जब कभी हम अपने तिरंगे को लहराते हुए देखते हैं, तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. तब हम एक अलग किस्म के सुख का अनुभव करते हैं. पर क्या आपको पता है कि भारतीय झंडे का प्रारंभिक स्वरुप कैसा था? इसे सबसे पहले किसने बनाया था? इसकी जरुरत क्यों पड़ी और इसको सबसे पहले कहां फहराया गया था?
आईये इन सवालों के जवाब ढूँढने की कोशिश करते हैं…
राष्ट्रीयता से प्रभावित था ध्वज
तिरंगे की विकास यात्रा को जानने के लिए जब हम इतिहास के पन्नों को पलटते हैं, तो हम पाते हैं कि यह कहीं न कहीं राष्ट्रीयता से प्रभावित था. माना जाता है कि 1831 के आसपास राजा राम मोहन राय ने अपनी इंग्लैंड यात्रा के दौरान एक फ्रांसीसी जहाज़ पर एक झंडा लहराता हुए देखा था. उसको देखकर उनको महसूस हुआ था कि झंडा किसी भी देश के लिए कितना जरुरी हो सकता है. हालांकि, उनकी तरफ से इस दिशा में तुरंत कोई कदम नहीं उठाया गया था.
बाद में जब भारत में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन तेज हुआ, तो स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता (Link in English) ने सबसे पहले एक झंडे का प्रारुप तैयार किया. कुछ वक्त बाद ही इसी साल इस झंड़े को बंगाल के विभाजन के विरोध के दौरान प्रयोग किया गया. आगे समय के साथ इसमें परिवर्तन चलते रहे.
History of Indian Flag, 1906 (Pic: crwflags.com)
1906 में आया ‘लोटस ध्वज’
सिस्टर निवेदिता के झंडे के बाद 1906 में ही एक और झंडा आया, जिसे लोटस ध्वज कहा गया था. इस ध्वज में हरे, पीले और लाल रंग की तीन समान पट्टियां थीं. साथ ही हरे रंग के आठ कमल प्रतीकों को मुद्रित किया गया था. इसमें लाल रंग के दो प्रतीक मौजूद थे. पहला प्रतीक सूर्य का और दूसरा तारे का था. यही नहीं पीली पट्टी पर देवनागरी में ‘वन्दे मातरम्’ भी लिखा गया था. माना जाता है कि यह झंडा सच्चिंद्र प्रसाद बोस (Link in English) और सुकुमार मित्र ने मिलकर तैयार किया था. यह ध्वज 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के पारसी बागान में फहराया गया था.
लोटस ध्वज के बाद 1907 में भिकाजी कामा, विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा ने मिलकर एक नया डिजाइन दिया था. यह ध्वज पहले ध्वज के समान था, केवल इसमें एक परिवर्तन किया गया था. इस ध्वज में लोटस के स्थान पर 7 सितारे बनाए गये थे. चूंकि, यह ध्वज बर्लिन सम्मेलन में प्रदर्शित किया गया था, इसलिए इसे बर्लिन ध्वज भी कहकर बुलाया गया था.
बाल गंगाधर तिलक का झंडा
1917 के आसपास बाल गंगाधर तिलक भी एक झंडा लेकर आए थे. इस ध्वज में सप्तर्षि नक्षत्र, अर्धचंद्र और सितारा भी थे. इस झंडे का प्रयोग ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आंतरिम आंदोलन में लोगों को जुटाने में किया गया था.
इसके बाद 1921 में मशहूर लेखक पिंगली वेंकैया (Link in English) ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान एक नया ध्वज महात्मा गांधी को भेंट किया था. इस ध्वज में दो प्रमुख समुदायों, हिंदू और मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करते हुए लाल और हरे रंग का प्रयोग किया गया था. पिंगली ने इसमें गांधी जी के सुझाव से बीच में एक सफेद पट्टी और लगाई थी, जिसमें कताई पहिया को भी अंकित किया गया था. माना जाता है कि यह ध्वज राष्ट्र को एकजुट करने के लिए बनाया गया था.
पिंगली ने दिया पहला ‘तिरंगा’
पिंगली के बनाए ध्वज को लोगों ने राष्ट्रीय ध्वज की कसौटी पर शत प्रतिशत नंबर नहीं दिए थे, इसलिए 1931 में एक बार इसमें फिर से संशोधन किया गया. इस बार के ध्वज में सिर्फ इतना परिवर्तन किया गया था कि कताई पहिया को ध्वज के बीचों-बीच सफेद पट्टी में मुद्रित कर दिया गया था. माना जाता है कि यह साल राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ था.
बाद में इसी डिजाइन को आइडियल मानते हुए डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया. इस कमेटी ने फैसला लिया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे को कुछ परिवर्तनों के साथ राष्ट्र ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया जाए (Link in English). यह तिरंगा होना चाहिए और इसके बीच में अशोक चक्र होना आवश्यक है. इसके फलस्वरुप पहली पट्टी में केसरिया, मध्य में श्वेत पट्टी और तीसरी में हरे रंग का प्रयोग किया गया था. अशोक श्वेत पट्टी में स्तंभ की मौजूदगी ने झंडे की सुंदरता में चार चांद लगाने का काम किया.
History of Indian Flag (Pic: quora.com)
22 जुलाई को 1947 में संविधान सभा द्वारा इस ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रुप में अपना लिया गया था. ध्वज की पहली केसरिया रंग की पट्टी साहस और ताकत का प्रतीक है. मध्य वाली सफेद पट्टी शांति और सच्चाई का प्रतिनिधित्व करती है और अंतिम हरे रंग की पट्टी देश के विकास को प्रदर्शित करती है. सफ़ेद पट्टी के केंद्र में गहरा नीले रंग का चक्र है, जिसका प्रारूप अशोक की राजधानी सारनाथ में स्थापित सिंह के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले चक्र की भांति है. चक्र की परिधि लगभग सफ़ेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर है. चक्र में 24 तीलियां होती हैं.
तिरंगे से जुड़े कुछ अन्य पहलू
- संसद भवन देश का एकमात्र ऐसा भवन हैं, जिस पर एक साथ 3 तिरंगे फहराए जाते हैं.
- तिरंगे के लिए भारत में भारतीय ध्वज संहिता नाम का एक कानून है.
- तिरंगे के अपमान पर सजा का कड़ा प्रावधान है.
- भारत में बेंगलुरू से 420 किमी दूर स्थित ‘हुबली’ (Link in English) एक मात्र झंडे बनाने का लाइसेंस प्राप्त संस्थान हैं.
- राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में एक ऐसा लघु तिरंगा है, जो हीरे-जवाहरातों से जड़ कर बनाया गया है.
- रांची स्थित ‘पहाड़ी मंदिर’ (Link in English) भारत का अकेला मंदिर है, जहां तिरंगा फहराया जाता है.
- झंडे पर कुछ भी लिखना या फिर चित्र बनाना ठीक नहीं है.
- तिरंगे को रात में फहराने की अनुमति सन 2009 में दी गई थी.
History of Indian Flag, 1947 (Pic: mapsofindia.com)
भारतीय ध्वज न केवल हमारी आजादी को दर्शाता है, बल्कि यह सभी भारतीय नागरिकों की आन, बान और शान का प्रतीक है. तिरंगा हम भारतीयों की पहचान है. इसलिए कामना की जानी चाहिए कि हमेशा विजयी विश्व तिरंगा प्यारा… झंडा ऊंचा रहे हमारा… जय हिन्द.
Web Title: History of Indian Flag, Hindi Article
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