिन सन 1947 में भारत को आजादी मिली थी. मुल्क के लोगों को आजाद भारत में सांस दिलाने के लिए तमाम क्रांतिकारियों ने अपनी जान न्यौछावर कर दी थी.
एक ओर भारत में आजादी के मतवाले पूरे दमखम के साथ मुल्क को आजाद कराने में अपना जोर लगाए हुए थे. वहीं, दूसरी ओर ब्रिटिश सैनिक दूसरे विश्व युद्ध के बाद पस्त पड़ चुके थे. उनकी कमर टूट चुकी थी. द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार को काफी नुकसान उठाना पड़ा.
अब हालात ये हो गए थे कि भारत तो दूर की बात, ब्रिटिश सरकार को खुद की सरकार चलाने में पसीने छूट रहे थे. इस वजह से ब्रिटिश सरकार की पकड़ भारत पर भी कमजोर पड़ गई.
कमजोर पड़ती शक्ति को ब्रिटिश हुकूमत भी अच्छे से भांप चुकी थी. उसे अब एहसास होने लगा था कि वह ज्यादा दिनों तक भारत पर हुकूमत नहीं कर सकते हैं.
ऐसे में, आखिरकार ब्रिटिश सरकार भारत को आजादी देने के लिए राजी हो गई.
यह जिम्मेदारी लुइस माउंटबेटन को दी गई. हालांकि माउंटबेटन मन ही मन इसके लिए राजी नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि वह नहीं चाहता था कि भारत से ब्रिटिश हुकूमत की समाप्ति का कलंक उसके सिर पर आए, लेकिन अंतत: में उसे ब्रिटेन की सरकार की बात माननी पड़ी.
भारत को आजादी तो मिलने जा रही थी, लेकिन वह हिन्दू-मुस्लिम दंगों की आग में झुलस रहा था.
हिंसा इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि जब पूरा देश 15 अगस्त 1947 को जश्न मना रहा था. उसी दिन महात्मा गांधी दिल्ली से दूर दंगे रोकने के लिए बंगाल में अनशन पर बैठे थे. ये दंगे आजादी से पहले ही शुरू हो गए थे.
इस आग को शांत करने के लिए आखिरकार हिंदुस्तान का विभाजन हुआ और मुस्लिमों के लिए एक अलग राष्ट्र पाकिस्तान बनाया गया.
अब 15 अगस्त को आखिरकार वह दिन आ ही गया, जिसका ख्वाब आजादी के मतवाले क्रांतिकारियों ने देखा था. भारत को आधी रात में आजादी मिल गई.
यूं तो भारतीय प्रधानमंत्री हर स्वतंत्रता दिवस पर 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से झंडा फहराते हैं. लेकिन 1947 में 15 अगस्त के बजाए 16 अगस्त को पंडित नेहरू ने लाल किले पर झंडा फहराया था.
लेखिका इस्मत चुगताई पैदा हुईं
खुले विचारों की लेखिका और फिक्शन रायटर इस्मत चुगताई का आज ही के दिन 1915 ई. में जन्म हुआ था. वह उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में पैदा हुईं.
इस्मत आपा के नाम से मशहूर इस्मत चुगताई ने उर्दू साहित्य के जरिये महिलाओं कर पीड़ा को बयान किया. बेबाक तरीके से महिलाओं के मुद्दे उठाने की वजह से उनके साथ विवादों का नाता भी खूब रहा.
ऐसी ही उनकी एक कहानी ‘लिहाफ’ के लिए उनपर लाहौर हाईकोर्ट में मुकदमा भी चला. जो बाद में खारिज हो गया. साल 1942 में आई उनकी इस कहानी से काफी बवाल मचा. यूं तो इस्मत अपनी कहानियों में महिलाओं के मुद्दे उठती रहती थीं, लेकिन इस कहानी की वजह से उन्हें शोहरत भी मिली.
कहानी में इस्मत ने समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था.
इस्मत ने ऐसे समय में इन मुद्दों को उठाया, जब ऐसा करना काफी हिम्मत का काम था. खासकर एक महिला के लिए इस तरह की कहानी लिखना बड़ी बात थी.
1974 में इस्मत को उनके उपन्यास ‘टेढी लकीर’ के लिए ग़ालिब अवाॅर्ड से भी नवाजा गया.
पुरुषों में उस समय जिस तरह सआदत हसन मंटो अपनी कहानियों के जरिए समाज के ताने बाने की आलोचना कर रहे थे, ठीक उसी तरह कह सकते हैं कि महिलाओं में यह जिम्मा इस्मत आपा ने उठा रखा था.
दोनों ही महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिख रहे थे. इस बेबाकी की वजह से उन्हें कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ा.
बांग्लादेश के राष्ट्रपति की हत्या
15 अगस्त 1975 की वो रात, जब बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान को सेना के अफसरों ने ही मार डाला था. इस जघन्य हत्याकांड में मुजीबुर्रहमान के अलावा उनकी पत्नी और बेटे को भी मौत के घाट उतार दिया गया था.
इस साजिश का शिकार होने से शेख हसीना और उनकी बहन बच गईं, क्योंकि जब बांग्लादेशी सेना की ओर से यह खूनी खेल खेला जा रहा था, उस वक्त ये दोनों यूरोप में मौजूद थीं.
उस रात बांग्लादेशी सेना तख्तापलट के इरादे से राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान के घर की ओर बढ़ी. घर में घुसते ही मेजर हुदा, नूर और मोहिउद्दीन ने शेख मुजीब को ढूंढना शुरू कर दिया. इस बीच सबसे पहले उनके बेटे कमाल को गोलियों से भून दिया गया.
अब इनकी नजर एक बार फिर शेख मुजीब को ढूढने में लग गईं. सीढ़ियों पर चढ़ते ही मोहिउद्दीन को शेख मुजीब नजर आ गए. इसके बाद मेजर नूर ने शेख मुजीबुर्रहमान को अपनी स्टेन गन से छलनी कर दिया.
राष्ट्रपति की हत्या के बाद भी सेना के बागी अफसरों की क्रूरता खत्म नहीं हुई. रिसालदार मुस्लेमुद्दीन और मेजर अजीज पाशा ने शेख मुजीब की पत्नी और उनके 10 साल के बेटे रसेल मुजीब को भी नहीं बक्शा.
इस हत्याकांड के लगभग 22 साल बाद जब 1997 में शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना सत्ता में आईं तो फारूक रहमान समेत उनके पांच अन्य साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया. और 27 जनवरी 2010 को इन्हें फांसी दे दी गई.
पनामा नहर तैयार हुई
आज ही के दिन सन 1914 में पनामा नहर बनकर तैयार हुई थी. इस नहर को अमेरिकी सेना ने सन 1904 से 1914 के बीच बनाया था. जिसमें 75 हजार मजदूर लगे थे.
पनामा एकलौती ऐसी जगह है, जहां प्रशांत महासागर से सूरज उगता है, जबकि अटलांटिक महासागर में इसे डूबते हुए देखा जा सकता है. टापुओं से भरे इस देश की आबादी 33 लाख से ज्यादा है.
यहां डेढ़ हजार से ज्यादा टापू हैं. इतने टापू होने की वजह से ही पनामा घूमने वालों की पसंद है. अभी हाल ही में पनामा लीक के कारण दुनियाभर में चर्चा का विषय बना था. इस लीक में कई दिग्गजों के नाम सामने आए थे.
10 हजारी बने ब्रायन लारा
वेस्टइंडीज के आक्रामक बल्लेबाज और कप्तान रहे ब्रायन लारा 15 अगस्त 2004 को टेस्ट क्रिकेट में 10 हजार रन बनाने वाले चौथे बल्लेबाज बन गए थे. इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे टेस्ट मैच के चौथे दिन लारा ने यह कारनामा किया था.
वहीं, लारा एकलौते ऐसे बल्लेबाज हैं, जिन्होंने टेस्ट मैच में 400 रन का व्यक्तिगत स्कोर खड़ा किया.
ब्रायन लारा का शौक बचपन से ही क्रिकेट खेलने का था. महज आठ साल की उम्र से उन्होंने बल्ला थाम लिया था. हालांकि वह अपने पहले ही मैच में कुछ खास नहीं कर सके थे. पाकिस्तान के खिलाफ डेब्यू करने वाले लारा इस मैच में महज 11 रन ही बना सके थे.
बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आने वाले समय में एक से बढ़कर एक रिकॉर्ड बनाए.
17 साल के अपने करियर में लारा ने 131 टेस्ट मैच में 11953 रन बनाए. जिसमें 34 शतक और 48 अर्धशतक शामिल हैं. वहीं अगर बात करें एकदिवसीय मैच की तो 299 मैचों में उन्होंने 10405 रन बनाए. जिसमें 19 शतक और 63 अर्धशतक शामिल हैं.
यूं तो लारा ने कई रिकॉर्ड बनाए हैं, लेकिन 1994 में एंटीगुआ टेस्ट में उनकी 400 रनों की नाबाद पारी आज भी एक रिकॉर्ड है. जिसे कोई भी बल्लेबाज तोड़ नहीं सका है.
तो ये थीं 15 अगस्त के दिन इतिहास में घटीं कुछ घटनाएं. यदि आपके पास भी इस दिन से जुड़ी किसी घटना की जानकारी हो, तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day In History 15 August, Hindi Article
Feature Image Credit: desinema.com