कैलेंडर की हर एक तारीख अपने आप में महत्वपूर्ण है. दुनिया के हर कोने में गुजरती ऐतिहासिक घटना कैलेंडर पर छपी इन तारीखों में कैद हो जाती है, जिन्हें आने वाली नस्लें याद रखती हैं. ऐसे में जिंदगी का हर दिन इंसान को कई तरह के अनुभव देकर जाता है. वहीं इस दिन से जुड़े कुछ ऐतिहासिक किस्से भी आपको याद रह जाते हैं.
वहीं कुछ लोग अपनी जिंदगी में वो मुकाम पा जाते हैं कि मरने के बाद भी उनका नाम लोगों की जुबान पर रहता है. मौत के बाद की तारीखें उन्हें जिंदा रखती हैं. आपको ऐसे ही चुनिंदा लोगों की ज़िंदगी से रुबरु करायेंगे.
आज हम ‘डे इन हिस्ट्री’ की इस कड़ी में 12 मई में दर्ज ऐसे ही कुछ किस्सों को इतिहास के पन्नों से निकालकर आपके सामने रखने जा रहे हैं–
राजस्थान के ‘जोधपुर’ की हुई स्थापना
राजस्थान राज्य के लिए आज का दिन काफी महत्व रखता है. आज ही के दिन राजस्थान के सबसे खूबसूरत शहरों में माने जाने वाले जोधपुर की स्थापना हुई थी. थार रेगिस्तान के किनारे बसा जोधपुर राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा शहर माना जाता है. माना जाता है कि 12 मई साल 1459 को राजपूत राव जोधा ने इस शहर में कब्जा जमाते हुए इस शहर की नींव रखी थी.
यही कारण है कि उनके नाम के आधार पर इस शहर का नाम जोधपुर रखा गया है. जोधपुर शहर की विरासत काफी लंबी है. माना जाता है कि यहां अधिकांश लोग कारोबारी हैं. इसके साथ ही इस शहर को ‘ब्लू सिटी’ के नाम से भी जाना जाता है. इस शहर में आपको एक चीज़ बड़ी आम और ख़ास मिलेगी.
वह यह है कि यहां पर सभी घर नीले रंग में दिखाई देते हैं. इसलिए इस शहर को नीले शहर के नाम से जानते हैं. दूसरी रोचक बात यह है कि इस शहर को सूर्य शहर भी कहा जाता है. सूरज की तेज़ किरणें जब इस शहर की रेत पर टकराती हैं, तो पूरा शहर कड़ी धूप में जगमगाता नज़र आता है.
जोधपुर का मुख्य आकषर्ण जसवंत थड़ा, घन घर, मेहरानगढ़ किला, उम्मेद भवन पैलेस और कई खूबसूरत झीलें और मंदिर शामिल हैं. जानकर हैरानी होगी कि जिन स्वादिष्ट व्यंजनों का हम अन्य राज्यों में आनंद लेते हैं, उनमें कई व्यंजन जोधपुर से ही विरासत के तौर पर मिले हैं. इन व्यंजनों में मावा की कचोरी, मिर्ची वड़ा, मखानिया लस्सी, दाल बाटी चूरमा और कई अन्य व्यंजन शामिल हैं.
इसके साथ ही जोधपुर में हस्तशिल्प कला काफी मशहूर है. जोधपुर की बनीं चीजें दूर-दूर तक नुमाईशों में बिकने जाती हैं.
Jodhpur Famously Known As Blue City (Pic: manvar)
‘छत्रपति शिवाजी’ को औरंगजेब ने कैद किया!
भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी लोकप्रिय हिन्दू राजाओं में से एक माने जाते हैं. शिवाजी ने अपने शासनकाल में साम्राज्य का जिस तरह नेतृत्व किया वह आगे चलकर मिसाल बना. माना जाता है कि शिवाजी में सबसे बड़ी ताकत यह थी कि वह राज्य के सेनानायक के रूप में कभी विवादों में नहीं रहे.
वह अपने दौर के एक कुशल सेनानायक होने के साथ तेज रणनीतिकार भी माने जाते थे. माना जाता है कि उनकी सेना में एक लाख से भी अधिक सैनिक थे. इतिहासकारों के अनुसार आज के दिन 12 मई साल 1666 में छत्रपति शिवाजी औरंगजेब से मिलने आगरा पहुंचे थे. बताया जाता है कि औरंगजेब ने उन्हें बंधी बना लिया था.
यह भी माना जाता है कि इस दौरान वह तीन माह तक जेल में रहे और बाद में जेल से रिहा हुए. नजीता यह रहा कि जल्द ही उन्होंने तय किया कि वह इसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करेंगे और मुगलकाल के खिलाफ अपने हथियार उठाएंगे. बाद में उन्होंने पुरंदर और जावेली के किलों पर अपना जीत का परचम लहराया. शिवाजी ने माराठाओं की एक विशाल सेना तैयार करते हुए 1674 में मराठा राज्य की स्थापना की और सिंहासन पर बैठे.
Shivaji Statue In South Mumbai (Pic: upload)
चीन में भयंकर भूकंप से ‘90,000’ लोगों की मौत
चीन देश के लिए कुदरत आज के दिन कहर बनकर टूटी थी. चीन के सिचुआन में भूकंप ने भयंकर तबाही मचाई थी. इस भूकंप में हज़ारों की संख्या में लोग ज़मीन में धंसकर और मलबे में दबकर मारे गए थे. 12 मई साल 2008 को आए इस भूकंप ने चीन को हिला कर रख दिया था. भूकंप की तीव्रता 8.0 आंकी गई थी.
इससे आसानी से अंदाज़ा लगया जा सकता है कि भूकंप आने के बाद सिचुआन में क्या मंज़र रहा होगा. चीन ने भूकंप के बाद मरने वाले लोगों का आंकड़ा पेश किया था. इसमें अधिकारिक तौर पर यह पुष्टि की गई थी कि इस भयंकर भूकंप में 90,000 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है…
हालांकि चीनी सरकार ने यह भी दावा किया था कि कई लोग इस भूकंप के बाद लापता हैं. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इस भूकंप से करीब एक लाख से अधिक लोगों की मौत हुई होगी. कई रिपोर्ट के अनुसार इस भूकंप में 5 हज़ार से अधिक बच्चों की मौत हुई थी.
भूकंप आने के बाद कई महीनों तक चीन में राहत कार्य चलता रहा था. भूकंप में फंसे लोगों को बचाने के लिए चीन ने अपनी सेना की मदद ली थी. इसके साथ ही भूकंप में घायल लोग जब अस्पताल पहुंचे थे, तो भीड़ के कारण वहां अफरातफरी का महौल रहा था.
Sichuan 2008 Earthquake China (Pic: ibtimes)
क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने ‘भारत’ छोड़ा..!
वह क्रूर ब्रिटिश अधिकारी लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग की हत्या की योजना के प्रमुख आयोजकों में से एक थे. उन्होंने क्रांतिकारी गदर षड्यंत्र में भारत की आजादी के लिए महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई थी. गदर योजना के तहत सभी क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सेना पर हमला करने की साजिश रची थी.
पहचान बदलकर रहने का उनका हुनर काम आया और दोनों बार वह ब्रिटिश अधिकारियों से बचने में कामयाब रहे. जब ब्रिटिश अधिकारियों ने उनकी खेजबीन तेज़ कर दी, तो वह आज के दिन 12 मई 1915 को कोलकाता छोड़ जापान रवाना हो गए. मशहूर क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने भारत की आजादी से पहले कई कुर्बानियां दीं.
ब्रिटिश अधिकारियों से अकेले दम पर लोहा लेने वाले रास बिहारी बोस ने जब अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया, तब अंग्रजों ने उन्हें जेल में डालने के लिए विभिन्न योजना बनाई. इसकी भनक लगते ही वह कोलाकाता से भारत की आज़ादी का सपना लिए जापान चले गए.
पहचान बदलकर लोगों के बीच रहने में माहिर रास बिहारी बोस ने जापान जाने के लिए भी अपनी नकली पहचान बनाई. हालांकि वह जापान तो आसानी से पहुंच गए, लेकिन उनकी मुश्किलें कम न हुईं. इसलिए उनको जापान में सत्रह बार अपना ठिकाना बदलना पड़ा.
जानकर हैरानी होगी कि इंडियन नेशनल आर्मी (आज़ाद हिंद फौज) के संस्थापक रास बिहारी बोस थे. हालांकि उन्होंने इस फौज का अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस को बनाया, जिसे सुभाष चंद्र बोस ने परवान चढ़ाया. जापान में अपनी क्रांतिकारी सोच के चलते उन्हें जापानी सरकार से राइजिंग सन का सम्मान भी मिला था. 21 जनवरी साल 1945 को जापान के टोक्यो में उनकी हत्या कर दी गई थी.
Revolutionary Rash Behari Bose (Pic: wikimedia)
तो ये थे 12 मई से जुड़े कुछ अहम ऐतिहासिक किस्से!
अगर आपको भी इस तारीख से संबंधित कोई विशेष घटना याद है, तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स में बताएं और अपनी जानकारी को पढ़ने वाले दूसरे लोगों तक पहुंचाए.
Web Title: Historical Events Of 12 May, Hindi Article
Featured Image Credit: whoa