दिल्ली का इतिहास हजारों साल पुराना है!
आज की दिल्ली के कई रिहायसी और चकाचौंध से भरे इलाके कुछ दशक पहले तक जंगल हुआ करते थे. हालाँकि, दिल्ली शुरू से ही राजनीति का केंद्र रही है, इसलिए यहां कई सल्तनतों और शासकों द्वारा विकास कार्य भी कराए गए.
वहीं यहां के ऐतिहासिक इलाके जैसे लाल किला, चांदनी चौक आदि मुगल काल से ही विकास करते रहे और समय के साथ इनके स्वरूप में परिवर्तन होता रहा. चाहे वो मुगल दौर का लाल किला हो, अंग्रेजों के समय का राष्ट्रपति भवन या फिर आज का अक्षरधाम मंदिर, खेलगांव या फिर सरोजिनी नगर का बाजार.
लेकिन सवाल उठता है कि इस खूबसूरत शहर की नींव कब और किसने रखी?
तो आइये इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने के लिए चलते हैं दिल्ली के ऐतिहासिक सफर पर–
3 हजार साल पुराना इतिहास
बहुत से लोग इस बारे में नहीं जानते कि दिल्ली की स्थापना कैसे हुई. इसे लेकर लोगों के मन में कई प्रकार की धारणाएं हैं.
इतिहास के आइने में देखें तो पता चलता है कि दिल्ली का जिक्र आज से 3000 साल पहले महाभारत काल से होता आ रहा है.
हालांकि उस समय इसे खांडवप्रस्थ कहा जाता था, जो कालांतर में इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना गया. उस समय यहां कौरवों व पांडवों में जगह को लेकर ठनी थी. सुलह के लिए धृतराष्ट्र के समक्ष एक अदालत का आयोजन किया गया जिसमें भगवान कृष्ण पांडवों की तरफ से पैरवी कर रहे थे.
जो 5 गांव देकर मामले को आगे बढ़ाया गया, उसमें से पानीप्रस्थ (वर्तमान में पानीपत), सोनप्रस्थ (वर्तमान में सोनीपत), बहाकप्रस्थ (वर्तमान में बागपत), तिलप्रस्थ (वर्तमान में फरीदाबाद) और खांडवप्रस्थ (वर्तमान में इंद्रप्रस्थ) शामिल था.
खांडवप्रस्थ इलाके में ही आज के दिल्ली की नींव डली.
महाभारत की समाप्ति के बाद ये काफी हद तक बर्बाद हो गया था.
कहा जाता है कि 50 ई. में महाभारत काल के इन अवशेषों पर मौर्य शासकों ने शासन किया.
धिल्लू नाम के राजा ने इस जगह का नाम बदलकर योगिनीपुरा कर दिया था. हालांकि राजा के बाद इसे धिल्ली कहा जाने लगा.
…और शायद धिल्ली ही सालों बाद रूपांतरित होकर दिल्ली हो गई.
Ancient City of Indraprastha. (Pic: deviantart)
तोमर वंश ने किया शासन!
एक समय तोमर वंश के राजा अनंगपाल या बिलानदेव तोमर ने इस जगह पर शासन किया. माना जाता है कि 736 ई. से 1180 ई. तक तोमर वंश ने दिल्ली पर शासन किया.
तोमर पांडवों के वंशज माने जाते हैं. हालांकि इस बात पर विवाद भी है.
दिल्ली संग्रहालय में रखे दस्तावेजों से पता चलता है कि दिल्ली का इतिहास राजा अनंगपाल के क्षेत्र पर अधिकार करने से शुरू हुआ. उन्होंने गुड़गांव में अरावली पहाड़ियों पर सूरजकुंड के पास अपनी नई राजधानी बनाई, जिसे अनंगपुर नाम दिया गया.
लेकिन राजा अनंगपाल ज्यादा दिनों तक वहां नहीं टिके और वापस दिल्ली आ गए. इन्होंने दिल्ली आने के बाद लाल कोट नामक शहर का निर्माण कराया.
हालांकि इसके बाद तोमर ने अपने 10 पुत्रों को दिल्ली के आसपास के राज्यों पर राज करने के लिए भेज दिया.
वहीं दिल्ली के 18वें शासक राजा महिपाल तोमर को महिपालपुर बसाने का श्रेय जाता है.
कहा जाता है कि तोमर वंश के आखिरी महाराजा अनंग पाल तोमर III अपनी लड़की के पुत्र और अजमेर के राजा पृथ्वी राज चौहान को दिल्ली की देखभाल का जिम्मा सौंपकर तीर्थ को निकल गए थे.
Outer Wall of Lal kot and Rai Pithora. (Pic: delhipedia)
लाल कोट का विस्तार!
इस तरह से लाल कोट को दिल्ली की पहली नगरी होने की ख्याति प्राप्त है. पुरातात्विक सर्वेक्षण भी इसी ओर इशारा करते हैं कि तोमर राजा द्वारा बसाया गया लाल कोट शहर ही दिल्ली का पहला शहर है.
वर्तमान महरौली के पास स्थित इस लाल कोट शहर को अनंग पाल तोमर II ने बसाया था हालांकि उनके बाद पृथ्वी राज चौहान का इस पर नियंत्रण रहा. आज भी इस इलाके में लाल कोट के खंडहरों को देखा जा सकता है.
कहा जाता है कि पृथ्वी राज 1164 ई. में लाल कोट के चारों ओर अपने शहर का विस्तार किया और इसे राय पिथोरा के नाम से जाना गया.
हालांकि मुस्लिम आक्रांता मुहम्मद गौरी ने एक युद्ध में यहां के शासक पृथ्वी राज चौहान को हरा दिया और अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को यहां की देखभाल करने के लिए छोड़ गया.
गौरी की मौत के बाद कुतुबुद्दीन ने खुद को दिल्ली सल्तनत का सुल्तान घोषित कर गुलाम वंश की स्थापना की और लाल कोट को अपनी राजधानी बनाया.
दिल्ली ‘सल्तनत’ के दौरान विकास!
दिल्ली सल्तनत के समय ही दिल्ली का विस्तार लाल कोट से महरौली तक हुआ और इसे 14वीं शताब्दि में पुरानी दिल्ली कहा जाता था. दिल्ली सल्तनत में 300 साल के शासन के दौरान विभिन्न शासकों द्वारा दिल्ली में 5 शहर बसाए गए.
सबसे पहले कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा लगभग 1192 ई. में सूफी संत शेख ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की याद में आज दिल्ली की धरोहर कही जाने वाली कुतुबमीनार का निर्माण शुरू कराया.
हालांकि जब तक कुतुबमीनार तैयार हो पाता तब तक ऐबक दुनिया को अलविदा कह चुका था. बाद में इल्तुतमिस ने इसका निर्माण पूरा कराया. कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुब मीनार के पास ही कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण कराया.
दिल्ली सल्तनत में शासकों ने अपना राज्य विस्तार किला राय पिथौरा से शुरू किया था. वहीं गुलाब वंश के खात्मे के बाद मामलूक वंश के जलालुद्दीन खिलजी द्वारा 1290 ई. में महरौली और कुतुब साइटों के आसपास निर्माण कार्य जारी रहा.
जलालुद्दीन खिलजी ने अपनी राजधानी वर्तमान महारानी बाग के पास स्थित किलोखेड़ी बनाई. इसके बाद के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने मंगोलों के आक्रमण के डर से राजधानी को सीरी में स्थापित कर दिया जहां आज ग्रीन पार्क, शाहपुर जाट और हौज खास इलाके मौजूद हैं.
हालांकि मंगोलों ने फिर भी दिल्ली पर आक्रमण किया लेकिन अलाउद्दीन पहले से इसके लिए तैयार था. लिहाजा लगभग 8000 मंगोलों को कैद कर लिया गया, उसमें कुछ मारे गए और बहुत से मंगोलों ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया.
लगभग 13वीं शताब्दी में अपने रहने और गुजर बसर करने के लिए उन्होंने मंगोलपुरी का निर्माण किया.
सन 1320 ई में तुर्की मूल के शासक ग्यासुद्ददीन तुगलक ने नसीरुद्दीन मुहम्मद को हराकर दिल्ली पर अपना अधिकार कर लिया और यहां तुगलकाबाद शहर बसाया और उसमें एक किले का निर्माण कराया. इसके बाद मुहम्मद तुगलक ने किला राय पिथौरा और सीरी किला के बीच जहांपनाह नामक एक और शहर की स्थापना की.
इसके बाद तुगलक वंश के एक और शासक फिरोज तुगलक ने दिल्ली में फिरोजाबाद या कोटला फिरोज शाह शहर बसाया जहां वर्तमान में फिरोज शाह कोटला स्टेडियम है.
इसके बाद तैमूर लंग द्वारा दिल्ली पर आक्रमण कर दिया गया और शायद तभी से दिल्ली सल्तनत का अंत शुरू हो गया. हालांकि इन्होंने दिल्ली को कई ऐतिहासिक मेमोरी दी, जिसके अंश आज भी देखे जा सकते हैं.
Qutab Minar Mehrauli. (Pic: malaysiaairlines)
मुगल शासन में मिली अद्भुत वास्तुकला!
बाबर के हमले के साथ ही यहां राज कर रही दिल्ली सल्तनत का अंत हुआ और मुगलों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया. इसी के साथ 16वीं शताब्दी से अंग्रेजों के भारत पर कब्जा करने तक भारतीय उपमहाद्वीप में मुगलकालीन वास्तुकला का विकास हुआ.
वहीं शाहजहां के शासनकाल के दौरान मुगलकालीन वास्तुकला अपनी चरम सीमा पर थी, वर्तमान में ज्यादातर वास्तुकला इसी काल की मौजूद है. इसी में से एक नमूना हुमायूं का मकबरा 1570 ई में इसकी बीबी द्वारा बनवाया गया. आज इसे यूनेस्को द्वारा धरोहर का दर्जा प्राप्त है.
1540 ई. में हुमायूं को हराने के बाद शेर शाह द्वारा पुराने किले का निर्माण शुरू कराया गया, हालांकि इसका मुख्य रूप से निर्माण हुमायूं द्वारा दीनपनाह नाम से कराया गया था. वहीं सन 1555 ई. में हुमायूं ने पुन: दिल्ली पर कब्जा कर लिया और अधूरे रह गए पुराने किले का निर्माण पूरा कराया.
महान मुगल सम्राट समझे जाने वाले अकबर का पोता शाहजहां ने दिल्ली के आखिरी शहर का निर्माण कराया जिसे शाहजहांनाबाद कहा गया. वहीं जामा मस्जिद और लाल किला का निर्माण भी इसी काल में कराया गया.
Humayun Tomb New Delhi. (Pic: luxuryholidaynepal)
अंग्रेजों ने दिया वर्तमान स्वरूप!
लगभग 200 साल के अपने शासनकाल में अंग्रेजों ने दिल्ली को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया.
लुटियन जोन की तमाम ऐतिहासिक इमारतों मसलन राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, साउथ ब्लाक और नॉर्थ ब्लॉक, संसद भवन आदि अंग्रेजों की ही देन हैं. 18वीं सदी में इन स्मारकों का निर्माण कराया गया.
वहीं कनॉट प्लेस को बनाने का भारत सरकार के मुख्य वास्तुकार श्रेय रॉबर्ट टॉर रुसेल को जाता है, जिन्होंने यूरोपियन शैली में नई दिल्ली के बीचों बीच एक प्लाजा बनाने के विचार पर काम किया.
रॉबर्ट टॉर रुसेल ने ही कनॉट प्लेस का डिजाइन बनाया लेकिन लुटियन और बेकर ने इनके काम को आगे बढ़ाया. इस तरह से आज आधुनिकतम बाजार कनॉट प्लेस नई दिल्ली के शान है.
एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स को इन सारी ऐतिहासिक स्मारकों को बनाने का श्रेय दिया जाता है. मुख्य रूप से इन्हें भारत की तत्कालीन राजधानी नई दिल्ली की अभिकल्पना के लिए जाना जाता है.
इस तरह से दिल्ली कई टुकड़ों में बनी और विकसित हुई लेकिन आधुनिक दिल्ली का विकास ब्रिटिश शासन काल में ही हुआ है.
Connaught Place New Delhi. (Pic: newindianexpress)
आज आप दिल्ली की कई मायनों में सैर कर सकते हैं, मसलन यहां मुगल, ब्रिटिश व अत्याधुनिक आर्किटैक्चर की भरमार है, जो आपको भारतीय इतिहास के कई ऐतिहासिक दौर में ले जाती हैं.
इन सभी के अलावा अगर आप भी दिल्ली की बसावट और उसकी वास्तुकला के बारे में जानते हैं तो कृपया नीचे कमेंट बॉक्स में हमारे साथ जरूर शेयर करें.
Web Title: History of New Delhi, Hindi Article
Feature Image Credit: malaysiaairlines