दुनियाभर में तरंगों की तरह पसरी हुई बुराईयों, अन्याय और ज्यादतियों के खिलाफ शिकायत कर पल्ला झाड़ लेना सबसे आसान है. मुश्किल होता है विपरीत परिस्थितियों में भी टिके रहना, बुराई और अन्याय के खिलाफ जमकर लड़ना.
अंग्रेजी में तो ये कहावत भी है आप अपने शब्दों से नहीं, बल्कि अपने कर्मों से याद किए जाओगे. दुर्गा देवी उर्फ दुर्गा भाभी पर ये कहावत सटीक बैठती है. आज शायद ही उनकी कही गईं बातें किसी को याद हैं और न ही नेहरू, गांधी और पटेल की तरह उनकी कही बातें स्कूल कॉलेजों में पढ़ाई जाती हैं.
किन्तु, जब भी आजादी के लड़ाई के इतिहास को याद किया जाएगा तो उसमें दुर्गा देवी का नाम सुनहरे अक्षरों में होगा. जब भी भगत सिंह, नौजवान भारत सभा और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन जैसे क्रांतिकारी संगठनों का जिक्र होगा, तो वो दुर्गा देवी के बगैर अधूरा रहेगा. क्यों आइए जानते हैं-
शादी के बाद हुई थी क्रांतिकारी जीवन की शुरूआत
21वीं सदी में भी जहां महिलाओं के क्रांतिकारी रवैए को उनके व्यक्तित्व के खिलाफ माना जाता है, वहीं 20वीं सदी में इनका क्या हाल रहा होगा. इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं.
जरा सोचिए उस समय के बारे में जब महिलाओं के लिए पढ़ाई करना इतनी बड़ी बात समझी जाती थी, तब महिला का क्रांतिकारी होना किस संदर्भ में लिया जाता होगा.
ऐसा नहीं था कि महिलाएं स्वतंत्रता आंदोलनों में हिस्सा नहीं ले रही थीं, लेकिन क्रांतिकारियों के साथ उठना-बैठना और उनकी गतिविधियों में हिस्सा लेने की हिम्मत कुछ ही महिलाएं जुटा पाती थीं. 11 साल की उम्र तक एक आम लड़की की तरह जिंदगी बिताने वाली दुर्गा देवी भी तब तक अपने क्रांतिकारी विचारों से अंजान थीं.
दुर्गा देवी को क्रांति की सौगात अपने पति भगवती चरण वोहरा से मिली थी. 11 साल की छोटी सी उम्र में ही बंगाल की रहने वाली दुर्गा देवी की शादी भगवती चरण वोहरा से हो गई थी, लेकिन वोहरा दकियानूसी सोच से ताल्लुक नहीं रखते थे. शायद तभी उन्होंने अपनी पत्नी को वो सारे हक दिए, जिनकी वो इंसान होने की हैसियत से हकदार थीं.
1921 में वोहरा, जो कई राष्ट्रवादी आंदोलनों में शामिल रहते थे. उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया. ये दाखिला न सिर्फ भगवती चरण वोहरा, बल्कि दुर्गा देवी की जिंदगी को भी बदल देने वाला था. लाहौर नेशनल कॉलेज में आकर वोहरा भगत सिंह और सुखदेव से मिले. वोहरा ने दुर्गा देवी को न सिर्फ पढ़ने के लिए प्रोत्साहत किया, बल्कि अपने साथ-साथ उसे भी नौजवान भारत सभा और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन का हिस्सा बनाया.
अपने क्रांतिकारी विचारों और जज्बे के चलते दुर्गा देवी नौजवान भारत सभा और हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोशिएशन की महत्वपूर्ण सदस्या बन चुकी थीं. आजादी की लड़ाई कैसी हो इसको लेकर पूरे भारत में कई तरह के विचार थे. कोई क्रांति में यकीन की बात कह रहा था, तो कोई अहिंसा को अपनाने की पर जोर दे रहा था.
1929 में जब महात्मा गांधी ने अपने एक लेख द कल्ट ऑफ द बॉम्ब में क्रांतिकारियों को खरी खोटी सुनाई, तो उसका जवाब देने के लिए क्रांतिकारियों में दुर्गा देवी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वो उस समय आधिकारिक रूप से पार्टी की प्रोपोगैंडा सैक्रेटरी के पद पर आसीन थी. द फिलोस्फी ऑफ बॉम्ब के जरिए पार्टी ने गांधी के आरोपों का जवाब दिया.
पत्नी बनकर भगत सिंह को गिरफ्तारी से बचाया
अपने संगठन और आजादी के प्रति दुर्गा देवी किसी हद तक समर्पित थीं. इसका अंदाजा एक घटना से लगाया जा सकता है कि लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके साथी जेम्स का कत्ल करने के लिए उतारू थे.
हालांकि, स्कॉट्स तो उनके हाथ नहीं आ पाया और गलती से पुलिस सुपरिटेंडेंट सोंडर्स उनकी गोलीबारी का शिकार हो गया. खबर पूरे लाहौर में फैल चुकी थीं. पुलिस भगत सिंह और राजगुरू की तलाश में जुट गई थी. ऐसे में दोनों के लिए लाहौर छोड़ना मुश्किल हो गया था. किन्तु, इसका रास्ता निकाला गया और रास्ते की अगुवाई दुर्गा देवी ने की.
विषम सामाजिक परिस्थितियों के बावजूद दुर्गा देवी ने भगत सिंह की पत्नी होने की भुमिका निभाई. योजना बनाई गई कि दुर्गा देवी भेष बदले हुए भगत सिंह की पत्नी बनेंगी और राजगुरू भेस बदलकर उनके नौकर होने की भूमिका निभाएंगी. इस तरह भेस बदलकर तीनों ने लाहौर छोड़ा और वो कलकत्ता रवाना हुए.
इस घटना के बाद से दुर्गा को अक्सर भगत सिंह की पत्नी के संदर्भ में भी याद किया जाता है.
सोचिए यदि उस समय दुर्गा देवी योजना का हिस्सा बनने से इंकार कर देती, तो क्या भगत सिंह और राजगुरू इतनी आसानी से लाहौर छोड़ने में कामयाब हो पाते. जरा सोचिए कि जब तीनों पुलिस से बचते-बचाते कलकत्ता पहुंचे, तो वहां मौजूद भगवती चरण वोहरा ने दुर्गा को भगत सिंह की पत्नी के रूप में देखकर क्या सोचा होगा.
नहीं वोहरा दुर्गा से बिल्कुल नाराज नहीं हुए!
बल्कि वो तो अपनी पत्नी के इस साहसिक कदम से इतना खुश हुए कि उन्होंने कहा कि आज मैं समझ गया कि मुझे एक क्रांतिकारी पत्नी मिली है. उस समय जहां संस्कारी पत्नियों की मांग होती है. वहां भगवती चरण वोहरा ने अपनी क्रांतिकारी पत्नी की प्रशंसा कर अपनी प्रगतिशील सोच को प्रस्तुत किया था. दुर्गा देवी ने अंग्रेजी प्रशासन के खिलाफ कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी.
दरअसल भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा लाहौर एसेंबली पर हमला करने के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों की धर पकड़ शुरू कर दी थी. इन क्रांतिकारियों में एक दुर्गा के पति भगवती चरण वोहरा भी थे, जिन्होंने कलकत्ता में रहते हुए बम बनाना सीखा था. वोहरा के नाम पर किराए पर ली गई कश्मीर में एक जगह जहां क्रांतिकारी बम बनाने का काम करते थे.
वहां अंग्रेजी सत्ता ने वहां छापेमारी कर सुखदेव, गोपाल और किशोरी लाल को पकड़ लिया, लेकिन भगवती चरण वोहरा छापेमारी के दौरान वहां नही थे. बाद में पुलिस के डर से वो अंडर ग्राउंड हो गए. इस समय दुर्गा देवी को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी.
चूंकि लाहौर कांस्पिरेसी केस में वोहरा का नाम भी आया था, इसलिए दुर्गा ने न सिर्फ अपना बल्कि दूसरे क्रांतिकारियों के परिवार का भी समर्थन किया. दुर्गा अंडरग्राउंड हो चुके क्रांतिकारियों के संदेश एक-दूसरे तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाती थी.
आजादी की लड़ाई की रिवोलवर रानी
दुर्गा देवी को आजादी की लड़ाई में भारत की रिवोलवर रानी भी कहा जा सकता है. चूंकि दुर्गा पार्टी के लिए हथियारों के इंतजाम करने में भी अहम भूमिका निभाती थीं. 1930 में हिंदुस्तान टाइम्स के ए़डिटर ने उन्हें एक सीक्रेट मीटिंग में देखा था.
वो कुछ पिस्तौल को अपने कपड़ो में छुपाई हुई थीं, जो यकीनन क्रांतिकारियों के लिए थी. इस दौरान एक और ऐसी घटना हुई जिसका दुर्गा पर गहरा असर पड़ा. वो घटना थी, एक बॉम्ब का नीरीक्षण करने के दौरान उनके पति भगवती चरण वोहरा की जान जाना. लेकिन इस घटना के बाद भी दुर्गा ने खुद को कमजोर नही पड़ने दिया.
वो अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल रही. जिसके चलते उन्हें अंडरग्राउंड होना पड़ा.
8 अक्टूबर को उनका क्रांतिकारी रूप तब भी सामने आया, जब उन्होंने एक पुलिस स्टेशन के बाहर एक अंग्रेजी जोड़े पर गोलियां चलाई. इस घटना ने दुर्गा देवी को भारत की पहली क्रांतिकारी आतंकी की संज्ञा दी थी.
1931 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को मिली फांसी के बाद हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपबल्किन एसोशिएशन कमजोर पड़ने लगा था. संगठन के खत्म होने के बाद भी दुर्गा देवी ने समाज के प्रति अपना संघर्ष जारी रखा. 1940 में उन्होंने लखनऊ में एक स्कूल खोला. 1975 में इस स्कूल के बंद पड़ने के बाद वो गाजियाबाद शिफ्ट हो गई और वहीं पर अपनी आखिरी सांसे लीं.
आज वह भले ही हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनता साहस और अंग्रेजों के खिलाफ बुलंद की गई उनकी आवाज आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है. वह हमेशा लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत रहेगी. खासकर महिलाएं के लिए!
क्यों सही कहा न?
Web Title: Durga Devi First Woman Revolutionary To Fight For India’s Independence, Hindi Article
Feature Iameg Credit: thequint