अगर आम भाषा में कहें तो, आपकी गोटी 98 नंबर तक पहुँच चुकी है. बस दो अंको की और जरूरत है और आप खेल जीत सकते हैं.
लेकिन, अक्सर 99 की संख्या पर मौजूद खेल का सबसे बड़ा सांप आपको डस लेता है. और आपको खेल की शुरुआत एक बार फिर से करनी पड़ती है. यह खेल है ही कुछ ऐसा! इस खेल में आपकी किस्मत काफी हद तक आपकी जीत को निर्धारित करती है.
ज्यादातर भारतीयों ने सांप-सीढ़ी का खेल खेला ही होगा. यह सिर्फ एक खेल ही नहीं है, इसे देखते ही बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं. स्कूल में पढ़ाई के दौरान, गर्मियों की छुट्टी में जब सारे कजिन एक साथ मिलते तो, सांप-सीढ़ी का खेल सबसे आम और ख़ास भी होता.
पूरा दिन इसे खेलते हुए कैसे बीत जाता, कुछ पता ही नहीं चलता. इस खेल का खुमार लोगों के ऊपर कुछ इस कदर है कि डिजिटल युग में भी यह अपनी पहचान बनाए हुए है. अक्सर लोग इसे अपने फ़ोन में ही खेलते हुए दिख जाते हैं.
ऐसे में, आज के 3डी और एनीमेशन वाले खेलों की जहाँ भरमार है, वहां अभी इसका अपना क्रेज युवाओं में बनाए रखना सराहनीय है.
तो आइये, जानते हैं सांप-सीढ़ी खेल का रोचक इतिहास जो भारत से उत्पन्न होकर विश्व तक पहुंचा-
कभी 'मोक्षपट' जैसे अनेक नामों से भी रहा मशहूर
आज सांप-सीढ़ी के नाम से मशहूर इस खेल के समय के साथ कई सारे नाम पड़े. इसका आविष्कार भारत की पृष्ठभूमि पर हुआ और धीरे-धीरे विदेशी सरजमीं पर भी यह मशहूर हो गया.
सांप-सीढ़ी खेल की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी. यह अपनी उत्पत्ति के दौरान मोक्षपट या मोक्षपटामु नाम से जाना जाता था. इसके अलावा, कई जगहों पर इसे ‘लीला’ नाम से भी जाना जाता था. 'लीला' नाम होने के पीछे की वजह थी मनुष्य का धरती पर तब तक जन्म लेते रहना, जब तक वह अपने बुरे कर्मों को छोड़ नहीं देता.
पुराने समय में यह ‘ज्ञान चौपड़’ नाम से भी जाना जाता था. इसका अर्थ है ‘ज्ञान का खेल’. हिंदू अध्यात्म के अनुसार ज्ञान चौपड़ मोक्ष का रास्ता दिखाता है. यह बार-बार जन्म लेने की प्रक्रिया से मुक्ति दिलाता था.
वैसे तो इसके बारे में पूर्ण तरीके से नहीं पता कि इसकी उत्पत्ति कब और किसने की. लेकिन, माना जाता है कि यह दूसरी सदी BC से ही खेला जा रहा है. यह इस बात का संकेत है कि यह विश्व के सबसे प्राचीन खेलों में शामिल है.
कुछ इतिहास-कार मानते हैं, सांप-सीढ़ी का आविष्कार 13वीं शताब्दी में संत ज्ञानदेव ने किया था. इस खेल को आविष्कार करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य बच्चों को नैतिक मूल्य सिखाना था.
अच्छाई और बुराई का संदेश देता था 'ये' खेल
अगर इस खेल के प्रारूप की बात करें तो, इसमें चौखाने मौजूद होते हैं. इसके कई रूपांतर भी बने हैं. सभी रूपान्तरों में अलग-अलग चौखाने होते थे.
प्रत्येक चौखाना 'गुण' या 'अवगुण' को दर्शाता हैं. उदाहरण के लिए , जिस चौखाने में सीढ़ी होती वह 'गुण' का है जो आपको आगे बढाता है. जबकि जिस चौखाने में सांप का फन होता है वह मौजूद बुराइयों को दर्शाता है. जिसकी वजह से आप हमेशा नीचे हो जाते हैं.
भारतीय बच्चों द्वारा यह खेल ज्यादा खेला जाता है, क्योंकि यह उनकी शिक्षा का एक हिस्सा है. इसमें वह अच्छे और बुरे कामों में फर्क करना सिखाता है. सांप-सीढ़ी में मौजूद सीढ़ियां दया, विश्वास और विनम्रता को दर्शाती हैं. वहीं दूसरी ओर सांप बुरी किस्मत, गुस्सा और हत्या आदि को दर्शाता है.
इस खेल का सार यह कि किसी भी व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति के लिए अच्छे कर्म करने होते हैं. जबकि बुरे कर्म करने वाले लोगों के जीवन में हमेशा सांप रुपी बुराई अवनति की ओर ही ले जाती है. इंसान आगे पहुंचकर भी नीचे की ओर लुढ़क जाता है और एक बार फिर उसे जीवन की शुरुआत करनी पड़ती है.
भारत के बाहर भी है प्रचलन में
यह सांप-सीढ़ी का खेल जैन, हिंदू और इस्लामिक रूपान्तरों को सहेज कर रखा गया है. पहले यह अक्सर, कपड़ों इत्यादि पर बना हुआ होता था. 18वीं शताब्दी के बाद यह बोर्ड पर बनने लगा. आज भी भारत में पला-सेना काल के समय के सांप-सीढ़ी का बौद्धिक रूपांतर मौजूद है.
आपको बता दें, कई स्कॉलर इस खेल की उत्पत्ति को प्राचीन जैन मंडलों से भी जोड़ते हैं. लेकिन, हर धर्म में इस खेल का लगभग वही अर्थ और प्रारूप ही देखने को मिलता है.
19वीं शताब्दी के दौरान, भारत में उपनिवेशकाल के समय यह खेल इंग्लैंड में जा पहुंचा था. अंग्रेज अपने साथ यह खेल अपने देश में भी लेकर गए. उन्होंने अपने हिसाब से इसमें थोड़े फेरबदल कर दिए.
खेल में कुछ बदलावों के बाद नये नाम ‘स्नेक एंड लैडरर्स’ से मशहूर हुआ. अंग्रेजों ने अब इसके पीछे के नैतिक और धार्मिक रूप से जुड़े हुए विचार को हटा दिया था. अब इस खेल में सांप और सीढ़ियों की संख्या भी बराबर हो चुकी थी. जितने सांप उतनी ही सीढियां.
इंग्लैंड के बाद यह खेल अब संयुक्त राज्य अमेरिका में भी जा पहुंचा. साल 1943 में यह अमेरिका में प्रचलन में आया. अमेरिका को इस सांप-सीढ़ी के खेल से मिल्टन ब्रेडले ने परिचय करवाया. वहां इस खेल का नाम अब हो गया था ‘शूट (chute) एंड लैडरर्स’.
किस्मत का है ये खेल
इस खेल की ख़ास बात यह है कि इसमें आप अपना दिमाग नहीं चला सकते हैं. यह पूर्ण रूप से किस्मत का भी खेल है. यह निर्भर करता है कि कब आपका डाइस कौन सी संख्या आपके हक में ला दे. उसके बाद वही संख्या आपको जीत या हार का मुंह दिखाती है. 98 की संख्या तक पहुँचते-पहुँचते लोगों में इंतजार और अपना सही समय आने तक का धैर्य रखना सिखाता है.
इसके अलावा, यह पुनर्जीवन की प्रक्रिया को दिखाता है. इस खेल में मौजूद 100 नंबर की संख्या ‘मोक्ष’ को दर्शाता है. इस खेल का उद्देश्य होता सांप- सीढ़ियों को पार करते हुए 100 नंबर की संख्या तक पहुंचना.
मोक्षपटामु में मौजूद चौखानों में विश्वास, उदारता, ज्ञान आदि गुण मौजूद माने जाते थे. इस खेल का एक और रूपांतर है जो आंध्रप्रदेश में वैकुंतापाली और परमापदा सोपनम के नाम से जाना जाता है.
इसके बाद, इसमें सांप ‘मृत्यु’ को दर्शाता है और सीढिया ‘जीवन’ को दर्शाता है. इस खेल में 132 स्क्वायर होते हैं, जिनमे अलग-अलग प्रकार की तस्वीरें होती हैं.
सांप-सीढ़ी के इस खेल को आज भी शायद ही कोई भूला है. इस खेल की सादगी और आसान रूल्स इसे हर किसी को खेलने के लिए मजबूर कर देती है. यही वजह है कि आज भी आपको आसानी से इसे लोग खेलते हुए दिख ही जाते हैं.
अगर प्रत्यक्ष रूप से नहीं तो, अपने स्मार्टफ़ोन पर इसका मजा लेते हुए दिख ही जाते हैं. भले ही कितने गेम आ जाएं, लेकिन सांप सीढ़ी की तो बात ही अलग है. इसमें सांप के काटने का जितना दुःख होता है, उतनी ही ख़ुशी सीढ़ी चढ़ जाने पर होती है.
ये खेल है ही इतना दिलचस्प!
Web Title: History Of Snake And Ladders Game, Hindi Article
Feature Image Credit: squarespace