जैसा कि हम जानते ही हैं कि कला की कोई सीमा नहीं है.
कला एक ऐसी चीज है जो किसी भी तरह की हो सकती है. उसका कोई एक रुप नहीं है. वह किसी एक हद तक सीमित भी नहीं है.
कला के मामले में भारत विश्व में उत्कृष्ट स्थान रखता है. यहां की प्राचीन कला दुनिया भर में प्रसिद्ध है.
मगर भारत की ही तरह दुनिया के अन्य देशों में भी कोई न कोई प्राचीन कला रही है जो उस देश की पहचान बन गई.
एक ऐसी ही कला है जापान की ‘गयोटाकु’.
इस कला का जन्म जापान में करीब 100 साल पहले हुआ था. यह एक प्रकार की चित्रकला होती है जिसमें अलग-अलग आकार व रंगों की मछलियों के चित्रों को कागज पर बनाया जाता है.
क्या आप इस अद्भुत कला से परिचित हैं?
अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको इससे वाकिफ करवाते हैं और बताते हैं आपको कि आखिर कैसे इस कला ने जापान को विश्व स्तर की प्रसिद्धी दिलाई–
100 वर्षों से जापान में जारी है यह कला
करीब 100 वर्ष पहले शुरु हुई यह कला मछवारों के लिए थी. वह इसका इस्तेमाल अपने द्वारा पकड़ी जाने वाली मछलियों के आकार तथा प्रजाति का आलेख रखने के लिए करते थे.
शुरुआती दौर में इसके लिए सूमी स्याही का प्रयोग किया जाता था, क्योंकि इस स्याही में किसी तरह के विषैले पदार्थ नहीं होते थे.
हालांकि समय के साथ-साथ इस चित्रकला के लिए कई अन्य तरह की स्याहियों का भी उपयोग होने लगा.
यकीनन आप सोच रहें होंगे कि आखिरकार मछलियों के चित्र बनाने की कला में ऐसा क्या खास हो सकता है, जो उसे विश्व प्रसिद्धी मिल गई?
दरअसल इन चित्रों में बनाई जाने वाली मछलियों की तस्वीरों को किसी ब्रश या पेंसिल से नहीं बनाया जाता. बल्कि इसके लिए असली मछलियों के एक तरफ के हिस्से पर स्याही लगाकर उनकी छाप को कागज पर लिया जाता है.
यही कारण था कि इन चित्रों को बनाने में इस्तेमाल होने वाली स्याही विष मुक्त होती थी, ताकि चित्र बनाने के बाद भी उन मछलियों को खाने में प्रयोग किया जा सके.
यही कारण भी था कि 100 सालों से यह कला पूरे जापान में प्रसिद्ध है.
Ancient Art Form of Japan Gyotaku (Representative Pic: EleutheraSurf)
जापान नहीं… चीन की देन है यह कला?
इस प्रकार कागज पर छाप लेने की इस कला का जन्म दरअसल जापान के पड़ोसी देश चीन में हुआ था.
चीन में इस कला की शुरुआत करीब 7वीं शताब्दी या शायद उससे भी पहले हो गया था.
वह स्याही के जरिय कागजों पर तरह-तरह के आलेख लिखते थे. इन्हीं आलेखों को आगे चलकर किताबों का रुप दे दिया गया और यह चीन की एतिहासिक किताबों की सूचि में संग्रहित हो गए.
इसके अलावा वह पत्थरों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों की भी छाप लेते थे. इसी कला में थोड़ी सी तब्दीली करके जापान ने इसे अपने देश की प्राचीन काल की एक पहचान बना लिया.
जापान में इस कला की उत्पत्ति से जुड़ी एक अन्य कहानी भी है जोकि जापान के शासक से जुड़ी है.
इस कहानी के मुताबिक जापानी शासक चाहता था कि जापान द्वारा महासागर से जितनी भी मछलियां पकड़ी जाती हैं, उसका एक सही लेखा जोखा तैयार किया जाए… ताकि उन मछलियों पर केवल उन्हीं का एकाधिकार रहे.
इसी के चलते जापानी मछुवारों ने इस कला की शुरुआत की. पुराने समय में इस चित्रकला के लिए आपको केवल एक मछली, स्याही और कागज़ की आवश्यकता होती थी.
हालांकि अब असली मछली के स्थान पर रबर की बनी नकली मछलियों का इस्तेमाल किया जाता है.
Chiness Anicient Books Making By Rubbing Technique (Representative Pic: Blogs – The British Library)
दो तरह की है गयोटाकु कला
गयोटाकु कला को भी दो तरीकों से सम्पादित किया जाता है. पहली तकनीक होती है अप्रत्यक्ष और दूसरी है प्रत्यक्ष तकनीक.
अप्रत्यक्ष तकनीक में मछली को एक गीले कागज में लपेट दिया जाता है. इसके बाद उस पर स्याही या पेंट लगाया जाता है और सूखने के लिए रख दिया जाता है. सूखने के बाद मछली को सावधानी से कागज से अलग किया जाता है.
इसके बाद अपने आप ही कागज पर मछली की एक तस्वीर बन जाती है
गयोटाकु की दूसरी कला इससे पूरी तरह भिन्न है.
इस प्रयत्क्ष तकनीक में समय की काफी बचत होती है. इस तकनीक के माध्यम से एक ही समय पर एक से ज्यादा चित्रों को बनाया जा सकता है.
इसमें मछली के शरीर पर स्याही या पेंट लगाया जाता है और फिर इसे एक कागज पर रख दिया जाता है.
इसके बाद उसे हल्के हाथों से धीरे-धीरे दबाया जाता है ताकि मछली की आकृति अच्छे से कागज पर छप जाए.
यह तकनीक पहली वाली से काफी आसान रहती है, जिसके चलते ज्यादातर इसी तकनीक को काम में लाया जाता है.
हालांकि यह तो इसे बानाने वाले पर निर्भर करता है कि आखिर उसे किस तरह से इसे बनाना है. तकनीक कोई भी इस्तेमाल की गई हो… पर यह देखने में बेहद ही खूबसूरत लगती है.
The Japanese Art Form Gyotaku (representative pic: That Artist Woman)
मछलियों पर शोध में भी है ‘मददगार’
गयोटाकु की शुरुआत में यह चित्र केवल काली स्याही से बनाए जाते थे. हालांकि बाद में जैसे-जैसे हम दशक दर दशक आगे बढ़े इस कला में भी कुछ परिवर्तन आ गए.
इन चित्रों को और आकर्षक और प्रभावशाली दिखाने के लिए काली स्याही के अलावा अन्य रंगों को भी उपयोग में लाना शुरु किया गया.
स्याही के स्थान पर अलग-अलग रंग के पेंट का प्रयोग बढ़ गया. साथ ही अब इस तकनीक द्वारा बनाए जाने वाले चित्रों में मछलियों के साथ-साथ कुछ और चीजों को भी बनाया जाता है, जिनसे इन चित्रों की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है. आज इस कला को जापान में शिक्षा के तौर पर ग्रहण किया जाता है.
यह कला अब सिर्फ जापान तक ही सीमित नहीं रही है बल्कि अब यह दुनिया के अन्य देशों में भी फैल गई है.
शिक्षा के नजरिए से इस कला का प्रयोग मछलियों पर शोध करने के लिए किया जाता है.
यानि इस तकनीक के माध्यम से लोग मछलियों की सरंचना को बेहतर समझ पाते हैं. इस नजरिए से देखा जाए तो शिक्षा व शोध के क्षेत्र में गयोटाकु का बहुत महत्व है.
बहरहाल जापान की यह प्राचीन कला आज दुनिया भर में प्रचलित है. कला के दीवाने यकीनन इस चित्रकला में रुचि रखेंगे. यह न सिर्फ घर में सजाने के लिए बल्कि मछलियों के बारे में जानने के लिए भी उपयोग में लाई जा सकती है.
Gyotaku Fish Art (Pic: kendarafishprints)
तो देखा आपने कैसे सालों से जापान के लोग अपने घर को सजाने के लिए गयोटाकु जैसी कला का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. उनकी यह कला बहुत ही सामान्य सी दिखाई देती है मगर इसका महत्त्व बहुत ही गहरा है. यही कारण है कि इतने सालों बाद भी आज तक यह प्रसिद्ध है.
आप क्या कहेंगे इस गयोटाकु के बारे में?
Web Title: Gyotaku-Ancient Art of Japan, Hindi Article
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