हर भारतीय के दिल में बसता है संगीत. अब चाहे वो शास्त्रीय संगीत हो या फिर बॉलीवुड. आज, अगर भारत की बात करें, तो ‘संगीत’ की एक बहुत बड़ी इंडस्ट्री बन चुकी है. इसने संगीत को बहुत ऊंचाई पर पहुंचाया है.
कहते हैं संगीत मन को शान्ति, मनोरंजन और कभी-कभी तनाव से भी मुक्ति देता है. फिर अपनी भाषा के लोकगीत सुनने का तो मजा ही कुछ और होता है. एक समय ऐसा था, जब लाइव संगीत सुना जाता था. फिर समय के साथ इसका स्वरुप बदला. यह रिकॉर्ड करके सुना जाने लगा, और फिलहाल का दृश्य तो हमारे आँखों के सामने है ही.
इसी संदर्भ में, हम गौहर जान को कितना जानते हैं. वही गौहर, जो भारत की पहली रिकॉर्डिंग स्टार मानी जाती है-
अर्मेनियन मूल की थीं गौहर जान!
26 जून, 1873 को आजमगढ़ में गौहर जान का जन्म एक अर्मेनियाई परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता भारत ही रहते थे. हालांकि, उनके पिता अर्मेनिया के थे, लेकिन उनकी माता का जन्म भी भारत में ही हुआ था.
गौहर के पिता का नाम विलियम रॉबर्ट और मां का नाम विक्टोरिया हेमिंग था. उनके पिता एक इंजीनियर थे, जो एक फैक्ट्री में काम किया करते थे. वही दूसरी ओर, उनकी मां संगीत और डांस में शिक्षा ली थी.
शायद, जान को संगीत और नृत्य के गुण विरासत में मिले थे.
उनके माता-पिता ने 1872 में शादी की थी और एक साल बाद ही गौहर का जन्म हुआ. उन्होंने अपनी नन्ही परी का नाम एंजलिना योवर्ड रखा था. हालांकि, बाद में वह गौहर जान नाम से मशहूर हुईं.
ऐसे बन गईं एंजलिना योवर्ड से गौहर जान!
गौहर के माता-पिता का रिश्ता धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगा था. काफी दिनों तक रिश्ता संभालने की कोशिश करने के बावजूद, यह ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका. लिहाज़ा, उन दोनों ने इसे खत्म करना ही बेहतर समझा और तलाक के साथ यह रिश्ता खत्म हो गया. उनकी माँ ने तलाक के बाद बनारस का रुख किया.
वहां जाकर उन्हें इस्लाम धर्म से ख़ास लगाव हो गया. और इस बढ़ते झुकाव की वजह से उन्होंने धर्म परिवर्तन का निर्णय लिया. लिहाज़ा, उन्होंने अपनी बेटी के साथ इस्लाम धर्म कबूल कर लिया. इसी के साथ उन दोनों का नाम भी बदल गया. उनकी माँ विक्टोरिया से मलका जान बन गयीं. और, एंजलिना योवर्ड बन गयीं गौहर खान.
बनारस में, मलका जान खुद को एक गायिका और डांसर के रूप में स्थापित कर चुकी थीं. वो वह काफी मशहूर भी हो गयी थी. वहां लोग उन्हें 'बड़ी मलका जान' के नाम से जाना करते थे. यही वजह थी कि वह 1883 में कलकत्ता के नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में अपनी कला का जादू बिखेरने लगीं.
उन्होंने अच्छी रकम कमा लेने की वजह से कलकत्ता में खुद का घर भी खरीद लिया. इसके साथ ही, यहीं पर गौहर जान की संगीत और नृत्य में ट्रेनिंग शुरू हो गयी.
अलग-अलग गुरुओं से शिक्षा लेकर महारत हासिल की!
गौहर के संगीत सिखने के सफ़र में कई सारे गुरु रहे. जिन्होंने समय-समय पर उन्हें संगीत की विभिन्न विधाओं में पारंगत किया.
इसी सिलसिले में, उनकी आधिकारिक ट्रेनिंग सबसे पहले पटियाला के काले खान उर्फ 'कालू उस्ताद', उस्ताद वजीर खान और उस्ताद अली बख्श जरनैल से हुई. उन्होंने इनसे हिन्दुस्तानी संगीत की शिक्षा ली.
गौहर, जहां एक ओर गायन की ट्रेनिंग ले रही थीं. वहीँ, दूसरी ओर, कत्थक गुरु बृंदादीन महाराज से कत्थक में भी महारथ हासिल की. उन्होंने रबींद्र संगीत और बंगाली कीर्तन भी सीखा था.
इसी दौरान, उन्होंने अपनी सबसे पहली ग़ज़ल 'हमदम' भी लिखी थी.
संगीत विद्या को अपने कंठ में बसाने और नृत्य से सबका मन मोह लेने वाली गौहर जल्द ही मशहूर हो गईं. लिहाज़ा, अपने हुनर की बदौलत, 1887 में वह एक संगीतकार के रूप में शाही दरबार दरभंगा राज में नियुक्त हुईं.
कहते हैं उनके आगे बढ़ने का सिलसिला यही से शुरू हो चुका था.
...और ऐसे बनीं पहली रिकॉर्डिंग सुपरस्टार!
बनारस से कलकत्ता और फिर दरभंगा का रुख करने वाली गौहर ने सबका दिल जीत लिया था. इसके बाद उन्होंने 1896 में कलकत्ता में अपने हुनर की प्रस्तुति देना आरंभ किया. 1902 में हुए उनके रिकार्डेड गानों के ज़रिये, भारत में ग्रामोफोन मशहूर हो गया. इसके बाद, वह दक्षिण एशिया की पहली गायिका बन गयी थीं.
उन्होंने 78rpm पर गाने रिकॉर्ड किये थे. इस रिकॉर्डिंग को ग्रामाफोन कंपनी ऑफ़ इंडिया ने रिलीज़ किया.
अपने संगीत और नृत्य के सफ़र में उनकी जिंदगी में प्यार ने भी दस्तक दी. दरअसल, 1904-05 के दौरान गौहर की मुलाकात थिएटर आर्टिस्ट अमृत केशव नायक से हुई. वह पारसी धर्म के थे. जल्द ही, दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया. हालांकि, उनकी ये प्रेम कहानी ज्यादा दिनों तक नहींं चल पायी.
कुदरत को कुछ और ही मंज़ूर था. दरअसल, अचानक 1907 में केशव की अचानक मौत हो गईं.
खैर, अब तक गौहर जान के हुनर की चर्चा दिल्ली तक भी पहुंची. उन्हें 1911 में, दिल्ली दरबार में प्रस्तुति के लिए बुलाया गया. यह समारोह किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में आयोजित किया गया था. जहां उन्होंने इलाहाबाद की जानकीबाई के साथ मिलकर गायन किया था.
आपको बताते चले कि, उन्होंने 1902 से 1920 के बीच बंगाली, हिन्दुस्तानी, गुजराती, तमिल, मराठी, अरबी, पारसी, पश्तो, फ्रेंच और अंग्रेजी समेत 10 से भी ज्यादा भाषाओं में 600 से भी अधिक गाने रिकॉर्ड किए. इसमे ‘मोरे नाहक लाये गवनवा' और 'रस के भरे तोरे नैन मेरे दर्द-ए-जिगर’ काफी ज्यादा मशहूर हुए थे.
17 जनवरी, 1930 में, महज़ 56 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. इस वर्ष, उनकी 145वें जन्मदिन के अवसर पर, गूगल ने भी उनपर डूडल बनाकर उनको याद किया.
पहले माता-पिता का अलग होना, फिर महज़ 13 साल की उम्र में शोषण का भी शिकार हुई, गौहर ने संगीत जगत में अपनी धाक जमाई थी. जीवन में काफी संघर्ष के बाद, उन्होंने अपार कामयाबी का मुंह देखा था.
बताते चलें कि उनकी ये कहानी विक्रम संपत दुनिया के सामने लाये थे. उनकी किताब ‘माय नेम इस गौहर जान' के ज़रिए दुनिया ने उनके हुनर को एक बार फिर जाना.
Web Title: Gauhar Jaan: India's First Recording Superstar, Hindi Article
Feature Image Credit: koscsof