प्राचीन समय से ही भारत का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है. अंग्रेजों के आने से पहले भारत में कई साम्राज्य हुए, जिन्होंने विस्तारवादी नीतियाँ अपनाते हुए यहां खुद को स्थापित करने की कोशिश की. इस कारण समय-समय पर नए सम्राज्य बनते रहे और पुरानों का पतन होता रहा.
इस कोशिश में निर्णायक लड़ाईयां भी होती रहीं. इनमें कुछ काल के गाल में समा गईं, तो कुछ को इतिहास के पन्नों में जगह मिली. खानवा की लड़ाई उनमें से ही एक है. खानवा की लड़ाई का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. माना जाता है कि इस लड़ाई के बाद से ही भारत में मुगल युग की शुरुआत हुई थी.
चूंकि, इसे भारतीय इतिहास की बड़ी लड़ाईयों में से एक माना जाता है, इसलिए इसके पहलुओं को जानना दिलचस्प रहेगा–
बाबर ने रखी थी युद्ध की बुनियाद
बात 15वीं इसवीं के आसपास की है. बाबर हिंदुस्तान फतह करने के लिए अपनी लश्कर के साथ निकला था. हिंदुस्तान को फतह करने का उसका लक्ष्य काफी बड़ा था. इसके लिए उसने अपने पीछे एक काफी बड़ी फौज संगठित की थी.
बाबर सिर्फ हिंदुस्तान पर ही कब्जा नहीं जमाना चाहता था. वह अपने गृह क्षेत्र में भी अपने वर्चस्व को जमाए रखना चाहता था. माना जाता है कि बाबर काबुल से कूच कर कई दिनों के लंबे सफर के बाद अपनी लश्कर के साथ झेलम नदी के किनारे पहुंचने में कामयाब रहा था.
नदी के किनारे के पास आराम करने के बाद बाबर हिंदुस्तान में प्रवेश करने में सफल रहा था. बाबर हिंदुस्तान में दाखिल होने के बाद कई रियासतों पर कब्ज़ा जमा चुका था. वह अपने देखे सपने को पूरा करने के लिए हर युद्ध लड़ने को तैयार था. गुजरते समय के साथ ही बाबर कई रियासतें जीतता गया और अंत में उसने दिल्ली में अपनी बादशाहत कायम कर ली.
Babur the first mughal emperor of india (pic: india)
योद्धा राणा सांगा से था मुकाबला
कम समय में ही बाबर ने दिल्ली में अपनी बादशाहत जमा ली थी, मगर भविष्य में बाबर का मुकबाला उस समय के योद्धा राणा सांगा से था.
राणा सांगा को ‘संग्राम सिंह’ के नाम से भी जाना जाता है. वह राणा रायमल के पुत्र थे. अपने शासन काल में वह दिल्ली, मालवा और गुजरात पर चढ़ाई कर चुके थे. माना जाता है उस दौर में भारत में कोई ऐसा शासक नहीं था, जो राणा सांगा से युद्ध में लोहा ले सके.
बहरहाल, दिल्ली में बाबर का काबिज होना राणा सांगा के लिए एक बुरा संकेत था.
असल में राणा सांगा अफगानों की सत्ता समाप्त कर दिल्ली में राजपूतों का शासन लाना चाहता था. वहीं बाबर समूचे भारत में अपना कब्जा जमाने का ख्वाब देख रहा था. इस लिहाज से दोनों योद्धाओं के लिए अपने वर्चस्व कायम रखने की चुनौती थी.
Battle of Khanwa (pic: blogspot)
‘राणा’ की रियासतों पर बाबर का कब्जा
हिंदुस्तान में अपने शासन को जिंदा रखने और खुद को मजबूत स्थिति में पहुंचाने के लिए बाबर की फौज किसी न किसी राज्य में आक्रामण कर, वहां अपना कब्जा जमा लेती.
इस तरह बाबर की जीत की भूख बढ़ती जा रही थी. उसे रोकने के लिए कोई अन्य शासक उसके सामने आने की हिम्मत नहीं करता था. इधर राणा सांगा समझते थे कि बाबर भी अन्य अफगान शासकों की तरह हिंदुस्तान में लूट-पाट को अंजाम देकर दिल्ली से वापस चला जाएगा और बाद में वह दिल्ली में कब्जा कर लेंगे.
किन्तु, यह सच नहीं था. राणा सांगा को जल्दी ही पता चला गया कि कि बाबर जल्दी हिंदुस्तान नहीं छोड़ने वाला था. दूसरी तरफ बाबर की क्रूरता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी. उसने कालपी, बयाना, आगरा और धौलपुर रियासत तक अपना वर्चस्व जमा लिया था.
जबकि, ये रियासतें राणा सांगा के साम्राज्य के अधीन आती थीं. खैर, जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा, तो राणा सांगा ने बाबर को हिंदुस्तान से खदेड़ने का फैसला किया.
Fight Between Babur and Rana Sanga (Pic: spot.com)
खानवा के युद्ध में आमना-सामना
17 मार्च 1527 ई. इतिहास के पन्नों में वह तारीख दर्ज हुई. जहां दोनों खानवा में भिड़ गए. इस युद्ध में राणा सांगा के साथ हसन ख़ाँ मेवाती, बसीन चंदेरी एवं इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी भी डटे हुए थे. राणा सांगा की फौज का मुकाबला करने के लिए बाबर अपने लश्कर के साथ फतेहपुर सिकरी के निकट खानवा जगह पर पहुंचा.
वहां राणा सांगा और उसके अन्य सहयोगी शासक बाबर की प्रतिक्षा में थे.
बाबर ने पानीपत युद्ध में जिस तरह इब्राहीम लोदी को परास्त करने की रणनीति बनाई थी. उसी रणनीति का प्रयोग उसने खानवा युद्ध में किया. युद्ध के मैदान में राणा सांगा की सेना वीरता से लड़ी और बाबर की बीस हजार से अधिक सिपाहियों का जमकर मुकाबला किया.
माना जाता है कि राणा सांगा ने यह लड़ाई काफी हद तक अपने पक्ष में मोड़ ली थी, लेकिन अंत में बाबर ने गोला बारूद का जमकर इस्तेमाल कर लड़ाई का रूख अपने पक्ष में मोड़ दिया और युद्ध को जीत लिया. यह जीत बाबर के लिए बहुत अहम थी, क्योंकि उसने उत्तर-भारत के एक वीर शासक को हराया था.
खानवा का युद्ध ही थी, जिसके जीतने के बाद बाबर को गाज़ी की उपाधि मिली थी. इससे पहले बाबर पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हरा चुका था, किन्तु उसके लिए खानवा की जीत ज्यादा महत्वपूर्ण थी. असल में इसके बाद ही वह भारत में मुगल राज्य की जड़े मजबूत करने में सफल रहा और वह दिल्ली का शासक बना.
Babur Won the Battle of Khanwa (Pic: aastha.com)
दिलचस्प बात यह रही थी कि ‘खानवा का युद्ध’ जीतने के बाद बाबर की ताकत का मुख्य केंद्र काबुल नहीं रहा, बल्कि आगरा-दिल्ली बन गया था.
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Web Title: Facts about Battle of Khanwa, Hindi Article
Feature Image Credit: trutheeeker