आप हर साल अपनी आमद और खर्चों का जिस तरह से हिसाब किताब रखते हैं, ठीक उसी प्रकार से भारत सरकार भी अपने राजस्व का लेखा जोखा रखती है.
और जब इस विवरण को संसद में पेश किया जाता है तब इसे आम भाषा में ‘बजट’ कहा ताजा है.
हर साल फरवरी की पहली तारीख को भारत के वित्त मंत्री द्वारा सरकारी बजट पेश किया जाता है.
बजट से लोगों को कई उम्मीदें होती हैं. कभी सरकार उन उम्मीदों पर खरी उतर पाती है और कभी उन पर फेल हो जाती है. हालांकि हर साल बजट आना बदस्तूर जारी रहता है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में बजट की परंपरा आखिर कहां से शुरू हुई?
अगर नहीं..
तो आइए हम आपको बताते हैं भारत में बजट की शुरूआत और उसके पीछे की दिलचस्प कहानी–
1857 की क्रांति और ..
सन 1857 में अंग्रेज सेना में तैनात भारतीय सैनिकों ने सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया. जिसे हम भारतीय इतिहस में 1857 की क्रांति कहते हैं.
क्रांति की चिंगारी धीरे-धीरे भारत में फैलने लगी. कुछ ही समय में दिल्ली पर क्रांतिकारियों ने अपना कब्जा कर लिया. कई अंग्रेज अफसरों का कत्ल कर दिया गया.
जो बचे वो अपने परिवार को सुरक्षित करने में लग गए. ऐसे में अंग्रेज शासन पूरी तरह से इस क्रांति को दबाने में विफल हो गया था.
अब ब्रिटिश सरकार को इस विद्रोह को दबाने के लिए कुछ तो करना ही था उसे कोई दूसरा चारा नजर नहीं आया तो हिंदू-मुसलमानों में आपसी फूट डलवाने का काम किया गया.
चूंकि इस विद्रोह में हिंदू और मुसलमान दोनों कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेज शासन के विरुद्ध लड़ रहे थे उन्हें हरा पाना मुश्किल था. अंग्रेज शासन ताश के पत्तों की तरह बिखर रहा था.
साजिश के तहत ब्रिटिश सरकार ने बरेली में हिंदू मुसलमानों को एक दूसरे के खिलाफ लड़ाने की पूरी कोशिश की. बकायदा इस कार्य के लिए सरकार ने लगभग 50 हजार रुपए तक फूंक दिए.
अब तक क्रांति दबाने के लिए अंग्रेज सरकार बहुत पैसा खर्च कर चुकी थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही थी.
इससे अंग्रेज सरकार लगभग-लगभग कंगाल हो गई.
The Revolt of 1857. (Pic: thoughtco)
बजट के संस्थापक जेम्स विल्सन
अंग्रेज सरकार ने 1857 के विद्रोह के बाद अपना सैन्य खर्च 18.50 करोड़ बढ़ाकर 29.9 करोड़ कर दिया.
भारी सैन्य खर्चों के कारण सरकार कर्जे में थी, उधर जमीन से आने वाला राजस्व काफी कम था वहीं अफीम की बिक्री से भी बहुत अच्छा पैसा नहीं मिल रहा था.
कंगाली के कारण अंग्रेजों को वित्तीय तंगी का सामना करना पड़ा, शाही राजकोष घाटे में था.
ब्रिटेन को भारत में अपना अधिकार जमाए रखने के लिए पैसों की सख्त जरूरत थी.
अब तक भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन चलता था, लेकिन क्रांति को दबाने में विफल रही ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटेन की महारानी ने भारत का शासन अपने हाथों में ले लिया.
ब्रिटेन ने 1858 में भारत सरकार अधिनियम पारित कर कंपनी को समाप्त कर दिया.
सरकार ने अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए नमक कर को दो गुना कर दिया और अफीम पर भी टैरिफ बढा़ दिया गया.
बाबजूद इसके ब्रिटिश सरकार को लगभग 70-90 लाख पाउंड का घाटा हुआ.
अब जब सारे अधिकार ब्रिटिश सरकार के हाथ में आ गए तो भारत के राजकोष पर नियंत्रण और उसकी देखरेख के लिए भी एक चतुर आदमी की जरूरत थी.
ऐसी स्थिति में सामने आए स्कॉटलेंड के उद्योगपति जेम्स विल्सन. जेम्स ‘द इकॉनोमिस्ट’ और ‘द स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक’ के संस्थापक और एक व्यापारी, अर्थशास्त्री और लिबरल राजनीतिज्ञ थे.
1859 में जेम्स विल्सन सरकारी खजाने के चांसलर बना दिए गए. इंग्लैंड के प्रधानमंत्री लॉर्ड पामर्स्टन ने जेम्स विल्सन को वायसराय की परिषद का वित्त मंत्री भी बना दिया.
वित्त मंत्री बनने के बाद जेम्स विल्सन का खूब मजाक उड़ाया गया. मीडिया में उनकी कार्टून द्वारा टोपी बनाने वाला कहकर निंदा की गई. ये सच है कि शुरूआत में विल्सन का अपना टोपियां बनाने का कारखाना था लेकिन बाद में उन्होंने ये काम छोड़ दिया था.
चतुर और चालाकी भरे दिमाग के विल्सन इससे पहले भी भारत में काम कर चुके थे, इसलिए उन्हें यहां के बारे में अच्छी खासी जानकारी थी.
उधर सरकार राजस्व के नए स्रोत खोज रही थी. इधर दिसंबर 1859 को विल्सन ने आयकर का एक प्रस्ताव बनाकर भारत सरकार सचिव सर चार्ल्स बुड को सौंप दिया.
James Wilson. (Pic: npg)
1860 में आया पहला बजट
भारत सरकार अधिनियम के दो साल बाद ही 1860 को ब्रिटिश क्राउन के लिए भारत का शासन देखने वाली वायसराय की कार्यकारी परिषद के पहले वित्त मंत्री जेम्स विल्सन ने भारत में पहला बजट पेश किया.
असल में जेम्स विल्सन को ही भारतीय बजट का संस्थापक माना जाता है.
1857 की क्रांति के समय गवर्नर जनरल रहे लॉर्ड कैनिंग भारत सरकार अधिनियम के बाद भारत के पहले वायसराय बने. इन्होंने जुलाई 1860 में इस आयकर कानून पर मुहर लगा दी और उसी दिन से ये भारतीयों पर लागू हो गया.
इस बजट में पहली बार अगले पांच साल के लिए आयकर लगाने की घोषणा की गई.
जमीन जायदाद, कंपनी लाभ, लाभांश, पेशा और व्यापार आदि से प्राप्त आय पर कर लगाने का प्रावधान किया गया. खेतीबाड़ी से होने वाली आय पर भी सरकार ने टैक्स लगाया था.
200 रुपए से लेकर 499 रुपए तक की आय वालों पर 2 प्रतिशत और 500 से ज्यादा आय वालों पर 4 प्रतिशत आयकर लगाने का प्रस्ताव किया गया था. ये आयकर कानून अगले 5 सालों तक चला और इल पांच सालों में अंग्रेज सरकार ने इससे लगभग 78 लाख रुपए का राजस्व वसूला. इसके बाद सन 1865 में इस कानून को खत्म कर दिया गया.
इसके अलावा अन्य प्रत्यक्ष कर भी लागू कर दिए गए. व्यापारियों पर लाइसेंस शुल्क लगाया, सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया.
Viceroy Lord Canning. (Pic: wikimedia)
बजट का विरोध
बजट के द्वारा विल्सन ने भारत के लोगों की आय को अपना निशाना बनाया, ब्रिटिश सरकार अब अपना राजस्व बढ़ा सकती थी.
इस करारोपड़ ने भारत के जमींदार, मारवाड़ी और व्यापारियों को भड़का दिया वो अपनी अपनी लॉबी के सहारे इन करों से बचने की कोशिश करने लगे.
सन 1860 में विल्सन की मौत के बाद तो इन्होंने आय कर खत्म करने के लिए अंग्रेज सरकार पर और दबाव बनाना शुरू कर दिया.
विल्सन के बजट का सबसे ज्यादा विरोध मद्रास प्रेसिडेंसी से हुआ. यहां के गवर्नर सर चार्ल्स ट्रेवेलन बहुत ही प्रभावशाली शख्सियत थे. वे मद्रास की स्थिति को बेहतर तरीके से जानते थे.
उन्होंने सवाल उठाया कि क्या उन लोगों को कर देना है जिनका ब्रिटिश भारत में कोई राजनीतिक प्रतिनिधि नहीं है?
तब इनका साथ मुंबई के कुछ व्यापारियों ने भी दिया था.
इससे अंग्रेज नाराज हो गए और चार्ल्स को तत्काल लंदन वापस बुला लिया गया.
चार्ल्स ट्रेवेलन आने वाले भविष्य में भारतीयों पर पड़ने वाले कर के प्रभाव से चिंतित थे.
हालांकि खुद विल्सन अपने स्वतंत्र विचारों को बजट में शामिल करना चाहते थे, ये भारत के लोगों पर कर का बोझ नहीं डालना चाहते थे लेकिन सरकार को राजस्व की जरूरत थी.
चार्ल्स विल्सन अपने काम के प्रति कितने उत्सुक और वफादार थे इसका पता इस बात से चलता है कि उन्होंने 11 अगस्त 1860 को मरने से पहले अपने आखिरी शब्दों में कहा कि मेरे आयकर का ध्यान रखना.
भारत के प्रथम बजट की कहानी आपको कैसी लगी, अवश्य बताएं!
Web Title: First Indian Budget was presented By James Wilson, Hindi Article
Feature Image Credit: wikipedia