दूसरे विश्व युद्ध में इतनी कहानियाँ छिपी हैं जिसका कोई हिसाब ही नहींं है. कुछ कहानियाँ प्रसिद्ध हैं, तो वहीं कुछ से दुनिया अनजान है.
ऐसी ही एक कहानी है गिसेल्ला पर्ल की, जिन्होंने युद्ध के समय कई महिलाओं की जान बचाई. कहते हैं कि इस काम को करने के लिए उन्होंने डॉक्टरी के नियम ही तोड़ दिए.
आखिर क्या है गिसेल्ला की कहानी चलिए जानते हैं–
शुरू से ही चिकित्सा में थी दिलचस्पी
गिसेल्ला पर्ल का जन्म साल 1907 में हंगरी में हुआ था. कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई का बहुत शौक था. कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई का बहुत शौक था.
इसलिए उनके परिवार वालों ने भी उन्हें उच्च और अच्छी शिक्षा दिलाई. माना जाता है कि वह अपने यहाँ की पहली ऐसी यहूदी लड़की थीं, जिसने उच्च शिक्षा हासिल की थी.
माना जाता है कि गिसेल्ला अपनी पढ़ाई को सिर्फ खुद तक ही नहींं रखना चाहती थीं. उनकी इच्छा थी कि वह उसके जरिए लोगों की मदद कर सकें.
इसलिए उन्होंने बड़े होने पर चिकित्सा की पढ़ाई करनी शुरू की. उन्होंने प्रसूतिशास्री की पढ़ाई की थी ताकि वह महिलाओं की खास मदद कर सकें.
अपनी कड़ी मेहनत से वह जल्द ही चिकित्सा की पढ़ाई पूरी कर पाईं और फिर उन्होंने एक प्रसूतिशास्री की नौकरी शुरू की.
वह बड़ी खुशी से हंगरी में शादी करके अपनी नौकरी कर रही थीं मगर, तभी दूसरे विश्व युद्ध का बिगुल बज गया.
जंग के शुरू होते ही उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई.
नाजियों के हमले ने बदल दिया जीवन...
नाजियों के हमले के बाद हंगरी में रहने वाले यहूदी नागरिकों का जीवन बदल गया. उन्हीं में से एक गिसेल्ला भी थीं.
नाजियों ने गिसेल्ला के पति, बेटे और माता-पिता समेत अन्य परिवार वालों को ऑस्चविट्ज कैंप भेज दिया.
गिसेल्ला नाजियों के हाथों से सिर्फ अपनी छोटी बच्ची को बचा पाई थीं. उन्होंने अपनी बेटी को एक गैर यहूदी परिवार के साथ छिपा दिया था.
इसके कुछ वक्त बाद ही नाजियों ने गेसिल्ला को भी पकड़ लिया. उन्हें भी उनके परिवार के साथ ऑस्चविट्ज कैंप भेज दिया गया.
हालांकि, गेसिल्ला को उनके परिवार के साथ नहींं रहने दिया. उन्हें परिवार से अलग कर दिया गया था. कैंप में पहुँचने के कुछ वक्त बाद ही गिसेल्ला के पति और बेटे को मार दिया गया.
वहीं दूसरी ओर गिसेल्ला को एक सहयोगी चिकित्सक के तौर पर डॉक्टर जोसेफ मेंगेले के पास भेज दिया गया.
जोसेफ उन दिनों अपनी क्रूरता के लिए जाना जाता था. उसके साथ काम करना मौत का सौदा था. शुरुआत में पर्ल को केवल खून निकालने और नाजी सैनिकों को खून चढ़ाने का काम दिया गया था.
इसे बीच मेंगेले को पता चल गया कि गिसेल्ला अनुभवी गायनाकोलॉजिस्ट हैं. इसके बाद मेंगेल ने सोच लिया कि वह इस बात का फायदा उठाकर रहेगा.
कैंप में जिंदा महिलाओं पर हुए भयानक टेस्ट!
मेंगेल ने गिसेल्ला को कैंप में मौजूद गर्भवती महिलाओं का पता लगाने का काम दिया. इस काम के पीछे मेंगेल का बहुत ही गंदा इरादा था.
वह उन गर्भवती महिलाओं पर कई तरह के भयानक आविष्कार किया करता था. नई दवाइयां टेस्ट करनी हो या फिर पोस्टमार्टम सीखना हो. मेंगेल यह सब जिंदा गर्भवती महिलाओं पर किया करता था.
कहते हैं कि महिलाओं को बेहोश तक नहींं किया जाता था. यह सब काम उनकी आँखों के सामने होते थे. इस बीच अगर कोई महिला मर भी जाए तो, मेंगेल को कोई फर्क नहींं पड़ता था.
मेंगेल ने गिसेल्ला को आदेश दिए कि वह सभी गर्भवती महिलाओं की जानकारी सीधे उसे आकर देंगी. इसके बाद उन्हें दूसरे कैंप में ले जाया जाएगा. वहां पर मां और बच्चे दोनों की अच्छी देखभाल की जाएगी.
नाजियों की दरिंदगी का नजारा देख चुकी गिसेल्ला जानती थी कि उन महिलाओं व उनके होने वाले बच्चों के साथ क्या होगा.
इसलिए उन्होंने किसी भी गर्भवती महिला की जानकारी मेंगेल को नहीं दी. इस बीच कैंप से परेशान कुछ महिलाएं अच्छी जिंदगी के चलते मेंगेल के पास चली गईं.
वह महिलाएं नहीं जानती थीं कि मेंगेल के दिमाग में क्या फितूर चल रहा है. माना जाता है कि उन महिलाओं के साथ मेंगेल ने बहुत से आविष्कार किए.
इसके चलते कितनी ही महिलाएं और उनके होने वाले बच्चे दोनों मारे गए. ऐसे में गिसेल्ला भारी चिंता में पड़ गईं.
अगर वह मेंगेल को गर्भवती महिलाओं के बारे में बतातीं, तो वह उन्हें मार देता. वहीं अगर वह कैंप में किसी बच्चे को जन्म दिलवातीं तो बच्चा और गिसेल्ला दोनों मारे जाते.
मजबूरन किया सैंकड़ों भ्रूण को खत्म!
गिस्सेल को समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर वह किस राह पर चलें. जब कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने एक कड़ा फैसला किया.
उन्होंने अपने डॉक्टरी सिद्धांतों से उल्ट महिलाओं के गर्भपात करने शुरु कर दिए. वह भी बिना किसी औजार, बिना किसी दर्द निवारक दवा और बिना अपने हाथों को साफ किए.
उन्होंने एक-एक करके कैंप में मौजूद अजन्मे बच्चों को मारना शुरू कर दिया. इस काम को करते हुए उनकी आत्मा को बहुत ठेस पहुंची मगर, फिर भी उन्हें यह करना ही पड़ा.
हजारों बच्चों की जन्मदाता भी बनीं पर्ल
कुछ वर्षों बाद जब जंग का अंत हुआ, तो डॉक्टर गिसेल्ला को भी उस नर्क से आजादी मिल गई. हालांकि, जब उन्हें अपने परिवार का पता चला, तो उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की.
बड़ी मुश्किलों से उन्हें बचा लिया गया. 1947 में उन्हें न्यू यॉर्क लाया गया. वहन उनसे नाजी डॉक्टरों से जुड़ी जानकारी हासिल करने के लिए पूछताछ की गई.
इस दौरान उनके बचाव में कैंप में रही एक महिला ने बताया कि कैसे डॉक्टर गिसेल्ला ने अपनी जान पर खेल कर उनकी जान बचाई थी.
इसके चलते उन्हें रिहा कर दिया गया. इसके बाद गिसेल्ला ने साल 1948 में अपनी कहानी को किताब के जरिये लोगों तक पहुंचाया.
करीब 3 साल बाद उन्हें अमेरिका की नागरिकता दे दी गई और उन्होंने न्यू यॉर्क के माउंट सिनाई अस्पताल में बांझपन विशेषज्ञ के तौर पर काम करना शुरू किया.
वहां काम करते हुए उन्होंने कई महिलाओं को माँ बनने में मदद की.
गिसेल्ला ने अपनी उस बेटी को भी ढूंढ लिया, जिसे वह हमले के दौरान एक परिवार के पास छिपा गई थीं.
कुछ वर्षों बाद वह अपनी बेटी के साथ इजराइल चली गईं और अपने अंत तक वहीं रही. कहते हैं कि अपनी मौत तक वह कभी भी उस मंजर को नहीं भूल पाईं. वह दर्द हमेशा उनके साथ ही रहा.
डॉक्टर गिसेल्ला ने भले ही कैंप में बहुत बच्चों की जान ली मगर, वह कदम बहुत जरूरी था. वह बच्चे अगर नाजियों के हाथ लग जाते, तो उन्हें और भी ज्यादा बुरी मौत दी जाती. गेसिल्ला का वह कदम कई मायनों में सही माना जा सकता है.
WebTitle: Gisella Perls Who Saved Many Women's Life In Nazi Camp, Hindi Article
Feature Image: justwatch