हर दिन एक नयी घटना हमे उससे कुछ नया सिखाती है. हर तारीख अपने आप में न जाने कितनी यादे संजोए हुए होती है. कुछ यादें खट्टी होती हैं तो कुछ बेहद मीठी.
आज 16 जुलाई है!
आज के दिन के इतिहास के पन्नों को पलटते हैं. समय में पीछे जाकर उन घटनाओं पर नज़र डालते हैं जिसे इस तारीख ने अपने साथ कैद कर लिया.
जानते हैं, आज के दिन के इतिहास को, जिसमे जन्म से लेकर कई उपलब्धियां भी शामिल हैं-
भारत को मिला एक शानदार खिलाड़ी
अपने खेल के अंदाज़ से सबको दीवाना बनाने वाले धनराज का जन्म आज ही के दिन हुआ था. उनका जन्म 16 जुलाई, 1968 को महाराष्ट्र के किरकी में हुआ. धनराज को तमिल समेत हिन्दी, मराठी व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान था.
पांच भाई-बहनों के साथ धनराज ने गरीबी को बड़े ही करीब से देखा था. एक समय तो उनकी ज़िन्दगी में ऐसा आया जब उनके पास हॉकी स्टिक खरीदने के पैसे नहीं जुड़ पा रहे थे. लेकिन कहते हैं न कि मेहनती और लक्ष्य केन्द्रित इंसान को कोई चीज़ प्रभावित नहीं कर सकती.
हुआ वही, बचपन से खेल के दीवाने धनराज ने अपनी हॉकी स्टिक को रस्सी से बांधकर अपनी प्रैक्टिस जारी रखी. यही वजह है की आज खेल जगत में उनका नाम सर्वश्रेष्ठ खिलाडियों में लिया जाता है. उन्होंने अपने हॉकी के खेल की शुरुआत पुणे के एस.बी.एस. हाईस्कूल से की थी.
मैदान में खेलते समय उनकी फुर्ती देखते बनती थी. हाल कुछ ऐसा कि वो अपने से 15 वर्ष छोटे खिलाड़ियों को भी फुर्ती में मात दे सकते थे. साल 1994 उनके लिए एक सुनहरा पल बनकर आया. इसी वर्ष वो ‘वर्ल्ड इलेवन टीम’ के लिए चुने गए. जल्द ही, अपने बेहतरीन प्रदर्शन से वो हर भारतीय के दिल में बस गए.
साल 1998 में उनकी कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम ने एशियाई खेलों में गोल्ड मैडल जीता. जो भारत की झोली में 32 वर्ष बाद आया था. अपने फुर्तीले खेल की वजह से ही साल 1989 से 2004 तक वह लगातार खेलते रहे.
उन्होंने अपने करियर में 339 मैच खेले और 170 गोल किये. वह चार ओलंपिक में, चार वर्ल्ड कप में और चार एशियाई खेलों में भाग लेने वाले एकमात्र भारतीय हैं. इन्हें राजीव गाँधी खेल पुरस्कार समेत पद्मश्री से भी नवाज़ा गया है. इसके अलावा, उनकी झोली में दर्ज़नो से ज्यादा अवार्ड हैं, जो उनकी काबिलियत का प्रतीक हैं.
आपको बताते चलें, उनके भाई ने भी इंटरनेशनल लेवल पर भारत का प्रतिनिधित्व किया हुआ है.
आजाद भारत के ख्वाब को सच करने में अरुणा का योगदान!
भारत की आजादी की लड़ाई में पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी बेहद अहम भूमिका निभायी थी. इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण हैं अरुणा आसफ अली.
16 जुलाई के ही दिन 1909 में हरियाणा के हिन्दू बंगाली परिवार में उनका जन्म हुआ. अरुणा गांगुली ने अपनी शिक्षा नैनीताल और लाहौर से की.
पढ़ाई के बाद उन्होंने कोलकाता के गोखले मेमोरियल स्कूल में एक टीचर के रूप में काम किया. अरुणा ने 1928 में आसफ अली से शादी कर ली. वह एक कांग्रेसी नेता थे, उन्होंने ये शादी अपने माता-पिता के खिलाफ जाकर की थी. क्योंकि, अली मुस्लिम थे और अरुणा हिन्दू.
आपको बता दें, आसफ अली वहीं वकील भी हैं जिन्होंने भगत सिंह का केस लड़ा था. वह भगत सिंह की विचारधारा का हमेशा सपोर्ट करते रहे थे.
उन्होंने 1930 में हुए नमक सत्याग्रह से लेकर भारत छोड़ों आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. इस दौरान, उन्होंने जुलूसों और सभाओं द्वारा लोगों को आजादी के मायने समझाए. इसके लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कई बार जेल भी भेजा.
1932 में जेल में उन्होंने कैदियों के साथ होने वाले बुरे बर्ताव के खिलाफ भूख हड़ताल भी की थी. समय के साथ वो ज्यादा सक्रिय होती रहीं.
लिहाज़ा, 1942 में अरुणा नायिका के रूप में दिखीं जब उन्होंने मुंबई के कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया तब अरुणा ने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में झंडा फहराने की हिम्मत दिखाई.
गिरफ़्तारी से बचने के लिए अंडरग्राउंड हुई अरुणा ने गांधी जी के कहने पर 1946 में सरेंडर कर दिया था. आज़ाद भारत में सोशलिस्ट पार्टी से भी जुडी रहीं.
साल 1998 में उन्हें ‘भारत रत्न’ दिया गया. साथ ही, दिल्ली की पहली मेयर चुनी जाने वाली अरुणा के नाम पर रोड का नाम भी रखा गया है. उनका महत्वपूर्ण योगदान हमेशा भारत के याद रखा जाएगा.
159 साल पहले हिन्दू विधवाओं को पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता!
16 जुलाई के ही दिन महिलाओं के उत्थान के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया था. क्योंकि, जहां एक ओर पत्नी की मृत्यु के बाद पति तो दूसरा विवाह कर लेते थे. वहीं दूसरी ओर, महिलाओं के लिए यह नामुमकिन ही समझे.
लेकिन, कानूनी तौर पर उनके पुनर्विवाह को आज ही के दिन कानूनी मान्यता मिल गयी थी. दरअसल, अंग्रेजों ने इस कानून को पारित कर इसे आधिकारिक रूप से मंजूरी दे दी थी. इस कानून को लागू करवाने में में समाजसेवी ईश्वरचंद विद्यासागर का सबसे अहम योगदान था.
विद्यासागर ने अक्षय कुमार दत्ता के सहयोग से विधवा विवाह पर काम किया था. उन्होंने हिंदू विधवाओं के विवाह के विषय में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक भी किया. लिहाज़ा, हिंदू समाज में इस बदलाव की आस रखने वाले विद्यासागर ने अपने बेटे का विवाह भी एक विधवा से ही किया था.
आपको बता दें, इस कानून से पहले हिंदू समाज में ऊँची जाति की विधवा महिलाओं के विधवा होने पर दोबारा शादी करने की अनुमति नहीं थी.
जो इस कानून के आने के साथ मिल गयी थी.
14 की उम्र से मॉडलिंग करने वाली कटरीना का फ़िल्मी सफ़र!
16 जुलाई के ही दिन 1983 में कटरीना का जन्म ब्रिटेन में हुआ. उनके पिता भारतीय थे और माँ विदेशी.
आज सफलता के शिखर पर पहुँच चुकी कटरीना को ये शोहरत यूँ नहीं मिली. इसके लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया. उन्होंने 14 साल की उम्र में मॉडलिंग से अपने करियर की शुरुआत की थी.
अपनी आंखों में बॉलीवुड की हीरोइन बनने का सपना रखने वाली कटरीना की हिंदी ज़रा कच्ची थी. यही वजह थी कि डायरेक्टर्स उन्हें लेने से कतराते थे.
लेकिन, साल 2003 में जरा हालात बदले और उन्होंने फिल्म 'बूम' के साथ बॉलीवुड में अपने कदम रखे. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हुई. लेकिन कटरीना ने हिम्मत नहीं हारी.
कुछ समय बाद, साल 2004 में सलमान खान ने उन्हें 'मैंने प्यार क्यों किया' में चांस दिया. जिसके बाद कटरीना ने रुकने के नाम नहीं लिया. इसके बाद के सफ़र से हम सब परिचित हैं. यही वजह है कि आज उनका नाम बॉलीवुड की टॉप एक्ट्रेस की लिस्ट में लिया जाता है.
तो ये थीं 16 जुलाई के दिन भारतीय इतिहास में घटीं कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं.
अगर आपके पास भी इस दिन से जुड़ी किसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना की जानकारी है तो हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title:Day In Indian History 16 July, Hindi Article
Feature Image Credit: indiawest