आज बेटी बचाओ के नारे लगते हैं. कुछ लोग लड़के-लड़कियों की बराबरी की बातें करते हैं, पर भारत का इतिहास बेटियों के मामले में काफी समृद्ध रहा है. इस धरती पर जहां एक ओर रानी लक्ष्मी बाई, रानी अवंतिका, रानी दुर्गावति का शासन रहा, तो वहीं दूसरी ओर मुगल रियासतें सम्हालने वाली नूरजहां, रजिया सुल्तान का भी शिद्दत से नाम आता है.
नामों की इस सूची को और समृद्ध बनाती है भोपाल की नवाबी रियासत, जो सही मायनों में बेगमों से आबाद रही. भोपाल के 240 साल पुराने इतिहास के 107 साल वो थे, जब यहां बेगमों ने शासन किया. इन सालों में रियासत को लगातार 4 बेगम मिली, जिन्होंने अपनी वास्तुकला से न केवल शहर को संवारा बल्कि अपनी बुद्धि के बल पर रियासत की रक्षा भी की.
तो चलिए जानते हैं कि वे बेगम कौन सी थीं-
विक्टोरिया के पहले कुदेसिया बनीं शासक
दुनिया में जब किसी शक्तिशाली महिला शासक का नाम लिया जाता है, तो याद आती हैं रानी विक्टोरिया! जिन्होंने ब्रिटिश शासन की बांगडोर सम्हाली. पर यह तो विदेश की बात हुई.
भारत के संदर्भ में भोपाल रियासत वह पहला उदाहरण है जहां 'बेगम' ने शासन की बांगडोर अपने हाथ में सम्हाली थी. बात है 1819 ईस्वी की, जब भोपाल में पहली महिला शासक कुदेसिया बेगम ने तख्त सम्हाला. उन्हें गौहर महल के नाम से भी जाना जाता है. कुदेसिया के शासन सम्हालने के 15 साल बाद ब्रिटेन में महारानी विक्टोरिया राजगद्दी पर विराजी थीं.
खैर बेगम कुदेसिया ने 1819 से 1837 तक भोपाल में राज किया. वे स्वभाव से बेहद शांत थीं और यही कारण रहा कि भोपाल की सीमाएं भी शांत बनी रहीं. न कोई दुश्मन आया और न ही कोई बाहर गया.
उनका वास्तुकला के प्रति प्रेम इतना था कि उन्होंने अपने शासन में कई नायब इमारतों का निर्माण करवाया. 1820 ई. में उन्होंन गौहर महल बनवाया, जहां से भोपाल की खबूसूरत झील का नजारा साफ दिखाई देता था.
यह महल भोपाल रियासत का पहला महल कहलाया. उन्होंने भारतीय और इस्लामिक वास्तुकला का समावेश किया. कहा जाता है कि कुदेसिया के शासनकाल में कभी भी दोनों धर्मों के बीच कोई मतभेद नहीं हुए.
बल्कि खानपान से लेकर पहनावे और जीवन के अन्य पहलुओं को समझने में दोनों समुदायों के लोगों ने साथ काम किया.
जामा मस्जिद के दरवाजे खुलवाने वाली 'सिकंदर'
कुदसिया बेगम के इंतकाल के बाद सत्ता की बांगडोर उनकी बेटी सिकंदर जहां बेगम के हाथ आई. अपने 21 साल का कार्यकाल में सिकंदर जहां ने मां की वास्तुकला को विस्तार दिया. वैसे सिकंदर जहां को एक और वजह से जाना जाता है.
दरअसल उस दौर में जहां पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ हो रहा था. वहीं सिकंदर जहां ने अंग्रेजों का खुलकर साथ दिया. यही वजह रही कि उनके और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के बीच मतभेद बने रहे.
हालांकि, उन्होंने अंग्रेजों का साथ केवल इसलिए दिया ताकि वे उन्हे संधि करके भोपाल रियासत से बाहर कर सकें. सिंकदर जहां बेगम को जामा मस्जिद को फिर से खुलवाने का श्रेय दिया जाता है.
दरअसल 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली की जामा मस्जिद बंद कर दी थी. ऐसे में केवल सिकंदर जहां ही थी जिन्होंने अंग्रेजों को दोबारा मस्जिद खोलने पर राजी किया और खुद सबसे पहले मस्जिद के आंगन की सफाई भी की.
1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने भोपाल सहित कई रियासतों पर दोहरे नियंत्रण की प्रणाली लागू कर दी थी. इस तरह सिंकदर जहां के अलावा उनके मामा फौजदार माेहम्मद खान भी सियासी मसलों में दखल देने लगे थे.
तब सिकंदर बेगम ने भारत के गवर्नर जनरल को चिट्ठी लिखकर कर कहा कि जनता अपनी समस्याओं के लिए मेरे दरवाजे आती है, पर आपकी थोपी गई व्यवस्था ने शासन को मुश्किल में डाल दिया है.
इसके बाद सबसे पहले भोपाल से ही दोहरे नियंत्रण की प्रणाली खत्म हुई और 1847 से 1868 तक भोपाल रियासत पर केवल सिकंदर जहां का शासन कायम रहा.
'शाहजहां बेगम' ने भोपाल को दिया ताजमहल
जब ताजमहल का नाम किया जाता है, तो हमें आगरा में शाहजहां के बनाई नायब कला ही दिखाई देती है. भोपाल के दूसरे ताजमहल से शायद आज की पीढ़ी अंजान हो.
इस ताजमहल को भोपाल की तीसरी महिला शासक और सिकंदर जहां बेगम की बेटी शाहजहाँ बेगम ने बनवाया था. 1861 से 1901 तक भोपाल रियासत की बेगम रही शाहजहां अपनी पुरखों की दी गई वास्तुकला को आगे बढ़ाया.
जिन इमारतों का निर्माण उनकी मां के शासन में शुरू हुआ था उन्हें खत्म करवाने के अलावा शाहजहां को ताजमहल के निर्माण के लिए जाना गया. सत्रह एकड़ में बने ताजमहल को बनाने में 13 साल का लंबा वक्त लगा था.
उस दौर में इस महल को बनवाने में शाहजहां ने तीन लाख रुपए खर्च किए थे और महल बनने के तीन साल बाद तक उसके निर्माण का जश्न मनाया गया.
इस नायब इमारत और बेगम से जुड़ा एक अन्य इतिहास है. दरअसल दरवाजे की नक्काशी में रंगीन कांच का प्रयोग किया गया था. कांच पर पड़ने वाली सूरज की रोशनी की चमक से प्रवेश करने वाले लोगों की नजरें झुक जाती थी.
यह प्रयोग बेगम ने इस लिहाज से किया ताकि कोई भी उनकी रिसायत में प्रवेश करे तो उसकी नजरें झुकी हों.
यह बात एक अंग्रेज अफसर को खल गई. उसने बेगम को कांच हटाने का आदेश दिया हालांकि बेगम को इससे फर्क नहीं पडा. उन्होंने अफसर को कांच तोड़ने के 10 अवसर दिए.
अधिकारी वहां अपनी तोप लेकर पहुंचा और एक के बाद एक कांच पर 10 बार गोले दागे.
हालांकि, उसका एक भी निशाना कांच पर नहीं लग सका. बेगम जानती थी कि कांच पर अंधेरे में निशाना लगाया नहीं जा सकता और दिन में सूरज की रौशनी से इतनी चमक पैदा होगी कि कोई कांच की ओर ठीक से देख तक नहीं पाएगा.
'सुल्तान जहां बेगम' भोपाल की अंतिम महिला शासक
भोपाल की अंतिम महिला शासक के रूप में सुल्तान जहां बेगम को जाना जाता है. वे शाहजहाँ बेगम की इकलौती बेटी थीं. अपनी नानी और परनानी से अलग सुल्तान जहां को उनके इश्क ने मशहूर बनाया था.
दरअसल सुल्तान जहां मोहम्मद अली जिन्ना के बेहद खास हमीदुल्ला खान के दिल के करीब थीं. मां के गुजर जाने के बाद सुल्तान जहां ने रियासत का काम हमीदुल्ला खान की मदद से ही सम्हाल रखा था.
वे उन पर इतना ज्यादा निर्भर थीं कि उन्होंने 16 अप्रैल 1916 में हमीदुल्ला खान को चीफ सेकेटरी घोषित कर दिया. इसके बाद उनका रियासत में औहदा और भी महत्वपूर्ण हो गया.
बताया जाता है कि सुल्तान जहां ने हमीदुल्ला खान को अपने जीते जी ही 16 मई 1926 को भोपाल का नया शासक घोषित कर दिया और आगमी 9 जून को वे आधिकारिक तौर पर भोपाल के नवाब बन गए.
इसके साथ ही भोपाल से बेगमों का दौर खत्म हो गया और रियासत को अपना आखिरी नवाब मिल गया.
1930 में सुल्तान जहां ने दुनिया को अलविदा कह दिया. तब तक हमीदुल्ला खान भोपाल की रियासत को बेहतर तरीके से समझ चुके थे. उन्होंने शहर के विकास के लिए बहुत से जरूरी काम किए. सडकों का निर्माण, परिवहन व्यवस्था आदि बेहतर की.
जब भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तब वे मोहम्मत अली जिन्ना के साथ सेक्रेट्री जनरल बनने पाकिस्तान चले गए. इस बाद रियासतों का विलय हो गया और भोपाल का सुनहरा नवाबी दौर खत्म हो गया.
बेगमों के बनाए महल आज भी भोपाल में नवाबी दौर की यादों तो ताजा किए हुए हैं.
कुछ खंडहर इमारतों को सजा धजा कर होटल बना दिया है तो कुछ लाइब्रेरी और सरकारी दफ्तरों में तब्दील हो गए हैं. चाहे जो भी हो लेकिन भोपाल का नवाबी दौर मुगल बेगमों और उनके साहस से आबाद रहा.
Web Title: Four female mogul rulers of Bhopal, Hindi Article
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