30 मार्च का दिन भारत के इतिहास में कई खट्टी-मीठी यादें संजोए हुए है. यह दिन है जब आॅस्कर पुरस्कार भारत आया और यह वही दिन है, जब संगीत के बोल ‘आनंद बख्शी’ के रूप में दुनिया से अलविदा कर गए.
इस दिन की याद दिलाती है, पाकिस्तान को भारत से अलग करने वाले सीरिल रैडक्लिफ़ की. साथ ही याद दिलाता है अमेरिका के राष्ट्रपति पर गोलियां बरसाने वाले एक सिरफिर आशिक का गुस्सा.
इन घटनाओं ने 30 फरवरी को यादगार बना दिया है.
तो आइए और नजदीक से जानते हैं आज की तारीख से जुड़ी ऐसी ही दिलचस्प घटनाओं को
जब दुनिया से चला गया ‘आनंद’
‘आनंद’ की कोई सीमा नहीं है. यह छोटा सा शब्द अपने आप में अपार संभावनाओं को छिपाए हुए है, लेकिन 30 मार्च की तारीख ‘आनंद’ की मौत की खबर लेकर आई.
वह ‘आनंद’ जिसने लोगों के जीवन में प्यार का रस घोला और सुरमई संगीत से उन्हें सुकून पहुंचाया.हम बात कर रहे हैं मशहूर लेखक, गीतकार, संगीतकार आंनद बख्शी की. 21 जुलाई 1930 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे नंदो यानि आनंद की मां उन्हें कम उम्र में ही अकेला छोड़कर स्वर्गवासी हो गईं.
सौतेली मां से वो अपनापन नहींं मिला इसलिए वे दादी मां की ममता की छांव में पले बढ़े. बंटवारे के बाद आनंद मुंबई आ गए और फिल्मी करियर शुरू हुआ.
आनंद को आजीवन अपनी मां की कमी खली और इस कमी को उन्होंने अपने संगीत से पूरा किया. उन्होंने ‘माँ तुझे सलाम’ (खलनायक), ‘माँ मुझे अपने आंचल में छुपा ले’ (छोटा भाई), ‘तू कितनी भोली है’ (राजा और रंक) और ‘मैंने माँ को देखा है’ (मस्ताना) जैसे खूबसूरत नग्में लिखे.
1972 में आई फिल्म ‘मोम की गुड़िया’ में पहली बार आनंद बख्शी ने गीत लिखे थे. उन्होंने शाहरुख खान की फिल्में डर, दिल तो पागल है, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे और मोहब्बतें जैसी सुपरहिट रोमांटिक फिल्मों के गीत भी खिले.
आनंद बख़्शी को 40 बार ‘फ़िल्मफेयर पुरस्कार’ के लिए नामांकित किया गया और 4 बार पुरस्कार भी मिला. गीत खिलते समय आनंद अक्सर सिगरेट के कई पैकेट खाली कर जाते थे. सिगरेट की यही लत उनकी बीमारी का कारण बनी. वे दिल और फेफड़ों की बीमारी से ग्रस्त हो गए. 72 साल की उम्र में 30 मार्च 2002 में उनका निधन हो गया.
Anand Bakshi (Pic: thequint)
सत्यजित राय ने जीता आॅस्कर
30 मार्च की तारीख को खास बनाने के लिए सत्यजित राय का नाम ही काफी है. चूंकि उन्हीं की बदौलत कला की दुनिया में विश्व का सबसे बड़ा पुरस्कार भारत आया था.
जी हां 30 मार्च 1992 को फिल्म लेखक, निर्माता-निर्देशक सत्यजित राय को ऑस्कर में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया था. उन्होंने बांगला और हिंदी सिने जगत के लिए आजीवन काम किया. उनकी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ ने 1995 में बहुत से राष्ट्रीय पुरस्कार जीते. इस फिल्म को कांस फिल्म फेस्ट में भी प्रर्दशित किया गया था.
उन्होंने एकमात्र हिंदी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ बनाई थी.
उन्होंने कई मशहूर किताबों के आवरण यानी कवर डिजाइन किए जिनमें जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहर लाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ शामिल हैं. भारतीय सिने जगत में उनके योगदान के लिए 1958 में पद्मश्री, 1965 में पद्म भूषण, 1967 में पद्म विभूषण और 1992 में भारत रत्न से नवाजा गया.
उनकी कला को पूरी दुनिया ने सम्मान दिया और 1992 में ही वह आॅस्कर विजेता बने. जब उन्हें यह पुरस्कार दिया गया तो वे काफी बीमार थे और बिस्तर पर थे. जब ऑस्कर की ट्रॉफी उनके हाथ आई तो उन्होंने कहा कि मैं नहीं जानता था कि यह पुस्कार इतना भारी होता है.
Satyajit Ray (Pic: newindianexpress)
भारत-पाक की विभाजन रेखा खींचने वाले ‘सीरिल’
आजादी की कीमत हमें भारत-पाकिस्तान के विभाजन के रूप में चुकानी पड़ी थी. यह दोनों देशों के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं था. बंटवारे के जख्म आज भी दोनों के दिलों में ताजा हैं. इस घटना से जुड़ी एक याद 31 मार्च से संबंधित भी है.
दरअसल दोनों देशों के बीच विभाजन की रेखा को ब्रिटिश अफसर और वकील सीरिल रैडक्लिफ़ ने खींचा था. इनका जन्म 30 मार्च 1899 में हुआ था.
विभाजन रेखा खींचने वाले इस अफसर के नाम पर ही रैडक्लिफ़ रेखा का नाम पड़ा. सीरिल पेशे से वकील थे और ब्रिटिश प्रशासन में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर काबिज रहे.
लॉर्ड माउंटबेटन ने 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान(मुस्लिम राष्ट्र) और 15 अगस्त, 1947 को भारत (रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया) बनाए जाने की घोषणा की. सीरिल को जिम्मेदारी दी गई कि वे दोनों देशों की सीमा तय करें.
सीरिल ने भारत के तीन टुकड़े किए. एक हिस्सा पाकिस्तान का और दूसरा बांग्लादेश के रूप में पूर्वी पाकिस्तान का. इस विभाजन में रेलवे, फ़ौज, ऐतिहासिक धरोहर, केंद्रीय राजस्व, सबका बराबरी से बंटवारा करने की जिम्मेदारी भी सीरिल ने निभाई.
Cyril Radcliffe (Pic: bloomberg)
राजस्थान का स्थापना दिवस
संस्कृति और त्यौहारों के रंगों में रंगा राजस्थान दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है. यहां के लोगों की सादगी विदेशियों के मन को भाती है. राजस्थान के कपड़े, जेवर, खाना, बोली, त्यौहार… शायद ही कोई पहलू होगा जो किसी के जेहन से बाहर जा सके.
कहते हैं एक बार जो यहां आ गया, वो यहीं का हो जाता है. 30 मार्च 1949 को राजस्थान की नींव रखी गई थी. इसलिए हर साल यह दिन राजस्थान राज्य स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है. हालांकि, भारत सरकार के लिए राजस्थान प्रांत का बनना आसान नहींं था.
चूंकि यह पूरा क्षेत्र राजे-रजवाड़ों का था, जिन्होंने कभी किसी के सामने झुकना नहीं सीखा. वे लोकतंत्र को आसानी से स्वीकार नहीं कर पा रहे थे, लेकिन 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय कर दिया गया. जिसके बाद बना राजस्थान संघ. इसी दिन जयपुर को राजस्थान की राजधानी घोषित किया गया.
इसके बाद अन्य रियासतों के साथ गृह मंत्री सरदार पटेल और उनके सचिव वी.पी मेनन की वार्ता चलती रही और 18 मार्च 1948 से राजस्थान एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई. जो सात चरणों में पूरी होती हुई 1 नवंबर 1956 को खत्म हुई.
राजस्थान दिवस पर पूरे राजस्थान का नजारा देखने लायक होता है. खासतौर पर जयपुर और जैसलमेर में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इसे देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं. इस दिन झाकियां निकलती हैं, घोड़ों और ऊँटों का जुलूस और पुलिस के जवानों के स्टंट्स लोगों का मनोरंजन करते हैं.
Rajasthan In 1949 Map (Pic: touristplacespl)
अमेरिकी राष्ट्रपति पर सिरफिरे आशिक का हमला
30 मार्च 1981 अमेरिका के इतिहास का काला दिन कहा जाता है. इसी दिन वॉशिंगटन में राष्ट्रपति रीगन पर ताबड़तोड़ छह गोलियां चल गईं. इस घटना से अमेरिका ही नहीं, बल्कि बाकी देश भी सकते में आ गए. एक बार फिर जॉन एफ केनेडी और अब्राहम लिंकन की याद आ गई.
उन्हें जॉर्ज वॉशिंगटन अस्पताल पहुंचाया गया. इस खबर से पूरे अमेरिका में निराशा छा गई. रीगन को देश का राष्ट्रपति बने अभी तक केवल 69 दिन ही हुए थे. जनता उनके शासन में खुश थी और यही उनके दुश्मनों को मंजूर नहीं था.
अस्पताल में रीगन का इलाज शुरू हुआ और कई घंटों चले आॅपरेशन के बाद उनके शरीर से 6 गोलियां बाहर निकाल ली गईं. रीगन अब खतरे से बाहर थे. इसके बाद अमेरिका ने राहत की सांस ली. रीगन ने इस घटना के बाद अपने दो कार्यकाल पूरे किए और 8 साल तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे.
यह कहानी बस इतनी नहीं है. बल्कि दिलचस्प है उस हमलावर का किस्सा जिसने रीगन को निशाना बनाया. हमलावर का नाम था जॉन हिंकले जूनियर. उसे दिमागी तौर पर अस्वस्थ्य भी माना जा सकता है. उसे राष्ट्रपति से कोई परेशानी नहीं थी. वह बस उन पर हमला कर के पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहता था.
उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसने जोड़ी फोस्टर की फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ कई बार देखी थी. वह जोड़ी से ‘प्यार’ करने लगा था. जबकि जोड़ी ने उसके प्यार को ठुकरा दिया. इसके बाद उसने तय किया कि वह ऐसा कोई काम करेगा, जिससे उसका भी दुनिया में नाम होगा.
इसके बाद वह यह खौफनाक कदम उठाने के लिए तैयार हो गया.
Man Shot President Reagan (Pic: ar15)
हर किसी दिन की अपनी एक अलग ही कहानी होती है. कभी यह कहानी हमारे चेहरे पर मुस्कान लाती है तो कभी उदासी.
ऐसे ही बहुत सी यादगार कहानियों से भरा होता है हर एक दिन.
अगर 30 मार्च से जुड़ी ऐसी कोई ऐतिहासिक कहानी आपको पता हो तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day in History March 30, Hindi Article
Featured Image Credit: Anchoragedailynews