दुनिया में एक से बढ़कर एक लग्जरी कार्स मौजूद हैं. इन सब में एक कार जिसे रईसी का सिंबल कहा जाता है, वो है मर्सिडीज बेंज.
किसी सितारे जैसा चमकता इसका लोगो देख कर लोगों की दिल की धड़क बढ़ जाती है. लग्जरी और परफॉर्मेंस में मर्सिडीज का कोई सानी नहीं.
करीब 120 साल पुरानी है इस कार की हिस्ट्री. कई कार कंपनियां आई और चली गईं, मगर इसे पछाड़ न सकीं.
तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों आज भी इस कार का दबदबा मौजूद है–
...जब मॉडर्न कार्स की हो रही थी शुरुआत
बात 19वीं सदी के अंत की है, जब लोग ट्रैवलिंग के लिए घोड़ागाड़ी का इस्तेमाल किया करते थे. तब तक साइकिल का आविष्कार हो चुका था.
दो इंज़ीनियर दुनिया को जीवाश्म ईंधन से चलने वाली गाड़ी से सफर कराने के बारे में सोच रहे थे. एक का नाम था गॉटलिब डेमलर और दूसरे का कार्ल बेंज.
दोनों जर्मनी में ही रहते थे पर कभी एक दूसरे से मिले नहीं थे. डेमलर गैसोलीन से चलने वाले इंजन पर काम कर रहे थे.
वहीं बेंज साइकिल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर एक चार पहिये वाले ऑटोमोबाइल के इंजन को बनाने में मशगूल थे.
कई वर्षों की मेहनत के बाद दोनों ही कामयाब हुए, लेकिन बेंज थोड़े किस्मत के धनी निकले. पहले उन्होंने साल 1883 में Benz & Co Rheinische Gasmotorenfabrik नाम की कंपनी रजिस्टर करवा ली.
इसके बाद वर्ष 1886 में बेंज ने मोटरवैगन के नाम से अपने इंजन का पेटेंट भी करवा लिया. इस तरह वो दुनिया को पहला इंटरनल कंबशन वाला इंजन बनाने वाले आदमी बन गए.
यही नहीं बेंज ही दुनिया के पहले वो आदमी थे जिन्हें पहला ड्राइविंग लाइसेंस भी मिला था. वहीं डेमलर ने अपने एक साथी विल्हेम मेबाच के साथ मिलकर साल 1890 में Daimler-Motoren-Gesellschaft (DMG) नाम की कंपनी की स्थापना की.
उन्होंने एक ऐसे इंजन का आविष्कार किया था, जो मोटरसाइकिल, नाव या किसी ट्रॉली से जोड़कर असानी से ऑपरेट किया जा सकता था.
उनका इंजन न सिर्फ आकार में छोटा था बल्कि बहुत पॉवरफुल भी था. इसके बावजूद उन्हें निवेशकों की राह देखनी पड़ी.
इसी बीच डेमलर की मौत हो गई और सारा भार मेबाच पर आ गया. एक तरफ बेंज अपने आविष्कार कर रहे थे. वहीं दूसरी तरफ डेमलर की कंपनी को अब मेबाच संभाल रहे थे.
दोनों ही अलग-अलग खुद को एक बड़ी कार कंपनी बनाना चाहते थे. उन दोनों ने शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन वह दोनों मिलकर दुनिया को कुछ बिलकुल ही नया देंगे.
पहली कार बनाते ही मर्सिडीज-बेंज मशहूर हो गई
दोनों ही कंपनियों ने अपना काम जारी रखा और दुनिया के लिए तरह-तरह के ऑटोमोबाइल तैयार किए. इस बीच प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया और इन दोनों का प्रोडक्शन कम हो गया.
इस युद्ध का असर जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा. ईंधन की कमी हो गई थी. इतना ही नहीं जंग के चलते दोनों ही कंपनियों को सेना के लिए वाहन बनाने पड़े.
वहां पश्चिमी देशों में नई-नई कार कंपनियां खुल रही थीं. बेंज और मेबाच दोनों ही घाटे में जा रहे थे. संकट की इस घड़ी में दोनों कपंनियों को एक होने का फैसला लिया.
वह एक दूसरे को सही से नहीं जानते थे मगर, अपनी कंपनियों को बचाने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ा. इस तरह साल 1926 में एक नई कंपनी Daimler-Benz अस्तित्व में आ गई.
जंग खत्म होने की कगार पर आई, तो दोनों कंपनियों ने सोचा लिया कि मिलकर दुनिया को एक नई कार देंगे. इसके बाद उन दोनों ने अपने-अपने डिजाइन को मिलाकर प्रोडक्शन शुरू किया.
इसके बाद अस्तित्व में आई Mercedes-Benz W15. आते ही इस कार ने ऐसा धमाका किया कि ऐसी 7000 गाडियाँ कंपनी ने बेचीं.
इसके अगले वर्ष ही Mercedes-Benz दुनिया की अग्रणी कार निर्माता कंपनी भी बन गई. मर्सिडीज ने द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर की कार से लेकर जर्मन सैनिकों के हथियार, एयरक्राफ्ट के इंजन और सबमरीन भी तैयार किए.
एक तरफ यह कंपनी मॉडर्न कार बना रही थी, तो दूसरी ओर जंग के हथियार. दोनों में ही इसने अपना खूब नाम किया.
जंग खत्म होने के बाद 1946 में कपनी ने 170V मॉडल पेश किया. इसमें 4 सिलेंडरों वाला 260D इंजन था. इस कार ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद कंपनी की साख को बरकरार रखने का काम किया.
विश्व युद्ध के समय हुआ सारे घाटे को कंपनी ने इससे ही पूरा किया. यह कार भी थोड़े ही वक्त में टॉप कार्स में शुमार हो गई.
रेसिंग की दुनिया में भी मचाई धूम!
नई कंपनी में एमील जैलिनेक नाम के एक ऑस्ट्रेलियन डायरेक्टर थे, जो रेसिंग के काफी शौकीन थे. जैलिनेक ने रेसिंग की दुनिया में खुद को आगे रखने के जुनून के साथ कंपनी को एक हाईस्पीड कार बनाने का सुझाव दिया.
वो ऐसी कार बनवाना चाहते थे, जो स्पीड के मामले में सबसे तेज हो और खूबसूरत भी दिखती हो. इसके लिए उन्होंने कंपनी को गाड़ी के इंजन को आगे की तरफ लगाने का सुझाव दिया.
इससे पहले गाड़ियों में इंजन पीछे की ओर लगे होते थे. मर्सिडीज ने अपनी कार के साथ इस चीज को बदल दिया.
कहते हैं कि जैलिनेक को कंपनी ने पहले गंभीरता से नहीं लिया. इसके बाद जैलिनेक ने कहा कि आप कुछ लिमिटेड कार्स ही बनाएं.
अगर वह कार्स कोई नहीं खरीदता, तो जैलिनेक ने 36 कारें खुद खरीद लेनी थी. किसी भी रूप में कंपनी को घाटा नहीं होना था.
इस बात के बाद कंपनी ने इस पर काम करने का मन बनाया. इस तरह कंपनी ने दुनिया की पहली 36 हॉर्स पावर वाली कार बनाई. ये कार भी बहुत फेमस हुई.
इसके बाद मर्सिडीज-बेंज का नाम रेसिंग कार में भी प्रसिद्ध हो गया. उस दिन के बाद से लगातार मर्सिडीज-बेंज कार टॉप कार्स की लिस्ट में शुमार होती आई है.
वह दिन था और आज का दिन है. अब तक इस कार के लोग दीवाने हैं. नए जमाने के साथ यह और भी ज्यादा मॉडर्न हो गई है. आज भी इसका वही पहले जैसा बड़ा नाम है.
क्या कहता है मर्सिडीज का लोगो?
मर्सिडीज का आइकॉनिक लोगो वर्ष 1910 में अस्तित्व में आया था. ये 'पानी, जमीन और हवा में मोबिलिटी' को दर्शाता है.
पानी और हवा इसलिए क्योंकि मर्सिडीज दशकों से सबमरीन और एयरक्राफ्ट के लिए इंजन डिजाइन कर रही है. इन तीनों ही जगह पर इस कंपनी ने अपना नाम बनाया है.
ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में मर्सिडीज की उपलब्धियां
-डीजल इंजन से लैस ट्रकों को सबसे पहले मर्सिडीज ने ही पेश किया था. 1923 में कंपनी ने OB2 इंजन लांच किया था और अगले ही साल दुनिया को उसका पहला डीजल ट्रक मिल गया था.
-80 के दशक में पूरी दुनिया में कार से हो रहे प्रदूषण को लेकर चिंता व्यक्त की जाने लगी. इस दिशा में आगे बढ़ने वाली मर्सिडीज पहली कंपनी बनी. इसने अपने इंजन को और भी एडवांस बनाना शुरू कर दिया. 1985 में इसके वाहनों में क्लोज्ड लूप 3 वे कैटेलिस्ट कनवर्टर और नए ऑयल फिल्टर लगाए गए, जो कम कार्बन उत्सर्जन करते थे.
-ABS और ESP सिस्टम जिनकी वजह से ड्राइविंग को सेफ बनाया गया, इसे पहली बार मर्सिडीज ने ही इस्तेमाल किया था. इनमें कंम्यूटर टेक्नोलॉजी की मदद से कार को एक्सिडेंट के दौरान फिसलने से रोका जाता है और उसे कंट्रोल किया जाता है.
इंडिया में मर्सिडीज बेंज का आगमन
भारत में मर्सिडीज बेंज की कार्स की एंट्री वर्ष 1994 में हुई. कंपनी ने अपना मैनुफैक्चरिंग प्लांट महाराष्ट्र के पुणे शहर में बनाया.
सैंकड़ों एकड़ में फैले इस प्लांट में मर्सिडीज के नए मॉडल एसेंबल किए जाते हैं. कार की बात करें तो मर्सिडीज की पहली कार Mercedes-Benz W124 को 1995 में इंडिया में लांच किया गया था.
ये कार लोगों को बहुत पसंद आई थी. इसकी दूसरी कार Mercedes-Benz W210 1997 में और तीसरी Mercedes-Benz W211 2002 में लांच की गई.
मर्सिडीज की ये कारें बहुत तेजी से भारत में बेची गईं. बहुत से लोगों ने इस लक्ज़री कार को अपना बनाया. इतना ही नहीं फिल्मों तक में इसे इस्तेमाल किया गया.
थोड़े ही वक्त में मर्सिडीज भारत में कुछ इस तरह चली कि भारत उनके लिए एक खास मार्केट बन गया.
मर्सिडीज बेंज ने आज पूरी दुनिया में अपना नाम कर लिया है. यही कारण है कि आज भी यह धड़ल्ले से बिकती है. इसका लुक और लक्ज़री टच आज भी लोगों को इसका दीवाना बनाता है. यही कारण है कि इसे एक आइकॉनिक कार माना जाता है.
WebTitle: History Of Mercedes Benz, Hindi Article
Feature Image: mbusa