आज के समय में पढ़ा-लिखा होना कितना जरूरी हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है. पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब… ऐसे ढेर सारे स्लोगन आपने अलग-अलग जगह चस्पा देखे होंगे.
ये साफ तौर पर पढ़ाई की महत्ता को बताते हैं. आमतौर पर माना जाता है कि पढ़ने के लिए आंखों का होना बहुत जरूरी है. बिना आंखों के शिक्षा संभव नहीं है, किन्तु ब्रेल लिपि की खोज ने इसको आसान कर दिया.
चूंकि, वर्तमान में इसका प्रयोग करके आंखों से दिव्यांग लोग भी पढ़ाई कर अच्छी खासी नौकरी पाने में सफल हो रहे हैं, इसलिए आईए जानने की कोशिश करते हैं कि इस लिपि की खोज कैसे हुई–
शुरुआती नाम ‘मून टाइप’ रखा गया
नेत्रहीनों के पास सब कुछ होता है. बावजूद इसके उनकी जिंदगी किसी काले अंधेरे की तरह होती है. ऐसे में पढ़ाई ही उनके लिए एक ऐसा तरीका होता है, जिसके बल पर वह सारी दुनिया को जान पाते हैं. इसके लिए वह एक खास तरह की लिपि का प्रयोग करते हैं, जिसे ‘ब्रेल लिपि’ कहा जाता है.
यूं तो इस लिपि को आधार देने में सबसे पहला नाम ‘वैलेन्टिन होय’ का लिया जाता है. माना जाता है कि वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने इस लिपि को कागज पर उतारा.
किन्तु, कुछ लोग इसे नहीं मानते. उनके अनुसार 1845 में इंग्लैंड के ‘विलियम मून’ ने इसको खोजा था. उन्होंने इस लिपि को रोमन अक्षरों की रूपरेखा में बनाया, जिसे ‘मून टाइप’ के नाम से जाना गया.
शुरुआत में इस लिपि का प्रयोग कठिन था, बावजूद इसके नेत्रहीनों की शिक्षा के लिए इसे एक बड़ा कदम माना गया.
William Moon (Pic: visen)
‘ब्रेल लिपि’ को एक नेत्रहीन ने ही बनाया
‘मून टाइप’ के रुप में नेत्रहीनों की शिक्षा के लिए एक लिपि की खोज हो तो चुकी थी, किन्तु वह इतनी जटिल थी कि उसे सीखना आसान नहीं था. ‘लुई ब्रेल’ नामक व्यक्ति ने इस बात को समझा और इसे सरल बनाने की कोशिश जारी कर दी. उनकी मेहनत रंग लाई और वह एक नई लिपि की खोज करने में सफल रहे. उन्होंने अपनी इसी लिप को नाम दिया, ब्रेल लिपि.
गजब की बात तो यह थी कि ‘लुई ब्रेल’ खुद नेत्रहीन थे!
असल में 4 जनवरी 1809 को फ्रांस में जन्मे लुई महज तीन साल के थे, जब एक दुर्घटना में उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी. इसके बाद उनके पिता ने उनको पेरिस के नेशनल ‘इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ’ में पढ़ने के लिए भेज दिया था. यह उस समय का जाना माना ‘नेशनल इंस्टीट्यूट’ था, जहां नेत्रहीनों को शिक्षित किया जाता था.
कहते हैं कि लुई इतने होनहार थे कि जल्दी ही उन्होंने शैक्षिक और व्यावसायिक, दोनों ही कौशल सीख लिए थे. इसके चलते वह चर्चित हुए और उन्हें फ्रांसीसी सैनिक ‘चार्ल्स बारियर’ से मुलाकात करने का मौका मिला. बारियर वह इंसान थे, जिन्होंने ‘मून टाइप’ लिपि को अलग-अलग ध्वनियों के आधार पर कोडमय किया था.
इससे नेत्रहीनों को काफी मदद मिलती थी.
Louis Braille invented Braille (Pic: pinterest)
आसान नहीं था ‘ब्रेल लिपि’ का सफर
लुई ब्रेल ने इसको उपयोगी समझा और जल्द ही सीख लिया. इस दौरान उन्होंने इसकी खामियों का अवलोकन किया. बाद में इनको दूर करने के इरादे से उन्होंने अपने प्रयोग शुरु कर दिए. लुई ब्रेल करीब 15 साल के रहे होंगे, जब उन्होंने एक सरल प्रणाली को विकसित किया.
वह केवल छह बिंदु पर पर आधरित थी, जिसकी तीन बिंदु एक लाइन बनाती थी और विभिन्न बिंदु से विराम चिह्नों को बनाया जाता था. इसके अलावा इसमें कुल 64 प्रतीकों का प्रयोग किया गया था.
लुई ब्रेल की लिपि सरल थी, इसलिए 18वीं सदी में पेंग्नर ने अपने संस्थान ‘रोयले’ में इसके प्रयोग की अनुमति दे दी. हालांकि, 1840 में उनके रिटायरमेंट के बाद इसका प्रयोग वहां बंद कर दिया. उनकी जगह पर रोयले के नए उत्तराधिकारी ‘पियरे आर्मड डुफौ’ ने लुई ब्रेल की इस तकनीक को वापस करते हुए ‘पॉइट आधरित सिस्टम’ का उपयोग शुरु करा दिया.
वह बात और है कि जल्द ही उन्हें लुई की लिपि की उपयोगिता समझ आ गई और उन्होंने इसे न सिर्फ अपने संस्थान में चालू करा दिया, बल्कि इसे सबसे बेहतरीन लिपि की मान्यता भी दी.
इसे लुई का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि 6 जनवरी 1852 में ‘पियरे आर्मड डुफौ’ चल बसे और एक बार फिर से उनकी लिपि को ‘रोयले’ से हटा दिया गया.
Braille Alphabet Card (Pic: pinterest)
आधुनिक गैजेट्स में ‘ब्रेल लिपि’
खैर, इन सभी अवरोधों को पार करते हुए लुई की तकनीक को आगे सबसे बेहतर माना गया. हां, इसमें समय के साथ-साथ कुछ बदलाव जरूर होते रहे. आज के दौर में आपने अमूमन नेत्रहीनों को फोन और घड़ी का इस्तेमाल करते देखा होगा. यह लुई की पद्धति के इस्तेमाल से ही संभव हो सका.
आधुनिक समय में कई गैजेट्स को बनाया गया है, जिसमें इस तकनीक का ही प्रयोग किया गया है. सेलफोन को ही ले लीजिए, आज नेत्रहीन के लिए ‘बी- टच ‘नाम का एक सेलफोन आता है, जिसका लक्ष्य हैं कि नेत्रहीन भी अन्य लोगों की तरह दोस्तों के साथ बात कर सकें. यह एक टचस्क्रीन फोन हैं. इसकी स्क्रीन में ब्रेल लिपि का प्रयोग किया गया हैं.
इसी क्रम में नेत्रहीनों के लिए खास तरह की स्मार्टवॉच भी बनाई गई है, जिसको कोरियाई देश में बनाया गया. इस स्मार्टवॉच में में भी ब्रेल लिपि का प्रयोग किया गया है, जिसकी मदद से नेत्रहीन सही समय बताने में खुद को सहज महसूस करते हैं.
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘ब्रेल लिपि’ आज के युग में नेत्रहीनों के लिए एक वरदान से कम नहीं है. उसने न सिर्फ उनकी पढ़ाई का रास्ता आसान किया, बल्कि अपने पैरों पर खड़े होने का साहस भी दिया.
अब तो इस लिपि की सहायता से नेत्रहीन तमाम कार्य कर सकते हैं, जिसके बारे में पहले सोचा जाना भी मुमकिन नहीं था. आखिर कौन सोच सकता था कि नेत्रहीन फोन पर बातें कर सकेंगे या फिर समय देखने हेतु घड़ी का उपयोग कर सकेंगे.
पर यह हुआ है और आने वाले समय में शोध इससे भी आगे जायेंगे, इस बात में दो राय नहीं!
Web Title: History of Braille, Hindi Article
Feature Representative Image Credit: bookish-relish