कितना अजीब होता है कि जिस तारीख को एक व्यक्ति खुश होता है, ठीक उसी तारीख को किसी कोने में कोई खुद को सबसे दुखी महसूस कर रहा होता है…
एक घटना इतिहास रचती है और दूसरी इतिहास बदल देती है. तारीखों के इसी खेल से बनती है ‘डे’ इन हिस्ट्री.
‘डे’ इन हिस्ट्री में आज बात कर रहे हैं 28 मार्च की!
28 मार्च याद दिलाता है अश्वेत अमेरिकियों के उस मार्च की, जिसने वहां की कानून व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया. इसके साथ ही याद आता है सबीना पार्क, जहां कोर्टनी वॉल्श की शानदार गेंदबाजी के आगे कपिल देव का रिेकॉर्ड ध्वस्त हो गया.
यह दिन प्रकृतिक आपदाओं की स्मृतियों को भी संजोए हुए है.
तो आइए इतिहास की ऐसी ही घटनाओं को और नजदीक से जानने की कोशिश करते हैं.
मार्टिन लूथर किंग का ऐतिहासिक मार्च
2008 में अमरीका के राष्ट्रपति के रूप में जब बराक ओबामा को चुना गया तो यह दिन ऐतिहासिक हो गया. ऐसा इसलिए क्योंकि, यह पहला मौका था जब कोई अश्वेत अमेरिकी इतने प्रतिष्ठित पद पर काबिज हुआ था. हालांकि, अश्वेतों के लिए यह सफर आसान नहीं था.
1965 में मार्टिन लूथर किंग के ऐतिहासिक मार्च ने भविष्य में यह दिन दिखाया.
यह वह वक्त था जब मार्टिन लूथर किंग अश्वेतों के अधिकारों और सामनता के लिए लड़ रहे थे. उन्होंने अश्वेत अमेरिकियों की शिकायतों की ओर सरकार का ध्यान खींचने के लिए 28 मार्च 1965 को अलाबामा की राजधानी मॉंटगुमरी में मार्च निकाला.
इस मार्च में 25 हज़ार लोगों ने हिस्सा लिया!
इस मार्च की खास वजह थी अमेरिका में बना नागरिक अधिकार कानून. इस कानून के अनुसार अश्वेत और श्वेत अमेरिकियों के लिए एक ही व्यवस्था को इस्तेमाल करने के दो तरीके रखे गए थे.
जैसे बस में श्वेत और अश्वेत अमेरिकियों के लिए अलग-अलग सीट होना. इस कानून ने अमेरिका में भेदभाव की भावना को और मजबूत कर दिया था.
Martin Luther King (Pic: independent)
‘अंकारा’ और ‘इस्तांबुल’ का नामकरण
1930 का समय तुर्की के आधुनिकीकरण के लिए याद किया जाता है. इस दौरान देश में जहां उद्योगों का विकास हो रहा था. वहीं लोगों के रहन-सहन में भी बदलाव आ रहा था.
बदलाव के इसी दौर में 28 मार्च 1930 को देश की राजधानी ‘अंगोरा’ को ‘अंकारा’ और ‘कॉन्सटानिनोपल’ को ‘इंस्तांबुल’ का नाम दिया गया.
यह काम आधुनिक तुर्की के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने कर दिखाया था. तुर्की की सेना के जनरल कमाल अतातुर्क ने लोगों के इस भ्रम को तोड़ा कि यह देश धार्मिक आधार पर पहचान बनाए हुए है. उन्होंने यूरोपीय मॉडल को अपनाया और देश में वैसे ही बदलाव भी किए.
उन्हीं के प्रयासों का असर दिखाई दिया और 1933 में पुरुषों और महिलाओं को मताधिकार मिला. उन्होंने इस्लामी कानून से हट कर नए संविधान की नींव रखी. आज तुर्की दुनिया का अकेला ऐसा मुस्लिम बहुमत वाला देश कहलाता है जो पूर्णत: धर्मनिर्पेक्ष है.
Istanbul And Ankara (Pic: costsavertour)
कोर्टनी वॉल्श ने तोड़ा कपिल देव का रिकॉर्ड
क्रिकेट जगत में कपिल देव के रिकॉर्ड्स आज भी खिलाडि़यों को प्रेरणा देते हैं. हालांकि, साल 2000 में एक ऐसा खिलाड़ी भी सामने आया था, जिसने उनके वल्र्ड रिकॉर्ड को पहली बार तोड़ा. हम बात कर रहे हैं वेस्टइंडीज़ के तेज गेंदबाज कोर्टनी वॉल्श की.
कपिल देव ने अपने सन्यास से पहले 5248 रन बनाए थे और टेस्ट क्रिकेट में 434 विकेट लिए. इस रिकॉर्ड को तोड़ने की कोशिश कई खिलाडि़यों ने की पर वे उसे छू तक नहीं पाए.
वहीं दूसरी ओर 90 के दशक में कोर्टनी वॉल्श का नाम क्रिकेट की दुनिया में चमकना शुरू हो गया था. वॉल्श हर मैच में शानदार प्रदर्शन कर रहे थे. इसी क्रम को जारी रखते हुए 28 मार्च 2000 में, ज़िम्बाब्वे के खिलाफ सबीना पार्क में वेस्टइंडीज़ का मैच जारी था.
वॉल्श के करियर का यह 114वां टेस्ट था. इसी मैच में खेलते हुए वॉल्श ने 435 वां विकेट लेकर कपिल देव के रिकॉर्ड को तोड़ दिया. इसके बाद भी सिलसिला नहीं रूका और वे एक के बाद एक विकेट झटकते गए और 519 विकेट का रिकॉर्ड कायम कर साल 2005 में सन्यास ले लिया.
Kapil Dev (Pic: rvcj)
अमेरिकी परमाणु संयंत्र से निकली हानिकारक विकिरणें
रेडियो सक्रिय विकिरणें कितनी हानिकारक हो सकती हैं इस बात का परिणाम हिरोशिमा के रूप में पूरी दुनिया ने देखा था.
28 मार्च 1979 को इसका एक और भयावह रूप देखा गया, जब अमेरिकी परमाणु संयंत्र से रेडियो सक्रिय विकिरणें निकलनी शुरू हुईं. अमरीका के पेन्सिलवेनिया के थ्री माइल आइलैंड परमाणु संयंत्र में हुई इस घटना ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी थी.
प्रशासन ने आपात स्थिति की घोषणा कर दी थी. संयत्र के अंदर 500 कर्मचारी काम कर रहे थे. घटना के दौरान वहां का नजारा खौफनाक था. जहां यह संयंत्र लगा था, वहां पास ही रहवासी इलाका था. डर था कि इन विकरणों से लाखों लोगों की जान जा सकती है, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. इतना बड़ा हादसा इंजीनियर्स की समझ से टल गया.
इस घटना में एक भी कर्मचारी और आम नागरिक की मौत नहीं हुई. संयत्र के लीक को भी 24 घंटों के दौरान ठीक कर लिया गया.
Nuclear Accident (Pic: stateimpact)
…जब कांप उठी थी धरती
हर रोज दुनिया के किसी न किसी कोने में भूंकप के झटके महसूस किए जाते हैं. वैज्ञानिकों की माने तो यह बहुत आम बात है, लेकिन क्या वाकई?
यह बात आम तब नहीं रहती, जब ये झटके एक पल में सैंकड़ों जाने ले लें. 28 मार्च का दिन भूकंप के उन भयावह झटकों की याद भी दिलाता है, जिसने पहली बार अलास्का को पूरी तरह झकझोर दिया. इसके बाद सुमात्रा की धरती भी कुछ ऐसे ही कांपी.
28 मार्च 1964 को अलास्का में भूकंप 9.2 की तीव्रता वाला भूकंप आया. इस झटके से लोग संभल पाते की कुछ ही घंटों में सुनामी आ गई और तटीय शहर टूब गए. इस दुर्घटना में तत्काल ही 125 लोगों की जान चली गई और करीब 5 हजार लोग बेघर हो गए थे.
इस तबाही ने 3 करोड़ 10 लाख डॉलर की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था. यह हादसा इतना भयानक था कि वेस्टर्न यूकॉन इलाका और कनाडा स्थित ब्रिटिश कोलंबिया भी तबाही की चपेट में आ गए थे.
ऐसा ही तेज भूकंप एक बार फिर 28 मार्च 2005 को सुमात्रा में आया.
वैसे तो सुमात्रा में आए दिन भूकंप के झटके महसूस होते हैं पर उस दिन भूकंप की तीव्रता8.7 थी. जिसमें 1300 लोगों की जान चली गई थी और करीब 3 हजार लोग घायल हुए थे.
9.2 Earthquake In Alaska (Pic: theatlantic)
हर दिन कितने ही तरह के भाव अपने में बसाए हुए होता है. कहीं ख़ुशी होती है तो कहीं पर ग़मों के आंसू. हर दिन ऐसे ही मिश्रित भावों से भरा हुआ होता है.
28 मार्च से जुड़ा कोई और किस्सा अगर आपको याद हो तो हमें जरूर बताएं.
Web Title: Day In History 28 March, Hindi Article
Feature Image Credit: espncricinfo/espncricinfo