वर्तमान में हमारे आस-पास जो भी वक्त बीतता है, उसमें दुनिया के किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ जरूर घटित होता है. वह बीता हुआ कल हमारे लिए कई यादगार पलों को छोड़कर जाता है, जिससे हम सीखते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ते जाते हैं.
उन्हीं में से कुछ ऐसे भी ऐतिहासिक किस्से होते हैं, जो हमारे लिए बहुत खास या दिलचस्प होते हैं.
24 अगस्त के दिन का भी अपना इतिहास रहा है, इस दिन जहाँ ब्रिटिशों ने व्हाइट हाउस को जला दिया था वहीँ दूसरी तरफ ईस्ट इंडिया कंपनी का पहला जहाज भारत पहुंचा था.
खैर, ऐसी ही कुछ और कड़वी-मीठी यादें 24 अगस्त के इतिहास से जुड़ीं हुई हैं, जिनको जानना हमारे लिए दिलचस्प होगा-
जब जला दिया गया व्हाइट हाउस
24 अगस्त के दिन ही ब्रिटिश सैनिकों ने व्हाइट हाउस में आग लगा दिया था. अमेरिका के आजाद होने के बाद यह पहला मौक़ा था, जब किसी विरोधी ने वाशिंगटन डी सी में प्रवेश ही नहीं किया था, बल्कि कई स्थानों को बुरी तरह नष्ट भी कर दिया था.
दरअसल, 1812 में संयुक्त राज्य अमेरिका और इंग्लैंड के बीच युद्ध लड़ा गया था. इस युद्ध में अमेरिका ने जून 1812 में ही कनाडा के ओंटारियो में यार्क शहर पर हमला कर दिया था.
मगर, इस युद्ध में इंग्लैंड के सामने अमेरिका की सैन्य शक्ति कमज़ोर दिखाई पड़ी. आगे, 24अगस्त 1814 में ब्रिटिश सैनिकों ने वाशिंगटन डी सी में प्रवेश कर लिया और बदले में व्हाइट हाउस को आग के हवाले कर दिया था.
इसी कड़ी में दिलचस्प यह था की, ब्रिटिश सैनिकों ने व्हाइट हाउस जलाने से पहले वहां के व्यंजनों से बने भोजन को भी ग्रहण किया था.
जब ब्रिटिश सेनाएं व्हाइट हाउस पहुँचीं, तो उस वक़्त के राष्ट्रपति जेम्स मैडिसन और उनकी पत्नी डॉली सुरक्षा की दृष्टि से व्हाइट हाउस से निकल चुके थे. राष्ट्रपति 24 अगस्त को ही युद्ध के मैदान पर अपने जनरलों से मिलने के लिए व्हाइट हाउस छोड़ दिया था.
हालांकि, ब्रिटिश सैनिकों की पहुँचने से पहले ही उनको जानकारी मील चुकी थी. इस हमले के बाद राष्ट्रपति मैडिसन दोबारा व्हाइट हाउस में रहना पसंद नहीं किया और अपने बचे हुए शासनकाल के दौरान ऑक्टैगन हाउस में ही रहे.
परन्तु, 1817 में नए निर्वाचित राष्ट्रपति जेम्स मोनरो पुन: निर्मित व्हाइट हाउस इमारत में रहना शुरू कर दिया था.
छपी 'गुटेनबर्ग बाइबिल' की पहली प्रति
जर्मनी के योहानेस गुटेनबर्ग ने दुनिया को पहला छापाखाना ही नहीं दिया था, बल्कि इन्होंने 24 अगस्त 1456 में अपने प्रिंटिंग प्रेस से ही बाइबिल की पहली प्रति भी छापी थी. इसे गुटेनबर्ग बाइबिल के नाम से जाना जाता है
ऐसा माना जाता है कि, बाद में उन्होंने इसकी 180 प्रतियां छापी थी.
इन 180 प्रतियों में से 135 को कागज पर छपाई की गई, जबकि बाकी को चर्मपत्र का उपयोग करके तैयार किया गया था. इन प्रतियों को इन्होंने पेरिस और फ़्रांस में भी भेजा था, वहीँ एक प्रति 1847 में अमेरिका पहुंची, जो अब न्यूयॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी में रखी गई है.
गुटेनबर्ग ने 1439 में प्रिंटिंग मशीन बनाई थी, हालांकि इससे पहले चीन में एक छापाखाना चलाया जा रहा था.
मगर, इनकी प्रिंटिंग मशीन उससे बिलकुल अलग थी, जो प्रिंट कि प्रिंट की दुनिया में क्रांति लेकर आया था. इन्होंने 1455 में अपना प्रिंटिंग प्रेस माइंस शहर में खोला था. इसके बाद 1956 में इसी प्रिंटिंग मशीन से बाइबिल की प्रतियाँ छापी. इसी के बाद इनकी प्रिंटिंग मशीन पूरे यूरोप में छा गई.
फिर, कुछ ही सालों में इनकी ये तकनीक पूरी दुनिया में इस्तेमाल होने लगी थी. इतिहास में इनके किये गए अविष्कार को कभी नहीं भुलाया जा सकता.
भारत को मिले दो राष्ट्रपति
जी हाँ! 24 अगस्त के दिन ही हिन्दोस्तान के इतिहास में दो राष्ट्रपति बने थे. इसी दिलचस्प कड़ी में दूसरी रोचक बात यह थी कि, यह दोनों देश के चौथे और पांचवें राष्ट्रपति हुए थे.
इनमें पहला नाम वराहगिरि वेंकट गिरि का आता है, जो 24 अगस्त 1669 में भारत के चौथे राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की थी. वी.वी. गिरि ने स्वतंत्रता आन्दोलनों में हिस्सा लिया था. 1937 में इन्हें कांग्रेस ने ‘श्रम व उद्योग मंत्रालय’ का मंत्री नियुक्त किया था. बाद में इन्होंने इस्तीफा दे दिया और गाँधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े.
आगे, जब देश आजाद हुआ तो लोकसभा सांसद चुने गए. वी वी गिरि उत्तर प्रदेश, केरल और मैसूर के राज्यपाल भी रहे. जाकिर हुसैन के कार्यकाल के दौरान उपराष्ट्रपति के पद पर अपनी सेवाएँ दीं.
जब जाकिर साहब का निधन हुआ तो ये कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्यरत रहे. 1969 में जब राष्ट्रपति का चुनाव हुआ तो इंदिरा गाँधी के समर्थन से 24 अगस्त 1969 को भारत के चौथे राष्ट्रपति बने. इन्हें देश के सर्वोच्च पुरस्कार ‘भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था.
24 अगस्त को ही देश के पांचवें राष्ट्रपति के रूप में फखरुद्दीन अली अहमद ने शपथ ग्रहण की थी. कांग्रेस पार्टी ने इन्हें राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित किया और 20 अगस्त 1974 को चुनाव का नतीजा निकला. कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विजयी हुए.
आगे, इन्होंने 24 अगस्त 1974 को राष्ट्रपति के पद की शपथ ग्रहण किया था. अपने कार्यकाल के दौरान ही 11 फ़रवरी 1977 को इनकी मृत्यु हो गई थी.
जब अंग्रेजों का पहला जहाज सूरत पहुंचा
24 अगस्त के दिन ही ईस्ट इंडिया कंपनी की पहली जहाज भारत पहुंची थी.
दरअसल, 1600 में कुछ ब्रिटिश व्यापारियों ने इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ से भारत में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त कर लिया. व्यापार करने के लिए उन्होंने एक कंपनी का गठन किया, जिसका नाम ईस्ट इंडिया कंपनी रखा. इसका मुख्य उद्देश्य धन कमाना था.
आगे, 1608 में कंपनी का पहला जहाज भारत के लिए रवाना किया गया. ‘हेक्टर’ नामक यह जहाज 24 अगस्त 1608 में सूरत के बंदरगाह पहुंचा.
यहाँ से कंपनी मसाले का व्यापार करना चाहती थी, मगर पुर्तगालियों ने कंपनी को व्यापार करने में कई अड़चनें पैदा की. ऐसे में अंग्रेजों ने डच की मदद से एक लम्बे समय तक डट कर मुकाबला किया. 1612 में कैप्टन बोस्टन के नेतृत्व में अंग्रेजों ने पुर्तगालियों को करारी शिकस्त दे दी थी.
1613 में कंपनी को शाही फरमान मिला तब सूरत में व्यापार करने का उसका अधिकार सुरक्षित हो गया. इसके बाद तो कंपनी ने लगातार अपना विस्तार किया और कई सालों तक भारत में व्यापार करती रही.
तो यह थीं 24 अगस्त की कुछ ख़ास घटनाएं.
इस दिन से जुड़ी कोई और घटना अगर आपको भी याद है तो कमेंट बॉक्स में उसे हमारे साथ जरूर बताएं.
Web Title: Day In History 24 August, Hindi Article
Feature Representative Image Credit: Politics