विश्व जगत में ढ़ेर सारी ऐसी लड़ाईयां हुई हैं, जिन्होंने नया इतिहास बुनने का काम किया. ’30 साल’ युद्ध (Link in English) के नाम से मशहूर एक ऐसी ही जंग का नाम है, जिसने रोमन साम्राज्य को तितर-बितर कर दिया था. 1618 में धार्मिक उन्माद से उपजी यह जंग 1648 तक चली. इस संघर्ष में कितने लोग मारे गये इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. तो आईये 30 साल तक चलने वाले इस लंबे विनाशकारी संघर्ष के पहलुओं को टटोलने की कोशिश करते हैं.
घार्मिक उन्माद से पड़ी ‘संघर्ष की नींव’
1618 के आसपास रोमन साम्राज्य में केथोलिक और प्रोटेस्टेंट नाम के दो गुट सक्रिय थे. यह दोनों गुट अपने-अपने वर्चस्व के लिए हमेशा आमने-सामने रहते थे. यही नहीं खुद को मजबूत साबित करने के लिए प्रोटेस्टेंट गुट ने एक यूनियन बनाई तो केथोलिकों ने भी अपनी एक लीग की स्थापना कर दी.
इसी दौरान रोम साम्राज्य की बागडोर फार्डिनेंड द्वितीय (Link in English) के हाथों में थी. उसे सत्ता का नशा था. एक दिन अचानक उसने प्रोटेस्टेंट के धार्मिक क्रियाकलापों में लगाम लगाने का प्रयास किया. यही नहीं उसके आदेश पर दो प्रोटेस्टेंट गिरजाघर गिरा दिए गए. इस घटना ने प्रोटेस्टेंट के बीच उसके खिलाफ विरोध की चिंगारी को हवा दे दी. उन्होंने सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया.
History of Thirty Years War (Pic: minimumwagehistorian)
बिगड़ती स्थिति पर काबू पाने के लिए सरकार ने अपने प्रतिनिधियों को प्रोटेस्टेंट के पास भेजा तो उन्होंने उनको बंदी बना लिया. वह पूरा मूड बना चुके थे कि किसी भी हालत में वह वर्तमान सरकार को उखाड़ फेंकेंगे. इसी कड़ी में उन्होंने ‘फार्डिनेंड द्वितीय’ की अधीनता त्याग दी. उन्होंने पैलेटाइन के इलेक्टर फ्रेडरिक को अपना राजा बना लिया. इलेक्टर फ्रेडरिक को चुनने के दो बड़े कारण थे. पहला यह कि वह प्रोटेस्टेंट यूनियन का प्रधान था. दूसरा यह कि वह इंग्लैड के राजा प्रथम जेम्स (Link in English) का दामाद था. इस लिहाज से उससे युद्ध करना फार्डिनेंड द्वितीय के लिए आसान नहीं था.
कैथोलिक के सहयोग से प्रोटेस्टेंट पर हमला
फार्डिनेंड द्वितीय को समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसी स्थिति में क्या करें. तभी किसी ने उसे कैथोलिक गुट से मदद लेने की बात कही. उसे बताया गया कि कैथोलिक ही हैं, जो प्रोटेस्टेंट का सामना कर सकते हैं. फार्डिनेंड द्वितीय ने देरी न करते हुए कैथोलिक गुट के प्रमुख ड्युक मैक्समिलियन (Link in English) से मुलाकात की. एक लम्बी बातचीत के बाद वह सम्राट की मदद करने के लिए तैयार हो गया. कैथोलिक के सहयोग से प्रोटेस्टेंट पर हमला किया गया. यह हमला इतना जोरदार था कि फ्रेडरिक ज्यादा देर तक खड़ा नहीं हो सका. अंतत: मारे जाने के डर से वह अपने साथियों को जंग के मैदान में छोड़कर भाग खड़ा हुआ.
प्रोटेस्टेंट का दमन चरम पर था कैथोलिक उन्हें दबाने में लगे हुए थे. इसकी खबर डेनमार्ग के राजा क्रिश्चियन चतुर्थ को पड़ी तो उनसे रहा नहीं गया. असल में उसकी विचारधारा प्रोटेस्टेंट से मिलती थी, इसलिए उसको लग रहा था कि उसके अपने ही लोगों का दमन किया जा रहा था. वह इतना द्रवित हो उठा कि उसने उनके बचाव के लिए कैथोलिक पर हमला कर दिया. हालांकि वह इस युद्ध को जीत नहीं सका. उसे मायूस होकर डेनमार्क वापस लौटना पड़ा.
History of Thirty Years War (Pic: playbuzz.com)
कमजोर हुआ केथोलिक गुट और…
1628 तक आते-आते बोहेमिया हैप्सबर्ग साम्राज्य पर पूरी तरह से कैथोलिक के राजा मैक्सिमिलियन का वर्चस्व हो गया था. इस बीच एक और व्यक्ति था, जिसका प्रभुत्व बढ़ रहा था. वह था मैक्सिमिलियन का सेनापति सरदार वालेंस्टाइन. उसे अपनी ताकत पर गुमान हो चला था. इसके चलते उसने लोगों का शोषण करना शुरु कर दिया. पहले तो उसके खिलाफ किसी ने आवाज नहीं उठाई, लेकिन बाद में उसका इतना ज्यादा विरोध हुआ कि उसे उसके पद से हटा तक दिया गया. वालेंस्टाइन को हटाना मैक्सिमिलयन को बहुत भारी पड़ा. उसके हटते ही केथोलिक गुट की सेना कमजोर होने लगी. बाद में वालेंस्टाइन खुद राजा बन गया.
चूंकि वालेस्टाइन अभी नया-नया राजा बना था. इसका फायदा प्रोटेस्टेंट के नए राजा स्वीडेन नरेश गस्तबस अडाल्फस (Link in English) ने उठाया. उन्होंने कैथोलिक को कमजोर करने के प्लान बनाने शुरु कर दिए. वह चाहते थे कि उत्तरी जर्मनी के राजा उसकी मदद करें. उसने उनसे मदद की गुहार भी लगाई. अफवाह फैलने लगी कि उत्तरी जर्मनी के लोग प्रोटेस्टेंट की मदद करने वाले हैं. यह खबर कैथोलिक को लगी तो उन्होंने उत्तरी जर्मनी पर चढ़ाई कर दी. इसी युद्ध के दौरान मौके का फायदा उठाकर गस्तवस कैथोलिक के सेनापति टिली का ध्यान भटकाने में सफल रहा. जानबूझकर वह युद्ध स्थल से भागा ताकि टिली उसके पीछे दौड़े और वह मौका पाकर उसका काम तमाम कर दें.
‘गस्तवस’ ने युद्ध जीत लिया था, लेकिन…
गस्तवस का प्लान कामयाब हो गया था. टिली इस युद्ध में मारा जाता, मगर वह भाग निकला था. टिली के न रहने से कैथोलिक सेना कमजोर हो गई और उसे इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा. टिली के जाने के बाद अब गस्तवस का सामना सीधे कैथोलिक के राजा वालेंस्टाइन से था. यह बाजी भी गस्तवस के नाम रही. उसने वालेंस्टाइन को बुरी तरह पराजित कर दिया. इस युद्ध में गस्तवश गंभीर रुप से घायल हो गया था. अंतत: वह नहीं बचाया जा सका और मृत्यु को प्राप्त हुआ.
गस्तवश की मौत के बाद वालेंस्टाइन ने अमन के रास्ते पर चलने का मन बनाया और प्रोटेस्टेंट से हाथ मिलाते हुए संधि कर ली. सभी को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र दे दिए गये. तय हुआ कि कोई किसी के क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश नहीं करेगा. माना जा रहा था कि यह युद्ध अब हमेशा के लिए खत्म हो गया. सबने अमन के रास्ते पर चलना शुरु ही किया था कि वालेंस्टाइन की मौत हो गई. सबकी जुबान पर सवाल था कि अब क्या होगा भविष्य.
Treaty of Westphalia (Pic: historytoday)
तभी स्पेन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा ने इस संघर्ष को दोबारा हवा दे दी. फिर स्वीडन, फ्रांस, स्पेन, ऑस्ट्रिया और जर्मन जैसे देश अपने-अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ते रहे. अंततः 1648 में ‘वेस्टफ़ेलिया’ (Link in English) की संधि के बाद 30 साल तक चले इस युद्ध पर विराम लगा दिया गया. इस युद्ध के बाद यूरोप को एक नया प्रारुप दिया गया, जिसमें धार्मिक और राजनीतिक दोनों पहलुओं को तवज्जों दी गई.
Web Title: History of Thirty Year’s War, Hindi Article
Keywords: The Thirty Years’ War, Europe, Holy Roman Empire, Maximilian I, Bavaria, Germany, Bohemia, Catholic Church, Spain, Netherlands, Denmark, France, Habsburg, Protestantism, Roman Catholic Church, History, War and Battles, Mordern Europe
Featured image credit / Facebook open graph: history.com