दुनिया के प्राचीन जंगलों से ढका, विशालकाय सांपों और अनगिनत जहरीले जीवों के लिए मशहूर बोर्नियो द्वीप का नाम एडवेंचर में रूचि रखने वालों ने जरूर सुना होगा. यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा और एशिया का सबसे बड़ा द्वीप है. आज इस पर इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्रुनेई देशों का राज है.
हालाँकि, हमारा विषय इसके जंगलों का रहस्य या भौगोलिक स्थितियां नहीं है, बल्कि ‘किंगडम ऑफ सरवाक’ है.
‘किंगडम ऑफ सरवाक’… यह नाम सुनकर एक अलग ही दुनिया की परिकल्पना होती है. यह सही भी है. चूंकि यह अलग ही दुनिया थी… सफेद राजाओं की दुनिया!
चलिए आपको लेकर चलते हैं एक ऐसे प्रांत में जिसे बसाने वाले थे ब्रिटिश राजवंश के व्हाइट किंग जेम्स ब्रूक. तो चलिए जानते हैं आखिर क्यों मिला इसे ये नाम और क्या था इसमें खास–
उपहार में मिला साम्राज्य.
भारतीय उपमहाद्वीप पर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था. उसी दौरान बेर्ली में 1803 में न्यायाधीश थॉमस ब्रुक के घर जेम्स ब्रुक का जन्म हुआ. पिता न्यायाधीश थे इसलिए जेम्स का बचपन बहुत ही आलीशान तरीके से बीता. हर चीज जो उन्हें चाहिए होती थी वह उन्हें मिल जाया करती थी. जेम्स का शुरूआती जीवन इंग्लैंड में ही बीता. उन्होंने यहाँ पर ही अपनी सारी पढ़ाई पूरी की.
इंग्लैंड में पढ़ाई करने के बाद जेम्स ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना का हिस्सा बने. वह इंग्लैंड से सीधा भारत आए. भारत आने के बाद उन्हें बंगाल आर्मी का नेत्रित्व करनी की जिम्मेदारी दी गई. यह पहली बार था कि जेम्स इंग्लैंड से बाहर किसी देश में आए थे.
1825 में उन्होंने आंग्ल-बर्मी युद्ध के दौरान असम में सेना की कमान सम्हाली. यह पहली बार था कि वह जंग में लड़ रहे थे. उन्होंने जंग लड़ी और उस दौरान ही वह घायल भी हो गए. घायल होने के कारण वह लड़ने की हालत में नहीं थे. इसलिए अच्छे इलाज के लिए उन्हें इंग्लैंड वापस भेज दिया गया. 1830 में वे वापिस मद्रास लौट आए और सेना से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने जान लिया कि सेना में काम करने से उन्हें कोई ख़ुशी नहीं मिलेगी. वह अपने लिए कोई और काम ढूँढने लगे.
थोड़े समय बाद ही जेम्स के मन के अंदर न जाने कैसे यात्रा करने का जुनून शुरू हो गया. कुछ समय बाद उन्होंने 30 हजार पाउंड से 142 टन वजन वाला एक जहाज खरीदा और बोर्नियो द्वीप की यात्रा के लिए निकल गए.
1838 में वह मलेशिया देश के सरवाक प्रांत की राजधानी कुचिंग पहुंचे. उस दौरान पूरे सरवाक में विद्रोह की लहर चल रही थी. समुद्री डाकू और आंतरिक विरोधी दोनों ही सरवाक के सुल्तान से नहीं संभल रहे थे. उनकी प्रजा बहुत ज्यादा बड़ी नहीं थी फिर भी वह उन्हें संभालने में कामयाब नहीं हो पा रहे थे. जेम्स ने सुल्तान के आगे मदद का हाथ बढ़ा दिया.
सुल्तान भी मुसीबत में थे इसलिए उन्होंने मदद स्वीकार कर ली. जेम्स ने उन्हें बताया कि आखिर कौन सी मुश्किल से कैसे निपटना है. हालात सुधरने लगे और सुल्तान जेम्स की सहायता से खुश हुए.
वह इतने ज्यादा खुश थे कि उन्होंने सरवाक को पूरी तरह से ही जेम्स को सौंप दिया. जेम्स को खुद विश्वास नहीं हो रहा था कि आखिर उनके साथ ये क्या हो रहा है. सुल्तान ने सल्तनत की जिम्मेदारियां जेम्स को दी और अपनी दूसरी सल्तनतों की ओर चले गए. जेम्स के हाथ में जैसे ही सरवाक की सल्तनत आई उन्होंने सबसे पहले तो उसका नाम बदला और उसे ‘किंगडम और सरवाक’ किया.
James Brooke Got Sarawak In Gift (Representative Pic: moneyweek)
शानदार कूटनीति और न्याय ने दिलाई पहचान!
जेम्स शानदार कूटनीतिज्ञ थे!
वे सरवाक में रहते हुए भी ब्रिटेन के साथ सुसंवाद बनाए हुए थे. वे 1847 में लंदन आ गए. उन्होंने बोर्निया को स्वतंत्र राष्ट्र बनाए जाने की मांग भी की. 1853 में वे सरवाक वापिस लौट आए और प्रांत के विकास के साथ—साथ यहां सुरक्षा और कानून व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए काम किया. इस दौरान उन्हें विद्रोहियों का सामना भी करना पड़ा.
उन्होंने सरवाक की एक पुरानी परंपरा को कड़ाई से बंद करवाया. इस परंपरा के अनुसार युद्ध में प्रतिद्वंद्वी का सिर काट लिया जाता था. यह काफी विभत्स और पीड़ादायक था. जेम्स ने कानून सुधार के लिए ‘सरवाक रेंजर्स‘ का गठन किया. यह एक पुलिस बल था जो लोगों को कानूनी सहायता दिलाने के लिए बनाया गया.
चार्ल्स ब्रुक को मिली सत्ता!
जेम्स ब्रुक की कोई औलाद नहीं थी. 1861 में, उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर अपनी बेटी के सबसे बड़े बेटे कैप्टन जॉन ब्रूक जॉनसन-ब्रूक का नाम प्रस्तावित किया था. हालाँकि, उसकी कुसंगति को देखते हुए बाद में उन्होंने यह जिम्मेदारी उसके छोटे भाई चार्ल्स ब्रुक को सौंप दी. 1868 में जेम्स की मृत्यु के बाद चार्ल्स सरवाक के राजा बने.
उन्होंने अपने शासन काल में सरवाक को आधुनिक बनाने पर जोर दिया. शहर में नई सड़के बनाई गईं. संग्रहालय, रेस कोर्स, सुंदर भवन और होटल्स का निर्माण किया गया. यहां ट्रेनों का विस्तार किया गया ताकि यातायात सुगम हो सके. उन्होंने व्यापार की नीतियों को आसान बनाया. उन्होंने सरवाक राज्य की परिधि को 5 हजार वर्ग मील तक बढ़ाया.
चार्ल्स के शासनकाल में सरवाक को ब्रिटिश प्रेटक्टेरटेट के रूप में मान्यता प्राप्त हुई. 1917 में चार्ल्स ब्रुक की मृत्यु हो गई.
Charles Brooke (Pic: wikipedia)
ब्रिटिश बदलवा रहे थे धर्म!
चार्ल्स ब्रुक के बाद उनके बेटे चार्ल्स वर्ने ब्रुक शासक बने. चूंकि ब्रिटिश राज था इसलिए आदिवासियों से जबरन उनका धर्म बदलकर ईसाई बनने पर जोर दिया जा रहा था. वर्ने ने इस बात का विरोध किया और आदिवासियों को उनके ही धर्म का पालन करने देने पर जोर दिया. इसके कारण सरवाक की जनता ने उन्हें बहुत सम्मान दिया. आदिवासियों का रोजगार बना रहे इसलिए उन्होंने देश में मशीनों के इस्तेमाल को कम रहने दिया.
इसके कारण उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों का रोष भी झेलना पड़ा.
1941 में वर्ने आॅस्ट्रेलिया चले गए. तभी सरवाक में जापानियों ने आक्रमण किया. जब तक जंग चली तब तक वर्ने आॅस्ट्रेलिया में ही रहे. जंग खत्म होने के बाद वे सरवाक वापिस लौटे पर तब तक पूरे एशिया में स्वतंत्रता की लहर आ चुकी थी. 1946 में सरवाक ब्रिटेन के हाथों आजाद हो गया.
British Were Trying To Change People Religion In Sarawak (Pic: flickr)
आखिर खत्म हो गई सत्ता
चार्ल्स वर्ने के भतीजे एंटनी चार्ल्स ने एक बार फिर सरवाक की सत्ता हासिल करने के लिए जन साधारण से समर्थन मांगा. उन्होंने इस मांग के लिए बहुत देर कर दी थी. सरवाक अब पहले जैसा नहीं रह गया था. वह अब आजाद था और किसी ब्रिटिश को अपना राजा नहीं चाहता था. 1963 में सरवाक मलेशिया फेडरेशन में शामिल हो गया.
यहाँ से सरवाक के ‘सफ़ेद राजाओं’ का सफ़र ख़त्म हो गया.
जेम्स ब्रूक की बदौलत ही ब्रिटिश लोगों ने कई सालों तक सरवाक पर राज किया. जब जेम्स सरवाक पहुंचे थे तो वहां कुछ भी नहीं था सिवाए जंगलों के. अपनी सालों की मेहनत के बाद उन्होंने सरवाक को एक बढ़िया देश बनाया.
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Web Title: Story of Ashwathama, Hindi Article