"आज अंबर से खून के छींटे टपकतें हैं.
बच्चे अपनी माँ को नहींं, कफ़न में लिपटी उनकी लाश को लपकतें हैं."
6 जून. यूं तो यह तारीख हर साल आती है, लेकिन यह सिर्फ एक तारीख नहींं है बल्कि इतिहास का एक ऐसा पन्ना है जिस पर हज़ारों लोगों की कुर्बानी एक साथ लिखी गयी थी. यह तब हुआ जब भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ को अंजाम दिया था.
जी हाँ यह वही ऑपरेशन था, जो इंदिरा गाँधी की मौत का कारण बना. इस ऑपरेशन में हुए खून खराबे से भड़के उनके अंगरक्षकों ने उन्हें गोली मर कर उनकी हत्या कर दी थी.
यूं तो इस ऑपरेशन का पूरा श्रेय इंदिरा गाँधी को दिया जाता है, लेकिन उनके अलावा एक ऐसे नायक ने इस ऑपरेशन की कमान संभाली, जिसने इसे अंजाम तक पहुंचा कर ही दम लिया.
यह नायक इतिहास में जनरल कुलदीप सिंह बरार के नाम से जाना जाता है.
तो आईए नज़दीक से जानते हैं इस महान नायक को और ऑपरेशन ब्लू स्टार में इनके योगदान को–
बचपन से ही सिखाया गया अनुशासन
कुलदीप सिंह का जन्म पंजाब के एक सिख परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई देहरादून से की. वह एक अच्छी आर्थिक स्थिति वाले और पढ़े लिखे परिवार से थे इसलिए उन्हें देहरादून के शीर्ष बोर्डिंग स्कूल में दाखिला दिलाया गया.
उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई ‘कर्नल ब्राउन कैंब्रिज स्कूल’ से की, जिसके बाद उनके पिता ने उन्हें 'द दून स्कूल’ में दाखिला दिला दिया. इस तरह से उनकी ज्यादातर परवरिश बोर्डिंग स्कूल के सख्त माहौल में ही हुई.
घर पर भी माहौल कुछ ज्यादा अलग नहींं था. उनके पिताजी फ़ौज में एक बड़े औदे के अफसर थे. पिता के एक सीनियर फौजी अफसर होने के कारण परिवार का माहौल शुरू से ही अनुशासनपूर्ण था. बड़े होते जा रहे कुलदीप के लिए यह अनुशासन उनकी ज़िन्दगी का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा था.
1971 के युद्ध में दिखाई वीरता!
कुलदीप के लिए उनके पिता प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत थे. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पिता ने द्वितीय विश्व युद्ध में असीम साहस दिखाकर सेना में एक अभूतपूर्ण योगदान दिया था. पूरी निष्ठा से देश की सेवा करने के बाद उनके पिता मेजर जनरल के पद से रिटायर हो गए थे.
पिता से प्रेरित होकर कुलदीप भी 20 साल की उम्र में ही फ़ौज में भर्ती हो गये. सबसे पहले उन्हें मराठा लाइट इन्फेंट्री में लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात किया गया.
काम में अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गयी. उन्हें एक इन्फेंट्री बटालियन को कमांड करना था. जब भारत पाकिस्तान की सेनाएं जमालपुर में आमने सामने थी, उसी दौरान जनरल बरार ने असीम सहस का परिचय देते हुए अपनी बटालियन का हौसला बढ़ाया.
इस मिशन में उनकी कामयाबी को देखते हुए उन्हें भारत के तीसरे सबसे बड़े वीरता पुरुस्कार ‘वीर चक्र’ से सम्मानित भी किया गया. इसके बाद उन्हें 1971 के युद्ध के दौरान ही दूसरी बड़ी ज़िम्मेदारी मिली.
उन्हें ढाका के इर्द-गिर्द छिपे पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करना था. उन्होंने अपनी सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व इतनी कुशलता से किया कि पाकिस्तानियों को धर दबोचने के लिए वही सबसे पहले ढाका में घुसने में कामयाब रहें.
...फिर आन पड़ी ऑपरेशन ब्लू स्टार की नौबत
एक तरफ इमरजेंसी का काला दौर और दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियों के बीच चल रही खींचतान. इसके साथ ही अकालियों द्वारा एक स्वायत्त राज्य की मांग. एक तरह से 1970 के दशक का मानचित्र कुछ ऐसा ही बनेगा.
उस समय अकाली दल राजनीतिक मुख्यधारा का हिस्सा था. वह सिखों से जुड़े मुद्दे और उनकी मांगों की बात कर तो रहा था, लेकिन उनके दृष्टिकोण में पंजाब के युवाओं को वो निष्ठा नहींं दिखी.
उनकी एक सख्त सरदार की तलाश जरनैल सिंह भिंडरावाले पर आकर ख़तम हुई, जो सिख शैक्षिक संगठन ‘दमदमी टकसाल’ के नेता थे. उन्होंने सरकार की नीतियों की ओर एक कड़ा रुख अपनाया.
उनके भाषण को सुनने दूर दूर से लोग आया करते थे. पंजाब में बढ़ती हिंसा के चलते उन पर हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए. पंजाब में मौत का कहर रुकने का नाम ही नहींं ले रहा था. अकाली दल, खालिस्तानी समर्थक और जरनैल सिंह के समर्थकों ने सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन का रास्ता चुन लिया था.
बिगड़ते माहौल को मद्देनज़र रखते हुए इंदिरा गाँधी ने तत्कालीन दरबारा सिंह की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया. अब पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका था. राज्य में बाहरी राज्यों की गाड़ियों के आने जाने पर रोक लगा दी गयी थी.
ऑपरेशन ब्लू स्टार का मुख्य कारण भिंडरावाले को ही माना जाता है. उसने खालिस्तान समर्थकों के साथ मिलकर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर और अकाल तख्त कॉम्प्लेक्स पर कब्ज़ा कर लिया था. भारतीय सेना ने इस ऑपरेशन को भिंडरावाले और उसके साथियों को स्वर्ण मंदिर से निकालने की मंशा से ही चलाया था.
इस मिशन को अंजाम तक पहुँचाने का दारोमदार सौंपा गया जनरल कुलदीप सिंह बरार को.
सौंपी गयी ऑपरेशन ब्लू स्टार की कमान
ऑपरेशन ब्लू स्टार के शुरू होने से पहले जनरल बरार मेरठ में एक बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे. परिवार के साथ समय गुज़ारने के लिए उन्होंने 1 महीने की छुट्टी ले ली थी. 1 जून को वह अपने परिवार के साथ उड़ान भरने ही वाले थे कि उससे पहली रात को ही उन्हें अमृतसर जाने का हुकुम मिला.
इंदिरा गाँधी के ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम देने के फैसले के चलते उन्हें इस ऑपरेशन को लीड करना था. देश की सेवा को सर्वोपरि समझते हुए उन्होंने छुट्टी पर जाना रद्द कर दिया. तुरंत उड़ान भर कर वो अमृतसर पहुँच गए.
जनरल बरार ने पहुँचते ही सबसे पहले परिस्थिति को समझने के लिए पूरे गुरुद्वारे के इर्द-गिर्द घूमकर जगह का मुआयना किया. उन्होंने आतंकवादियों की तैनाती की हर जगह नोट कर ली, जिससे कि उन्हें पूरी योजना के साथ दबोचा जा सके.
दोपहर तक तो जनरल बरार ने शांतिपूर्वक तरीके से आतंकवादियों को आत्मसमर्पण करने को कहा, जिससे की गुरुद्वारे के अंदर फसें लोगों की जान का खतरा टल जाए. उनके लगातार कहने के बाद भी आतंकवादी नहींं माने.
जनरल बरार जानते थे कि आतंकवादियों ने आम जनता को केवल इसलिए बंधक बना रखा है ताकि सेना को अंदर घुसने से रोका जा सके. हालांकि, परिस्थिति को समझने के बाद उन्हें सख्त कदम उठाना ही पड़ा.
5 जून की रात को जनरल बरार अपनी 6 इन्फेंट्री बटालियन के साथ स्वर्ण मंदिर में घुस गए. उनके साथ सेना के सबसे जाबाज़ कमांडो भी थे. उन्होंने आतंकवादियों के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया.
वहां मौजूद सभी सिखों की धार्मिक संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपने सैनिकों को यह आदेश दे दिया कि हरमंदिर साहिब की तरफ हमला न किया जाये. हरमंदिर साहिब की तरफ से आतंकवादियों की गोलियां बरसती रही, लेकिन जनरल बरार अपने निर्णय से पीछे नहींं हटे.
उन्होंने सिखों के सबसे पवित्र स्थान अकाल तख़्त को भी बचाने की पूरी कोशिश की. ये करने के लिए उन्होंने आतंकवादियों को चकमा देने वाली दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया.
आखिर में जनरल बरार के नेतृत्व में भारतीय सेना आतंकवादियों को अकाल तख़्त और हरमंदिर साहिब से खदेड़ने में कामयाब रही. इसी ऑपरेशन के दौरान उग्रवादियों के दो सरदार शाबेग सिंह और जरनैल सिंह भिंडरावाले को मार गिराया गया.
आपको जान कर हैरानी होगी की शाबेग सिंह सेना के ही एक बड़े अधिकारी थे. इतना ही नहींं जब जनरल बरार सेना में भरती हो कर ट्रेनिंग अकादमी पहुंचे, शाबेग सिंह ही उनके ट्रेनर थे.
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद कहां है जनरल बरार?
1987 में सेना से रिटायरमेंट लेने के बाद जनरल बरार को मुंबई के सबसे सुरक्षित इलाके में रहना पड़ा. उनके ऊपर कई बार जानलेवा हमले भी किये गए, लेकिन कड़े सुरक्षा इंतजामों के रहते हमलावर कामयाब नहीं हो सके.
आज भी जनरल बरार को ऑपरेशन ब्लू स्टार का नायक माना जाता है. उन्हें अपनी वीरता के लिए परम विशिष्ठ सेवा मेडल और अति विशिष्ठ सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया.
जनरल बरार आज भी इस ऑपरेशन में हुए खून खराबे को याद करते हुए सिहर उठते हैं. वह इसे अपने जीवन काल में लड़ी सभी लड़ाइयों में सबसे कठिन मानते हैं. उनका कहना है कि बिगड़ते हालातों को देखते हुए उस समय सेना और सरकार के पास इस ऑपरेशन को अंजाम देने के सिवा कोई और विकल्प नहीं था.
आपको जनरल बरार की वीरता का यह किस्सा कैसा लगा, नीचे कमेंट बॉक्स में लिखना न भूलें.
Web Title: General Brar: The Hero of Operation Blue Star, Hindi Article
Feature Image Credit: india/Evening Standard