ईश्वर का अस्तित्व क्या वाकई इस दुनिया में है…?
इस धरती पर बहुत से ऐसे लोग हैं जो ईश्वर को मानते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो किसी ईश्वरीय अस्तित्व को ही सिरे से नकार देते हैं. ईश्वर को लेकर जो लड़ाई हजारों साल पहले शुरू हुई थी, वो आज भी जस की तस है!
कई बड़े विद्वानों ने ईश्वर का अस्तित्व न होने के प्रमाण भी दिए और इनमें से ही एक थे एपिकुरस.
जी हां… इन्होंने कहा कि ईश्वर जैसी कोई भी चीज इस दुनिया में नहीं होती. उनका मानना था कि दुनिया का मूल घटक परमाणु है और अगर कोई चीज उड़ रही है तो इसके लिए खाली स्थान जिम्मेदार है.
पर ऐसे में अब सबसे बड़ी बात ये कि आखिर उन्होंने ये सिद्धांत कैसे बनाया… आखिर किन घटनाओं से प्रेरित होकर उन्होंने कहा कि इस दुनिया में ईश्वर नहीं है?
आइये कुछ ऐसे ही सवालों केे जवाब जानने की कोशिश करते हैं–
प्लेटो के अनुयायियों से ली शिक्षा
एपिकुरस का जन्म कब हुआ इसको लेकर कोई सीधा प्रमाण नहीं है. ऐसी धारणाएं हैं कि उनका जन्म 341 ईसा पूर्व के आसपास आधुनिक तुर्की के तट से कुछ सौ मील दूर स्थित सामोस द्वीप पर हुआ था. जन्म से दो साल पहले ही उनके पिता सामोस में आकर बसे थे. एपिकुरस ने अपना बचपन सामोस की एथनियन कॉलोनी में बिताया.
बहुत कम लोग जानते हैं कि एथेंस में एपिकुरस ने दो साल के लिए सैन्य सेवाएं भी दीं.
वहीं इतिहास बताता है कि इन्होंने डेमोक्रिटस और प्लेटो के अनुयायी पैमफिलस के सान्निध्य में दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया. एपिकुरस ने दर्शन का अध्यनन करने के बाद ये निर्णय लिया कि वो दार्शनिक स्कूलों की स्थापना करेंगे, जिससे कि और लोग भी दर्शन को पढ़ सकें और उसके बारे में जान सकें.
इसलिए इन्होंने दर्शनशास्त्र में अपने एपिकुरस सिद्धांताें का प्रतिपादन किया जिससे इन्होंने एथेंस जाने से पहले 306 ईसा पूर्व के आसपास मैथिलेन और लेम्पसास में एपिक्युरेनिस्म दर्शनशास्त्र स्कूलों की स्थापना की. आगे चलकर एपिकुरस प्रसिद्ध दार्शनिक और ग्रीककाल के प्रमुख दार्शनिकों में से एक बने.
Ancient Greek philosopher Epicurus. (PiC: mfa)
मौत से न डरने का सिद्धांत!
एपिकुरस का मानना था कि दुनिया का मूल घटक अणु और परमाणु है, इसी आधार पर इन्होंने अपने सिद्धांत की रचना की.
एपिकुरस का सिद्धांत कहता है कि घटकों को कभी काटा नहीं जा सकता और वो काफी ज्यादा सुक्ष्म हैं. जितनी भी साधारण वस्तुएं दुनिया में मौजूद हैं वे सब परमाणु का समूह हैं और हर पल घटित होने वाली घटनाएं परमाणुओं के उलझन के फलस्वरूप हैं.
वहीं एपिकुरस का कहना था कि हमें अपनी मौत से नहीं डरना चाहिए क्योंकि हम उसको कभी महसूस नहीं कर सकते. वहीं अपने मित्र मैनोसियस को लिखे एक पत्र में एपिकुरस कहता है कि जब हम होते हैं तब मौत नहीं होती और मौत होगी तो हम नहीं होंगे इसलिए इससे घबराना कैसा?
वहीं एपिकुरस कहता था कि अगर इंसान गतिमान है तो इसके लिए दुनिया में खाली स्थान मौजूद है. वहीं किसी भी चीज का निर्माण छोटी-छोटी चीजों के मिलने से हुआ है. उदाहरण के तौर पर इंसान का पूरा शरीर छोटे-छोटे कई तत्वों से मिलकर बना है. इसके अलावा एपिकुरस का कहना था कि ब्रह्मांड का ना तो कोई ओर है और ना ही कोई छोर. यानी न उसकी शुरूआत की कल्पना की जा सकती है और न ही उसके अंत की.
एपिकुरस का मानना था कि ब्रह्मांड अस्तित्व में था, है और आगे भी रहेगा…!
Epicurus says, When we are, Death is Not. (PiC: mantlethought)
‘अशुभ’ था दर्शनशास्त्र
वहीं कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि एपिकुरस एक लेखक थे लेकिन बताया जाता है कि उन्होंने लेखक के तौर पर काफी कुछ लिखा पर आगे चलकर उसका कोई अस्तित्व नहीं रहा.
इसके पीछे का कारण दरअसल ये है कि ईसाई लोग उनके विचारों से ज्यादा प्रभावित नहीं थे.
वह लोग एपिकुरस को अपने लिए अशुभ मानते थे.
माना जाता है कि तीसरी सदी के आसपास डायोजनेज लार्थियस ने दर्शनशास्त्र पर लिविंग्स ऑफ द बुक लिखी, जिसमें एपिकुरस के तीन पत्र शामिल थे. इस किताब में एपिकुरस के जीवन और शिक्षाओं की जानकारी दी गई थी वहीं इन तीन पत्रों में एपिकुरस के दर्शन के प्रमुख क्षेत्रों के सारांश मौजूद हैं.
जिनमें पहला है, हेरोडोट्स को लिखे पत्र, जो उनके तत्वमीमांसा के सिद्धांत की पुष्टि करता है. दूसरा, पाइथोकल्स को पत्र, जो कि मौसम संबंधी घटनाओं के लिए परमाणु स्पष्टीकरण देता है, वहीं तीसरा मेनेयुसस के पत्र जिसमें नैतिकता का सार है. मुख्य रूप से इसमें नैतिकता के बारे में बताया गया है!
Molecules in Space. (PiC: hdwallpapersbuzz)
ईश्वर के अस्तित्व को नकारा!
इतिहास की मानें तो एपिकुरस पहला शख्स था जिसने ईश्वर के अस्तित्व को पूरी तरह से नकार दिया. उसका कहना था कि अगर वाकई ईश्वर है तो इंसान परेशानी में क्यों है…
आखिर क्यों दैवी शक्तियां इंसान की परेशानियों को खत्म नहीं कर पा रहीं?
एपिकुरस कहता था कि इस दुनिया में ईश्वर नाम की कोई चीज होती ही नहीं है. उसके दर्शनशास्त्र के हिसाब से ईश्वर एक नैतिक आदर्श के सिवाए कुछ भी नहीं है, जिनका कि केवल हम अनुकरण करने का प्रयास कर सकते हैं, उनके बारे में जानकर उनकी ओर से किए गए कार्य को दोहराने की कोशिश कर सकते हैं.
वह ईश्वर के क्रोध से डरने के लिए भी लोगों को मना करते थे.
उनके मुताबिक इस जीवन में आनंद की प्राप्ति सभी चाहते हैं, व्यक्ति जन्म से ही आनंद और सुख को पाने की चेष्टा में लगा रहता है और दु:ख से दूर रहना चाहता है, इस प्रकार सभी आनंद अच्छे हैं, सभी दु:ख बुरे हैं. लेकिन मनुष्य न तो सभी आनंदों का उपभोग कर सकता है और न सभी दु:खों से दूर रह सकता है. ये प्रकृति का नियम है कि कभी आनंद के बाद दु:ख मिलता है तो कभी दु:ख के बाद आनंद.
Epicurus Rejected the existence of God. (PiC: oneforisrael)
दुनिया को अलविदा
एपिकुरस की मौत कैसे हुई…? ये भी उनके जन्म की तरह किसी की जानकारी में नहीं है.
हालांकि कहा जाता है कि उन्हें पथरी की बीमारी थी और एक वक्त उनकी जिंदगी में ऐसा आया जब इसी बीमारी ने उन्हें पूरी तरह घेर लिया और 71 साल की उम्र में पथरी की वजह से उनकी मौत हो गई.
आपको बताते चलें कि आज भी एपिकुरस के सिद्धांतों को मानने वाले लोग मौजूद हैं, साथ ही उनके सिद्धांत को नकारने वालों की भी कोई कमी नहीं है.
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Web Title: Epicurus and his Epicurean philosophy, Hindi Article
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