इमसें कोई दो राय नहीं कि भारतीय सेना का डंका पूरी दुनिया में बजता है. युद्ध के मैदान की बात हो या फिर आपातकालीन स्थिति के दौरान मुश्किल हालात में फंसे सैंकड़ों लोगों को रेस्क्यू करने की चुनौती. भारतीय सेना हमेशा देश के नागरिकों की उम्मीद पर खरा उतरती आई है!
बताते चलें कि भारतीय सेना के सैनिक अलग-अलग रेजिमेंट्स से आते हैं. कोई कुमाऊं रेजिमेंट से आता है, तो कोई मद्रास रेजिमेंट से. इसी कड़ी में ‘जाट रेजिमेंट’ एक ऐसा नाम है, जो अपनी निडरता और युद्ध में दुश्मन सेना के लड़ाकों को ढेर करने के लिये मशहूर है. कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले 'कैप्टन अनुज नय्यर' जैसे जाबाज़ इसी रेजिमेंट ने निकले हैं!
तो आईए वर्षों पहले स्थापित हुई इस रेजिमेंट के बारे में जानने की कोशिश करते हैं –
17वीं शताब्दी के अंत में पड़ी नींव
भारतीय सेना की जाट रेजिमेंट की बुनियाद ब्रिटिश काल के दौरान 17वीं शताब्दी के अंत में पड़ी. यह वह दौर था, जब भारत में अंग्रेजों ने अपने पांवों को जमा रखा था. जाट रेजिमेंट की बुनियाद कोलकाता में पड़ी थी. राजा सूरजमल को जाट रेजिमेंट बनाने का श्रेय दिया जाता है. माना जाता है कि 17वीं शताब्दी की शुरुआत में जब भारत में मुगल का दौर था.
तब राजा सूरजमल ने मुगल फौज से लड़ने के लिए जाट रेजिमेंट की शुरुआत की थी. बाद में ब्रिटिशर्स ने 17वीं शताब्दी के अंत में जाट रेजिमेंट के लड़ाकों की बहादुरी को देखते हुए, इन्हें कोलकाता की क्षेत्रीय सेना में भर्ती कर लिया.
इस तरह जाट रेजिमेंट की अधिकारिक बुनियाद 17वीं शताब्दी के अंत में हुई. माना जाता है कि सन 1794 ई. में इसका नाम रेमंट कोर था. करीब बीस साल तक कुमाऊं रेजिमेंट हैदराबाद रेजिमेंट का हिस्सा रही और निज़ाम की 19 हैदराबाद रेजिमेंट के साथ संयुक्त रूप से मिलकर कई अहम लड़ाइयां भी लड़ीं.
जाट बलवान जय भगवान है युद्ध नारा
जाट रेजिमेंट के आधिकारिक चिह्न पर रोमन नंबर से नौ अंक दर्शाया गया है. वहीं इसके ऊपर शेर बना हुआ है. असल में शेर को सबसे निडर जानवर और जंगल का राजा माना जाता है, इसलिए कुमाऊं रेजिमेंट के आधिकारिक चिह्न पर शेर को दर्शाया गया है, जो कुमाऊं रेजिमेंट की बहादुरी और जज्बे को दर्शाता है. भारत की आज़ादी से पहले जाट रेजिमेंट के जवानों ने कई अहम मौकों पर कुर्बानियां दीं. जाट रेजीमेंट ने शुरुआती दौर में ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए भी सेवाएं दीं हैं!
इंडियन आर्मी की हर रेजीमेंट का एक अपना अधिकारिक युद्ध नारा हेाता है. यह नारा युद्ध के मैदान पर जब रेजिमेंट के सैनिक एक स्वर में लगाते हैं तो विरोधी सेना थर्र- थर्र कांपने लगते हैं. ठीक इसी तरह जाट रेजीमेंट का आदर्श-वाक्य ‘जाट बलवान, जय भगवान है. इसका मतलब है, जाट बलवान होता है. भगवान की जय-जय कार है.
आज़ादी से पहले ही जाट रेजीमेंट अपनी वीरता का परचम लहराती हुई आ रही है. जाट रेजीमेंट ने 1839 में हुए युद्ध में अपना परचम लहराया था. 1839 से अफगानिस्तान से हुई वीरता की मशाल जाट रेजिमेंट ने अभी तक कायम की हुई है. इस रेजीमेंट ने अपनी बहादुरी के दम पर भारतीय सेना में कई पुरस्कार अपने नाम किए हैं.
‘कारगिल युद्ध’ में रही अहम भूमिका
जाट रेजिमेंट का नाम भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजिमेंट में लिया जाता है. इस रेजिमेंट के पास कई ऐसी उपलब्धियां हैं, जो भारतीय सेना के नाम को आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाती हैं.
आपको जानकर हैरानी होगी कि कारगिल युद्ध में इस रेजिमेंट में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. 1999 में कश्मीर के कारगिल जिले में भारत-पाकिस्तान के बीच यह युद्ध सशस्त्र लड़ा गया था. यह युद्ध इसलिए लड़ा गया था, क्योंकि पाकिस्तान की सेना ने भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश को लेकर घुसपैठ कर दी थी. अपनी इस नापाक हरकत में पाकिस्तान कामयाब भी हो गया था, लेकिन अंतिम समय में भारतीय सेना के जवानों ने पाकिस्तान की हर चाल को विफल कर दिया था.
इस लड़ाई में जाट रेजीमेंट ने वायुसेना के साथ मिलकर पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर दिया था. जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर भारत का झंडा फहरा कर इतिहास रच दिया था.
यह युद्ध परमाणु बम बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ पहला सशस्त्र संघर्ष था.
'महानायक', जो हैं आन-बान और शान
जाट रेजिमेंट भारतीय सेना का एक ऐसा चमकता सितारा है. इसकी रोशनी से भारतीय सेना का इतिहास जगमगता है. ब्रिगेडियर उमेश सिंह बावा भी जाट रेजिमेंट के एक ऐसे ही चमकते सितारे हैं, जो दुनिया में तो मौजूद नहीं है.
किन्तु, इनका नाम इनकी निडरता के चलते इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया. जब पाकिस्तान ने 1999 में में भारतीय जमीन पर कब्जा करने की नीयत से चढ़ाई की तो उमेश सिंह बावा को कारगिल में मोर्चा संभालना पड़ा. जम्मू-कश्मीर के कारगिल में उमेश सिंह बावा पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो गए.
वहीं इस युद्ध में जाट रेजीमेंट का एक और वीर पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त कर गया था. 17 जाट बटालियन में तैनात केप्टन अनुज नय्यर भी इस लड़ाई में शहीद हो गए थे. कैप्टन अनुज नय्यर ने पाकिस्तानी सैनिकों को युद्ध के मैदान में ही रोके रखा और आगे नहीं आने दिया. वह अपनी जान की परवाह न करते हुए दुश्मनों को मारते रहे.
अंत में वह वीर गति प्राप्त हुए. कारगिल युद्ध में जाट रेजीमेंट के मेजर रामपाल और हवलदार कुमार सिंह सोगरवाल भी वीरगति प्राप्त हो गए थे. कैप्टन अनुज नय्यर को उनकी बहादुरी के लिए मरणोत्तर उन्हें महावीर चक्र से नवाज़ा गया. वहीं ब्रिगेडियर उमेश सिंह बावा, मेजर दीपक रामपाल, हवलदार कुमार सिंह सोगरवाल और हवलदार शीश राम गिल को वीर चक्र से नवाज़ा गया.
Web Title: Facts of Jat Regiment of the Indian Army, Hindi Article
Feature Image Credit: Kikali.in