हर किसी का एक अतीत होता है, जिसे हम उसका इतिहास कहते हैं. ऐसा ही हर तारीख के साथ भी है. हर रोज दुनिया के किसी न किसी कोने में इतिहास बनता ही रहता है. इसी क्रम में जब हम किसी भी एक तारीख को उठा कर देखते हैं और उसका इतिहास टटोलते हैं तब हमें पता चलता है कि उस रोज कितना कुछ हुआ था.
तो चलिए जानते हैं कि आखिर 8 मार्च अपने अंदर क्या-क्या छिपाए हुए है-
दुनिया को मिली पहली महिला पायलट
1886 को पैदा हुई फ्रांसीसी एविएटर रेमॉन्ड डी लार्कोस विश्व की वह पहली महिला थीं, जिन्हें पायलट का लाइसेंस दिया गया. रेमॉन्ड का जन्म केवल धरती पर चलने के लिए नहीं हुआ था. वह तो ऊंचे आकाश में प्लेन उड़ाने के लिए पैदा हुई थीं.
कहते हैं कि रेमॉन्ड डी लार्कोस उस दौर में हवाई जहाज उड़ाने की बात करती थीं, जिस वक्त महिलाओं को वोट तक डालने की अनुमति नहीं थी.
रेमॉन्ड की मुलाकात उस वक्त के बेहतरीन पायलट चार्ल्स वोइसिन से हुई तो मानो उनकी जिंदगी ने एक नई करवट ले ली थी. वोइसिन रेमॉन्ड से मिले तो उन्होंने महसूस किया कि रेमॉन्ड के अंदर हवाई जहाजों के प्रति एक अलग ही प्यार है.
वह उड़ना चाहती थीं, मगर यह नहीं जानती थीं कि कैसे उनके अंदर की इस आग को देख कर ही चार्ल्स ने उन्हें प्लेन उड़ाने की ट्रेनिंग देने का वादा किया. उन्होंने रेमॉन्ड को प्लेन के बारे में वह सब बताया, जो प्लेन उड़ाने के लिए जरूरी था. यही नहीं उन्होंने रेमॉन्ड को उड़ान के गुर भी सिखाए.
इसके बाद 8 मार्च 1910 को रेमॉन्ड के हाथों में प्लेन उड़ाने का लाइसेंस सौपा गया, जिसके बाद वह प्लेन उड़ाने वाली पहली महिला बनीं. उनसे पहले कोई महिला पायलट बनाने के लिए आगे नहीं आई.
Raymonde de LaRoche (Pic: commons)
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हुई शुरुआत
आज यानी कि 8 मार्च को पूरी दुनिया में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. पहली बार अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस सन् 1909 को अमेरिका में मनाया गया था, लेकिन उस वक्त यह दिवस 8 मार्च को नहीं, बल्कि 28 फरवरी को मनाया गया था.
महिला दिवस को महिला श्रमिकों की हड़ताल के सम्मान में न्यूयॉर्क में नामित किया. वहां महिलाओं ने काम करने की स्थिति के खिलाफ सन 1908 में विरोध किया था.
बाद में इसके चलते उन्हें सम्मान देने के लिए अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने इस दिन को महिला दिवस का नाम दे दिया. बताते चलें कि 8 मार्च को यूरोप में महिलाओं ने एकजुट होकर पहले विश्व युद्ध में हो रही हिंसा के खिलाफ एक शांति प्रदर्शन किया था, जिसके बाद से महिला दिवस 8 मार्च को ही मनाया जाने लगा.
वहीं 1975 को इस दिशा में यूनाइटेड नेशन ने 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया, जिसके बाद से महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाने लगा.
International Women’s Day (Pic: healthfundaa)
बॉक्सर मुहम्मद अली की पहली शिकस्त!
8 मार्च 1971 का इंतजार लोग बड़ी बेसब्री से कर रहे थे. वजह थी मुहम्मद अली और जो फ्रेज़र के बीच होने वाली ‘फाईट ऑफ दी सेंच्यूरी’.
फाइट ऑफ दी सेंच्यूरी का मतलब है, उस वक़्त के दो सबसे बड़े बॉक्सर के बीच की फाइट. ये बॉक्सिंग मैच होने वाला था मुहम्मद अली औऱ जो फ्रेज़र के बीच. दोनों उस वक्त के नामी मुक्केबाज थे.
8 मार्च 1971 तक, जो फ्रेज़र ने 26 बॉक्सिंग मैच लड़े थे, जिनमें से वह एक भी नहीं हारे थे. दूसरी तरफ मुहम्मद अली थे, जिन्होंने अब तक 31 मैच खेले थे. उसमें से वह एक भी नहीं हारे थे. इस लिहाज से दोनों दिग्गज थे, इसलिए मुकाबला रोमांचक था.
न्यूयॉर्क का मेडिसन स्क्वायर गार्डन दर्शकों से खचा खच भरा हुआ था. दोनों मुक्केबाजों को रिंग के अंदर लड़ता देखने के लिए दर्शक पागल हो रहे थे. असल में जानते थे कि आज का दिन इतिहास में दर्ज होने वाला था.
दोनों में से कोई भी बॉक्सर अपने करियर में एक भी मुकाबला नहीं हारा था.
आज के दिन जो भी हारता उसके करियर की वह पहली हार होती. जब मुक्केबाज इतने बड़े हो जो जाते हैं, तो लोगों को यकीन नहीं होता की कोई इन्हें भी हरा सकता है. हालांकि, जब दोनों ही दिग्गज हो तो परेशानी थोड़ी ज्यादा बढ़ जाती है.
8 मार्च को मेडिसन स्क्वायर गार्डन में इतिहास रचा भी गया. मुहम्मद अली और जो फ्रेजर के बीच यह मुकाबला जब 11वें राउंड में पहुंचा तो सब की सांसे रुक गईं!
मुहम्मद अली रिंग में गिर गए थे. फ्रेजर के पंच ने उन्हें कुछ लम्हों के लिए बेहोश कर दिया था. रेफरी ने गिनती शुरू की और दर्शक एकदम शांत होकर सुन रहे थे. तभी हलचल हुई औऱ मुहम्मद अली अपने पैरों पर खड़े हो गए.
उसके बाद यह मुकाबला पूरे 15 राउंड चला. इसमें कोई भी मुक्केबाज सामने वाले को गिरा नहीं पाया. सब को लगा था कि यह मैच ड्रा रहा. मगर तभी रेफरी ने अपना निर्णय सुनाया. उन्होंने टेक्निकल नियमों के कारण फ्रेजर को विजेता घोषित कर दिया.
मुहम्मद अली के जीवन की यह पेहली हार थी. 8 मार्च सन 1971 का वह दिन मुहम्मद अली के लिए एक काल बनकर आया था. उसके बाद ही उन्होंने 4 और मुकाबले हारे.
Muhammad Ali (Pic: superheromanifesto)
साहिर लुधियानवी का जन्म दिन
8 मार्च को ही भारत को एक ऐसा शायर मिला था, जिसने उर्दू और हिंदी को अलग मकाम तक पहँचाया और भारत का नाम और रोशन कर दिया. 8 मार्च 1921 को पंजाब में जन्मे साहिर भारत के सबसे मशहूर शायरों में से एक थे.
कहते हैं कि साहिर की लिखी बातों में एक सच्चाई होती थी, जिससे हर एक समझ सकता था. उन्होंने हिंदी और उर्दू दोनों ही भाषाओं में काम किया. उनकी यह दोनों ही भाषाएँ लोगों को पसंद आई.
उन्होंने बॉलीवुड के लिए कई गाने भी लिखे हैं.
‘मैं पल दो पल का शायर हूँ, पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है, पल दो पल मेरी जवानी है
मुझसे पहले कितने शायर, आए और आकर चले गए,
कुछ आहें भरकर लौट गए, कुछ नग़्मे गाकर चले गए’
साहिर का लिखा यह गीत अमिताभ बच्चन की फिल्म कभी-कभी में था. इसके अलावा अपने जीवन काल में साहिर नें कई ऐसे गानें लिखे, जो अभी तक लोगों की जुबान पर रहते हैं. बताते चलें कि साहिर केवल 59 साल के थे, जब दिल का दौरा पड़ने से 25 अक्टूबर 1980 को उनकी मौत हो गई थी.
वह बात और है कि साहिर आज भी हमारे दिलों की धड़कन बने हुए हैं..
Sahir ludhianvi (Pic: sahir-ludhianvi)
तो ये थीं 8 मार्च से जुड़ी कुछ खास जानकारियां!
अगर आप भी इस दिन से जुड़ा कोई विशेष और ऐतिहासिक किस्सा जानते हैं, तो कृपया नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day In History 8th March, Hindi Article
Featured Image Credit: latimes