गैस चैंबर में यहूदियों का कत्लेआम और तानाशाही के भयावह रूप दिखाने वाले हिटलर ने जर्मनी की सत्ता पूरे विश्व में थोपनी चाही.
इसके लिए उसने द्वितीय विश्व युद्ध की शुरूआत की और फिर नाजी सेना के जरिए अपने आसपास के इलाकों पर कब्जा किया.
ऐसा करने के लिए उसने नाजियों की एक बेहतरीन फौज तैयार की थी. जिसमें एक से बढ़कर एक लड़ाके थे. जो एक कहने पर हिटलर के लिए अपनी जान तक कुर्बान करने के लिए तैयार रहते थे.
इन्हीं में से एक था नाजी सेना का पायलट हंस उलरिच रुडेल, जिसे 'ईगल ऑफ द ईस्टर्न फ्रंट' भी कहा जाता है.
रुडेल अदम्य साहस से भरा हुआ हिटलर का एक ऐसा स्टुका बॉम्बर पायलट था, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध में किसी भी अन्य जर्मन सैनिक की तुलना में बहादुरी के लिए सबसे ज्यादा पदक मिले.
रुडेल कैसे हिटलर का पसंदीदा पायलट और विनाश का प्रतीक बना. आइए जानते हैं –
हिटलर के लड़ाकों की युवा टीम
2 जुलाई, 1916 को जर्मनी के कोनराड्सवाल्डौ में पैदा हुआ हंस उलरिच रुडेल के पिता जर्मनी में नेता थे.
हिटलर के लिए एक नाजी युवक बनने से पहले रुडेल स्कूल का सबसे अच्छा खिलाड़ी था. वह डीकेथलीट बनना चाहता था, जिसके लिए उसने ओलंपिक में जाने का सपना संजोया था. बचपन से रुडेल एक पायलट बनना चाहता था. लेकिन मैट्रिक करने के बाद उनके पिता उसके लिए पायलट की महंगी शिक्षा का बंदोबस्ते करने में सक्षम नहीं थे.
लेकिन जब इसने लुफ़्टवाफ के बारे में सुना तो इसने निश्चय कर लिया कि ये एक पायलट बनकर ही रहेगा.
लुफ़्टवाफ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान संयुक्त जर्मन सेना की हवाई युद्ध शाखा थी. इसे हिटलर के युवा जर्मन नाजियों की टीम भी कहा जा सकता है.
रुडेल ने अपने जीवन में दृढ़ निश्चय कर लिया था, कि अगर कोई चाहे, तो कुछ भी कर सकता है. जिसकी प्रेरणा इन्हें अपनी बहन से मिली थी.
आगे एक सैनिक के रूप में भी, इन्होंने इस धारणा को अपने व्यक्तिगत आदर्श वाक्य बनाए रखा कि जो खुद का साथ छोड़ देता है, वह अपने लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर पाता.
बहरहाल, लुफ़्टवाफ में शामिल होने के लिए इन्होंने कड़ी मेहनत की और बड़ी मुश्किल से प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की. दिसंबर 1936 में पैदल सेना प्रशिक्षण शुरू हुआ.
लेकिन दुनिया का सबसे बड़ा पायलट बनना इतना आसान भी नहीं था. कई बार इन्हें निराशा हाथ लगी, इन्हें रिजेक्ट कर दिया गया.
ये चीजों को थोड़ी देर से समझता था. उाइव बॉम्बर स्कूल में वालंटियर बनने के बाद, वह स्टूका उड़ा पाने के लायक नहीं लग रहा था. ना ही उसकी अन्य कैडेट के साथ पटती थी, क्योंकि वह न तो शराब पीता और न ही सिगरेट का शौकीन था.
दो बार किया गया आयरन क्रॉस से सम्मानित
इसके बाद इन्हें पुनर्जागरण उड़ान स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया. हालांकि पश्चिमी अभियानों के दौरान इन्हें उड़ान भरने की इजाजत नहीं दी गई.
द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के बाद पोलैंड पर आक्रमण के दौरान इन्होंने अपनी पहली लड़ाकू उड़ान भरी.
11 अक्टूबर, 1939 को रुडेल को आयरन क्रॉस द्वितीय श्रेणी से सम्मानित किया गया था.
मई, 1940 को रुडेल को जेयू-87 स्टुका डाइव बमवर्षक विमान पाठ्यक्रम के लिए शामिल कर लिया गया.
इसके बाद इन्होंने ऑपरेशन बरबारोसा के लिए जर्मन सेना को हवाई सहायता दी.
फिर सितंबर 1940 को इन्हें स्टुका जहाज में रिप्लेसमेंट के लिए ग्राज़ वापस भेजा दिया गया. यहां इन्हें इस जहाज पर उड़ान भरने का मौका मिला. यहां काम करते हुए ये मई 1941 को क्रेते के हवाई हमला करने वालों में शामिल रहे.
1941 में ईस्टर के बाद, बड़ी उम्मीदों के साथ इन्हें युद्ध ग्रस्त इलाकों में तैनात कर दिया गया. 23 सितंबर, 1941 को, रुडेल ने पहली बार अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया. इन्होंने क्रोनस्टेड बंदरगाह पर खड़े सोवियत युद्धपोत 'मारत' को खाक में मिला दिया.
इसके बाद इन्होंने क्रोनस्टेड बंदरगाह के चारों और भयानक बमबारी कर कई नौकाओं, जहाजों और क्रूजर को समुद्र में डुबो दिया.
18 जुलाई, 1941 को इन्हें युद्ध में अनन्य बहादुरी और शौर्य का प्रदर्शन करने के लिए आयरन क्रॉस प्रथम श्रेणी से सम्मानित किया गया.
हिटलर ने बना दिया कर्नल
युद्ध के अंत तक, रुडेल ने बेजोड़ 2,530 मिशन पर काम किया. दुश्मन के खिलाफ उड़ान भरने के अपने पहले 90 दिनों के भीतर ही, इन्होंने अपनी 500वीं उड़ान पूरी कर ली थी.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इन्होंने अकेले पूर्वी मोर्चे पर 2,530 सवारी उड़ान भरीं और 519 सोवियत टैंकों को नष्ट किया.
एक जनवरी 1945 को हंस उलरिच रुडेल को कर्नल के पद पर पदोन्नत कर दिया गया. इस दौरान बर्लिन में बंकर के अंदर बने एक मुख्यालय में एडॉल्फ हिटलर ने रुडेल से कहा कि "तुम जर्मन सेना के अब तक के सबसे महान और साहसी सैनिक हो."
इसी के साथ उन्हें जर्मनी के सबसे बड़े अवॉर्ड तलवारें और हीरों के साथ गोल्डन ओक लीव्स सहित 'द नाइट क्रॉस' से सम्मानित किया गया.
सोवियत संघ ने मार गिराया जहाज
इनके जहाज को गिराने के लिए तकरीबन 30 बार एंटी-एयरक्राफ्ट गन से निशाना साधा गया, लेकिन हर बार ये बचकर निकल जाते. और फिर एक रोज 9 फरवरी को इनके जहाज को सोवियत संघ ने मार गिराया.
घायल होने के बाद इनकी एक टांग काट दी गई. लेकिन अपने जज्बे के कारण लगभग 6 हफ्ते बाद ही ये अपने काम पर दोबारा लौट आए.
इसके बाद 8 मई, 1945 को रुडेल ने सावियत संघ की पकड़ से बचने के लिए अमेरिका के ऊपर जेयू-87 स्टुका विमान उड़ाया.
किताबों के द्वारा भी दिया हिटलर को समर्थन
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ये अर्जेंटीना चले गए, जहां इन्होंने कई साल स्टेट एयरप्लेन वर्क्स में काम किया.
इसी के साथ अब इन्होंने किताबें लिखनी भी शुरू कर दी थीं. इन्होंने राजनीति पर दो किताबें लिखीं. पहली थी 'वी फ्रंटलाइन सोल्जर्स एंड आवर ओपीनियन टू रियरमामेंट ऑफ जर्मनी' और दूसरी 'डागैरथ्रस्ट और लीजैंड'.
इन किताबों के माध्यम से रुडेल ने अपने राजनीतिक इरादों को जाहिर किया था, जो वह एक पायलट के रूप में कभी भी जाहिर नहीं कर पाए थे. साथ ही किताबों में उन्होंने ऐसे जर्मन सैनिकों का उल्लेख किया था जिन्होंने एडॉल्फ हिटलर को अपना पूरा समर्थन नहीं दिया था.
रुडेल 1953 में पश्चिम जर्मनी लौट आए थे और जर्मन रीच पार्टी में शामिल हो गए.
द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद रुडेल जर्मनी में एक सफल व्यापारी बने. और फिर 18 दिसंबर, 1982 को हिटलर के इस मशहूर पायलट की मौत हो गई.
Web Title: Hans Ulrich Rudel: Nazi Pilot Who Called Eagle of The Eastern Front, Hindi Article
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