पाकिस्तान की जब भी बात आती है, वहां लोकतांत्रिक सरकारों से ज्यादा सैन्य शासन का जिक्र होता है. इसकी वजह भी बहुत हैं.
पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज कोई भी हो लेकिन हुकूमत वहां की सेना ही करती है, उसमें भी अगर कोई सैन्य जनरल राजनीतिज्ञ हस्ती है, तो कहना ही क्या… समझिए कि पाकिस्तान में तख्तापलट होना लाजमी है!
कुछ ऐसी ही कहानी पाकिस्तान के एक तेजतर्रार सेना प्रमुख की है, जिसने अपने राजनितिक फायदे के लिए अपने ही आका को मौत दे दी और खुद तख्तापलट कर वहां की गद्दी पर बैठ गया.
जी हां! यहां बात हो रही है जनरल जिया उल हक की, जिनके कारनामों ने पाकिस्तान की हवाओं में जहर घोला.
तो आइये इस लेख के माध्यम से उन पहलुओं को जानने की कोशिश करते हैं कि कैसे एक सेना प्रमुख अपने तानाशाही रवैये से वहां की सत्ता को हथियाता है –
दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई और…
भारत की गुलामी के दिन थे और पंजाब के जालंधर में रहने वाले मुहम्मद अकबर की बेगम ने 12 अगस्त 1924 को अपने दूसरे बच्चे को जन्म दिया.
ये लड़का कोई और नहीं जिया उल हक ही था.
इनके पिता अविभाजित भारत या हिन्दोस्तान में ब्रिटिश सेना के जीएचक्यू में एक क्लर्क के तौर पर काम करते थे.
इस बीच मुहम्मद अकबर की पोस्टिंग कई बार सशस्त्र बल के रूप में दिल्ली और शिमला में की गई और इसी के साथ उनके लड़के के अंदर भी सैन्य जज्बात पनपने लगे.
जिया उल हक ने शिमला में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद दिल्ली का रुख किया और फिर सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली.
जिया उल हक ने स्टीफंस में स्नातक के लिए इतिहास विषय को चुना था. जाहिर तौर पर उनकी रुचि इतिहास में ज्यादा थी.
कॉलेज के दिनों में जिया का व्यक्तित्व काफी शांत था. उनका ज्यादा झुकाव धार्मिक प्रवृत्तियों की ओर ही था, वह कट्टर इस्लाम को मानने वाले थे. ये सभी गुण उनमें अपने पिता से आए थे.
लेकिन कोई नहीं जानता था कि इस शांत और मासूम से चेहरे के पीछे एक तानाशाही रुख अख्तियार हो रहा है, जो समय आने पर लोगों को दिखाया जाने वाला था.
बहरहाल, सन 1943 में जिया उल हक अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हो गए.
A portrait of General Muhammad Zia-ul-Haq. (Pic: dawn)
भारत के खिलाफ लड़ी लड़ाई
1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध चलता है. ब्रिटिश सेना का हिस्सा होने के कारण जिया उल हक को नाजी जर्मनी के खिलाफ लड़ना पड़ा. हालांकि कुछ समय बाद युद्ध समाप्त हुआ.
जिया उल हक की घर वापसी के लगभग दो साल बाद भारत का एक सोची समझी रणनीति के तहत बंटवारा कर दिया गया.
14 अगस्त 1947 को एक नए राष्ट्र का उदय हुआ, नाम था ‘पाकिस्तान’ उसी समय सेना के साजो सामान के संग जिया उल हक भी पाकिस्तान चले गए.
1948 में कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत और पाकिस्तान में भयंकर युद्ध हुआ और जिया उल हक भी इस युद्ध का हिस्सा बने, इसके बाद 1965 में भी भारत-पाकिस्तान युद्ध में जिया ने भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ी.
General Zia ul Haq with Rajiv Gandhi on 1985. (Pic: Hindustan Times)
मिली सेना की कमान
समय बीतता गया और जिया उल हक के अंदर धार्मिक कट्टरता के साथ साथ उनकी सैन्य रैंक भी बढ़ती जा रही थी.
1966 में जिया ने 22 कैवलरी की कमान संभाली, इसके बाद इन्हें एक बख़्तरबंद डिवीजन का कर्नल स्टाफ बन दिया गया. 1969 में पाकिस्तानी सेना का प्रतिनिधित्व करते हुए बतौर बिग्रेडियर जिया उल हक जॉर्डन भी गए.
इसी बीच अपने शांत स्वभाव के कारण जिया उल हक प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की नजरों में चढ़ गए. एक मार्च 1976 को प्रधानमंत्री ने बिना सीनियोरिटी का ध्यान रखते हुए सात लेफ्टिनेंट जनरल को छोड़कर जिया उल हक को चार सितारा रैंक देकर पाकिस्तानी सेना का जनरल बना दिया.
General Zia-ul Haq at the Army barracks. (Pic: dawn)
प्रधानमंत्री को हटाकर किया तख्तापलट
इस समय तक पाकिस्तान में अशांति हो चली थी. सेना के मुताबिक काम नहीं हो पा रहे थे, जिहाजा उसने देश में अशांति और अराजकता को जन्म दिया ताकि प्रधानमंत्री भुट्टो के ऊपर दबाव बनाया जा सके.
हालांकि धीरे-धीरे पाकिस्तान की स्थिति और बिगड़ती चली गई, सेना ने विद्रोह कर वहां के शासन का तख्तापलट कर दिया.
5 जुलाई, 1977 को जिया उल हक ने सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार को योजनाबद्ध तरीके से उखाड़ फैंका और अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया.
इसी के साथ जिया उल हक ने पाकिस्तान में सैन्य शासन लगा दिया. इससे पहले भी पाकिस्तान में दो बार मार्शल लॉ लगाया जा चुका था.
बहरहाल, प्रैस की स्वतंत्रता को खत्म कर दिया गया और बाद में खुद को पाकिस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर लिया.
जनरल मुहम्मद जिया उल हक सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने में कामयाब रहे और उन्होंने अधिक से अधिक शक्तियां को अपने हाथों में सीमित कर लिया. जिया ने धीरे-धीरे अपने धुर विरोधियों को कुचलना शुरू कर दिया.
1980 के दशक में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने जिया उल हक को हिंसक और क्रूर तानाशाह बना दिया था.
जिया के सैन्य शासन के दौरान हजारों राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, अल्पसंख्यकों और पत्रकारों को यातनाएं दी गईं और उनकी हत्या की गई.
The President General Zia ul Haq administering the oath. (Pic: dawn)
…और फांसी पर लटका दिए गए भुट्टो
5 जुलाई 1977 को जनरल जिया उल हक द्वारा प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो सरकार का केवल तख्तापलट ही नहीं किया गया, बल्कि उनकी मौत की तारीख भी मुकर्रर कर दी गई.
सत्ता पर कब्जा करने के बाद हत्या की साजिश रचने के आरोप में विवादास्पद न्यायालय के साथ मिलकर भुट्टो को सलाखों के पीछे धकेल दिया गया.
मामला यहीं खत्म नहीं हुआ 18 मार्च 1978 को लाहौर हाईकोर्ट ने जुल्फिकार अली भुट्टो को नवाब मोहम्मद अहमद खान की हत्या के जुर्म में फांसी पर लटकाने का फरमान जारी कर दिया.
और आखिरकार चंद दिनों बाद 5 अप्रैल 1979 की रात को अचानक ही उन्हें फांसी पर लटका दिया गया.
बहरहाल, तानाशाह जिया उल हक की तुगलकी सनक के आगे पाकिस्तान को विकास की गति देने वाला इंसान अपना दम तोड़ चुका था.
Late Pakistani PM Zulfikar Ali Bhutto. (Pic: BePakistan)
इस क्रूर फांसी के लगभग 9 साल बाद ही 17 अगस्त 1988 को बहावलपुर के पास एक संदिग्ध हवाई दुर्घटना में पाकिस्तान के कई शीर्ष जनरलों व एडमिरल और पाकिस्तान में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत अर्नोल्ड लुईस रैफेल के साथ इस तानाशाह की भी मौत हो गई.
Web Title: General Muhammad Zia ul Haq: The Dictator Who Ruled Pakistan And end of Zulfiqar Ali Bhutto regime, Hindi Article
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