हर सेकेंड के बीतने के साथ ही दुनिया के कोने-कोन में कुछ ऐसा घटता है, जो हमें आज तो नहीं पता चलता, लेकिन वक़्त के पन्नों में दर्ज हो जाता है. यह किस्से तारीख़ अपने पन्नों में संजो लेती है जिसे आने वाली नस्लें याद रखती हैं.
इतिहास लिखने या इतिहास रचने का कोई दिन तय नहीं होता. जिस दिन कोई इंसान अपनी इच्छाशक्ति के बल पर कुछ ऐसा काम कर गुज़रता है, जो अन्य वालों के लिए मिसाल बन जाता है. बस, वही दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है.
दीवारों पर टंगे कैलेंडर की हर तारीख़ के पीछे एक इतिहास छिपा है और उसके आगे एक कहानी है! इस तरह इतिहास के पन्नों में हज़ारों तारीखें दर्ज हैं, जो हमें दुनिया की प्रसिद्ध घटनाओं के बारे में बताती हैं.
ऐसे में इन किस्सों को हर कोई जानना चाहता है. हर साल आने वाली ये तारीखें, इतिहास को हमारे सामने जीवंत कर देती हैं!
इसी कड़ी में आज हम 24 मई को घटित इतिहास की कुछ ऐसी ही ‘विशेष’ व प्रसिद्ध घटनाओं पर बात करेगें–
लेबनान में 22 साल खूनी खेल के बाद इज़रायली सेना लौटी
मिडिल ईस्ट देश लेबनान से आज के दिन इज़रायली सेना वापिस इज़रायल लौट गई थी. साल 1978 में इज़रायली सेना लेबनान में घुसी थी. उसके बाद से लगातार लेबनान में खूनी खेल जारी था. इज़रायली सेना के जवान लेबनान के आम नागरिकों को अपनी बंदूक की गोलियों का निशाना बनाते, तो वहीं लेबनान के लड़ाके इज़रायली सेना के जवानों को मौत के घाट उतार देते.
यह लड़ाई 22 साल तक लेबनान की ज़मीन पर चलती रही. आख़िरकार 24 मई साल 2000 में इज़रायली सेना को लेबनान से पीछे हटना पड़ा और वह वापिस अपने देश आ गई. जिसके बाद लेबनान में सेना के जाने के बाद काफी खुशियां मनाई थीं.
भले ही इज़रायली सेना साल 1978 में लेबनान में घुसी थी, लेकिन इसकी शुरुआत साल 1948 से हो गई थी. जब इज़रायल के बनने की शुरुआत हुई, तो यहूदियों ने फिलिस्तीन के लोगों पर ज़ुल्म ढाना शुरु कर दिया.
इतना ही नहीं यरुशलम में रहने वाले फिलिस्तीनियों को वहां से निकाला जाने लगा. जिसके बाद फिलिस्तीन के कुछ क्षेत्रिय संगठनों ने लेबनान के क्षेत्रिय संगठन की मदद मांगी थी.
मदद के तौर पर इस संगठन ने इज़रायली सेना का विरोध करना शुरु कर दिया. माना जाता है कि इस दौरान 2 इज़रायली सेना के जवान भी मारे गए. बस उसके बाद से लेबनान में इज़रायली सेना ने बदले की नीयत से युद्ध कर दिया था. जिसके बाद इज़रायली सेना 22 साल तक लेबनान में घुसी रही और वहां खून की एक इबारत लिख दी.
Israel Army Return From Lebanon (Representative Pic: reuters)
मैच रेफरी का गलत फैसला बना 300 मौत का कारण!
फुटबॉल खेल रोमांच का है. लोग स्टेडियम में फुटबॉल मैच देखने आते हैं ताकि वह रोमांच से खुद को लबरेज रख सकें, लेकिन कई बार खेल के प्रति अधिक दीवानगी कई लोगों की मौत का कारण बन सकती है.
आज के दिन खेल दुनिया काफी शर्मसार हुई थी. एक मैच रेफरी के गलत निर्णय पर टीम के प्रशंसकों ने अपने टीम के लिए स्टेडियम में तोड़फोड़ कर दी. जिसका नतीजा यह रहा कि स्टेडियम में भगदड़ मच गई और परिणामस्वरूप इस भगदड़ और तोड़फोड़ में 300 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई.
पेरू की राजधानी लिमा में 24 मई 1964 में फुटबॉल मैच का आयोजन किया जा रहा था. जिसमें अर्जेंटीना की टीम भी खेल रही थी. लिमा के फुटबॉल मैदान में हो रहे इस मैच में पेरू की टीम अर्जेंटीना से भिड़ रही थी.
टूर्नामेंट में अपने सफर को आगे बरकरार रखने के लिए पेरू की टीम को इस मैच को या तो ड्रा कराना था या फिर मैच जीतना था. पेरू को इस मैच में हार बाहर का रास्ता दिखा] सकती थी. पेरू की टीम के डिफेंडर ने किक मारी और गोल कर दिया, लेकिन दुर्भाग्य से रेफरी ने इस किक को अवमान्य करार दे दिया.
बस यहीं से स्टेडियम में हालात बिगड़ गए. माना जाता है कि स्टेडियम में 53 हज़ार लोग जमा थे, जिसमें पेरू टीम के समर्थकों की तादाद पांच प्रतिशत थी. स्टेडियम में भगदड़ मचने से 300 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई. वहीं फिर पुलिस और सेना को हालात काबू करने पड़े थे.
300 People Died During Football Match (Pic:global)
अमेरिका और रूस के बीच हुए अहम समझौते
24 मई का दिन अमेरिका और रूस देशों की राजनीति के लिए काफी खास है. आज के दिन दोनों देशों के बीच अहम समझौतों पर सहमति बनी थी. 24 मई साल 2002 में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच और दोनों देशों के बीच की खाई को पाटने के लिए कई अहम समझौते हुए थे.
दोनों राष्ट्रपतियों ने भविष्य के लिए इन समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. जिसमें आतंकवाद के खिलाफ एक साथ मिलकर लड़ना और अर्थव्यवस्था को लेकर करार शामिल थे. दोनों ने अपने- अपने देशों की सेना को एक साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की बात कही थी.
इसके साथ ही दोनों देशों के बीच होने वाले व्यापार को और तेज़ रफ्तार देने को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. वहीं आम लोगों को देखते हुए वीज़ा प्रणाली को सरल बनाने के लिए अमेरिका ने रूस के साथ विदेश मंत्रालय को लेकर सहयोग किया था.
जिसमें रूस से अमेरिका के उच्च यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाने वाले छात्र-छात्राओं के हित में वीज़ा प्रणाली को सरल बनाने के लिए अहम समझौते किए गए थे.
Russia- USA Relations Under George Bush and Vladimir Putin (Pic: delaruelive)
अमेरिका में आम नागरिकों लिए शुरु हुई रेलसेवा
वर्तमान समय में अमेरिका विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान बना चुका है. विज्ञान से लेकर अन्य क्षेत्रों में अमेरिका ने अन्य देशों के मुकाबले में काफी तरक्कीयों की हैं.
अमेरिका ने खुद को सुपर पॉवर देश बनाने में महज़ चंद दिनों का समय नहीं लिया था. बल्कि अमेरिका ने खुद को विकासशील देशों में शुमार करने के लिए 18वीं सदी से ही मेहनत करना शुरु कर दी थी.
मौजूदा समय में अमेरिका में मेट्रो से लेकर बुलेट ट्रेन का जाल पूरी तरह से बिछ चुका है. चंद घंटों में अमेरिका में इन ट्रेनों से हज़ारों किलोमीटर का सफर तय किया जात है, लेकिन अमेरिका के लिए एक दिन वो भी था कि वहां ट्रेन ही नहीं थी.
आज का दिन अमेरिका के इतिहास के लिहाज से काफी खास है क्योंकि आज के दिन यानि 24 मई साल 1830 में अमेरिका में पहली पैसेंजर ट्रेन की शुरुआत की गई थी. जिसके तहत आज के दिन अमेरिका में आम नागरिकों के लिए पैसेंजर ट्रेन को खोला गया था.
पैसेंजर ट्रेन के बाद अमेरिका में ट्रेन की पटरियों ने रफ्तार पकड़ी और कुछ समय बाद ही अमेरिका में महत्वपूर्ण जगहों को ट्रेन पटरी से जोड़ने का काम पूरा हो गया था.
First Passenger Train Started in America (Representative Pic: american)
तो ये थीं 24 मई से जुड़ी कुछ खास जानकारियां!
अगर आप भी इस दिन से जुड़ा कोई विशेष और ऐतिहासिक किस्सा जानते हैं, तो कृपया नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं. इसके साथ ही इनमें से आपको कौन सी जानकरी रोचक लगी यह बताना न भूलें.
Web Title: Day In History 24 May, Hindi Article
Feature Image Credit: deadspin