हर रोज़ दुनिया की ऐतिहासिक घटनाएं कैलेंडर पर छपी तारीखों में कैद हो जाती हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को इतिहास से रूबरू कराती हैं.
कैलेंडर की प्रत्येक तारीख के पीछे एक इतिहास छिपा है और उस इतिहास के पीछे एक कहानी है! ऐसी हज़ारों कहानियाँ इतिहास की किताबों में दर्ज हैं, जो हमें दुनिया के मशहूर किस्सों के बारे में बताती हैं. ऐसे में इन किस्सों को हर कोई जानना चाहता है.
आज हम कुछ ऐसी ही ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने 30 अप्रैल के दिन को प्रसिद्ध कर दिया. तो चलिये 30 अप्रैल से संबंधित ऐतिहासिक किस्से और घटनाओं को जानने की कोशिश करते हैं–
अपने ही हाथों अपनी ‘मौत’ बन गया हिटलर
दूसरे विश्व युद्ध में दुनिया जीतने के लिए हिटलर ने, जो अत्त्याचारी कदम उठाए उनके लिए ही आज तक उसका नाम बदनाम है. जंग के शुरूआती समय में, तो हिटलर बहुत प्रभावशाली रहा मगर जंग ख़त्म होते होते उसके हाथों से उसका राज जाने लगा. बैटल ऑफ ब्रिटेन के बाद नाज़ी सेना का गुरुर पूरी तरह से टूट चुका था. नाज़ी सेना और हिटलर की ताक़त अब सिर्फ जर्मनी की हदों तक ही सीमित रह गई थी.
कहते हैं कि हिटलर भी मानसिक रुप से काफी कमज़ोर हो गया था. हमेशा जीतने की बात करने वाले तानाशाह के लिए यह हार नाकाबिले बर्दाश्त थी. इसके बाद डरे सहमे हिटलर ने जर्मनी के अपने बर्लिन हेडक्वाटर में बने तहख़ाने में छिपकर जान बचाई थी.
कई देश जर्मनी की सीमा के अंदर आ गए थे और हिटलर की खोज में लग गए थे. हिटलर जानता था कि अगर वह पकड़ा गया, तो उसका अंजाम क्या होगा. हज़ारों लोगों को मौत की नींद सुलाने वाला हिटलर खुद अपनी जान बचाने के लिये तहखाने में छिपा था. गुजरते वक़्त के साथ दूसरे देशों की सेनाएं हिटलर के तहखाने की तरह बढ़ रही थीं. कहते हैं कि हिटलर नहीं चाहता था कि वह ऐसे पकड़ा जाए. उस समय वह न तो लड़ सकता था और न ही जर्मनी से दूर कहीं भाग सकता था. अंत में कोई और रास्ता नहीं दिखने पर 30 अप्रैल 1945 को हिटलर ने आत्माहत्या कर ली थी.
Hitler Killed Himself (Representative Pic: biography)
वियतनाम के ‘खूनी युद्ध’ का हुआ अंत!
वियतनाम का युद्ध अपने समय के बड़े युद्धों में से एक था. इस युद्ध में लाखों लोगों और सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. माना जता है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान और फ्रांस ने वियतनाम देश के काफी बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था. कब्जे को लेकर दोनों देशों ने वियतनाम में अपनी सेनाएं उतार दी थीं. उनकी सेनाएं हर समय वहां पर तैनात रहती थीं.
कुछ समय गुज़रने के बाद चीन और रूस देश ने भी वियतनाम पर चढ़ाई कर दी थी. इसके बाद ही वियतनामियों के भीतर आजादी की आग जली थी. इसके बाद एक भीषण युद्ध शुरु हो गया था. वियतनाम युद्ध का स्वरुप इतना भीषण था कि इसे छोटे विश्व युद्ध की संज्ञा दी जाती है. माना जाता है कि इस खतरनाक युद्ध में चार मिलियन वियतनामी लोगों की मौत हो गई थी…
वियतनाम के इस युद्ध में सबसे ज्यादा नुक्सान अमेरिका को हुआ था. उन्होंने अपने नजाने कितने हजार सैनिक इस युद्ध की आग में खो दिए थे. हालांकि 30 अप्रैल 1975 को आखिर में इस खूनी युद्ध पर विराम लग ही गया. माना जाता है कि वियतनाम के इस युद्ध से असल में किसी को भी कुछ ख़ास हासिल नहीं हुआ. इसमें केवल लोगों का बेवजह ही खून बहा.
End Of Vietnam War (Pic: theringer)
जॉर्ज वॉशिंगटन बने अमेरिका के पहले राष्ट्रपति
जब बात दुनिया के विकसित देशों की होती है, तो सबसे पहले ज़हन में नाम अमेरिका का ही आता है. अमेरिका ने अपनी काबिलियत का डंका पूरी दुनिया में बजाया है. शिक्षा के स्तर से लेकर नौकरी तक अमेरिका हर जगह बाकी देशों से आगे माना जाता है. आज का दिन अमेरिका के इतिहास के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है. अमेरिका देश को आज ही के दिन अपना पहला राष्ट्रपति मिला था. 30 अप्रैल 1789 को अमेरिका को जॉज वॉशिंगटन के रूप में राष्ट्रपति मिला था. प्रेसिडेंट के लिये वोट करने वाले 69 पदाधिकारियों ने जॉज वॉशिंगटन के पक्ष में वोट करते हुये उन्हें लोकतांत्रिक रूप से अमेरिका का राष्ट्रपति चुना था.
अमेरिका को व्हाइट हाउस जैसी शानदार इमारत देने के पीछे भी जॉर्ज वॉशिंगटन का अहम योगदान है. बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि जॉर्ज वॉशिंगटन अपने दौर के सफल अमेरिकी राजनीतिज्ञ और सैनिक भी थे. जॉर्ज वॉशिंगटन संयुक्त राज्य के संस्थापक के नाम से भी विश्वभर में प्रसिद्ध हैं. जॉर्ज वॉशिंगटन के ही मन में व्हाइट हाउस को बनाने का सबसे पहले विचार आया. कहा जाता है कि व्हाइट हाउस को बनवाने के पीछे उनका मक़सद अमेरिका के प्रेसिडेंट के लिये एक विशेष और सुरक्षित घर तैयार करवाना था. इसी को ध्यान में रखते हुये व्हाइट हाउस को बनाने का काम शुरु किया गया था, लेकिन दुर्भाग्य से वह इस इमारत में रहने से पहले ही चल बसे थे.
George Washington First President Of America (Representative Pic: mountvernon)
अपनी ‘पहली यात्रा’ का फंड जमा करने निकले कोलंबस
प्राचीन समय के महान लोगों की कहानियां और किस्से हम पढ़ते और सुनते आये हैं. पहले के समय में कोई अपनी निडरता के लिये इतिहास के पन्नों में हमेशा दर्ज हो गया, तो कोई अपनी अनोखी खोज के लिये दुनिया के लिये प्रेरणादायक बन गया. महान नेविगेटर क्रिस्टोफर कोलंबस भी ऐसे ही नायक हुए, जिनकी यात्राओं ने उन्हें कई कहानियों का नायक बना दिया.
कोलंबस ने अपने समयकाल में न सिर्फ समुद्री यात्राएं की, बल्कि कई समुद्री दीपों एंव टापूओं को बसाने में मुख्य भूमिका भी निभाई. खास तौर पर उन्हें उनके द्वारा की गई अटलांटिक महासागर की यात्राओं के लिए याद किया जाता है.
14वीं सदी का अंत होते-होते दुनिया के सभी कोनों में व्यापार का चलन बढ़ रहा था. कारोबारी अपने व्यापार को बढ़ाने के लिये नये-नये रास्ते खोज रहे थे. यूरोपीय साम्राज्य भी आर्थिक प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर दुनियाभर में व्यापार करने को बेचैन थे. इसको देखकर कोलंबस ने यूरोपियन देशों की ओर से समुद्री यात्रा कर दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया का सफर करने का मन बनाया था.
30 अप्रैल 1492 को कोलंबस ने स्पेन के किंग फर्डिनेंड और रानी इसाबेला को अपनी यात्रा के लिए आने वाले खर्च की रकम देने के लिये आश्वस्त कर लिया था. इसके बाद किंग फर्डिनेंड और रानी इसाबेला ने कोलंबस को शाही कमिशन का तमगा दिया था. नई दुनिया की खोज में कोलंबस ने 3 अगस्त 1492 को स्पेन छोड़ दिया था. अपनी पहली समुद्री यात्रा के लिए निकले कोलंबस की उम्र तब 42 वर्ष थी.
Christopher Columbus (Representative Pic: time)
तो यह थे 30 अप्रैल से जुड़े कुछ प्रमुख किस्से. अगर आपको 30 अप्रैल से जुड़े कुछ अन्य प्रमुख किस्से याद हैं, तो उन्हें कमेंट बॉक्स में हमारें साथ ज़रुर साझा करें.
Web Title: Historical Events On April 30, Hindi Article
Feature Image Credit: time