कहा जाता है कि भारत सोने की चिडिया थी. यानी इस धरती पर इतना सोना था, जितना विश्व में कहीं और नहीं रहा.
भारत के राजा-रजवाड़े, रियासतें धन से संपन्न थीं. इतनी ज्यादा संपन्नता कि आज भी जहां-तहां खुदाई में सोना मिलने की खबरें आ जाती हैं.
अंग्रेजों ने भारत छोड़ने से पहले 200 साल तक जो लूट मचाई, उसका नतीजा यह रहा कि महलों के नाम पर आज खंडहर बचे हैं और खजानों के नाम पर केवल अफवाहें.
खुदाई तो आज भी होती है, पर हाथ आते हैं तो कुछ पुराने औजार, हथियार या कुछ और बेकार चीजें. पर खजाना कहां है? किसी को नहीं पता.
भारत में खजाने से जुड़ी हुई कई दिलचस्प कहानियों हैं. आज हम इन्हीं कहानियों में से एक रहस्यमय खजाने के बारे में बता रहे हैं. जो 1857 की क्रांति के वीर नाना साहेब से भी जुड़ा है.
यह खजाना भी नाना साहेब की तरह रहस्यमय तरीके से गायब हो गया, जिसका जवाब आज तक इतिहासकार तलाश रहे हैं.
रातों-रात गायब हुए नाना साहेब
देखा जाए तो नाना साहेब की कहानी में कई ढीले धागे हैं, जिसके लिए कोई ठोस जवाब अभी भी उपलब्ध नहीं है.
1857 की क्रांति से अंग्रेजों की नींद हराम कर देने के बाद वे अचानक कहां गायब हुए, यह आज तक रहस्य है. नाना साहेब पेशवा के विषय में हकीकतें केवल 1857 तक की ही हैं, इसके बाद तो बस फसाने हैं.
ठीक वैसी ही जैसी सुभाष चंद्र बोस के विषय में.
बहरहाल, नाना साहेब पेशवा ने अंग्रेजों के खिलाफ महाराष्ट्र के मराठा दुर्ग से दूर कानपुर से विद्रोह की ज्वाला भड़काई थी. तब उनका साथ दिया था मंगल पांडे ने. इस विद्रोह का नतीजा यह हुआ कि अंग्रेजों को कानपुर से पीछे हटना पड़ा.
दोनों पक्षों के बीच हुई इस जंग को इतिहास की किताबों में 'सत्ती चोरा घाट नरसंहार' नाम दिया गया है.
इस घटना में नाना साहेब ने पहले तो अंग्रेजों से समझौता कर लिया था, पर नाना के सैनिकों ने कमांडिंग ऑफिसर जनरल विहलर और उनके सैनिकों के परिवारों पर अचानक धावा बोलकर हालात ही बदल दिए. इस नरसंहार में कई मासूम बच्चों और महिलाओं की मौत हो गई.
आखिरकार अंग्रेजों ने नाना का समझौता किनारे करके बिठुर पर हमला बोल दिया. अचानक हुए इस हमले में उनके कई खास आदमी मारे गए, लेकिन नाना वहां से भाग निकलने में कामयाब हो गए.
कोई नहीं जानता कि महल से निकलकर नाना कब और किस रास्ते से कहां गए? कुछ कहानियों में बताया जाता है कि वे बिठुर से निकलकर नेपाल पहुंचे और आखिरी वक्त तक अपनी पहचान छिपकर वहीं रहे.
वैसे नाना के साथ भागने वालों में एक और नाम शामिल था. वह हैं महारानी तपस्विनी. येे रानी लक्ष्मीबाई की भतीजी और बेलूर के जमींदार नारायण राव की बेटी थीं.
इन्होंनेे 1857 में नाना और अपनी चाची के साथ क्रांति में हिस्सा लिया था. क्रांति की विफलता के बाद अंग्रेजों ने उन्हें तिरुचिरापल्ली की जेल में रखा था. कहा जाता है कि नाना देश से बाहर जाने सेे पहले तपस्विनी सेे मिले थे और उन्हें अपने साथ नेपाल ले गए.
नेपाल ही क्यों?
अब सवाल उठता है कि आखिर नेपाल ही क्यों?
वैसे तो इसके कई जवाब हैं, पर जो सबसे अहम है वह यह कि नेपाल पर अंग्रेज कभी भी कब्जा नहीं कर पाए थे. इसके साथ ही नेपाल के प्रधान सेनापति चन्द्र शमशेर ने 1857 की क्रांति के लिए विद्रोहियों कोे गोला-बारूद और विस्फोटक हथियार पहुंचाए थे. कहा जाता है कि नाना और तपस्विनी नेपाल में शमशेर के गुप्त ठिकाने पर ही छिपे थे.
अंग्रेजों को नाना की तलाश थी, पर वे इस बात से अंजान थे कि तपस्विनी भी उन्हीं के साथ है. एक गुप्तचर से अंग्रेज अधिकारियों को तपस्विनी के नेपाल में होने की सूचना मिली. जब तक अंग्रेज अफसर वहां पहुंचते, नाना ने तपस्विनी को कोलकाता भिजवा दिया. ऐसा इसलिए भी हुआ कि यदि तपस्विनी नेपाल में रहती, तो अंग्रेज उसके जरिए नाना तक पहुंच सकते थे.
कोलकाता आकर तपस्विनी ने ‘महाभक्ति पाठशाला’ खोलकर बच्चों को राष्ट्रीयता की शिक्षा देनी शुरू कर दी. 1902 ई. में बाल गंगाधर तिलक से उनकी मुलाकात हुई और इसके बाद उन्होंने 1905 ई. में बंगाल विभाजन के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया. इसके दो साल बाद ही उनकी मौत हो गई.
इस बीच नाना न तो कभी भारत आए, न ही तपस्विनी नेपाल गईं. यह भी एक कारण है कि इतिहास में नाना के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है.
अंग्रेजों को मिला था खजाने का सुराग
नाना साहेब से जुड़ा दूसरा विवाद है उनका खजाना.
कहा जाता है कि पेशवाओं के पास इतना धन था कि उनकी दर्जनों पुश्तें आराम से बैठकर खा सकती थीं और दशकों तक राज्य में धन की कमी नहीं होती.
बहरहाल, नाना के साथ उनका खजाना भी एक रहस्य बन गया.
जब नाना के महल पर हमला हुआ, तब वे तो भाग निकले पर अंग्रेजों ने महल नहीं छोड़ा. उनका मानना था कि इस महल में गुप्त खजाने के कई रास्तेे हैं. सो फौज ने वहीं डेरा डाल लिया.
रॉयल इंजीनियर्स और सैनिकों ने महल की खुदाई की, तो उन्हें जमीन के नीचे पानी से भरे हुए 7 कुएं मिले. किसी तरह पानी खाली कराया गया और खजाने की तलाश में खुदाई हुई. तब अंग्रेजों को कई सोने की प्लेट, ईंट, और बर्तन बरामद हुए थे. उस वक्त इस खजाने की कीमत 8 लाख रुपए आंकी गई थी.
हालांकि, वहां कई ऐसे सुराग भी मिले, जिससे साबित हुआ कि यह खजाने का केवल एक हिस्सा है. अंग्रेजों को लगा कि बाकी धन नाना अपने साथ लेकर इसी भूमिगत रास्ते से भाग निकले हैं.
अब सवाल यह था कि आखिर नाना इतना सोना अपने साथ कैसे ले जा सके?
मुफलिसी में गुजरा आखिरी वक्त!
बहरहाल, एक और दिलचस्प किस्सा है, नाना साहेब के बेहद खास राजा रामबक्श सिंह के बारे में. कहा जाता है कि उन्हें 20 वर्ग किलोमीटर के दायरे वाली डौड़ियाखेड़ा रियासत दहेज में मिली थी. यदि उनके इतिहास को पलटें तो नाना के विषय में कुछ और ही कहानी मिलती है. दावा किया जाता है कि नाना जब महल से भागे, तो उनके पास कुछ नहीं था.
हालांकि मराठों के पास सोने की कमी नहीं थी, पर जो था वो सब पूना में था, बिठुर के महल में वही था, जो अंग्रेजों के हाथ लगा.
राव रामबक्श सिंह और दूसरे महान क्रांतिकारी दरियाव सिंह क्रांतिवीर नाना के सबसे विश्वसनीय थे. उन्होंने ही उन्हें बिठूर से निकालने में मदद की.
नरेश मिश्र के ऐतिहासिक उपन्यास ‘क्रांति के स्वर’ में दर्ज है कि नाना का आखिरी वक्त मुफलिसी में गुजरा. कहा जाता है कि जब पेशवा की मौत के बाद नाना साहेब को उनका अंतिम संस्कार करना था, तो शास्त्रों के अनुसार, पुरोहित को जमीन का हिस्सा और सोना दान करना था. पर उनके पास देने के लिए कुछ नहीं था.
राव रामबक्श संपन्न थे और उनकी रियासत में करीब 1 हजार टन सोना था, पर उन्होंने उस वक्त नाना साहेब की मदद क्यों नहीं की, यह एक बड़ा सवाल है?
बहरहाल साल 2013 में एक बार फिर अफवाह आई थी कि खुद को राम बक्श के वंशज बताने वाले संत शोभन सरकार को सपने में राजा रामबक्श का एक हजार टन सोना दिखा है. जिसके बाद पुरातत्व विभाग ने उन्नाव के महल में खुदाई की थी. हालांकि उन्हें कुछ बरामद नहीं हुआ.
ठीक यही हुआ बिठुर के महल में. अंग्रेजों ने अपने दस्तावेजों में नाना साहेब के प्राप्त हुए खजाने की कीमत 8 लाख रुपए आंकी थी. साथ ही लिखा था कि लगभग इतना ही सोना लेकर नाना फरार हो गए हैं.
अब इतिहासकारों के सामने दो तरह की थ्योरी हैं.
पहली थ्योरी के हिसाब से, अंग्रेजों ने दस्तावेजों में खजाने की कीमत कम लिखी और सारा खजाना इंग्लैंड भिजवा दिया. वहीं, नाना महल से अपने गुप्तचरों के साथ खाली हाथ ही भागे थे. चूंकि सोने का सुराग न तो महारानी तपस्वी के पास मिलता है न ही नेपाल में.
दूसरी थ्योरी कहती है कि नाना को अंग्रेजों के हमले की सूचना हो गई थी और उन्होंने अपने भागने से पहले ही खजाने का बड़ा हिस्सा छिपा दिया था. बाद में महल छोड़ा. पर सोना कहां पहुंचाया गया, यह अब भी एक सवाल है?
Web Title: Fate of Nana Saheb's Hidden Treasure, Hindi Article
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