सन 1897 की बात है. उस समय पुणे शहर प्लेग जैसी खतरनाक बीमारी से जूझ रहा था. अंग्रेजों के लिए इससे अच्छी बात और कुछ भी नहीं थी. उनकी हुकूमत में मानो चार चाँद लग गए थे. ऐसा इसलिए क्योंकि बीमारी से जूझ रहे शहर पर इनके अत्याचार पहले से दोगुने हो चुके थे. लोगों को बेवजह ही मारकर अपनी बादशाहत कायम करना उनका पेशा बन चुका था. अगर उनके रास्ते का कोई रोड़ा था, तो वो थे भारत मां के वीर सपूत… आजादी की जंग में अपनी जिंदगी दांव पर लगाने वाले स्वतंत्रता सेनानी…
इन्हीं वीर सपूतों में अंग्रेजों को सोचने पर मजबूर करने वाले तीन भाइयों की दास्ताँ बहुत ही दिलचस्प है. इनकी जुगलबंदी ने न सिर्फ अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए बल्कि गोरों के सरदारों के सीने में गोलियां उताकर ऐसा भूचाल खड़ा किया कि अंग्रेजी बादशाहत की चाल धीमी पड़ गयी. इस वारदात से गोरों का कलेजा कांप गया.
अंग्रेजों से लोहा लेने वाले उन तीन भाइयों को ‘चाफेकर बंधु’ के नाम से जाना जाता है. आज हम उस सफर पर चलेंगे जहाँ से स्वतंत्रता की लड़ाई में इनके योगदान को नजदीक से जान सकें. हम उस घटना को भी जानेंगे कि किस तरह इन्होंने अंग्रेजी अफसरों को मौत के घाट उतारा था. तो चलिए भारत मां के लाल ‘चाफेकर बंधुओं’ को जानने का प्रयास करते हैं–
‘विक्टोरिया’ के पुतले पर कालिख पोत जयाता गुस्सा
इतिहास के पन्नों में तीन भाई, वीर दामोदर हरि चाफेकर, बाल कृष्ण हरि चाफेकर और वासुदेव हरि चाफेकर ही चाफेकर बंधु के नाम से जाने गए. तीनों भाई महाराष्ट्र स्थित पुणे शहर के चिंचवाड़ गाँव में रहते थे. माता का नाम द्वारका था और पिता का नाम हरिपंत चाफेकर. जो एक प्रसिद्ध कीर्तनकार थे.
25 जून 1868 को सबसे बड़े भाई दामोदर हरि चाफेकर का जन्म हुआ था. कहते हैं कि वह बाल्यकाल से ही अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाह लेकर बड़े हुए. एक अच्छे कवि के साथ सैनिक बनने की इच्छा भी उनके मन में थी. उस समय पंडित बाल गंगाधर तिलक इनके गुरु हुआ करते थे और आगरकर जी का साथ भी इनके पास था. इसलिए इन्हें एक अच्छा मार्गदर्शन मिलता रहा. ब्रिटिश हुकूमत भी अपने चरम पर थी. इसे देख उनके मन में बचपन से ही गोरों के खिलाफ बदले की आग भड़क रही थी. माना जाता है कि यही कारण था कि उन्होंने मुंबई में महारानी विक्टोरिया के पुतले पर जूतों का हार पहनाया और कालिख पोतकर अपनी नफरत दिखाई.
जहाँ बड़े भाई का पूरा ध्यान देश की आजादी और अंग्रेजी हुकूमत के खात्मे पर था. वहीं दूसरी ओर दोनों छोटे भाई बाल कृष्ण हरि चाफेकर और वासुदेवहरि चाफेकर भजन-कीर्तन करने में लीन रहते थे.
They Burned The Queen Victoria Statue For Showing Their Anger (Representative Pic: vrindavantoday)
‘बीमार पुणे वासियों’ पर अंग्रेज करते थे अत्याचार!
सन 1897 के दौर में पुणे शहर प्लेग से ग्रसित था. इसके पसरते पांव को देखते हुए प्लेग समिति का गठन किया गया था, ताकि लोगों को इसके प्रकोप से राहत दिलाई जा सके. परंतु गोरों के शासन ने सारी परिस्थितियां इसके उलट कर दी थीं. लोगों को राहत की जगह यातनाएं झेलनी पड़ रही थीं… इस समिति की जिम्मेदारी वाल्टर चार्ल्स रैंड को दी गई थीं. रैंड पुणे का तत्कालीन जिलाधिकारी भी था. इसलिए लोगों पर जुल्म करने और कहर बरपाने में वह थोड़ा भी पीछे नहीं हटता. कहते हैं जब तक वह भारतियों पर अत्याचार नहीं कर लेता तब तक उसका मन शांत नहीं होता था. यह प्रकृति उसके दिनचर्या में शामिल हो चुकी थी.
भारतियों के साथ वाल्टर चार्ल्स रैंड और एक अन्य अंग्रेज अधिकारी आर्यस्ट के द्वारा किया जाने वाला व्यवहार पंडित बाल गंगाधर तिलक और आगरकर को बेहद कष्ट दे रहा था. यहाँ तक की लोगों को नीचा दिखाने के लिए अंग्रेज मंदिरों व पूजाघरों में जूते और चप्पल पहनकर घुस जाया करते थे. इसका विरोध करने पर बाल गंगाधर तिलक और आगरकर कई बार जेल भी गए. यातनाएं सहने के बावजूद भी अंग्रेजों का विरोध किया जाना कम नहीं हुआ.
चाफेकर बंधुओं ने मिलकर हट्टे-कट्ठे युवाओं की टोली तैयार क, जिन्हें लाठी-डंडे, तलवार और अन्य शस्त्र चलाने का विधिवत ज्ञान दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि गोरों द्वारा भारतियों पर किये जा रहे जुल्म का बदला लिया जा सके. आखिरकार समय ने करवट ली और उन्हें जिस समय का इंतज़ार था वह समय भी धीरे-धीरे नजदीक आ गया.
British Injustice With Indians (Representative Pic: tipsfilms)
अंग्रेजों को उनके ही ‘जश्न’ में मारने का था प्लान…
सन 1897 में 22 जून को पुणे के ही गवर्नमेंट हॉउस में महारानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की हीरक जयंती मनाये जाने की तैयारियां चल रह थीं. इस कार्यक्रम में वाल्टर चार्ल्स रैंड और आर्यस्ट को भी न्योता दिया गया था. दोनों अंग्रेज अधिकारी आयोजन में शामिल होने के लिए पधार चुके थे. गवर्नमेंट हॉउस के साथ पूरा शहर जगमग उजियारों की रोशनी में डूबा हुआ था. एक के बाद एक हो रही जबरदस्त आतिशबाजी ने पूरे शहर की रंगत में चार चाँद लगा दिए थे.
एक तरफ अंग्रेज चकाचौंध में डूबे हुए थे. वहीं दूसरी ओर चाफेकर भाई उनसे पुणे में हो रही हिंसा का बदला लेने की सोच रहे थे. चाफेकर भाइयों को इससे अच्छा मौका नहीं मिलने वाला था. आयोजन के समय दामोदर हरि चाफेकर और छोटे भाई बालकृष्ण हरि चाफेकर अपने मित्र विनायक रानाडे के साथ पहुंचकर मौके की तलाश में लगे थे.
माना जाता है कि उन्होंने अंग्रेजों के इस जश्न को परवान चढ़ने दिया. वह चाहते थे कि हर कोई खुद को सुरक्षित समझे ताकि वह बाद में अचानक से हमला कर सकें. इसके साथ ही वह इंतजार करने लगे.
British Were Celebrating (Representative Pic: wikimedia)
…और दाग दी अंग्रेजों के सेने में गोलियां
आधी रात करीब 12 बजकर 10 मिनट पर रैंड और आर्यस्ट आयोजन से लौटने के लिए अपनी सवारी की तरफ कदम बढ़ाने लगे. उधर गवर्नमेंट हॉउस के बाहर चाफेकर भाइयों और मित्रों की टोली दोनों अफसरों के निकलने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. आर्यस्ट बाहर आया और अपनी सवारी में बैठने लगा. बाल कृष्णहरी चाफेकर उसे भ्रमवश रैंड समझ बैठे और उसके सीने में गोलियां उतार दीं. गोलियों की आवाज और शोर-गुल सुनकर रैंड भी घटनास्थल पर पहुँच गया. चाफेकर भाइयों को लगा की उनसे गलती हो गयी है, क्योंकि रैंड तो उनके सामने खड़ा था. हालांकि देखते ही देखते बड़े भाई दामोदर हरि चाफेकर ने रैंड के सीने में भी गोलियां उतार दीं…
इस वारदात के बाद सभी मित्र और चाफेकर बंधु भाग गये. आर्यस्ट की मौत घटनास्थल पर ही हो चुकी थी. परंतु रैंड ने अपनी सांसे गिनते-गिनते 3 जुलाई को अस्पताल में दम तोड़ दिया. इतनी बड़ी घटना ने गोरों और उनके रसूखदारों में खलबली मचा दी. परंतु पुणे की जनता में ख़ुशी का माहौल था. गुप्तचर अधिकारी हैरी ब्रुइन ने चाफेकर बंधुओं के सिर पर 20 हज़ार का इनाम घोषित कर दिया. इसके बाद हर कोई बस चापेकर भाईयों की तलाश में जुट गया.
Chapekar Brothers (Representative Pic: mazale)
मुस्कुराते हुए फांसी पर चढ़े चाफेकर बंधु…
इनाम के लालच में आकर दो भाई गणेश शंकर द्रविण और रामचंद्र द्रविण ने चाफेकर बंधुओं का पता अंग्रेजी हुकूमत को बता दिया. दामोदर हरि चाफेकर गोरों की नजरों से छुप न सके और पकड़े गए. परंतु बालकृष्ण अब भी अंग्रेजों की पकड़ से दूर थे. पकड़े जाने के बाद आदालत ने दामोदर को फांसी की सजा सुनाई. कहते हैं कि जेल में ही पंडित तिलक जी उनसे मिले और उन्हें भगवत् गीता भेंट की. सन 1898 में 18 अप्रैल को यरवदा जेल में भारत माँ के वीर सपूत दामोदर ने मुस्कुराते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया. ऐसा कहा जाता है कि अंत समय तक भगवत् गीता उनके हाथों में थी.
इसके बाद बालकृष्ण ने खुद ही आत्मसमर्पण कर दिया. उधर वासुदेव चाफेकर अपने दोनों भाइयों की स्थिति देखकर आक्रोशित थे. इसलिए उन्होंने इनाम के लालच में पता बताने वाले दोनों द्रविण भाइयों को मौत के घाट उतार दिया! इसके बाद अंग्रेजों ने वासुदेव की तलाश शुरू कर दी. कुछ समय बाद वो भी पकडे गए. अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें भी फांसी के फंदे पर लटका दिया.
इसके ठीक पांचवे दिन इसी जेल में 12 मई को बालकृष्ण को भी फांसी दे दी गयी. तीनों भाइयों ने मुस्कुराते हुए फांसी के फंदे को चूमा और भारत मां के आँचल में हमेशा के लिए सो गए. चाफेकर भाइयों के मित्र महादेव रानाडे को भी फांसी की सजा मिली. इसके साथ ही भारत माँ के इन सपूत ने खुद को देश पर कुर्बान कर दिया…
All Three Brothers hanged By British (Representative Pic: untold)
चाफेकर भाईयों की इस वीरगाथा को बहुत कम ही लोग जानते हैं मगर यह है बहुत ही गौरवशाली. तीनों भाईयों ने अपनी जिंदगी भारत माँ पर कुर्बान कर दी. भारत की आजादी में बहुत से वीरों ने खुद की कुर्बानी दी है और उनमें से ही एक थे चाफेकर भाई. इनके बारे में आपकी क्या राय है कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं.
Web Title: Freedom Fighters Chapekar Brothers, Hindi Article
Feature Image Credit: glamsham