भारत में धरोहरोंं की कमी नहीं है. एक से एक नायाब नमूने आज भी यहां ज्यों के त्यों बने हुए हैं. राजस्थान में मौजूद जैसलमेर का किला इसका एक बड़ा नमूना है. इस किले में कई खूबसूरत हवेलियाँ, मंदिर और सैनिकों तथा व्यापारियों के आवासीय परिसर मौजूद हैं, जो इसे अन्य किलों से अलग बनाती हैं.
इतिहास के नजरिए से भी यह किला खासा महत्व रखता है, इसलिए इस किले को जानना दिलचस्प रहेगा–
जितना पुराना किला… उतना ही पुराना ‘इतिहास’
राजस्थान में बसे जैसलमेर का इतिहास सालों नहीं बल्कि हजारों साल पुराना है. इस किले का निर्माण 1156 ई. के आसपास ‘रावल जैसल’ के द्वारा कराया गया. इस किले के बनने के पीछे एक रोचक कहानी जुड़ी हुई है.
असल में उद-दीन मुहम्मद ने षड्यंत्र के तहत राजा रावल जैसल पर हमला करते हुए उनके किले को लूट लिया. साथ ही वहां के निवासियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया.
ऐसे में राजा जैसल के सामने अपने लोगों के लिए नए किले को स्थापित करने की बड़ी चुनौती थी. इसके तहत जैसल ने अपने नए किले के लिए त्रिकुटा के पहाड़ को चुना और जैसलमेर नामक शहर की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी भी बनाया.
हालाँकि, उनकी मुश्किलें यहीं नहीं खत्म हुईं. 1293-94 में दिल्ली के सुल्तान ‘अलाउद्दीन खिलजी’ के साथ उन्हें युद्ध लड़ना पड़ा. दुर्भाग्य से ‘रावल जैसल’ को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा.
इस तरह किले पर मुगलों का शासन हो गया. हालांकि, कुछ सालों के बाद भाटियों ने इस किले पर फिर से अपना अधिकार जमाया. चूंकि, इन युद्धों के दौरान इस किले का काफी बड़ा नुकसान हुआ, इसलिए 14वीं शताब्दी के आसपास इसकी मरम्मत का कार्य शुरू हुआ. आगे 1541 में मुगल सम्राट ‘हुमायूँ’ की नज़र इस किले पर पड़ी, तो उसने इस पर कब्जे के इरादे से हमला कर दिया.
पर वह इसमें कामयाब नहीं हो सका था.
इसके बाद मुगल लगातार करीब 30 वर्षों तक इसको जीतने का प्रयास करते रहे. अंतत: 1570 में एक संधि के तहत यह किला मुगल सम्राट ‘अकबर’ के अधीन हो गया. 1762 तक यह मुगलों के पास रहा था. बाद में यह महाराज ‘मुलराज’ के हाथ में आ गया था और 1820 में उनकी मृत्यु के बाद उनके वंशज गज सिंह का इस पर अधिकार रहा.
Jaisalmer Fort (Pic: omtoursandtravels)
भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी रही ‘खास’ भूमिका
ब्रिटिश शासन काल के बाद भारत को स्वतंत्रता के साथ विभाजन का कटु घूँट भी पीना पड़ा. पाकिस्तान को एक नए देश के रूप में विश्व के नक्शे पर जगह मिली. बावजूद इसके वह संतुष्ट नहीं हुआ और गलत मंसूबों के साथ उसने 1947 पर भारत पर हमला कर दिया, जिसमें उसे अपने मुंह की खानी पड़ी. लगा कि वह हार से कुछ सबक लेगा और दोबारा ऐसा नहीं करेगा. किन्तु, इसके बाद पहले 1965 और फिर 1971 में उसने भारत के साथ दो-दो हाथ करने का दुस्साहस किया.
1965 और 1971 के युद्ध को जीतने में वैसे तो हमारे सेना के जवानों का पराक्रम ही काम आया, किन्तु कहीं न कहीं इसमें जैसलमेर के किले की भी खास भूमिका रही. असल में ये युद्ध, जिस जगह पर लड़े गए… उनमें जैसलमेर भी था. चूंकि, युद्ध के दौरान वहां के रहने वाले लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना पर थी, किन्तु उन्हें कोई ठोस उपाय सूझ नहीं रहा था.
ऐसे में तय किया गया कि जैसलमेर की पूरी आबादी को वहां के किले के अंदर भेजना उचित होगा. असल में किला काफी मजबूत था, इसलिए उस समय वह सबसे सुरक्षित जगह माना गया. दूसरा यह किला इतना बड़ा है कि उस समय करीब 4000 लोग उसमें आसानी से आ सकते थे.
History of Jaisalmer Fort (Pic: navrangindia)
बेजोड़ ‘वास्तुकला’ का अनूठा संगम
जैसलमेर का किला राजस्थान के उत्तर-पश्चिम रेगिस्तानी शाह जैसलमेर में बनाया गया है, जोकि खुद में एक खास स्थल है. दूसरी चीज जो इसे सबसे खास बनाती है, वह है उसकी वास्तुकला. इसमें पीले रंग की रेत और पीले पत्थर का इस्तेमाल किया है, जो इस किले को पीले-सुनहरे रंग की चमक देता है. कहते हैं कि जैसलमेर के पांरपरिक सिद्धांत पर यहां के वास्तुशिल्प को डिजाइन किया गया है.
किले के वास्तुशिल्प को मुख्यत: तीन अलग-अलग शैलियों में बांटा गया है. पहली स्पाटिअल आर्गेनाईजेशन मध्ययुगीन वास्तुकला, दूसरी मुगल शैली और तीसरा अंग्रेजी शैली, जो पश्चिमी शास्त्रीय वाद को दर्शाती है.
इसी तरह इसकी दीवारों को तीन परतों में बांटा गया है. वहीं किले के अंदर बनाई गई वास्तुकला में इस्लामी, फारसी और भारतीय शैली का मिश्रण मिलता है. किले के ज्यादातर हिस्सों के निर्माण में संगमरमर का भी प्रयोग किया गया है.
History of Jaisalmer Fort (Pic: escapenfly)
किले के एक से बढ़कर एक खास हिस्से
सटीक जानकारी तो नहीं मिलती, लेकिन एक अनुमान की मानें तो यह किला 460 मीटर लंबाई और 230 मीटर की चौड़ाई में फैला हुआ है. वहीं यह करीब 250 फीट ऊंचा है. यूं तो इस किले का हर हिस्सा बहुत खास है, फिर कुछ खास हिस्सों को चिन्हित करना हो तो इसमें सबसे पहला नाम राज महल का आता है.
यह शाही महल देखने में काफी सुंदर है, जो सुबह 9 से शाम 5 बजे तक खोला जाता है. यह महल सात मंजिलों में बनाया गया है.
इसके बाद नाम आता है यहां के जैन मंदिर का, जो 12वीं शाताब्दी के आस-पास बनाया गया. यह मंदिर कितना खास है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहाँ आज के युग में भी जैन तीर्थ यात्रियों का तांता लगा रहता है. इस मंदिर में तोरण नामक एक प्रवेश द्वार है, जो पार्श्वनाथ मंदिर की ओर जाता है.
किले के अंदर एक लक्ष्मीनाथ मंदिर भी है, जिसकी स्थापना लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए की गई थी. यह मंदिर 1494 में राव लूणकरण के शासनकाल के दौरान बनाया गया था. इस मंदिर में कई सारे राजस्थानी चित्र हैं, जो प्राचीन काल में लोगों की संस्कृति के बारे मे जानकारी देते हैं.
इसके अलावा यहां एक भव्य पुस्तकालय भी बनाया गया है, जहां लोग पुरातत्व से संबंधित किताबें पढ़ सकते हैं.
Jain Temples In Jaisalmer Fort (Pic: catbirdinindia)
कुल मिलाकर यह किला हर वह खासियत रखता है, जो लोगों को इसकी ओर खीचने के लिए जरूरी है. फिर चाहे इसका गौरवशाली इतिहास हो, यहां की वास्तुकला या फिर यहां मौजूद मंदिर ही क्यों न हो!
Web Title: History of Jaisalmer Fort, Hindi Article
Featured Image Credit: scoopwhoop