अगर आपकी सोच है कि जंग में एक सिपाही की बंदूक ही उसका सबसे बड़ा हथियार है, तो शायद आपने डेसमंड डोस के बारे में नहीं सुना.
यह वह सिपाही था जिसने जंग के मैदान में बिना बंदूक उठाए 75 सैनिकों की जान बचाई थी. वह अपने बाकी साथियों की तरह ही बेख़ौफ़ दुश्मन के आगे खड़ा रहा मगर उसने एक भी गोली नहीं चलाई.
डेसमंड डोस 1 अप्रैल 1942 को अमरीकी सेना में शामिल हुए थे और ठीक 3 साल 9 महीने बाद 12 अक्तूबर 1945 को वह अमरीका के वाईट हाऊस में खड़े होकर राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से अमरीका का सबसे बड़ा बहादुरी सम्मान ले रहे थे. उन्होंने अपने अटूट विश्वास की बदौलत बिना एक भी गोली चलाए या यूं कहें कि बिना हथियार उठाए 75 अमेरिकी सैनिकों को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाया था.
इस जंग में उनका हथियार हाथ में पकड़ी उनकी बाइबल व ईश्वर पर उनका विश्वास था, जिसकी बदौलत उन्होंने वो कारनामा कर दिखाया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था.
पर कैसे आया डोस में इतना अद्भूत विश्वास?
डेसमंड डोस के इस कारनामे के बारे में जब भी कोई सुनता है तो उनके मन में यही ख्याल आता है कि आखिरकार किसी व्यक्ति में इतना दृढ़ विश्वास व संकल्प कैसे हो सकता है कि वो बिना बंदूक के दुश्मन की गोलियों व टैंको के आगे खड़ा हो सके.
तो आइए ज्यादा समय न लगाते हुए आपको बताते हैं डेसमंड डोस के बारे में–
इस एक किस्से बदल डाला ‘नजरिया’
7 फरवरी 1919 को जन्मे डेसमंड जब छोटे थे तो एक दिन उनके पिता एक नीलामी से एक तस्वीर खरीद कर लाए. यह तस्वीर एक तरह की पेंटिंग थी जिसमें केन नाम का एक शख्स हाथ में क्लब पकड़े अपने भाई ऐबल के मृत शरीर के ऊपर खड़ा था.
इस तस्वीर को देख छोटे डेसमंड ने अपने पिता से पुछा कि आखिर केन ने ऐबल को क्यों मारा?
भला ये कौन सी दुनिया है जहां एक भाई ऐसा कुछ कर सकता है. इस बात का जवाब देते हुए उनके पिता ने कहा कि तुम हमेशा एक बात को याद रखना कि भगवान कभी किसी की जान लेने को नहीं कहते हैं.
अगर भगवान से प्यार करते हो तो तुम्हें किसी की जान नहीं लेनी चाहिए. पिता की यह बातें छोटे डेसमंड के ज़हन में कुछ इस प्रकार घर कर गई कि उन्होंने इसी को अपने जीवन का आधार बना लिया.
उनके अंदर मानो अचानक ही इंसानियत जाग गई. वह समझ गए कि आखिर एक इंसान की जान की क्या कीमत है. क्यों हमें किसी की जान लेने का हक नहीं है!
इस बात को डेसमंड ने अपना उसूल बना लिया था. समय बदलता गया मगर उन्होंने कभी भी यह बात को खुद से जुदा नहीं होने दिया. इंसानियत की थोड़ी और समझ डेसमंड को चर्च जाने के बाद भी हुई.
वह समय-समय पर चर्च जाया करते थे. वहां पर पादरी उन्हें ईसा मसीह की कहानियाँ सुनाया करते थे. उन कहानियों को डेसमंड ने बहुत ही गंभीरता से लिया और समझा. यही कारण बना कि वह एक अच्छे इंसान बनने की राह पर चल पड़े.
Desmond Doss Man Who Dont Use Any Wepon In War (Pic: rebrn)
जब ‘देश-प्रेम’ की ओर बढ़ा झुकाव
बढ़ती उम्र में जब डेसमंड के दिल में कुछ करने की चाह जागी तो उन्होंने अमरीकी सेना में शामिल होने का फैसला किया. देश के बहुत से नौजवानों की तरह वह भी सेना में जाकर देश के लिए काम करना चाहते थे.
हालांकि सेना में शामिल होने का फैसला उन्हें काफी भारी पड़ा!
अपने नरम दिल और दयालु स्वभाव के चलते उन्हें अपने साथी सैनिकों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ता था. जहां बाकी सैनिक हर समय बंदूक और जंग की बात करते थे, वहीं दूसरी ओर डेसमंड इंसानियत की बातें किया करते थे.
डेसमंड का बाइबल पढ़ना और उनका हथियारों को न उठाना उनके लिए हर दिन नई परेशानियां खड़ा करता था. इस बात को लेकर सभी डेसमंड को बुरा भला कहते व उनका मजाक उड़ाते.
यहां तक कि डेसमंड के सीनियर अधिकारी भी इस बात को लेकर उनसे खफा रहते थे. डेसमंड का हथियार न उठाना उन्हें अपने आदेश का अपमाना लगता था. डेसमंड के लिए सेना में रहना मुश्किल था मगर फिर भी वह सेना को नहीं छोड़ना चाहते थे. वह तो देश के लिए काम करना चाहते थे. इसलिए वह कई मुश्किलों के बाद भी सेना से जुड़े रहे.
बंदूकों से दूरी बनाने का डेसमंड ने एक बहुत ही बढ़िया उपाय निकाला. उन्होंने खुद को चिकित्सा विभाग से जोड़ लिया. जहां बाकी लोग दूसरों को मारने का अभ्यास कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर डेसमंड लोगों की जान बचाने की विद्या सीख रहे थे.
इस बीच अप्रैल 1945 को 26 वर्षीय डोस और उनकी बटालियन को एक अभियान के तहत ओकिनावा क्षेत्र के निकट मदद के लिए बुलाया गया. इस दौरान उनकी बटालियन को 400 फुट ऊंची चट्टान पर चढ़ने का कार्य सौंपा गया था, जिसे सैनिक हेक्सा रिज कहते थे.
जब अमेरिकी सैनिक इस चट्टान पर चढ़ रहे थे तभी चट्टान की गुफाओं में बैठे हजारों जापानी सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया. इस हमले में बहुत बड़ी संख्या में अमेरिकी सैनिक मारे गए और कई सारे तो घायल हो गए.
Demond Get In US Army But Never Picked A Weapon In Training (Pic: people)
ईश्वर पर विश्वास बना हथियार!
जापानियों के हमले के बाद डेसमंड के साथी भारी गोलीबारी के बीच घायल पड़े हुए थे. डेसमंड जानते थे कि अगर सही समय पर उनका इलाज नहीं किया गया तो उनकी जान चली जाएगी. डेसमंड के आगे सबसे बड़ी परेशानी थी कि आखिर भारी गोलीबारी के बीच कैसे वह अपने साथियों को बचाएँ?
कोई भी अपने सुरक्षित स्थानों से बाहर जाके दुश्मन जापानियों की गोलियों का शिकार नहीं होना चाहता था.
डेसमंड अपने साथियों को इस तरह घायल हालत में नहीं देख पा रहे थे. उन्होंने सोच लिया था कि अपने साथियों को उन्हें खुद ही बचाना होगा. वह निहत्थे हाथों में बाइबल पकड़े भागते हुए घायल सैनिकों की तरफ भागे.
वह बस लगातार ईश्वर से प्रार्थना करते जा रहे थे कि दुश्मन की कोई भी गोली उन्हें न लगे. गोलियों से बचते हुए वह सिपाहियों को एक-एक कर सुरक्षित कैंप में लाए जा रहे थे. इस प्रकार धीरे-धीरे डेसमंड ने करीब 75 सैनिकों की जान बचा ली.
कुछ दिन इसी प्रकार अपने साथी सिपाहियों की जान बचाने के बाद आखिरकार जापानी सैनिकों ने डेसमंड के इस बचाव कार्य को रोक देने की ठान ली. उन्होंने सोच लिया कि अब चिकित्सा दल के लोगों को पहला निशाना बनाया जाए. इस कड़ी में उन्होंने डेसमंड पर एक ग्रेनेड फेंक दिया.
दुश्मन के ग्रेनेड से डेसमंड घायल हो गए. हालांकि इसके बावजूद भी वह लगातार आगे बढ़ रहे थे. तभी एक स्नाइपर की गोली ने डेसमंड के कंधे को छलनी कर दिया. उस हमले ने डेसमंड को बुरी तरह घायल कर दिया.
घायल हालत में जब डेसमंड को कैंप में लाया गया तब भी वह खुद से पहले अपने साथी सैनिकों का इलाज करने की बात कह रहे थे. उनकी इस बहादुरी की बदौलत 75 सैनिकों की जान बच गई.
डेसमंड की इस बहादुरी को देख उनके साथी सैनिक भी शर्म से पानी-पानी हो गए. उन्होंने भी नहीं सोचा था कि जिसे वह बंदूक न उठाने के लिए कोसते थे, वही एक दिन उनकी जान बचाएगा.
डेसमंड की इस बहादुरी के लिए उन्हें बहुत से पुरस्कार मिले. उनका ख़ूब नाम हुआ. हालांकि डेसमंड के लिए यह काम कोई बहादुरी का काम नहीं था. यह तो उनके लिए महज़ इंसानियत थी जो हर किसी को दिखानी चाहिए.
He Saved His Teammates From Japanese (Pic: people)
डेसमंड की जीवनगाथा है मूवी ‘हेक्सा रिज’
डेसमंड का यह कार्य इतना अद्भूत व साहसिक था कि हॉलीवुड के मशहूर निर्माता मेल गिबसन ने उनकी इस कहानी को साल 2016 में बड़े पर्दे पर पेश किया. हालांकि डेसमंड अपने जीवन की कहानी को बड़े पर्दे पर नहीं देख सके, क्योंकि 23 मार्च 2006 में ही उनकी मौत हो गई थी.
उनकी जीवनगाथा को ‘हेक्सा रिज’ के नाम से रिलीज किया गया था.
फिल्म में दिखाया गया कि कैसे डेसमंड आखिरी समय तक बंदूक नहीं उठाते हैं!
कैसे खुद की जान जोखिम में डाल के भी वह दूसरों की जान बचाते हैं. उनके जीवन पर बनी यह फिल्म काफी बड़ी हिट रही थी. दर्शकों ने भी उस साहसी कहानी को खूब पसंद किया.
Hacksaw Ridge (Pic: karystianis)
डेसमंड की कहानी हमें बताती है कि इंसानियत ही इंसान का पहला कर्तव्य होना चाहिए. वाकई हमें किसी को मारने का हक नहीं है. बचपन का एक किस्सा डेसमंड को हीरो बना देगा यह तो उन्होंने खुद भी कभी नहीं सोचा होगा.
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Web Title: Desmond Doss Man Who Dont Use Any Wepon In War, Hindi Article
Feature Image Credit: pintrest/alchetron/newadvance